रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड
अध्याय 1
खण्ड 2
31 मार्च 2016 को एक दुर्घटना में उसके पिता का दिहान्त हो गया, इसके बाद हरीश की माता भी पति की मौत का सदमा ना झेल पाने के कारण कुछ दिन बीमार रह कर परलोक सिधार गई।
मगर हरीश के दुखों का अंत इन सब पर नहीं था बल्कि सबसे खतरनाक चोट उसको उसकी माता ने बीमारी के समय दी थी।
असल में हरीश की माता को बीमारी के समय इतना तो पता चल गया था कि उसका अंतिम समय निकट है। इसलिए उनको अपने पीछे हरीश के अकेले रह जाने की चिंता चुभने लगी और उन्होंने ये सोच कर हरीश को सौतेला होने का सच बता दिया था कि शायद वो किसी प्रकार से अपने सगे माता पिता का पता लगा कर उनका साथ पा ले और उसको इस संसार में एक बार फिर उसको अपनो का साथ मिल जाए ये सब हरीश की माँ ने उसके भले के लिये किया था मगर हुआ उसका उलटा हरीश को ये सब सोच कर ही दुख होता कि उसके माता पिता ने उसको त्याग दिया वो सोचता यदि उनको मेरी परवरिश ही नहीं करनी थी तो मुझे पैदा ही क्यों किया।
इन सब से हरीश मानसिक रूप से काफी आहत हुआ और अब उसका ध्यान ना तो खाने में था ना किसी काम में
इसी प्रकार से एक दिन दिसम्बर के महीने में एक पार्क में हरीश गुमसुम सा बैठा धूप सेक रहा था तभी उसकी नज़र अपने सामने दूर खड़े व्यक्ति पर पड़ी जिसको देख कर हरीश चोंक उठा क्योंकि वो व्यक्ति हरीश का हमशक्ल था और सबसे भयानक बात ये थी कि वो एकदम शांत स्थिति में खड़ा हरीश को ऐसे देख रहा था जैसे वो हरीश के लिए ही वहाँ आया हो और जब हरीश अपनी जगह से उठ कर उसकी और चला तो वो व्यक्ति अपनी जगह पर रुका नहीं रहा बल्कि आगे की ओर बढ़ चला,
हरीश निरंतर अपने हमशक्ल का पीछा करता जा रहा था जैसे जैसे हरीश उसको पकड़ने के लिए अपनी गति तेज करता वैसे वैसे ही वो हमशक्ल अपनी रफ्तार भी बढ़ाता जाता इसी बीच वो हमशक्ल एक सुनसान गली में घुस गया, हरीश भी उसके पीछे उस गली में घुस गया मगर जैसे ही हरीश उस गली में घुसा तो उसने उस गली को खाली पाया गया वो गली तीनों तरफ से ऊंची ऊंची दीवारों से बंद थी उन दीवारों को इतनी जल्दी लांघना किसी भी इंसान के लिए सम्भव नहीं था फिर भी वो हमशक्ल वहाँ से एक रहस्य की तरह गायब हो गया हरीश इस बात से काफी हैरान था तभी हरीश की नज़र सामने वाली दीवार पर पड़ी उस पर एक पर्चा लगा था जब हरीश ने उसको नजदीक से देखा तो उसपर हरीश की खुद की राइटिंग में लिखा था
समय आ गया
इस अनोखी अद्भुत घटना ने हरीश को सोच में डाल दिया आखिर ये सब क्या था?
हरीश उस पर्चे को लेकर अपने घर वापिस आ गया और आज की पूरी घटना पर मन में विचारने लगा, वो बार बार समय आ गया है। को मन ही मन दोहराता रहता कुछ देर में उसको इस गुथी की समझ आ गई और खुद से ही बाते करते हुए बोला " समझ गया समय से उसका अर्थ मेरे समय यात्रा यन्त्र से था जिसको अब सारी बातों को भूल कर तैयार करना होगा और वो हमशक्ल मेरा ही एक रूप है। जो भविष्य से आया था।
इसके बाद हरीश दिन रात कड़ी मेहनत कर 15 महीने में अपने समय यात्रा यन्त्र को तैयार कर लेता है।
अब सवाल था उसके परिश्रम का तो हरीश ने वही दिन चुना जिस दिन हरीश को उसके भविष्य से आये हमशक्ल ने उसको दोबारा यंत्र का काम करने की प्रेरणा दी थी और ऐसा करना आवश्यक भी था क्योंकि हमारे भूत काल में हुए अंतर से हमारा वर्तमान भी प्रभावित होता है। यदि कोई वस्तु अतीत में पूर्ण या पैदा ही ना हो उसका भविष्य में कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
खेर हरीश के पास परीक्षण के लिए उस दिन को चुनने के लिए ठोस कारण थे और उसने वो परीक्षण सफलता पूर्वक पूरा भी कर दिया बस अंतर केवल इतना था इस बार हरीश ने उस हमशक्ल का किरदार निभाया।
हरीश परीक्षण की सफलता से अत्यंत खुश हुआ उसके लिए ये सफलता बहुत बड़ी थी इस 15 महीने की भूतकाल यात्रा को सफल कर हरीश का साहस और यंत्र पर विश्वास और भी अधिक हो गया इस लिए हरीश ने अपने जीवन के सबसे बड़े सवाल का उत्तर जानने का इरादा कर लिया जिसके लिए उसको साल 2018 से 31मार्च 1990 में जाना था
इस अभियान को शुरू करने से पहले हरीश ने अपने सौतेले माता पिता के पुराने घर जा कर अच्छे से उस घर के आस पास के रास्तों को समझ लिया ताकि उसको भूतकाल में रास्तों को लेकर कोई दुविधा ना हो इस कार्य को कर हरीश अपनी प्रयोगशाला में वापिस आकर यंत्र में 31मार्च 1990 की सुबह का समय तय करता है।
पहले की समय यात्रा की अवधि पन्द्रह महीने थी जो सफल हुई मगर अबकी समय यात्रा की अवधि 28 वर्षों की थी जो पिछली अवधि से लगभग बीस गुना ज्यादा थी इस बात पर हरीश का बिल्कुल ध्यान नहीं गया, और ये बात हरीश के लिए एक घातक गलती सिद्ध हुई।
समय यात्रा यन्त्र इतनी बड़ी अवधि को झेल नही पाया इसलिये वो क्षण भर के लिए किसी अज्ञात स्थान पर गया और उसके बाद तय समय यानी 1990 में ले कर आया। इस क्षण भर की गलती में हरीश का हाथ उस अज्ञात समय के अज्ञात स्थान पर राखी एक वस्तु पर रखा गया था और वो वस्तु हरीश के साथ 1990 में आ गई जब हरीश ने उस वस्तु को देखा तो वो केवल एक वस्तु नहीं थी बल्कि उससे कई गुना अधिक गंभीर चीज़ थी जिसने हरीश के होश उड़ा दिए
हरीश के साथ आई वस्तु हॉस्पिटल में नवजात शिशु के लिये उपयोग होने वाला पाला था और उसमें एक नवजात शिशु बड़ी मासूमियत से सोया हुआ था।
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