एक ही भूल, अंतिम भाग (४) Saroj Prajapati द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक ही भूल, अंतिम भाग (४)

राजन ने मुझे आश्वासन दिया की वह अपनी पत्नी से जल्द ही तलाक ले लेगा। अभी हम आगे कुछ करते उससे पहले ही पुलिस वाले हमें खोजते हुए यहां तक अा पहुंची। उसके पिता व ससुर रसूख वाले थे। पुलिस पर दबाव डलवा उन्होंने बात दबा दी। पिताजी ने भी मेरी खातिर शिकायत वापस ले ली और उसके पिता से मुझे अपनाने के लिए खूब मिन्नतें की। परन्तु उन्होंने मुझे अपनाने से साफ मना कर दिया और राजन को भी धमकी दी की अगर उसने मुझे नहीं छोड़ा तो वो उसे अपनी संपत्ति से बेदखल कर देंगे।

दीदी राजन कायर निकला वो इस बात से डर कर मुझे छोड़ उनके साथ चला गया।

कह रज्जो चुप हो गई। सीमा ने यह चुप्पी तोड़ते हुए उससे पूछा कि चाचा जी ने तुम्हारे मरने की झूठी खबर गांव में क्यूं फैलाई और तुम यहां तक कैसे पहुंची?

दीदी अनजाने में कहो या लड़कपन में जो पाप मुझसे हुआ था उसकी सजा तो अभी शुरू हुई थी। पिताजी से अपने पति की आत्महत्या कि खबर सुन मुझे इतनी आत्मग्लानि हुई कि मैंने भी जीवन त्यागने का फैसला कर लिया लेकिन यहां भी मैं हार गई। पिता जी ने समय रहते मुझे बचा लिया और गुस्से से बोले तुम जीते जी तो हमें मार ही चुकी हो अब जवान बेटी की लाश देखने का दर्द तो ना दो। और उन्होंने वादा लिया की अब मैं कभी ऐसा नहीं करूंगी।
पिता जी मुझे गांव वालो के डर से वापस घर नहीं लाना चाहते थे लेकिन मुझे कहां लेकर जाए, यें उन्हें समझ नहीं आ रहा था। यहां मां के स्कूल की एक बहनजी ने हमारी मदद की। उन्होंने मां को कहा कि मुझे लेकर वह उनके गांव चले जाएं। गांव में उनके पुश्तैनी मकान का जो चौकीदार है उसके बेटे से इसकी शादी कर दे। उन्होंने बताया कि वे बहुत भले लोग है और वह उन्हें वर्षों से जानती हैं।
मै दोबारा शादी नहीं करना चाहती थी पर अब मैं किस मुंह से मना करती और जाती भी कहां? इसलिए पिता जी के साथ चली गई। पिताजी मेरी शादी करवा वापस घर अा गए और मुझे हिदायत दी की मैं कभी गांव ना आऊं और ना कभी फोन करूं। नहीं तो इन लोगो को मेरी असलियत पता चल जाएगी। मैंने कई बार अपने पति को इस बारे में बताने की सोची पर हिम्मत ना जुटा सकी। घर में ससुर के अलावा जेठ जेठानी भी थे। शादी के बाद ही मुझे पता चला कि मेरे पति दुहाजू थे। उनकी पहली पत्नी बीमारी से चल बसी थी। वैसे तो वो ठीक ही थे लेकिन काम धंधे से जी चुराते थे। जेठ जेठानी खर्चे के लिए कुछ कहते तो मेरे ससुर उनकी बात दबा देते। वो सारा दिन खाली इधर उधर घूमते ।उनका गुस्सा मेरी जेठानी मुझ पर निकालती। सारा दिन मुझे घर के कामों में खटना पड़ता था और खाने के लिए भी वो मुझे बचा खुचा ही देती थी। एक साल बाद ही मेरी गोद में बिटिया अा गई। खर्चे बढ़ गए थे। मैंने और ससुर ने भी अब इन्हे काम के लिए कहना शुरू कर दिया था। ससुर बीमार भी रहने लगे थे। लेकिन ये एक कान से सुनते और दूसरे से निकाल देते। इसी बीच बीमारी से मेरे ससुर चल बसे।
अब तो जेठ जेठानी ने हमारा रहना और खाना पीना दूभर कर दिया। एक दिन तो झगड़ा इतना बढ़ा कि मेरे जेठ ने इन पर हाथ उठा दिया। इस बात से नाराज़ हो इन्होंने घर छोड़ दिया और मुझे यहां ले आए। यहां इनका एक दोस्त रहता था जो इसी सोसायटी में गार्ड है। उसी ने इन्हे भी एक जगह नौकरी लगवा दी।
दीदी मुझे लगने लगा था कि अब मेरी ज़िन्दगी पटरी पर अा जाएगी और शायद भगवान ने मुझे माफ़ कर दिया है। लेकिन खुशियां मेरी ज़िन्दगी से शायद उसी दिन रूठ गई थी जिस दिन मैंने अपने पिता की चौखट लांघी थी। यहां आकर यह गलत संगति में पड़ गए और नशा करने लगे। मै कुछ कहती तो मार पीट पर उतारू हो जाते। नशे कि लत इन्हे ऐसी लगी की कई कई दिन तक काम पर ना जाते और ना ही घर आते।
भूखों मारने की नौबत अा गई थी। एक दिन गार्ड भैया जब हमारे घर आए तो मैंने उन्हें सब बताया। तब उन्होंने ही घर के हालात देख मुझे इस बिल्डिंग में काम दिलवाया।
वो तो मुझे घर से निकलने ही नहीं देना चाहते थे। पर इस बार मैंने उनकी बात नहीं सुनी । मेरी बेटी स्कूल जाने लगी थी और उसका भविष्य मैं बर्बाद नहीं करना चाहती थी। मुझे लगता था कि मै काम पढ़ी लिखी नही थी इसलिए सही गलत का फैसला ना कर सकी और इतनी बड़ी भूल कर बैठी। पर अपनी बेटी को मैं खूब पढ़ाना चाहती हूं। उनके जाने के बाद अब वही तो मेरे जीने की आस है। वह ना होती तो शायद आज मैं भी ना होती।
रज्जो की बातें सुन सीमा की आंखो में आंसू अा गए। उसने रज्जो के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा," रज्जो तुम अपनी नादानी में की गई भूल कि बहुत सजा भुगत चुकी हो। तुमने इतनी सी उमर में इतने दर्द झेल लिए। इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। आज से तुम अपने को अकेली मत समझना । मैं अब हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं।
हां अपनी बेटी को तुम खूब पढ़ाओ क्योंकि शिक्षा ही हमारे भविष्य का आधार हैं। देखना रज्जो एक दिन तुम्हारी बेटी पढ़ लिखकर खूब नाम कमाएगी व समाज में फिर से तुम्हारा खोया हुए सम्मान वापस दिलाएगी।"
यह सुन रज्जो की पथराई आंखों में एक हल्की-सी चमक तैर गई।

समाप्त

सरोज ✍️