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जादूगर जंकाल और सोनपरी (1)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बहुत पुरानी बात है। जब इस देश में जादूगर और परी, बहुत सारे राजा और उनके छोटे छोटे राज, हुआ करते थे।

शिवपुर गांव के शिवमंदिर के आसपास बहुत मधुर धुन में वंशी की धुन गूंज रही थी जिसे सुनकर गाय भैंस भी खुश होकर वंशी बजाने वाले उस लड़के को देखने लगी थीं जो कि बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर वंशी बजा रहा था।

आइये हम इसी वंशी वाले लड़के शिवपाल की कहानी सुनते हैं।

उस दिन शिवपुर गांव के सब लोगो के ढोर चराने वाला युवक शिवपाल रोज की तरह दोपहर होते ही गांव के पास की टेकरी पर बने पुराने मन्दिर के पास लगे बरगद की छांव में सारे जानवरों को ले आया था। शिवपाल ने गुरूकुल में पढ़ाई करते समय वंशी बजाने का यह कमाल हासिल कर लिया था। जब ढोर पानी पी लेते और छांव में बिश्राम की इच्छा करते थे तो दोपहर को ही ऐसा समय होता था जबकि शिवपाल अपना बंशी बजाने का शौक पूरा किया करता था।

जब जानवर नीचे बैठ कर आराम करने लगे तो वह बरगद की नीचे वाली डगाल पर चढ़ने लगा। सहसा उसे किसी लड़की के रोने की आवाज आई। दूसरों के दुख में दुखी होजाने वाले शिवपाल का माथा ठनका। रोने वाली युवती की खोज में उसने शिवमंदिर की तरफ निगाहें फेंकी तो कोई लड़की नहीं दिखाई दी।

फिर उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस समय लड़की की आवाज में कोई पक्षी तो रो रहा हो , क्योंकि बहुत से पक्षियों में ऐसा गुण होता है कि वे आदमी की बोली सीख जाते हैं। शिवपाल को बहुत कोशिश करने पर भी आस पास के किसी भी पेड़ पर जब कोई ऐसा पक्षी नही दिखाई दिया तो शिवपाल ने खुद अपने मुंह से ही तोता की बोली निकाली। जिसका जवाब पाने के लिए वह बहुत उत्सुकता से चारों ओर देखने लगा।

उसे किसी भी पक्षी का जवाब नही मिला तो वह संशय में पड़ गया।

शिवपाल ने गुरूकुल जाकर बारह बरस तक गुरूजी से सब तरह के शास्त्रों की शिक्षा और सब शस्त्र चलाने का कौशल तथा जानवरों व पक्षियो की बोली जानने का हुनर सीखा था। गुरू जी ने कहा कि वह अब सब विधाओं में प्रवीण है तो उनकी आज्ञा से वह दो महीने पहले ही गांव में वापस आया था । उचित रोजगार की तलाश में वह राजदरबार में राजा के पास गया था और कहा था कि वह गुरूकुल से सब तरह के शस्त्र और शास़्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर के आया है यदि उसे दरबार में कोई मिल जाये तो राजा की बड़ी मेहरबानी होगी। राजा ने मंत्री से सलाह ली तो मंत्री ने बताया कि राज दरबार में जितने पद पहले से स्वीकृत किये गये हैं उतनी ही संख्या में पहले से ही सारे कर्मचारी काम कर रहे हैं, सो नये आदमी के लिए कोई पद खाली नहीं है, तो राजा ने शिवपाल को निराश कर वापस लौटा दिया था।

शिवपाल अपनी मां पार्वती के साथ रहता था। उन मां बेटे के पास कोई काम ही नही था, जिससे उनका भरण पोषण हो सके। उनके पास न कोई खेत थे न दूसरा काम धंधा। व्यापार और बंज करने के लिए उनके पास कोई पूंजी भी नहीं थी । सो शिवपाल ने हाल फिलहाल गांव के लोगों ने कह कर गांव भर के ढोर चराने की मजदूरी का काम ले लिया था,जिसमें वह दिन भर व्यस्त रहा करता था और इसमें शिवपाल का मन लगा रहता था। इसी ढोर चराने की मजदूरी से मां बेटे रूखी सूखी खा कर अपना गुजारा करते थे।

रोने की आवाज को अपने मन का वहम मान कर शिवपाल ने अभी बंशी को होंठों पर रखा ही था कि सहसा चौंक गया। उसके चेहरे पर ऊपर से गर्म पानी की दो बूंदे आकर गिरी थी। उसने ऊपर नजर फेंकी तो मूर्ति सा जड़ होगया। ऊपरी डगाल पर चांदी के जेवरों से लदी , गुलाबी कपड़ों पहने एक बहुत संदर युवती बैठी थी, जिसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।

शिवपाल ने उस से पूछा कि आप कौन हैं और क्यों रो रही है ? तो युवती ने रोना कम किया और सिसकियां भरती हुई शिवपाल से बोली कि मैं परीलोक से आयी हुई चन्द्रपरी हूं और इसलिये रो रही हूं कि मेरी बहन सोनपरी को इस मंदिर के पीछे बने तालाब मे नहाते हुए अभी अभी एक जादूगर दानव पकड़ के ले गया है। अगर बहन नहीं लौटी तो मैं परीलोक कैसे जाऊंगी क्योंकि मेरी बहन के पास ही वह मुद्रिका है जिसे दिखा के हम परियां परीलोक के दरवाजे से भीतर प्रवेश करती है। किसी तरह परीलोक में प्रवेश भी कर जाऊंगी तो मेरी माँ मुझे घर से निकाल देंगी।

शिवपाल बोला ‘हे परी, तुम मुझे बताओ कि मैं आपका क्या सहयोग कर सकता हूं?’ परी बोली कि हम परियां उस जादूगर दानव के आगे बहुत कमजोर है उसको तो कोई मनुष्य ही मार सकता है। अगर तुम मदद करों तो मेरी बहन उस जादूगर की कैद से मुक्त हो सकती है। क्योंकि उसका जादू हम लोगों पर रात और दिन हमेशा चल जाता है जबकि मनुष्यों पर उसका जादू केवल रात में ही असर करता है।

‘‘बताओ परी कि वो जादूगर किस जगह रहता है ? मैं तुम्हारी बहन को छुड़ाने के लिए इसी वक्त चलने को तैयार हूं। ’’ शिवपाल ने पूछा तो परी बोली कि ‘‘मुझे उसके महल का पूरा पता तो नही, बस इतनी जानकारी है कि सात समुंदर पार एक टापू है जिस पर खतरनाक घने जंगलों में बनाये एक महल में वो जादूगर रहता है। मैं आपकी इतनी मदद कर सकती हूं कि तुम्हे समुंदर पार करा के उस टापू के किनारे छोड़ सकती हूं । इसके बाद अगर तुममे हिम्मत है तो उन मायावी जंगलो पहाड़ों को में से रास्ते खोजकर उस के महल में पहुंच सकते हो और दानव की कैद से किसी तरह मेरी बहन को छुड़ा सकते हो। लेकिन तुम अपनी जान जोखिम में क्यों डालोगे और क्यों मेरी बहन को छुड़ाओगे।’’

इतना कह कर परी रोने लगी।

शिवपाल ने उसे चुप कराते हुए बोला कि वह गांव वालों के जानवरों को उनके मालिक को सोंप दे फिर तुरंत ही उसके साथ चल सकता है।

सांझ होने पर शिवपाल ने सारे ढोर गांव की तरफ हांकना शुरू किया और एक एक घर मे ढोर सम्हलवाते हुए यह भी बताता चला गया कि अब कई दिनों तक वह किसी के ढोर नही चरा पायेगा। शिवपाल के साथ उससे कुछ ऊपर हवा में उड़ते हुये जा रही परी देख रही थी कि शिवपाल बहुत विनम्र युवक है वह जिससे भी बात करता है पूरा आदर देकर बात करता है। इस वजह से सब लोग उसका सम्मान करते हैं।

घर पहुंच कर शिवपाल ने अपनी मां को सारा किस्सा कह सुनाया । मां ने शिवपाल की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि उसे जरूर ही परी की मदद करना चाहिये क्येांकि जो आदमी दूसरों के काम करता है वह हमेशा ही बड़ा आदमी बनता है।

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