जादूगर जंकाल और सोनपरी (7) राज बोहरे द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जादूगर जंकाल और सोनपरी (7)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

7

शिवपाल समझ गया कि दरवाजा ऐसे तो सूना दिख रहा है कि लेकिन जादूगर जंकाल ने बिना किसी रखवाले का खड़ा करे जादू के दम पर इस दरवाजे में घुसने वाले बाहर के घुसपैठियांे से रक्षा करने के लिए ऐसा इंतजाम किया है।

शिवपाल ने देखा कि दरवाजे के दांये और बांये दोनों तरफ दूर तक लगभग पच्चीस पच्चीस फुट ऊंचाई की दीवार है जो बहुत दूर तक चली गयी है। शिवपाल ने दूरसे दीवार का अवलोकन किया और दीवार के किनारे किनारे कुछ दूर तक चलता रहा। फिर उसने रूककर जमीन में पड़े एक पत्थर को उठाया और पूरी ताकत से दीवार के उस पार फेंक दिया।

वह पत्थर उस पार जाकर गिरा था और उसके गिरने आवाज भी आयी थी तो शिवपाल ने अंदाज लगा लिया कि जो जादू बड़े दरवाजे में है वह दीवार में नही है। कोई दीवार पार कर के उस पार जायेगा तो उसे कोई नुकसान नही होगा।

शिवपाल ने दीवार पार करने के लिए बाज की सहायता का विचार कर उसे इशारा किया तो बाज ने पहले घोड़ा को अपने पंजों से पकड़ कर उठाया और चहार दीवारी के भीतर जाकर उतार दिया । जब घोड़ा ठीक से भीतर पहुंच गया तो बाज ने एक एक कर के शेर और शिवपाल को भी भीतर पहुंचा दिया।

शिवपाल ने देखा कि बड़े दरवाजे के ठीक सामने एक बड़ी और साफ रास्ता बना हुआ है, शिवपाल ने सोचा कि इस रास्ते पर कोई निगरानी करता होगा इसलिए मुख्य रास्ते को छोड़ते हुए शिवपाल जहां उतरा था वहीं से सीधा बढ़ने लगा।

उसने देखा कि जैसा दरवाजा समुद्र तट पर था वैसे कई दरवाजे बनाये गये थे। लगता था कि उन सबमें जादू ही किया गया होगा।

उसके चलते हुए दो घण्टे हो चुके थे और कुछ ही देर में सूर्य अस्त होने जा रहा था कि सहसा शिवपाल को याद आया कि जादूगर की ताकत रात को हजार गुना बढ़ जाती है। इसलिये उसने अपने घोड़ा और शेर को एक तरफ बैठ कर आराम करने का इशारा किया और बाज को संकेत किया कि वह उसे रात भर के लिए इस जादूनगर की दीवार से बाहर ले जाये जहां कि जादूगर का जादू नही चलता हो।

जादूनगर से बाहर आ कर समुद्रतट पर शिवपाल ने एक ओर बैठ कर रात बिताने का विचार किया और एक चट्टान की ओट में खुद को छिपाकर आंख मूद ली। उसने अनुभव किया कि जादूनगरी से रात भर खूब ढोल ढमाके और हंसने ठहाके लगाने की आवाजें आती रही थी। सुबह सूर्य के उगने के काफी पहले वहां आ गयी चंद्र परी ने उसे जगाया और कुछ अजीब से फल खाने का दिये जिन्हें खाकर शिवपाल फिर से उत्साह से भर उठा और बाज की सहायता से फिर उसी जगह जा पहुंचा जहां घोड़ा और शेर उसका इंतजार कर रहे थे।

शिवपाल ने जहां रोका था वहां से आगे का सफर शुरू किया तो आगे जाकर पता लगा कि फिर से सामने एक बहुत ऊंची दीवार खड़ी है जिसमें कोई दरवाजा लगी है।

पास जाकर देखा कि दीवार में पत्थर और ईंटो की जगह आदमियों की मूर्तियां चुन दी गयी हैं। वे मूर्तियां ऐसी कलाकारी से बनी थी कि लगता था वे आपको घूर के देख रही है और हर मूर्ति ऐसी लगती थी कि अभी बोल पड़ेगी।

शिवपाल कुछदूर दांये तरफ गया फिर बांये तरफ लेकिन बड़े अचरज की बात थी कि वे लोग जिधर जाते मूर्ति की आंखें उधर ही उठ जाती।

शिवपाल ने दीवार के ऊपर और दूर दूर तक नजर फेंकी तो देखा कि आगे जाकर एक विशाल बरगद खड़ा है ,जिसकी एक डगाल भीतर तक गयी है। शिवपाल बरगद पर चढ़ गया और उस पर उसकी भीतर जा रही डाल पर चलकर कर दीवार के जा पहुंचा ।

नीचे उतरने के पहले उसने देखा कि भीतर एक बहुत बड़ा आंगन बना हुआ था, जिसके बीचों बीच एक सफेद रंग का विशाल महल बना हुआ था।

एक अजीब बात थी कि महल को घेरते हुए चारों ओर एक कतार बना कर यहां से वहां तक बहुत सारी वैसी ही मूर्तियां खड़ी थी जैसी कि बाहर खड़ी की गयी थी। हरेक मूर्ति की आंखें हिल रहीथीं। शिवपाल एक मूर्ति की तरफ बढ़ा तो मूर्ति हरकत में आई और उसका हाथ हिलने लगा जिसमें तलवार बनी हुई थी। शिवपाल पीछे हट गया।

शिवपाल समझ गया कि ये सब मूर्तियां जादू के पहरे दार है । आगे बढ़ना है तो इनसे बचना होगा। एक बार फिर से बाज का सहारा लिया गया। बाज ने उन मूर्तियों से बहुत ऊंचा उड़कर शिवपाल को उठा कर सफेद किले के ठीक पास ले जाकर खड़ा कर दिया।

अब बाज ने एक एक कर घोड़ा ओर शेर भी वहीं जे लाया।

अब शिवपाल के सामने वह मंजिल थी जिसकी तलाश में उसने इतनी लम्बी यात्रा की थी। महल में कोई दरवाजा नही दिखा तो शिवपाल के इशारे पर बाज ने महल के ऊपर उड़कर चारों ओर दो चक्कर लगाए और शिवपाल को संकेत किया कि इसमें कहीं से भी कोई दरवाजा नहीं है ।

शिवपाल ने अनुमान लगाया कि सामने से दरवाजा और सीड़ियां न होने का मतलब है कि कहीं किसी सुरंग से इस किले में जाते हांेगे।

फिर क्या था शेर और घोड़े ने खोजना शुरू किया तो जल्दी ही पता लगा गया कि सच में एक खम्भे केे नीचे एक सुरंग है। सुरंग में पहले शेर उतरा, बाद में शिवपाल और आखरी में घोड़ा।

सुरंग के रास्ते ने आगे जाकर एक बड़े से कमरे तक पहुंचा दिया । इसमें चारों ओर ऊंची दीवारे बनी हुई थी। दीवारों के सहारे ऊची कुंर्सियां लगी थी मानो कि यह जादूगर का राज दरबार हो।

जादूगर की सबसे बड़ी सिंहासन थी उसके पास जाकर शिवपाल ने चारों ओर का जायजा लिया तो पता लगा कि इस सिंहासन के ठीक पीछे एक रास्ता अंदर जा रहा है , शिवपाल ने उस रास्ते पर अपने कदम बढ़ाये। वह एक लम्बा बरामदा जैसा गलियारा था जो कि आगे जाकर फिर से एक बड़े कमरे में खुलता था।

यहां जादू की काई चीज नही दिख रही थी, ऐसा लगता था यहां जादूगर खुद रहता था इसलिये उसने इस जगह को जादू से मुक्त कर रखा था।

सहसा वातावरण में किसी लड़की के चीखने की आवाज सुनाई दी ।

शिवपाल ने चौंक कर उस आवाज की दिखा में देखा।

बरामदे के दूसरे कोने पर एक आंगन खुलता दिखाई दे रहा था जिसके चारों ओर बहुत सारे महल बने हुऐ थे। शिवपाल ने अंदाज लगाया कि आंगन के चारोंओर बने महलों में से में से किसी एक में से यह आवाज आ रही थी।

आंगन में पहुंच कर शिवपाल ने खुद को दीवार से सटा लिया और धीमे धीमे आगे बढ़ने लगा। उसने देखा कि इन महलों में भी कोई दरवाजा नही है।

लड़की की आवाज फिर से गूंजी। अब शिवपाल ने यह आवाज जिस खिड़की से आ रही थी वह पहचान ली थी। खिसकते हुए वहां पहुंच कर शिवपाल ने खिड़की के भीतर झांका तो पता लगा कि रस्सीयों से बंधी हुई एक लड़की खडी है , जिसके सामने काला विकराल सा एक आदमी खड़ा हुआ है।

शिवपाल ने अंदाज लगाया कि लगता है यही जादूगर जंकाल था।

शिवपाल वहां से भीतर जाने का तरीका सोच रहा था कि किसी ने उसे पीछे से छुआ तो वह चौंक कर मुड़ गया।

उसे छूने वाला एक गोरिल्ला जाति का बंदर था। अब देर करना मुनासिब नही था इसलिये शिवपाल ने अपनी तलवार को याद किया -आजा किलकारी।

पल भर में उसके हाथ में चमकदार तलवार लहराने लगी थी।

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