दो बाल्टी पानी - 19 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

दो बाल्टी पानी - 19

पूरा खुसफुस पुर गांव परेशान था, पानी की किल्लत तो थी ही ऊपर से ये मरी चुड़ैल का खौफ अब गाँव मे सन्नाटे की तरह हर जगह पसरा पड़ा था और पानी भरने का मतलब था सड़क के उस पार वाले नल के पास जाना, वहां जाना… मतलब चुड़ैल को जगाना | गांव वाले अब बस भगवान से प्रार्थना करने लगे क्योंकि पानी के लिए तीस किलोमीटर दूर दूसरे गांव कौन जाता, वो भी दुश्मनों के गांव में, अब तो इस गाँव का राम ही मालिक है |

वर्मा जी ने घर का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "गोपी… गोपी… बेटा किवाड़ तो खोल" |

गोपी दौड़ता हुआ आया और कुण्डी खोलकर वर्मा जी के चिपक गया |
वर्मा जी, "अरे बेटा.. तुम्हारी अम्मा उठी कि नहीं"?
गोपी खिलखिला कर हंसने लगा तभी वर्माइन सामने आ खड़ी हुई और तम तमाते हुए बोली, " हजार बार कहा है.. अम्मा नहीं, मम्मी बोला करो, अरे का करें इन बाप बेटे का, कितना भी स्टैंडरड बनाओ पर ये लोग तो….." |

वर्मा जी यह सुनकर मुस्कुराए और मन ही मन बोले, "लाली लिपस्टिक करके तैयार खड़ी है मतलब ठीक ही होगी" |

वर्मा जी ने कहा, "अरे ये सब छोड़ो, गांव में पता है का हुआ है, अरे घर आ रहे थे तो पता लगा ठकुराइन को चुड़ैल ने धर लिया है और तो और उनकी चोटी भी काट दी चुड़ैल ने, बेचारी ठकुराइन…. अब का करेगी, कैसे मुहँ दिखाएगी गाँव वालों को, हम वही से तो होकर आ रहे हैं, अइसा करो तुम भी…" | वर्मा जी आगे कुछ कह पाते कि तभी वर्माइन ने वर्मा जी को रोकते हुए कहा," का बात है… ठकुराइन जीजी पर बड़ी दया आ रही है, हम पर तो कभी ना आया इत्ता तरस, अरे अच्छा है चोटी काट ली चुड़ैल ने, अरे हम तो होते तो लगे हाथ उनकी जुबान भी काट देते, बहुत आग उगलती थी, अब कुछ दिन चुप रहेंगी" |

वर्मा जी अपना माथा पकड़ के बोले, "अरे शुभ शुभ बोलो, कहीं ऐसा और किसी के साथ ना हो जाए गांव में, हमें तो बड़ा डर लग रहा है, तुम एक बार जाकर देख तो आओ ठकुराइन को, पूरा गांव मजमा जमाए हुए हैं, तुम चली जाओगी तो उन्हें थोड़ा दिलासा मिलेगा"| वर्माइन ने मुंह बनाते हुए कहा, "अरे तुम तो देख ही आए, हमदर्दी भी जाता आए तो अच्छी बात है, अरे वही रह जाते, घर आने की का जरूरत थी, बड़ा दर्द हो रहा है, अरे जब तक ठकुराइन की चोटी दोबारा जम नहीं आती तब तक वहीं रह जाते, थोड़ी तेल मालिश कर देते, घर में एक बूंद पानी नहीं है, उसकी कोई चिंता नहीं है, जाओ कहीं से पानी भर लाओ और दोबारा हमको ना कहना कि ठकुराइन को देख आओ, अरे हमें देखने आई थी तो हम जाएं"|

यह कहकर वर्माइन बुझी आग सी बैठ गई कि तभी गोपी बोला, "अम्मा… भूख लगी… " | वर्माइन ने गोपी को झटकते हुए कहा, " ये बाप बेटे नहीं सुधरेंगे, चाहे कितना भी सर पटको, चल खा चलके… भूखा पैदा हुआ था"|

वर्मा जी समझ गए क्या करना है |

शाम का अंधेरा धीरे-धीरे छाने लगा था और मौसम कुछ तूफानी हो रहा था उधर पिंकी सुनील से मिलने के लिए अकुलाई थी, अंधेरा जब थोड़ा और बढ़ गया तो उसने बाल्टी उठाई और जाने लगी कि तभी गुप्ताइन ने पिंकी को रोककर पूछा," अरे पिंकी कहां जा रही है अंधेरे में"? पिंकी घबरा गई और बोली, "वो.. वो.. मम्मी पानी नहीं था सोचा भर कर ले आयें" | गुप्ताइन ने कहा, "अरे नहीं.. रहने दो, वैसे तो हम ये भूत चुड़ैल नहीं मानते लेकिन अब अंधेरा हो गया है तुम रहने दो" |

पिंकी गुप्ताइन को बहलाते हुए बोली,
" अरे मम्मी हमें डर नहीं लगता, अभी गई और अभी आई" |

गुप्ताइन बड़ी आधुनिक विचारों की थी, सो पिंकी को जाने दिया और जाते समय कहा," ठीक है जाओ पर जल्दी आ जाना, मौसम खराब लग रहा है |

पिंकी ने अपना लाल दुपट्टा ओढ़ा और बाल्टी लेकर निकल आई, तेज हवाएं चलने लगी थी ऐसा लग रहा था कि आंधी पानी आकर रहेगा | गांव वाले आपस में कहते कि जरूर ये उस चुड़ैल का कोई खेल है |

आगे की कहानी अगले भाग में,

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Aman

Aman 2 साल पहले

Akash Saxena "Ansh"

Akash Saxena "Ansh" मातृभारती सत्यापित 2 साल पहले

Manorama Saraswat

Manorama Saraswat 3 साल पहले

Arpi

Arpi 3 साल पहले

Maushmi Shekhar

Maushmi Shekhar 3 साल पहले