एक ही भूल, भाग- ३ Saroj Prajapati द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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एक ही भूल, भाग- ३

उसके बाद चाचा जी ने जो चारपाई पकड़ी तो साल भर बाद उनकी अर्थी ही घर से निकली। बेटा बहू चाची के पास ही अा गए थे। बहू व आस पड़ोस के तानों के कारण चाची एक चलती फिरती लाश ही रह गई थी। और कुछ सालों में अपना मानसिक संतुलन खो चल बसी।
जिस रज्जो को दुनिया मरा हुए समझ भूल चुकी थी, वो इतने वर्षों बाद इस हाल में मिलेगी कभी सपने में भी सीमा ने नहीं सोचा था। शाम को रवि ने जब उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने थकावट का बहाना कर टाल दिया। रात भर उसे नींद भी ना अाई एक आशंका यह भी थी कि पता नहीं कल वह आयेगी भी या नहीं।
सुबह उसने जल्दी से अपने ज़रूरी काम निबटाएं। बार बार सीमा की निगाहें दरवाजे पर ही जा रही थी। लेकिन जब बारह बजे तक भी रज्जो नहीं आई तो उसने रमा को फोन कर पूछा । रमा ने बताया कि उसके यहां तो वह काम कर गई और बिना बताए तो वह छुट्टी नहीं करती, अा जाएगी। तभी डोरबेल बजी तो सीमा ने लपक कर दरवाज़ा खोला। सामने रज्जो ही थी। उसने रमा को उसके आने की सूचना दे फोन रख दिया।
सीमा ने रज्जो के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए पूछा" कैसी हैं रज्जो? क्या अपनी सीमा दीदी से बात नहीं करना चाहती?" इतना सुन रज्जो उनके पैरों पर गिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और बोली"मुझे माफ़ कर दो दीदी, मुझे माफ़ कर दो",।
सीमा ने उसे उठाकर गले लगाया और पानी दिया। पानी पीकर रज्जो ने कहा, "आज इतने वर्षों बाद मुझे अपने मायके की ओर का कोई मिला हैं। आप से मिली मानो मैं अपने माता पिता से मिल ली। मैं कल ही आपसे बात करना चाहती थी पर यह सोचकर चुप हो गई की आप मुझे दुत्कार ना दो। लेकिन दीदी आज मैं निश्चय कर अाई थी कि आपसे ज़रूर बात करूंगी क्योंकि अगर आज भी मैं चुप रही तो मेरी आत्मा कभी मुझे माफ़ ना करेगी। इसलिए सब जगह के काम निबटाकर फिर यहां अाई हूं।"
"हां रज्जो नाराज़ तो मैं थी तुझसे। मैं ही क्या पूरा गांव तुझे तेरी करनी पर धिक्कार रहा है लेकिन तुझसे मिलते ही मेरे मन के सभी मैल धुल गए। रमा से तेरे बारे में बहुत कुछ सुन चुकी हूं। तुझे तेरी भूल कि बहुत सजा मिल चुकी है।

"हां दीदी। गलती तो मैंने इतनी बड़ी की है कि इस जनम क्या कई जन्मों तक इसकी माफी नहीं है। लेकिन क्या करूं दीदी एक बार जो मेरे कदम बहके तो चाहकर भी मै संभल ना सकी। हमारा वह किराएदार राजन शुरू से ही मुझे आकर्षित करता रहा था। मां पिता जी भी उसे अपना बेटा समझने लगे थे। मैं भी उसे भाई ही कहती थी। लेकिन धीरे धीरे यह रिश्ता कैसे प्रेम में बदल गया पता ही ना चला। मेरे बड़े भाई ने तो परिवार से नाता तोड लिया था। इससे मां पिताजी अंदर से टूट ही गए थे। जब राजन ने उसकी जगह परिवार की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली तो मां पिता जी फिर से जी उठे। उसकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी। धीरे धीरे हम दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी। हमने साथ जीने मारने का फैसला कर लिए था। उसने मुझे यह आश्वासन भी दिया कि शादी के बाद वह मां पिताजी की जिम्मेदारी भी उठाएगा। हम इसी इंतज़ार में थे की मां पिताजी से इस बारे में बात करें किन्तु उससे पहले ही उन्हें हमारे प्यार की भनक लग गई।
दोनों ही इस पर बहुत नाराज़ हुए कि मैने उनके विश्वास को तोड़ा है। हम दोनों ने उन्हें अपने प्यार का वास्ता दे खूब मनाया तो वह इस शर्त पर राजी हुए कि राजन उन्हें अपने माता पिता से मिलवाएं। राजन ने कहा कि हम दोनों की जाति अलग अलग है । इसलिए वे लोग शादी के लिए राजी नहीं होंगे।किन्तु हम दोनों शादी कर उनके पास जायेंगे तो उन्हें रज्जो को बहू स्वीकार करना ही पड़ेगा।
लेकिन पिताजी इस बात के लिए कतई तैयार न हुए। उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे घरवालों ने इसे न अपनाया तब यह कहा जाएगी। इसलिए पहले तुम अपने घरवालों से बात करो।अगर वो मान जाते हैं तो हमें भी कोई ऐतराज नहीं। राजन आश्वासन दे चला तो गया। लेकिन कई महीनों तक उसका कोई जवाब न आया और न एक बार भी वो मिलने आया।
इस बीच वो रिश्ता अा गया ।मैने बहुत मना किया लेकिन मां पिताजी ने अपनी इज्ज़त का वास्ता देकर मुझ पर दबाव बनाया। मैं उनके आगे झुक गई।लेकिन चाह कर भी मैं उसे भुला नहीं पा रही थी।शादी का दिन पास आ रहा था और अब मुझे उसके आने की कोई आस नज़र नहीं आ रही थी।
एक दिन न चाहते हुए भी मां मुझे अपने साथ बाज़ार ले गई कि मैं अपनी पसंद के कुछ कपड़े ले लूं।अचानक भीड़ में मुझे वह नजर आया। वह भी किसी तरह नज़रें बचाते हुए मेरे पास आया और एक कागज का टुकड़ा पकड़ा चला गया। घर आकर जब मैने उसे पढ़ा तो उसमें लिखा था कि उसके घरवाले मान नहीं रहे। अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं जान दे दूंगा ।
पढ़कर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। राजन को ही तो मैने अपना पति माना था। मैने उसके पास जाने का फैसला कर लिया। परंतु अगले ही पल मुझे मां पिताजी का विवश चेहरा नज़र आया और मै रूक गई।उनकी इज्जत की खातिर मैने अपनी भावनाओं को काबू में कर शादी कर ली और इसे अपना भाग्य मान स्वीकार कर लिया। अगले दिन मैं जब पगफेरे के लिए घर वापिस आ रही थी तो रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई। वहीं कुछ दूरी पर मुझे राजन खड़ा दिखाई दिया। इशारों ही इशारों में उसने मुझे फिर से मरने की धमकी दी। दीदी मै घबरा गई।मुझे उसके साथ बिताए वो प्यार भरे दिन फिर से याद अा गए और उन कमजोर क्षणों में ही मैने एक ऐसा फैसला ले लिया जिसके कारण आज मैं एक अंधेरों से भरी जिंदगी जी रही हूं। मां बाप ने खुद को जला मेरी किस्मत खुशियों से भरनी चाही थी पर मुझ नासमझ न अपने साथ साथ उनका जीवन भी अंधेरों में ढकेल दिया।
घर आकर मैने मां से कहा कि मैं अपनी सहेली मंजू से मिल आऊं। वह बीमार है। फिर तो ना जाने उससे कब मिलना हो। मां से इजाज़त ले कुछ रुपयों पैसे के साथ उस पते पर पहुंच गई जो राजन ने चिट्ठी में लिखा था। वहां से हम ट्रेन पकड़ दूसरे शहर आ गये उसके दोस्त के पास। मुझे मां पिता जी को धोखा देने का दुख था। लेकिन उससे भी ज़्यादा अपना प्यार मिलने कि खुशी भी थी। मुझे विश्वास था कि कुछ महीने बाद जब हम मिलेंगे तो वह हमारी खुशी कि खातिर अपनी नाराज़गी छोड़ हमें अपना लेंगे। राजन भी मेरा बहुत ध्यान रख रहा था। तीन चार दिन बाद मैंने उसके घर चलने कि जिद की तो वह आना कानी करने लगा। मैंने जब ज़्यादा ज़ोर दिया तब उसने बताया कि वह शादी शुदा है लेकिन यह शादी उसकी मर्ज़ी से नहीं हुई। यह सब सुन मेरे पैरो तले से ज़मीन खिसक गई। मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि वह इतना बड़ा धोखेबाज निकलेगा लेकिन चाहकर भी अब मैं कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि अपनी किस्मत में कांटे भी तो मैंने ही बोए थे।

क्रमशः

सरोज ✍️