Benaam shayri - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

बेनाम शायरी - 2


"बेनाम शायरी"

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एक जमाना था कि लोग अपनों पे जान छिड़कते थे।
एक ज़माना है कि लोग अपनो की जान छिड़कते है।।

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ये तेरे अल्फाजों की पेहलिया हमें समझ नहीं आती।
ये दिल की सारी बाते है दिल में बस क्यों नहीं जाती।।

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"बेनाम" नजरो से उतरना हमें मुनासिब नहीं है।
हम दिलो में उतरने का हुनर लाजवाब रखते है।।

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खामोशियों में भी खुशियों के फसाने ढूँढ लेती है।
बड़ी शातिर है दुनिया इश्क के बहाना ढ़ूँढ लेती है।।

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क्यों आज आसमान तुमे सुना सा लगता है??
ये राह का हर कदम अब गुनाह सा लगता है।

"बेनाम" अब इश्क में इतनी तल्खियां क्यों है?
ये शख्स तुमने लाखो में से चुना सा लगता है।।

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अब भी क्यों तेरे इश्क में असर बाकी है !?
अधूरा इश्क क्यों ? क्या कसर बाकी है!?

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क्या बतलाए हम केसा हमसाज लगता है।
ये दर्द गुमनाम आशिकी का ताज लगता है।।

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ये अलग बात है के तुजमे आज अलगाव है।
बेनाम आज भी मेरे पास सहेजे हुए घाव है।।

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इतना भी ऐतराज़ न करो हमारी हाजरी से।
जब हम न रहेंगे फिर हमारा इंतजार करोगे।।

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तेरे ख्वाबों की जद में अब मेरा नाम नहीं।
मै टूटा हुआ तारा हूं कोई आसमान नहीं।।

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क्या दिखाएं हम तुमको ये आंखे नम बहुत है।
खुश दिखती है जिंदगी पर इसमें गम बहुत है।।

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देखने वाले की नीयत पर नजरिया रेहता है।
किसी को पत्थर तो किसी को खुदा दिखता है।।

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इश्क अगर इबादत है,
फिर उनसे तिजारत क्यों??

इश्क मर्जी रब की है,
फिर इतनी जियारत क्यों!?

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तोड़ गया है कोई या टूटने की कगार पर हो !?
मिल गया किनारा या अभी मझधार में हो !?

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है ज्वालामुखी जो खुद ही पानी में आग लगाते है।
जो इश्क में द्वंद में खुद झोके वहीं पार लगाते है।।

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शायद वक्त तुमने गलत चुना लगता है,
फिर शख्स तुमने गलत चुना लगता है।

ज़ख्म गहरे तो इश्क हरदम देता ही है,
जूठे इश्क का जाल उसने बुना लगता है।।

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ये नादानियां हमने तुमसे ही सीखी है।
वर्ना इतना पागलपन हम में कब था।।

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दर्द भी बसर जाता है कोई
घाव में भी मुस्कुराता है कोई।

इश्क तो वो सजा है जमाने की,
खुशी से ही लूट जाता है कोई ।।

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दिल टूटना ही तो दस्तूर है इश्क का।
आंसू में ही बेनाम बजुद है इश्क का।।

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खुद की हसी का जो राज जानते है।
यकीन मानो वो सबको पहचानते है।।

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इनायते कम न हुए तेरे इस परवाने पर।
जान न गई और जख्म है दीवाने पर।।

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Thank you 😊
✍️Er. Bhargav Joshi " benaam"

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