कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि खुसफुस पुर गांव में सूचना दी जाती है कि ट्रांसफार्मर फूंकने के कारण गांव में पांच दिन बिजली नहीं आएगी, जिससे सब लोग हड़बड़ा जाते हैं |
अब आगे….
मिश्रा जी -" अरे नंदू… नंदू… "|
नंदू - "हां पापा…" |
मिश्रा जी - "अरे बेटा.. जरा कभी बाप को पानी भी दे दिया करो या सिर्फ ताने देने के लिए पैदा हुए हो" |
नंदू अपनी कॉमिक्स की किताब तकिए के नीचे छुपाकर दौड़ा और मिश्रा जी के लिए पानी लाया |
मिश्रा जी पानी पीकर गिलास रखते हुए- " नंदू का बात है? घर में बड़ा सन्नाटा है" |
नंदू - "अरे पापा… हमें नहीं पता कुछ"|
यह कहकर नंदू भाग गया और मिश्राइन बोली-" सुनो… वो हम सोच रहे थे कि तुम बड़े परेशान हो जाते हो, कभी कभी आराम भी कर लिया करो" |
मिश्रा जी - "अरे आराम शादीशुदा आदमी की जिंदगी में कहां?? कुंवारे थे अकेले आराम से कट रही थी" |
मिश्राइन एकदम से आकर मिश्रा जी की चारपाई पर बैठ गई और बोली, "हां… वही तो हम भी तो यही कहना चाह रहे थे कि तुम अकेले रहो चार-पांच दिन और हम नंदू के साथ अपने मायके हो आते हैं, इसी बहाने तुम घर आ कर शाम से सुबह तक आराम करना रही बात खाने की तो बब्बन हलवाई तो है ही "|
मिश्रा जी उठ कर बैठ गए और कुछ बोलते कि तभी नंदू आकर बोल पड़ा, "अरे पापा चार-पांच दिन बिजली नहीं आएगी.. बिजली.. "|
मिश्रा जी समझ गए और मिश्राइन की तरफ भौंहे चढ़ा कर बोले, "ये का सुन रहे हैं मिश्राइन… मतलब बिजली नहीं आएगी तो घर छोड़ दोगी.. वाह भाई वाह, कमाल है.." |
मिश्राइन ने आव देखा न ताव और चप्पल लेकर नंदू के छपाक से जड़ दी, नंदु बिलबिला उठा |
मिश्राइन - "अरे नासपीटे … तू मेरा सगा बेटा है कि सोतेला, आज तुझे थोप के खिलाऊंगी, आ तू… "|
नंदू अपनी पीठ सहलाते हुए - "अरे पापा.. मम्मी ने तुम्हारी जेब से ₹50 लिए थे और आए दिन लेती है और हां वर्माइन चाची से कह रही थी कि अबकी बार एक अंगूठी बनवा लेंगी, ये पति लोग तो पैसे ही नहीं देते, बस कपड़े धुलवा लेंगे, अरे ये नहीं जेब में कुछ रुपये छोड़ दिया करें" |
यह सुनकर मिश्राइन फिर चप्पल उठा लेती हैं और नंदू भाग कर कमरे के दरवाजे बंद कर लेता है |
मिसरा जी - "ये परेसानी कोई अकेले तुम्हारे लिए नहीं आई है.. बड़ी आई मायके जाएंगी, मायके में तो तुम्हारे झुमरी तलैया खुदवा कर रखी गई है " |
मिश्राइन - "देखो जी… फिर हमारी भी सुन लो हम पानी भरने तो जाएंगे नहीं, इस सपोले को कहो कि पानी भर भर के लाया करें, कुछ काम धाम का तो है नहीं.. बस चुगली करना इसे आता है, हम अपनी नाक नहीं कटवा पाएंगे, पानी भरने का तुम्हें ज्यादा शौक हो तो भरो जा के "|
मिश्रा जी - " अब अइसा है कि मुहँ बंद कर लो, वरना मायके तो तुम जाने से रही लेकिन अस्पताल जरूर चली जाओगी, वहीं जाकर पैर पसार कर आराम करना"|
यह कहकर मिश्रा जी हाथ मुंह धोने गुसल खाने में घुस गए और मिश्राइन बर्तन पटक पटक के रखने लगी |
आगे की कहानी अगले भाग में...