क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो

क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो...!!

क्या हुआ? स्नेहा इतनी उदास सी कैसे लग रहीं हो? स्नेहा के पति गौरव ने पूछा।।
बस,आज कुछ ऐसा हाथ लग गया, जो केवल दर्द के एहसासों से भरा हैं,स्नेहा बोली।।
ऐसा क्या मिला? तुम्हें! जो इतना दु:खी हो रही हो,गौरव ने स्नेहा से पूछा।।
तुम्हारी मां की डायरी मिली,जिसमें उन्होंने अपने जिंदगी के साठवें साल मे लिखा,इतनी जिंदगी मे सिर्फ एक दिन उन्होंने अपने मन की बात डायरी में लिखीं,इतन सालों में उन्हें एक भी ऐसा कंधा नहीं मिला,जिस पर वे सिर रखकर रो सकें, ऐसा कोई हाथ नहीं मिला जो उनके सिर पर फिराकर कहें कि चिंता मत करों, मैं हूँ, सच में तुम्हारी मां कितनी अकेली थी,इतना कहते कहते स्नेहा की आंखों से दो आंसू ढ़लक पड़े।।
ऐसा, क्या हुआ? स्नेहा, मुझे भी तो पता चले,गौरव बोला।।
तुम्हें पढ़कर सुनाती हूँ, उनके गहरे दर्द का तुम्हें भी पता चल जाएगा और स्नेहा ने अपनी सास के लिखे चंद पन्ने पढ़ने शुरू किए।।
मै पार्वती, अपने जीवन के साठवें साल में अंदर हो रही घुटन को निकालना चाहती हूँ, मुझे अपने जीवन मे जो मिला और जो ना मिल सका,उसे मैंने नियति समझकर स्वीकार किया, कभी किसी से कोई शिकायत नहीं है कि लेकिन शायद मेरी इस चुप्पी को लोग मेरी कायरता मान बैठे।।
उस जमाने मै एकल परिवार नहीं होते थे,मेरे पिताजी अपने घर के बड़े बेटे थे और उनकी मै पहली संतान थी,सारे भाई बहनों मे सबसे बड़ी,पांच साल की उम्र से ही मैने अपने छोटे भाई बहनों को सम्भालना सीख लिया था क्योंकि मां के पास बच्चों की सेवा के अलावा दादा दादी,चाचा और भी परिवार के सदस्य होते थे जिनकी उन्हें देखभाल करनी होती थीं, आठ साल की उम्र तक आते आते मैं घर के सारे कार्यो मे निपुण हो गई थीं,पढ़ाई के नाम पर केवल पांचवीं पास थीं, फिर चाचियां आ गई उनके बच्चों को भी पालती रही,बचपन क्या होता हैं पता ही नहीं चला।।
सोलह साल की उम्र मे एक ऐसे इंसान के साथ ब्याह दी गई, जिसे मैं जानती तक नहीं थी,जिसे कभी देखा तक नहीं था,पिताजी और दादा जी ने जो तय कर दिया उसे ही नियति मान लिया, ससुराल पहुंची,वहां भी बड़ी बहु थी मैं,उस दिन के बाद एक बात जुड़ गई मुझसे क्योंकि तुम मेरी पत्नी।।
ससुराल पहुँचते ही मैने सारा घर परिवार सम्भाल लिया,सबका ख्याल रखने लगी,कोशिश यही रहती कि कभी कोई गलती ना हो,मगर ना चाहते हुए कभीकभार कुछ गलत हो ही जाता, सास दिनभर कोसती, कि भरे पूरे परिवार की लड़की हैं फिर भी कुछ नहीं सीखा मां और चाचियों से,मैं चुपचाप कोने में रो लेती,सूती धोती के सीधे पल्लू से अपने आंसू पोंछ लेती,कभी पलटकर सास को जवाब ना देतीं क्योंकि पति तो बाहर रहकर नौकरी कर रहे थे,कभी एकाध दो महीने में घरके चक्कर लगा जाते,मैं उनसें कुछ कहती कि इससें पहले ही दिनभर मे सास उनसे सारी चुगली कर डालती,रात को सबके सो जाने के बाद पति अपने मित्रों से मिलकर घर लौटते फिर उनकी वहीं बातें कि तुमनें ऐसा किया, तुमने वैसा किया, मां कह रही थीं, मैं फिर आंसू बहाती,पति कहते तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो,फिर वहीं बिना प्रेम और बिना भावों वाला शुष्क सा मिलन,दो तीन रोज ऐसे ही चलता,पतिदेव फिर अपनी नौकरी पर चले जाते।।
इसी बीच सत्रह की होते होते मैं मां बनने वाली थीं, घर के इतने काम,इतने लोगों का ध्यान रखते रखते मैं अपना ध्यान नहीं रख पाती और मेरा तो कोई ध्यान रखने वाला था नहीं इसलिए, प्रसव के समय तक मैं एकदम कमजोर हो चुकी थी,शरीर एकदम काला पड़ चुका था और इन सबका असर मेरे होने वाले बच्चे पर पड़ा,ससुराल वाले अस्पताल ना ले जाकर दाई के भरोसे बैठे रहें और प्रसवपीड़ा इतनी भयानक थी जोकि ये सब मेरा बेटा ना झेल सका और इस दुनिया को अलविदा कहकर चला गया,खबर सुनकर पति शहर से आए लेकिन एक दो दिन मे वापस चले गए क्योंकि मेरा शरीर उस समय उनके मतल़ब के लिए तैयार नहीं था।।
मेरी ऐसी हालत देखकर पिताजी रो पडे़ जो कि मुझसे मिलने आए थे और उन्होंने मेरे ससुराल वालों से कहा कि वो मुझे कुछ दिनों के लिए साथ ले जाना चाहते और मै उनके साथ चली गई, कुछ ही दिन वहां रही थी,मेरी हालत मे सुधार होने लगा था,थोड़ी आजादी सी महसूस कर रही था,बिना घूँघट के स्वतन्त्रता का अनुभव कर रही थीं कि पतिदेव लिवाने आ गए, मुझे पचास बातें सुनाई कि बिना मेरी मर्जी के यहां आ गई, मुझसे पूछा भी नहीं, ऐसे नही आना चाहिए था क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो।।
मेरा स्वास्थ्य सुधरा भी नहीं था कि पति मुझे ससुराल लिवा लाए,सत्ररह की होते होते मुझे पता चला कि मैं फिर से मां बनने वाली हूँ इस बार मैनें मां के पास संदेशा भिजवा दिया,मां ने मुझे लिवाने छोटे भाई को भेज दिया, पिछली बार की अनहोनी की वजह से ससुराल वालों ने बिना ना नुकुर के मुझे मायके जाने दिया, मायके पहुंच कर कुछ महीनों बाद मैने सुन्दर सी बेटी को जन्म दिया, लेकिन मेरे ससुराल से कोई भी नहीं आया और ना ही मेरे पति बेटी का मुँह देखने आए,बेटी का पैदा होना उनके लिए अपशगुन की बात थी,फिर कुछ महीनों बाद पति लिवाने आए जब ससुराल मे मेरे बिना घर के काम मुश्किल होने लगे तब,मैने पति से कहा आप बेटी का मुँह भी देखने नहीं आए,वो बोले, अब तुम मुझे बताओगी कि मुझे क्या करना है क्या नहीं, मुझे ज्यादा ज्ञान मत तो,चुप रहा करो क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो।।
इसी तरह दिन बीत रहे थे मैने बेटी के बाद दो और बेटों को जन्म दिया,ऐसे दो तीन साल और गुजर गए,बेटे अब पढ़ने लायक हो चुके थे,तब पति ने हम सब को शहर ले जाने की सोची लेकिन बेटी को ले जाने को वो राजी नहीं हुए, बोले ये क्या करेंगी आगे पढ़कर ,सोलह सत्ररह की होते ही ब्याह देगें, यहीं रहकर गाँव के स्कूल मे पढ़ने दो,मै अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने बेटे और दो देवरों के साथ शहर चली गई, देवरो को भी स्कूल से आगे की पढा़ई के लिए शहर ले जाना पड़ा,मुझे शहर पहुँचकर बेटी की बहुत याद आती और मै अंदर ही अंदर रो लेती क्योंकि किसी के सामने रोने का कोई फायदा नहीं था,मै बहुत परेशान हो चुकी थी ये सुन सुनकर कि क्योंकि तुम मेरी पत्नी हो।।
बेटी सोलह की पूरी ही हुई थी कि सास ने उसकी शादी की रट लगानी शुरू कर दी और सत्ररह की होते होते उसे उससे ज्यादा उम्र के लड़के से ब्याह भी दिया गया, मै मना करती रही,सबके हाथ पैर जोड़ती रही लेकिन मेरी किसी ने नही सुनी,कुछ दिनों बाद बेटी ससुराल से घर लौटीं, उन्होंने दहेज की मांग की,मेरे पति ने उन लोगों की फरमाइश पूरी कर दी लेकिन बेटी को मायके मे आसरा ना दिया उन लोगों की फरमाइशे और बढ़ी फिर पति के वश मे उनकी फरमाइशे पूरी करना ना हो पाया तो एक दिन खबर आई की मेरी बेटी ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली हैं, मै फूट फूटकर रोती रही कि काश थोड़ा साहस कर पातो तो मेरी बेटी आज जिंदा होती,पता नहीं क्या था आत्महत्या या हत्या।।
फिर देवरानियाँ भी आ गई, वो भी मुझे झिड़कियाँ देने लगी क्योंकि मैने उन लोगों की तरह जुबान चलाना नहीं सीखा था,बस फिर बेटे बड़े हो गए तो वो भी कहने लगें, मां तुम ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं हो तो हमारे बीच मे मत बोला करो,बहुएँ भी पढी़ लिखी और नौकरी वाली आईं, उनके लिए भी रोटियां बनाई फिर उनके बच्चों को भी सम्भाला,फिर पति तीन साल तक लकवाग्रस्त रहें,मरते समय उनकी आंखों मे तो ये भाव थे कि जैसे वो मुझसे क्षमा माँग रहे हो लेकिन कभी तो प्यार से अधिकार जता कर कहा होता कि तुम मेरी पत्नी हो।।
पढ़ते पढ़ते स्नेहा रो पड़ी और गौरव से बोली, काश मां के मरने के पहले हमें ये डायरी मिल जाती और हम उनसे माफी माँग सकते।।

THE END___

SAROJ VERMA__