लघुकथा
शिकवा
राहुल समय से आफिस पहुंच गया पर बिना किसी से बात किये अपनी टेबल पर जा बैठा . बॉस अभी आया नहीं था . बॉस के आने के बाद ही काम का एजेंडा तय होता है. काम न होते हुए भी उसने अनमने भाव से कम्प्यूटर का स्विच ऑन कर दिया . वह सोच ही रहा था कि किस प्रोग्राम को खोले कि तभी श्वेता अपनी मुस्कान के साथ उसके सामने आ खड़ी हुई , " गुड मार्निंग ! "
उसने कोई उत्तर नहीं दिया . उसके चेहरे पर असमंजस का भाव आ गया कि क्या उत्तर दे . सोचने लगा जिंदगी में कभी - कभी कैसी - कैसी परिस्थियाँ आ जाती हैं कि जो कभी बेहद अपने और किसी भी औपचारकता के बंधन से अलग होते हैं , उनसे ही बात करते हुए भी जबान , जड़ हो जाती है . फिर भी श्वेता की गुड मॉर्निंग को नजर अंदाज करना उसके लिए सम्भव नहीं था . वह सकुचाया और दबी हुई आवाज में बोला ," गुड मॉर्निंग " . उत्तर देने के बाद उसकी नजरें फिर से कम्प्यूटर - स्क्रीन पर जम गयी . श्वेता अब भी वही खड़ी रही .
" सुबह मेरा फोन क्यों नहीं उठाया ? "
" ............................!" उसने कोई उत्तर नहीं दिया .
" बताओ न तुमने मेरा फोन क्यों नहीं रिसीव किया . " श्वेता ने फिर से दोहराया .
" उससे क्या हो जाता ? तुम फिर से कोई शिकायत करती , फिर कोई इल्जाम जड़ देती . "
" क्या शिकायत करती या क्या इल्जाम जड़ती ? "
" बेमतलब की शकायतें कि अपने अपना मोबाइल से मेरा फोटो क्यों निकाल रहे थे या मेरी ड्रेस की तारीफ़ क्यों कर रहे थे ? "
" तो ऐसी हरकत करते ही क्यों हो ? "
" हो गयी न शुरू . जाओ सब लोग आते होंगें . अपना काम कर लो .' राहुल के स्वर में उदास तल्खी थी .
" आई. टी . एक्सपर्ट महोदय ! .कभी तो बात को समझ भी लिया करो . कोई - कोई शिकायत , सिर्फ शिकायत न होकर किसी अच्छे लगने वाले शख्स से बात करने का जरिया होती है और तब उसे शिकायत नहीं , शिकवा कहते हैं ."
" शिकवा............ ? "
" नहीं समझे ! शिकवा वो फर्जी शिकायत होती है जो सिर्फ अपने और उन बुद्धू लोगों से की जाती है जो इस बेजान कम्प्यूटर की गुत्थियां तो सुलझा लेते हैं पर किसी जानदार दिमाग की कोमल भावनाओं को नहीं पढ़ पाते ."
" हाँ.... आ ...आ ... मेरा दिमाग बेजान मशीन से ही बात करना जानता है ? यही न . "
" हाँ जानती हुँ राहुल जी आप बेजान मशीनों के नहीं , जीवंत गुथियों के भी इंजीनियर हैं . अब इस फूले हुए मुहं को मुस्कुराने भी दीजिये . फूले रहने से थक गया होगा . "
" उसने कम्प्यूटर - स्क्रीन से अपनी नजरें हटाई , कुर्सी से उठा और धीरे से बोला , " तुम झूठे बहाने बना - बना कर मुझे परेशान करती रहो और ऊपर से तोहमत ये कि मैं मुहँ फुलाता हूँ ."
" ठीक है अपने ही अपनों की बातें नहीं समझ सकते तो मैं अब न तो फोन करूंगी और न ही कोई बात करूंगी " श्वेता रुआंसी हो आयी .
" बात करने से कौन मना करता है पर उसमें हर बार शिकायत होगी तो मुहँ फूलेगा या गाएगा ?वह भी रुआंसा हो गया .
" तुम कुछ भी कहो ,अब मैं फोन नहीं करूंगीं , बस !"
" कहा न कि फोन तो करो पर शिकायत वाला नहीं ."
" सब कुछ तुम्हारे हिसाब से नहीं चलेगा ,ठीक है शिकायत न सही शिकवा तो मंजूर करना पड़ेगा ."
" हाँ मंजूर है . अब तो कैंटीन चलोगी , सुबह से कुछ नहीं खाया ."
श्वेता मुस्कुरा कर बोली " मुझे पता था कि तुम यही करोगे इसलिए मैं अपने घर से तुम्हारे लिए टिफिन ले कर आई हुँ "
श्वेता ने टिफिन खोला तो उसमें सिर्फ दो सफेद रसगुल्ले थे .
" ये तो हंसों का जोड़ा सा लगता है . " राहुल बोला .
" एक मेरा है , दोनों मत गटक जाना . बड़ा हंसों का जोड़ा लगता है ." श्वेता ने कहा तो राहुल ने बिना देरी किये दोनों को अपनी जीभ के हवाले कर दिया . श्वेता कुछ क्षण प्यार भरी नजरों से उसे देखने के बाद बोली , " अब तो शिकवा भी करूंगीं और शिकायत भी , चाहे जितना मर्जी मुहँ फुला लो ."
राहुल ने रसगुल्ले खा लेने के बाद अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर , इससे पहले कि श्वेता कुछ समझ पाती उन्हें श्वेता की चुन्नी से पोंछ लिया .
वह इतना ही कह पायी , " धत्त गंदे कहीं के . अब शिकायत न करूँ तो और क्या करूँ ." .
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सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
सम्पर्क : डी - 184 , श्याम पार्क एक्सटेंशन, साहिबाबाद - ग़ज़िआबाद , जून
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