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जादूगर जंकाल और सोनपरी (5)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

5

आगे बढ़ने पर और ज्यादा गाढ़ा धुंआ दिखने लग गया था।

अभी वह दो सौ कदम ही आगे बढ़ा होगा कि उसके घोड़े के पांव थम गये। शिवपाल ने घोड़े के रूकने का कारण जानने के लिए रास्ते पर आगे नजरें गढ़ाई तो डर की वजह से उसे पसीना आ गया, उसके सारे बदन में एक बार भय की लकीर सी फैल गयी। सामने पच्चीस तीस खूंख्वार भेड़िए रास्ता रोके खड़े हुए अपनी लम्बी जीभ लपलपा रहे थे।

शिवपाल ने सोचा कि बस अब गयी जान, दोनों ही मारे जायेंगे। भेड़ियों के लिए तो आदमी और घोड़ा एक ही तरह की मिठाई के समान जायकेदार खाना होता है। अगर भेड़िये उन दोनों पर टूट पड़े तो घोड़ा समेत शिवपाल को चट कर जायंगे।

शिवपाल ने एक पल सोचा कि अपनी चमत्कारी तलवार निकालने के लिए बोले -आओ किलकारी!

फिर वह रूक गया और उसे यकायक याद आया कि जंगली जानवरों से लड़ने के लिए जंगल के राजा अपने साथी शेर को याद किया जाये , यह सोच कर उसने अपने दांये बायें और पीछे की तरफ देखा तो पाया कि पास के एक पेड़ के पीछे दोस्त शेर खड़ा हुआ है, शिवपाल ने शेर को इशारा किया कि सामने भेड़ियों का झुण्ड है टूट पड़ो ।

तुरंत ही शेर ने एक दहाड़ भारी और उछल कर बाहर आ गया। शिवपाल के पास से होता हुआ वह आगे बढ़ा और उसने खतरनाक आवाज में दहाड़ते हुए भेड़ियों की तरफ छलांग लगादी । सहसा एक खूंख्वार शेर को सामने देख भेड़ियों में तो डर के मारे चीख पुकार मच गयी। भेड़ियों के झुण्ड में काई सी फट गयी थी और सारे भेड़िये सिर पर पांव रखकर ऐसे भागे कि यह जा और वह जा। दूर दूर तक भेड़ियों का पता नही था।

शिवपाल प्रसन्न होते हुए आगे बढ़ा।

एक बार फिर चौराहा सामने था। अब की बार एक रास्ते में तो दूर तक सूना रास्ता और दोनों तरफ जंगल दिख रहा था, लेकिन दो रास्तां पर धुंध छाई थी। जो रास्ता दूर तक दिख रहा था ,शिवपाल ने वही रास्ता अपनाया। उसने अपना घोड़ा उधर ही दौड़ा दिया।

चलते हुए घण्टा भर हुआ होगा कि घोड़ा फिर रूक गया।

शिवपाल ने फिर कारण जानने का प्रयास किया तो उसे फिर से पसीना आ गया। सामने एक काला और खतरनाक बहुत लम्बा मोटा सांप पूरे रास्ते पर लेटा सामने की ओर फन फैलाये बैठा था।

शिवपाल को बार बार तलवार याद आजाती थी, वह तलवार निकालने का ही सोचरहा था कि अचानक उसे तलवार के साथ सांप का भयानक दुश्मन बाज याद आगया। शिवपाल ने आसमान में देखा तो पाया कि उसका देास्त बाज पास में ही मड़रा रहा था। बाज ने शिवपाल का इशारा पाया तो मामला समझा और आसमान से नीचे की तरफ एक जोरदार गोता लगाके जमीन के ठीक पास आया और एक ही झटके में रास्ते पर पसरे उस बड़े सर्प को अपने नुकीले पंजों में दबाकर आसमान में उड़ता चला गया।

सांप की बाधा खत्म हुई तो घोड़ा और सवार दोनों निश्चिंत हो कर आगे बढ़े।

आगे जाकर एक खुला मैदान दिखा, जिसके एक कोने पर तालाब दिख रहा था। चारों ओर दीवार सी खड़ी थी। शिवपाल ने चारों ओर घूम कर देखा तो ऐसा लगा कि वह दीवार लगातार हरकत में आ रही है और फैलती जा रही है।

ज्यों ही पीछे मु़ड़कर देखा तो शिवपाल का ऊपर का दम ऊपर और नीचे का दम नीचे रह गया। दीवार चारोंओर फैलती हुई पीछे से आ रहे रास्ते को भी बंद कर चुकी थी। अब वह शिवपाल दीवार के घेरे में था। शिवपाल के पास न आने का रास्ता था न जाने का ।

शिवपाल ने आधा घड़ी विचार किया फिर घोड़े को इशारा किया और उसे तालाब की तरफ दौड़ा दिया। सामने तालाब था वहां खड़े होने पर साफ साफ तालाब के उस पार रास्ता दिखाई दे रहा था।

शिवपाल के इशारे पर उसका घोड़ा सीधा तालाब में छलांग लगा गया और पानी में तैरने लगा। वैसे तो तालाब ज्यादा गहरा न था, बस शिवपाल को यह डर लग रहा था कि नीचे जमीन में कीचड़ जमा न हो गया हो कि घोड़ा उसमें फंस कर रह जाये।

लेकिन शिवपाल की आशंका गलत सिद्ध हुई। पानी में तैरता हुआ घोड़ा तालाब के उस पार जा पहुंचा और उछल कर जमीन पर खड़ा हुआ फिर सामने दिख रहे रास्ते पर आगे बढ़ गया था। शिवपाल ने पीछे देखा अब वो घेरे बनाने वाली दीवार गायब थी और उसकी पीछे दौड़ता हुआ शेर चला आ रहा था।

अब जंगल फिर शुरू हो गया था जो पहले की तुलना में ज्यादा घना था। वे जिस रास्ते पर बढ़ रहे थे वह रास्ता बहुत छोटा था यानि कि पेड़ों के बीच खाली जगह पर बहुत छोटी सी पगडण्डी थी। घोड़ा भी आहिस्ता अहिस्ता कदम रखता जा रहा था। यकायक घोड़ा फिर रूक गया।

शिवपाल ने सतर्क हो चारों ओर नजर फेरी । उसे कुछ नहीं दिखा, तो उसने जमीन पर निगाहंे गड़ायी।

ध्यान से देखने पर पता लगा कि रास्ते की जमीन अब ठोस नही रह गयी थी, बल्कि आगे खूब सारा कीचड़ जमा था।

आगे चलेंगे तो घोड़े का चलना भी दुश्वार हो जायेगा यह सोचते हुए शिवपाल ने विचार किया कि वापस लौट कर जंगल में से दूसरा रास्ता देखते हैं।

उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह हैरान था कि पीछे का रास्ता भी गायब था उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। पेड़ों की घनी कतार में से वह पगडण्डी भी नही दिख रही थी जहां से वे आगे बढ़े थे।

सहसा उसे विचार आया कि क्यों न बाज के पंजे पकड़कर वह आसमान के रास्ते से जादूगर के किले की तलाश करे।

वह घोड़े से उतरा।

शिवपाल को आगे का कोई उपाय समझ में नही आ रहा था कि सहसा उसे अपने साथी शेर की दहाड़ सुनाई दी। मुड़ कर देखा तो देखा कि कुछ पीछे ही एक पेड़ के पीछे खड़ा हुआ शेर उसे ही बुला रहा था।

शिवपाल सतर्कता से चलता हुआ शेर के पास पहुंचा। शेर ने अपना पंजा उठाकर एक तरफ इशारा किया तो शिवपाल ने देखा कि पेड़ के पास से ही सामने की जमीन में जाता हुआ एक रास्ता दिख रहा था।

हां वह एक खूब बड़ी गुफा थी सामने जिसमें बाकायदा सीड़ियां दिख रहीं थीं।

शिवपाल ने आव देखा न ताव अपने घेाड़े को इशारा किया और आगे आगे वह व पीछे पीछे घोड़ा और शेर उस गुफा की सीड़ियां उतरते चले गये।

आसमान में उड़ते बाज ने भी एक झपट्टा मारा और वह शिवपाल के कंधे पर आकर बैठ गया था।

सीड़ियां बहुत संख्या में थी और अचरज तो यह था कि ज्यों ज्यों नीचे उतरते जा रहे थे न तो हवा में कोई दुर्गंध थी न ही उजाले में कोई कमी आयी थी।

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