दो बाल्टी पानी - 10 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 10

उधर वर्मा जी अपने घर आए और बोले, " अरे सुनती हो जरा एक गिलास पानी तो देना "|

वर्माइन - " आई…" |

वर्मा जी -" अरे गोपी.. बेटा कहां हो"??

यह सुनकर गोपी भागा भागा पापा के पास आया लेकिन वर्माइन अभी तक नहीं आई |

वर्मा जी - "अरे क्या कर रही हो, जरा कभी हमारी भी सुन लिया करो" |

वर्माइन पानी का गिलास लेकर आई तो वर्मा जी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और बोले, "अरे क्या हुआ? सब ठीक तो है ना? आज लाली लिपस्टिक नहीं" ??

वर्माइन - "अरे का बताएं.. हमारा तो हारट ही टूटा जा रहा है" |

वर्मा जी -" यह कौन चीज है? अरे कितनी बार बोले हैं तुमसे कोई फिजूलखर्ची ना किया करो पर तुम तो मानती नहीं हो? अरे मोल भाव तो कर लिया था ना? पहले दिखाओ कहाँ है हारट "?
वर्माइन - "अरे.. बस कर दी ना वही बात, अच्छे पाठशाला में पढ़े होते तो ऐसा नहीं बोलते"| वर्माइन ने वर्मा जी का हाथ पकड़ा और अपने सीने पर रख दिया |
वर्मा जी शर्मा गए |

वर्माइन -" यही है हारट " |
ये सुनते ही वर्मा जी खूब हंसे और बोले," अरे वर्माइन ये हारट नहीं होता है हार्ट होता है "|

वर्माइन चिढ़कर बोली-" हां.. हां.. वही "|

वर्मा जी -" तो क्या बता रही थी तुम"?

वर्माइन - "अरे यही कि अब बिजली तो गांव में चार-पांच दिन आयेगी नहीं तो शाम को का फायदा सजने सवरने का.. कौन देखेगा ऐसे अंधेरे में"?

वर्मा जी भौंह टेढ़ी करके बोले," का मतलब है तुम्हारा.. कौन देखेगा?? अरे हम मर गए हैं का? बिजली नहीं आयेगी तो का तुम सजोगी नहीं या फिर कोई और है जिसको सज धज कर दिखाती हो"|

यह सुनकर वर्माइन नाराज हो गई तभी गोपी ने साड़ी का पल्लू खींचते हुए कहा," अम्मा भूख लगी है" |

यह सुनते ही वर्माइन ने गोपी को एक चमाट लगाई और बोली, "अम्मा नहीं.. मम्मी बोल समझे, कितनी बार कहा है लेकिन इस घर में तो कोई पढ़ा लिखा है ही नहीं.. चल खा ले चल कर मुझे" |

यह कहते हुए वर्माइन गोपी का हाथ पकड़कर घसीटते हुए रसोई घर में घुस गई और गोपी चिल्लाता रहा |

बिजली ना आने से खुसफुसपुर में लोगों की बिजली भी गुल हो गई थी, अरे गर्मी के दिन और ये पानी की किल्लत | सड़क के उस पार वाला नल माने हैंडपंप जो सरकार द्वारा लगाया गया उसके तो जैसे दिन ही बहुर गए थे, कभी कबार कोई राह चलता प्यासा घूंट दो घूंट पानी पी लिया तो पी लिया लेकिन आज तो जैसे कायापलट हो गई थी |

शशश्श्श शशशश… सुबह के 4:00 बजे गुप्ता जी के घर के बाहर खड़े सुनील ने पिंकी को बुलाने की कोशिश करी |

सुनील फिर से… शशश्श्श शशशश…

ये आवाजें सुनकर गुप्ताइन की नींद खुल गई |

गुप्ताइन - "अरे उठो.. ये ऊंट की तरह का सो रहे हो, लगता है घर में सांप बोल रहा है" |

गुप्ता जी घबराकर उठे - "ससस.. सांप.. सांप.. अरे कहां है सांप, गुप्ता जी चारपाई पर बिछा बिस्तरा खुद पर लपेट लिए तभी पिंकी आई और बोली, "अरे पापा कुछ नहीं है, मैं थी.. "|

गुप्ताइन - "अरे आज सुबह सुबह कैसे उठ गई तुम, वैसे तो…" | गुप्ताइन पूरी बात कह पाती कि तभी पिंकी फिर बोल पड़ी, "अरे मम्मी तुम भी ना.. आज पानी नहीं आएगा तो सोचा सुबह सुबह सड़क के उस पार वाले नल से पानी भर लाऊँ, वैसे भी आपको रोज काम पर जाने में देर हो जाती है" |

गुप्ताइन यह सुनकर - "अरे मेरी बच्ची हाय, किसी की नजर ना लगे" |

गुप्ता जी - "अरे बिटिया.. पानी हम भर लाएंगे, वैसे भी यह सब तो हमारे काम है, घर के बाकी कामों की तरह "|

पिंकी सकपकाते हुए - "अरे पापा… आप सो जाओ, काहे परेसान होते हो "|

पिंकी पिंजरे की मैना सी उड़ती हुई नीचे आ गई और गुप्ता जी और गुप्ताइन लेट गए |

आगे की कहानी अगले भाग में....