बेनाम शायरी - 3 Er.Bhargav Joshi અડિયલ द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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बेनाम शायरी - 3


बेनाम शायरी


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ये शराब तो बस नाम से बदनामी झेल रही है।
असल में नशा तो हमे तेरी आंखे ही दे रही है ।।

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इश्क की कुर्बानी को जायज किसने माना है!?
"बेनाम"
दर्द की इस दुश्वारी को किस किसने पहचाना है !?

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आंसुओ के कहां कोई किनारे है।
मयखानों में छुपे दर्द हजारों है।।

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ये नजरो की नजाकत जो तुम हथियार बनाए बैठे हो।
यकीन मानो तुम इश्क की एक जंग सजाए बैठे हो।।

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ये बेरहेम दुनिया से रहम की आस क्यों ??
जहां इंसान नहीं वहां खुदा की प्यास क्यों ??

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ये आखरी कोशिश मै दिख रहा हूं।
अकेला हूं मै जो ये लिख रहा हूं।।

दर्द ये ग़ज़लें और अपनापन बहुत है।
फिर भी आज बस गैरत लिख रहा हूं।।

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क्यों किसी के सब्र का इम्तिहान लेने बैठे हो !?
सुबह की गुलाबी ठंड में आग लगाए बैठे हो।।

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ये आरज़ू तुम किसी और से लगाए बैठे हो।
यकीनन अब तुम खुद को गंवाए बेठे हो ।।

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मैं उसके दर पे जाऊ भी तो कैसे !?
मन मेरा फिर मनाऊ भी तो कैसे !?

वो रिश्ता तोड़ते तो संभल भी जाता,
दिल टूटा है समजाऊ भी तो कैसे !??

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"बेनाम" ये आग, ये पवन या चाहे हो दरिया।
अंबर का मिलन हो धरती से यही है जरिया।।

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फिर उदासी का आलम हटा लिया है तुमने,
आंखो मे उमड़े हुए आंसू बहा दिया है तुमने।

पत्थर तराश ने का हुनर था लाजवाब तुजमे,
फिर हंसते हुए तारे को सजा लिया तुमने।।

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एक समर हो अगर इश्क का इस जहान में कभी।
तुम सारे दावपेंच हम पर आजमाना आकर वहीं।।

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कितना आसान है प्यार का इजहार करना।
हंसते हंसते ही जिंदगी को दुश्वार करना।।

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क्या रंग? क्या रूप? ना जाने क्या हो तुम बाला!?
बिन पिए ही मुझे चड़ रही है जैसे बैठा मधुशाला।।

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तेरी मोहब्बत का कर्ज कुछ इस तरह चुकाएंगे।
"बेनाम" दर्द में भी बस हम हरदम मुस्कुराएंगे।।

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कहां आसान राह थी इस बेवजह इश्क की।
ये तो आंखो में बसी थी बयार बस रिस्क की।।

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तुम भी गजब के सवाल करती हो,
ख़ामोश रहकर भी बवाल करती हो।

उफ़ ये तेरे नयनों के वार भी हमपर,
झुकी पलको से भी शिकार करती हो।।

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अजेय होने का तिस्मिल जो तुमने खुद का बनाए रखा है।
खुद की ही नजरो में खुद को तुमने कैद बनाए रखा है ।।

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Thank you....

... ✍️ Er. Bhargav Joshi "benaam"

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[ क्रमशः ]