दो बाल्टी पानी - 20 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 20

उधर सुनील को होश आया तो सरला की जान मे जान आई, वो उसके माथे पे हाथ रखके बोली, "अब कैसा लग रहा है तुझे? तूने तो हमारा कलेजा निकाल दिया रे, जय हो बजरंगबली की, हम कल ही तुझे बेताल बाबा के पास ले चलेंगे, अरे हमारे होते हमारे लल्ला को कोई चुड़ैल धर ले ऐसा नहीं होने देंगे" |

सुनील हड़ब़ड़ा के उठा उसे तो ध्यान ही नहीं रहा था कि पिंकी से उसने मिलने का वादा किया था, उसने सरला से कहा," अरे अम्मा तुम काहे बेकार में चुड़ैल के चक्कर में फंसा रही हो, हमें कुछ नहीं हुआ हम बिल्कुल चकाचक हैं"| सरला ने अपना पल्लू कमर में खोंसते हुए कहा, " क्या बोला रे… अरे तेरे मुहँ मे ज़बान कब से आगई, यह मंत्र पढ़ा पानी तुझे पिलाया तो होश में आया तू हरामखोर, यहां चुपचाप बैठ नहीं तो हाथ पैर तोड़ दूंगी, यही बांध दूंगी.. भोलेनाथ की कसम" |

सुनील बड़ी मुश्किल में पड़ गया वह सरला को समझाता लेकिन सरला के आगे सब बेमतलब था | वो फिर बोला, "अरे अम्मा हमें बड़ी घुटन हो रही है, हमें बाहर जाने दो ये बकैती बाद में करना अरे घर में बंद कर के मारोगी का, सुबह से तो हम घर में पड़े हैं"|

यह सुनकर सरला का माथा ठनका और उसने सुनील का हाथ पकड़ा और उसे कस के झटक दिया और सुनील की पीठ पर दो चप्पल छाप दी 'छपाक' और बोली" अरे हमें पता है तेरा मुंह इतना काहे खुला है, यह उस चुड़ैल का असर है, अरे उसका तो मैं मुंह तोड़ दूंगी, मिल जाए वह हमें बस, अब तू कमरे से तब तक नहीं निकलेगा जब तक बेताल बाबा को मैं यहां नहीं बुलाती और ये जो तेरे सर पर चुड़ैल चढ़ी है वही बाहर जाने को फड़फड़ा रही है, बाहर जाकर जाने का करे जाके, कहां ले जाए तुझे, सोजा चुपचाप… " |

यह कहकर सरला ने किवाड़ बाहर से बंद कर दिए | अब सुनील की धड़कन निकली जा रही थी यह सोच कर कि पिंकी तो अब तक पहुंच भी गई होगी और सुनील की राह देख रही होगी, अगर पिंकी को कुछ हो गया तो वो तो मर ही जाएगा | दोनों ने नल के पास रात में मिलने की योजना बनाई थी क्योंकि नल क्या नल के आसपास भी कोई फटकता नहीं था और यही मौका था लेकिन सरला ने तो सब अरमानों का गला घोंट दिया, हवाएं और तेज हो गई बिजली रह रह के कड़कने लगी, गांव वालों का डर अब और बढ़ रहा था |

उधर मिश्राइन बोली, "अरे नंदू बेटा किवाड़ बंद कर दे आंधी आ रही है नही तो उखड़ कर कहीं उड़ जाएंगे, अरे वैसे भी इस महीने का कित्ता नुकसान हो गया" | नंदू ने जाकर किवाड़ बंद किए और बोला, "मम्मी अब कैसी तबीयत है तुम्हारी, अब चुड़ैल चली गई कि नहीं" | मिश्राइन को नंदू पर बड़ा प्यार आ गया, वह उसे पुचकारते हुए बोली," हाय मेरे लाल… अब ठीक हूं मैं" इस पर नंदू ने कहा" तो मम्मी लेटी काहे हो, कुछ बना दो खाने को, इत्ती जोर भूख लगी है, सुबह पापा ने खिचड़ी बनाई थी वो तो खाई खाई ना गई"| नंदू की बात सुनकर मिश्राइन मन ही मन बुदबुदाती हुई उठी और बोली, "बहुत आराम कर लिया, चलो मिश्राइन चूल्हा चौका फैला पड़ा है"|



आगे की कहानी अगले भाग में...