दो बाल्टी पानी - 9 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 9

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि गांव में कुछ दिन बिजली ना आने के कारण गांव वाले परेशान हो जाते हैं और मिश्राइन अपने मायके जाने के लिए कहती हैं जिससे मिश्रा जी नाराज हो जाते हैं |

अब आगे….

ठकुराइन - "अरे स्वीटी… ओ स्वीटी…" |
स्वीटी - "हां अम्मा…" |
ठकुराइन - "अरे बिटिया.. जब देखो तब छत पर टंगी रहती हो का छत तोड़ेगी, नीचे आओ कुछ हाथ बटाओ.." |

स्वीटी - "अभी आई.. मां.." |

स्वीटी शाम को छत पर टहलने जरूर जाती थी और सच तो यह था कि उसके घर से गुप्ता जी का घर बिल्कुल साफ दिखता था और वही नीचे सुनील और पिंकी छुप छुप कर बात करते थे, सुनील नीचे पेड़ के पास छुप जाता था और पिंकी ऊपर खिड़की के पास खड़ी हो जाती थी और दोनों इशारों में बातें करते थे इससे उन्हें कोई देख भी नहीं पता था लेकिन स्वीटी रोज देखती थी और सोचती थी कि काश उसे भी ऐसा प्यार करने वाला मिल जाता | पिंकी और सुनील के प्यार को देख कर स्वीटी भी ख्यालों में खो जाती कि तभी ठकुराइन ने फिर आवाज़ दी |

स्वीटी मुंह बनाते हुए नीचे आई और बोली, "हां बोलो" |

ठकुराइन - "अरे बिटिया.. तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है, तुम जो रोज सुबह शाम छत पर चक्कर लगाती हो वह तुम्हें करने की कोई जरूरत नहीं"|

स्वीटी - "काहे अम्मा.. ऐसा काहे " |

ठकुराइन - "मैंने सोचा है कि तुम अब सवेरे और शाम को सड़क के उस पार से पानी भर लाया करो, तुम्हारा मोटापा भी कम हो जाएगा और पानी भी भर जाएगा" |

स्वीटी - "का अम्मा… हम ही मिले थे तुम्हें " |

स्वीटी ने भी सोचा कि घर पर पड़े पड़े अच्छा नहीं लगता है, इसी बहाने वह घूम भी आया करेगी और अम्मा पर एहसान भी कर देगी और का पता पानी भरने के बहाने ही सही उसे भी कोई सपनों का राजकुमार मिल जाए, स्वीटी ने इसलिए हां कर दी तब तक ठाकुर साहब आ गए, बाहर से आते वक्त उन्हें गांव का सारा हाल खबर मिल गया |

ठकुराइन ने पानी का गिलास भरकर ठाकुर सहाब को दिया और बोली, "क्या बात है आज बड़े सुस्त लग रहे हो"?

ठाकुर सहाब - "अरे ठकुराइन का बताएं… एक हमारे बाप दादा थे जो आलीशान हवेलियों में राजा महाराजाओं की तरह रहते थे, घर आंगन में तवायफें नाचती थी और एक हम ठाकुर है जो यहां गरीबों की तरह दिन काट रहे हैं सोचते हैं कि…." |

ठाकुर साहब ने इतना ही कह पाया कि ठकुराइन बीच में बोल पड़ी," हां.. हां.. सोच लो, अरे सोचते काहे हो सीधा कर ही डालो, बाप दादा तवायफ़ो के ऊपर लुटा गए तुम भी जाओ ले आओ दो चार जाकर, उन्हें हमारी छाती पर नचाओ… हाय राम.. कैसा आदमी है!!! यहां बर्तन रगड़ रगड़ कर, कपड़े मसल मसल कर हाथों की लकीरें तक गिस कर गायब हो गई और यह लाड साहब हैं जिन पर जवानी चढ़ रही है "|

ठाकुर सहाब -" अरी भागवान काहे… "

ठकुराइन फिर बीच में बोल पड़ी," कितनी बार बोला है कि भागवान ना कहा करो, अरे भाग तो हमारे तब ही फूट गए थे जब तुम्हारे साथ ब्याह कीये थे, हे गंगा मैया पार लगाओ…. "|

ठकुराइन बढ़ बढ़ाते हुए अंदर चली गई, ठाकुर साहब ने स्वीटी की ओर देखा तो वह भी मुंह बना कर चली गई |

आगे की कहानी अगले भाग में...