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एक ही भूल, भाग २

सीमा को पुरानी बातें याद आने लगी। रज्जो उसके ही गांव की थी। रजनी नाम था इसका। सब इसे रज्जो कहते थे। रज्जो के परिवार में उसके अलावा, माता पिता व भाई था। पिता सब्जी का ठेला लगाते थे और मां कस्बे स्कूल में आया का काम करती थी। मां बाप पूरा दिन बाहर रहते तो दोनों भाई बहन अपनी मस्ती में सारा दिन इधर उधर घूमते। मन करता तो स्कूल जाते वरना नहीं। रज्जो की मां अक्सर उन्हें पढ़ने के लिए डांटती थी। कई बार उसने भी समझाया था उसे।लेकिन हर बार वह यह कहते हुए भाग जाती की उसे अच्छा नहीं लगता स्कूल जाना। छठी सातवीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी थी इसने।
वैसे भी उस समय गांव में लड़कियों की पढ़ाई पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था। सीमा के पिता पढ़े लिखे थे तो घर का माहौल कुछ अच्छा था। पढ़ाई छोड़ने के बाद रज्जो ने सिलाई कढ़ाई सीखनी शुरू कर दी थी।उसका भाई भी छोटा मोटा काम करने लगा था। उसके पिता ने बेटे की शादी यह सोच कर जल्दी कर दी की बहू आने से रज्जो की मां को घर के कामों में सहारा मिलेगा और रज्जो को दिनभर अकेले नहीं रहना पड़ेगा। लेकिन इंसान जो सोचता है वह पूरा हो जाए ऐसी गरीबों की किस्मत कहां? नई बहू ने आते ही घर में कलेश शुरू कर दिया। जिस घर से कभी एक आवाज़ बाहर ना आती थी वहां रोज़ झगड़े होने लगे। एक - डेढ़ साल बाद ही बेटा बहू अपना सामान व हिस्सा ले अलग रहने चले गए। रज्जो के मां बाप की जमा पूंजी तो बेटे की शादी में ही खर्च हो गई थी अब आय का साधन करने के लिए अपने दो कमरों में से एक कमरा किराए पर दे दिया। किराएदार पच्चीस छब्बीस साल का नौजवान था। आस पड़ोस वालोंं ने थोड़ा घूमा फिराकर इस बारे में कहा भी लेकिन उन्होंने किसी की बात पर कान ना धरे। लंबा सांवला सा वह युवक अब उस परिवार का बेटा ही बन गया था। रज्जो भी तो उसे भैया ही कहती थी। एक दो बार आते जाते देखा था उसे। अपने सरल व्यवहार से जल्द ही उसने मोहल्ले वालों का दिल भी जीत लिया था।
रज्जो अब १८-१९ साल की हो गई थी। उम्र के साथ साथ उसका रंग रूप और भी निखर आया था। इसी खुबसूरती को देखकर एक बहुत अच्छा रिश्ता उसके लिए आया था। चाचा जी ने भी झट से हां कर दी। शादी में कोई कमी ना रहे इसके लिए उन्होंने अपनी जमा पूंजी एक छोटा सा प्लॉट भी बेच दिया। बारात में जिसने भी दूल्हे को देखा वो रज्जो कि किस्मत पर रश्क कर रहा था। मैं भी तो उसे देखती रह गई थी। चाचा जी ने अपनी हैसियत से बढ़कर सब किया। गांव वाले भी उनके इन इंतजामों को देखकर हैरान थे। सब इसे उनके अच्छे कर्मों का फल बता रहे थे। हंसी खुशी बारात विदा हुई। उसके मां पिता जी भी तो रज्जो के ससुराल वालों की कितनी तारीफ कर रहे थे और उसके लिए भी ऐसे ही घर परिवार की कामना कर रहे थे ।
लेकिन अनहोनी कैसे दबे कदमों से चाचा चाची के घर की ओर अा रही थी अपनी खुशियों में मग्न वह इससे देख ही ना पाए।
अगले दिन रज्जो पग फेरे के लिए आयी पहले गांव में रिवाज़ होता था कि मोहल्ले की औरतें बेटी को नेग देती थी। मां भी रज्जो को नेग व आशीर्वाद दे शाम कों घर अा गई। रात नौ बजे अचानक दरवाजे पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक हुई। पिता जी ने दरवाज़ा खोला तो रज्जो के पिता व भैया घबराए हुए से खड़े थे। पिता जी कुछ पूछते इससे पहले ही वह बोले , " रज्जो अाई है क्या?" " नहीं तो" यह सुनते ही वह तेजी से लौट गए । हम सब हैरान थे। मां ने बताया रज्जो को तो सात बजे तक ससुराल चले जाना था कुछ समझ नहीं आ रहा था।मां पिता जी दोनों ही उनके घर की ओर चल दिए। मां तो एक घंटे बाद कुछ घबराई हुई सी अा गई । एक दो औरतें भी थीं उनके साथ। उन्हीं की बातों से पता चला कि रज्जो उस किराएदार के साथ भाग गई। सारी औरतें यही कह रही थीं कि जाना ही था तो पहले चली जाती, बाप कर्जे में तो ना दबता और उस लड़के व उसके परिवार का क्या दोष था? जो उनके माथे बदनामी का इतना बड़ा धब्बा लगा गई। सब उसके माता पिता की कमी भी बता रहे थे कि जवान लड़के लड़की को साथ रखोगे तो यही गुल खिलाएंगे। जितनी मुंह उतनी बातें।

पिता जी देर रात घर आए थे। चाचा जी के साथ थाने में रिपोर्ट लिखवाकर। सुबह मां से बात करते हुए कैसे उन्होंने उसकी ओर देखा था। उस समय उनकी आंखों में एक बाप की बेबसी व लाचारी थी। उनकी आंखें बिना बोले ही उससे कई सवाल कर गई थी। उसने भी तो आंखों ही आंखों में अपने पिता को यह यकीन दिलाया था कि वह कभी इस घर की मर्यादा व इज्जत से खिलवाड़ नहीं करेगी।
चार पांच दिन हो गए थे रज्जो को गए। लेकिन उसका कुछ पता नहीं चल पा रहा था। इसी बीच एक दर्दनाक खबर उसकी ससुराल से अाई की रज्जो के पति ने समाज के तानों वो जगहसांई से परेशान हो आत्महत्या कर ली है। जिसने भी यह खबर सुनी उसका कलेजा मुंह को आ गया। सभी रज्जों की जी भर भर बद्दुआं दे रहे थे। एक हफ्ते बाद थाने से खबर आई कि वह दूसरे शहर में है। चाचा जी को पुलिस वालो के साथ जाना होगा। गांव वालों व उसके भाई ने उसे वापस यहां न लाने की सख्त चेतावनी दी और अगर उन्होंने बात ना मानी तो उनके परिवार का बहिष्कार करने की धमकी दे डाली।
औलाद कितनी भी निकम्मी क्यूं ना हो, मां बाप के लिए उनका मोह सदा रहता है। चाचा जी ने आश्वासन दिया कि वह रज्जो को यहां नहीं लाएंगे बस एक बार उससे मिलना चाहते हैं। १०-१५ दिन बाद जब चाचा गांव वापस आए तो कुछ लोगो ने उनसे रज्जो के बारे में पूछा। उन्होंने बताया की आत्मग्लानि के कारण उसने आत्महत्या कर ली । लोगों को उनकी बातों पर यकीन भी हो गया था कि उस बदचलन लड़की का यही अंजाम होना था नहीं तो वह कहां मुंह छिपाती।

क्रमशः

सरोज ✍️

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