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जादूगर जंकाल और सोनपरी (3)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

3

पांचवे समुद्र को पार करते समय शिवपाल ने देखा कि समुद्र में तूफान आया हुआ है और बीच समुद्र में दो लोग एक छोटी सी नाव में खड़े हुए बिलख बिलख कर रो रहे हैं। शिवपाल ने चटाई रोककर बाज को उन्हे उठा लाने का इशारा किया तो बाज ने पंख फड़फड़ाकर एक जोरदार कुलांच भरी और अपने एक एक पंजे से एक एक आदमी को पकड़ कर उठा लिया। दोनों लोग चटाई पर बैठे तो बचाने के लिए उन्होंने शिवपाल को धन्यवाद दिया । शिवपाल ने उनके घर का पता पूछा तो उनमें से एक ने कहा- भैया मैं मछुआरा हूं समंदर में मछली पकड़ता हूं। यह मेरा दोस्त है जो गांव में लोहार है। समुद्र में तूफान आने से हम लोग फंसे हुये हैं ज्योंही समंदर के तट की तरफ जाते हैं, समंदर की लहरें हमको वापस खींच लेती हैं और बीस बार कोशिश करने के बाद भी हम तट तक नही जा पा रहे। समुद्र के किनारे मेरे इस लोहार दोस्त के बूढ़े पिता हमारे इंतजार में खड़े हैं।

शिवपाल ने जब उन्हें छोड़ने के लिए चटाई को नीचे उतारा तो देखा कि समुद्र किनारे खड़ा एक बूढ़ा आदमी जार जार रो रहा है। वह आदमी लोहार का पिता था।

अपने बेटे को देख बूढ़े लोहार का खुशी का ठिकाना नही रहा। उसने अपने आंसू पोंछकर शिवपाल को बहुत सारे धन्यवाद दिये। जब उसे पता लगा कि शिवपाल एक परोपकारी यात्रा पर जा रहा है तो उसने अपने पास से इस्पात से बनी एक कम वजन की चमचमाती तलवार भेंट की और उसके गुण बताते हुए बोला कि ‘‘ यह किलकारी नाम की तलवार आपकी कमर में बंधते ही दूसरों की आंख से दिखना बंद हो जायेगी। वैसे तो यह हमेशा गायब रहेगी यानि कि छिपी रहेगी, लेकिन जब उसे याद करोगे और कहोगे कि ‘‘ आओ किलकारी’’ तो किलकारी नाम की यह तलवार तुरंत प्रकट हो जायेगी। इस तलवार के हाथ में लेते ही जिसके हाथ में यह होगी उस तलवारधारी को किसी भी तरह का जादू मंतर असर नही करेगा।

लोहार ने अपने बेटे को बचाने का उपकार करने के बदले तलवार देकर इसतरह से अपना धन्यवाद प्रकट किया तो मछुआरे ने भी सोचा कि वह कैसे धन्यवाद दे सकता है फिर उसने अपनी ओर से शिवपाल को एक ऐसा रस्सा दिया जो दिखने में तो बहुत पतला था, लेकिन वह ऐसा मजबूत था कि उसे न तो किसी धारदार हथियार से काटा जा सकता था न जलाया जा सकता था।

उन दोनों को धन्यवाद देकर शिवपाल ने चटाई को उड़ने का इशारा किया तो सरसराती चटाई आसमान में यह जा और वह जा कहावत की तरह उठती चली गयी।

पांचवें और छठवें समुद्र के बीच में एक घने जंगल के ऊपर से उड़ते हुए उन्होंने सुना कि किसी शेर के दुख से दहाड़ने की आवाज आ रही है। शिवपाल ने ध्यान से नीचे देखा तो पाया कि बहुत सारे शिकारियों ने मिल कर एक शेर को घेर रखा है और उसे अपने वाण के निशाने पर ले रहे हैं।

शिवपाल के इशारे पर चटाई नीचे उतरी तो शिवपाल ने जोर से पुकार लगाई-‘आओ किलकारी ’

शिवपाल ने हाथ में चमचमाती तलवार लेकर उन शिकारियों को ललकारते हुए शर्मिन्दा किया और बोला कि ‘‘ आप इतने लोग मिल कर एक निहत्थे जानवर को क्या हथियार दिखा रहे हो? क्या दस लोग मिल कर एक को मार रहे हो? हिम्मत है तो इस शेर से एक एक करके लड़ो !

शिवपाल की बातों से उन सब शिकारियों ने गुस्सा हो कर अपने धनुष घुमा लिये और अब शेर की बजाय शिवपाल निशाने पर लेने लगे । यह देखकर परी बीच में आगई और उस ने अपना परीदण्ड हाथ मे लेकर जादू चला दिया । पलक झपकते ही उन सबके हाथों से उनके धनुष उछल कर शिवपाल के पास आ गिरे।

यह चमत्कार देखा तो वे सारे शिकारी डर गये और एकही क्षण में वहां से पीठ दिखा कर भाग निकले।

शेर ने तो अब तक यही समझ लिया था कि अब किसी भी क्षण उसकी मृत्यू होना तय है लेकिन उसने देखा कि आसमान से उतर कर एक देवता जैसे व्यक्ति ने उसने बचाया है तो अपनी पूछ मटकाता हुआ वह शिवपाल के सामने आ पहुंचा और बोला कि ‘‘ हे दयालु मानव, आपने बिना कहे ही दया भाव के कारण मेरी जान बचाई है। मैं एक जानवर हूं, ज्यादा कुछ तो नही कर सकता। फिर भी बताओ, मुझ से क्या चाहते हो। ’’

शिवपाल ने एक पल को सोच कर शेर से कहा कि मैं इन परी के काम से इस परोपकारी यात्रा में जादूगर जंकाल से इनकी बहन को छुड़ाने जा रहा हूं अगर आप इसमें मेरा साथ दोगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी।

और शेर खुशीखुशी उनके साथ आगे की यात्रा पर चल पड़ा।

छठें समुद्र को पार करने के बाद नीचे उतर कर सदा की तरह शिवपाल हाथ में पानी लेकर समंदर से बिना पूछे पार करने के लिए क्षमायाचना कर के पास आरहा था कि चटाई कहने लगी कि - हे भले आदमी शिवपाल, मुझे यह आन है कि मैं सातवां समुद्र पार नही कर पाऊंगी। इसलिए अब हम लोग साथ साथ आगे नही जा पायेंगे । खारे पानी का यह सातवां समुद्र आपको अपनी हिम्मत से पार करना होगा।

शिवपाल ने कहा कि आप इस छठवें समुद्रं से सातवें समुद्र तक की धरती और पहाड़ों को पार करा दो ज्योही सातवां समुद्र आये आप सातवें समुद्र के तट पर हम सबको उतार देना।

चटाई ने कहा कि आ जाओ समुद्र तट पर हम आपको छोड़ देते हैं।

चटाई फिर आसमान में उड़ गयी और उन सबको थोड़ी ही देर मे सातवें खारे समुद्र के तट पर उतार दिया।

गोपाल अपने साथियों और परी के साथ सातवें समुद्र तट पर पहुंच कर उसे पार करने के लिए उचित साधन खोज रहा था कि सहसा मगर मच्छ बोला कि ‘‘हे दोस्त तुम क्यों परेशान होते हो ? तुम सब मेरी पीठ पर बैठो । मैं आप लोगों को तेज गति से यह खारे पानी का समुद्र पार करा दूंगा । ’’

फिर क्या था, परी और बाज ने कहा कि हम तो उड़कर ही समद्र पार कर लेंगे । उन दोंनों ने अपने पंख फैलाये और वे दोनों आसमान से उड़ते हुए समुद्र पार करने लगे जबकि शिवपाल अपने घोड़े और शेर के साथ उस विशाल मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।

जमीन पर कछुये की चाल से चलने वाला मगरमच्छ ज्यों ही समुद्र के पानी में उतरा उसकी गति बहुत तेज हो गयी। परी की चटाई की तरह वह तेज गति से तैरता हुआ समुद्र के दूसरे किनारे की ओर चल दिया।

कुछ ही देर में वे समुद्र को पार कर चुके थे और मगरमच्छ गहरे पानी से जमीन की तरफ बढ़ गया।

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