दो बाल्टी पानी - 4 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 4

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा मिश्राइन ठकुराइन और वर्माइन कैसे अपने दिन की शुरुआत करते हैं और नोकझोंक और प्यार से उनकी जिंदगी बड़े आराम से कट रही है, बस किल्लत होती है तो पानी की और गुप्ताइन के चाल ढाल और रुतबे से सबको चिढ़न होती है |
अब आगे…

"अजी सुनते हो… कितनी देर हो गई? क्या करते रहते हो अंदर? अब निकलो भी, हमें ड्यूटी पर जाने की देरी हो रही है, अरे क्या बड़बड़ करते हो? सुबह-सुबह अपनी ये रामकहानी हमारे जाने के बाद गाया करो, हमें रोज लेट हो जाता है" |

ये कहकर गुप्ताइन अपने स्त्री करे हुए कपड़ों को मेज पर रखने लगी |

गुप्ता जी, माने बनिया जी गांव में सब गुप्ता जी को बनिया जी ही कहते थे, और बनिया जी की धर्मपत्नी को गुप्ताइन, पूरे गांव की औरतें गुप्ताइन को देखकर नाक भौंहे सिकोड़ते लेकिन यह भी सच है कि सारी उसके जैसा बनना चाहती थीं, दरअसल बात सिर्फ इतनी है कि गुप्ताइन शहर की लड़की थी पढ़ी-लिखी और तीखे नैन नक्श, बात करने में तेजतर्रार और इसीलिए गांव की औरतें उससे खिसियाती रहती थीं और गुप्ता जी ठहरे गांव के, बस नौकरी के चक्कर में शहर जाया करते थे, अब नौकरी तो मिलने से रही लेकिन हां, गुप्ताइन जरूर मिल गई | दोनों में प्रेम प्रसंग छिड़ गया और प्रेम विवाह हो गया,

उसी प्रेम विवाह का परिणाम आज गुप्ता जी माने बनिया जी भुगत रहे थे, हालांकि गुप्ताइन दिल की बुरी नहीं थी बस इतना फर्क आ गया था कि अब गुप्ताइन घर से बाहर का काम संभालती थी और बनिया जी घर के अंदर का, हालांकि बनिया जी ने किराने की दुकान संभाल रखी थी पर घर के कामों में वो ज्यादातर उलझे रहते थे और गांव वाले इधर-उधर की बातें करके खूब हंसी ठिठोली करते थे |

बनिया जी गुसल खाने से कुछ उच्चारण करते हुए निकले तो गुप्ताइन बिजली की तरह दौड़कर गुसलखाने में घुस गई |

"अरे पापा… क्या सारे भगवानों के नाम आज ही ले डालोगे", बनिया जी की सत्रह साल की बिटिया पिंकी ने कहा |

बनिया जी ने कोई जवाब नहीं दिया और भगवान की पूजा करने लगे तभी गुसल खाने से आवाज आई, "अरे ये पानी की बाल्टी… अरे कितनी बार कहा है कि नल मत बंद किया करो, खुद तो अपना शाही स्नान करके चले गए और मेरे लिए ये जरा सा पानी रख गए, अरे आज सोमवार भी है, बाल भी धोने हैं, अब क्या इस चुल्लू भर पानी मे मैं डूब मरूं…" गुप्ताइन खीझते हुए बोलीं |

गुप्ता जी - अरी भागवान… हमे का पता था कि पानी इत्ती जल्दी चला जाएगा, और हां हम बेकार में पानी नहीं बहा सकत हैं, साफ बात, अरे अम्मा छोटे पर से सिखाये है कि पानी बहाना ठीक नहीं और रही बात तुम्हारे डूबने की तो भागवान अपने आप को क्या दो साल की बिटिया समझती हो तो चुल्लू भर पानी में डूब जाओगी" |

गुप्ता जी की बात काटती गुप्ताइन झल्लाहट में गुसलखाने से बोली," हाँ हाँ, एक तुम और एक तुम्हारी अम्मा दोनों बड़े धर्मात्मा हो, सुकर है चारधाम पे गईं हैं नहीं तो वो भी सवेरे सवेरे खून सुखाती, और हां ये हर बात में भागवान भागवान तो ना कहा करो हमें, बड़े भाग हमारे… अरे हमारे भाग तो उसी दिन फूट गए थे जिस दिन तुम्हारे संग भाग के शादी करी थी…… अरे पिंकी जा एक बाल्टी पानी भर ला " |

गुप्ताइन ने गुसल खाने का पर्दा थोड़ा सा खिसकाया और खाली बाल्टी बाहर पटक दी, पिंकी भी कुछ बुदबुदाती हुई आई और बाल्टी उठाकर बोली, " पापा गैस पर चाय चढ़ा दी है, देख लेना और हाँ शक्कर और चाय की पत्ती कम ही डालना, वर्ना मम्मी नहीं पियेंगी … मैं पानी भरने जा रही हूं "|

यह कहकर पिंकी बाल्टी लेकर बाहर चली गई और गुप्ता जी मन ही मन मे बोले, "अरे बिटिया सब हम ही डालेंगे तो तुम गैस पे का चढ़ा गई हो खाली पानी" ये कहकर गुप्ता जी रोज की तरह चाय बनाने लगे और पुराने दिन याद करने लगे |

आगे की कहानी अगले भाग में…

धन्‍यवाद |