बडी प्रतिमा - 2 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 2

बडी प्रतिमा

(2.)

प्राचार्या सरोज शर्मा बाल विधवा हैं। अपने बाल बच्चे कोई हैं नहीं। काॅलेज की छात्राओं के प्रति उनका सहज स्नेह भाव रहता है।मगर अनुशासन ढीला हो जाने के भय से उसे अधिक व्यक्त नहीं करती हैं। वे छात्राओं से सीधे कोई बात करतीं ही नहीं। जो कुछ भी कहलवाना होता है, उप प्राचार्य फजलुर्रहमान सर से कहलवाती हैं। वही फजलुर्रहमान, जिन्हें छात्राएं अभी अपने गीत में फजली बाबा कहकर प्रसन्न हो रही थीं।

ट्रेनिंग काॅलेज के बहुत बडे अहाते के उत्तर और दक्षिण की ओर टीचर्स क्वार्टर हैं। पूरब में प्रिंसिपल का बडा बंगला और छात्राओं के लिए छात्रावास । पश्चिम की ओर आॅफिस और उसके पीछे सर्वेंट्स क्वार्टर । दक्षिण में ही छात्राओं के क्लास रूम्स भी हैं। बीच में बडा मैदान जिसमें वैशाख जेठ छोडकर बाकी सालों भर मखमली घास लगी रहती है । मैदान के चारों ओर तरह तरह के फूलों की क्यारियां हैं। फूलों की क्यारियों, मैदान के घास आदि के रखरखाव का जिम्मा प्रशिक्षु छात्राओं का ही है। यही नहीं, सरोज शर्मा के बंगले और छात्रावास के बीच एक जमीन का बडा टुकडा भी है, जिसमें कई हिस्से कर दिए गए हैं । इनमें खेती किसानी करना भी टीचर्स ट्रेनिंग का ही एक हिस्सा है। इसमें पास के कृषि विश्वविद्यालय के छात्र और अनुसंधानकर्ता भी कभी कभी हाथ बंटाया करते हैं। जनवरी का महीना खत्म होने को है। क्यारियों में गेंदे के बडे बडे पीले और चंपई फूल अभी भी लदे हुए हैं। इनके बीच सफेद और कहीं कहीं हल्के गुलाबी गुलदाउदी की क्यारियां बेजोड समां बांध रही हैं। इन्हीं के बीच बीच में कहीं कहीं गुलाब भी झांक रहे हैं। खेतों की क्यारियों में बडे बडे लाल टमाटर लगे हैंे, गोल गोल बैंगन लटक रहे हैं, कहीं मटर की लतरें लहरा रही हैं तो कहीं उन्हीं के बीच तीसी के नीले फूल सिर तानकर गर्वित भाव से खडे हो रहे हैं। चारों तरफ रंग-बिरंगी तितलियां उड रही हैं। गौरैयों, कबूतरों के डेरे घास पर लगे हैं, कौए यहां वहां लगे आम के पेडों पर बैठे धूप सेंक रहे हैं। स्वर्ग जैसी यह छटा देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे बाणभटट यहीं बैठकर सृजन किया करते रहे हों !

इसी स्वर्गभूमि जैसे अहाते से होकर इन अप्सरा जैसी कन्याओं का झुंड अपने छात्रावास की ओर बढा । छात्रावास के गेट पर ही नेपाली दरबान परिवार सहित रहता था। उसकी चंचल बेटी ने सबका हार्दिक स्वागत सा करते हुए पूछा – “क्लास लेकर आ गया ? किसी को मारा तो नहीं ? हाथ में स्केल लेकर पढाने जाता है ? मैडम से बोल दूंगी ।

डाॅली तपाक से बोली – “स्केल तो तुझे मारने के लिए है। चल, मेरे लिए आमलेट बनाकर ला।

छात्रावास में सामिष बनाने की प्रथा नहीं है। यहां छात्राओं में से ही एक मेस इंचार्ज बनाई जाती है। वह तीन दिन तक एक ग्रुप को रसोई बनाने का काम देती है। एक ग्रुप में छह लडकियां होती हैं। अपने घरों में बडी नफासत से पाली गईं ये लडकियां कितने व्यंजन बना पातीं ? इसीलिए मेस में लकडी के बडे चूल्हों पर सुबह आठ बजे तक दाल, चावल और कोई एक सब्जी बना दी जाती है। मेस इंचार्ज को कम से कम पैसों में मेस चलाकर दिखाना होता है, इसीलिए वह मोटे चावल मंगवाती है, चने मसूर की दाल । सब्जी में ज्यादातर छिलके वाले सूखे आलू ही बन पाते हैंे। कभी कभी नेनुआ या आलू बैंगन की सब्जी भी बना ली जाती है। छात्राएं आठ बजते न बजते नहा धोकर तैयार होकर अपनी अपनी थालियां लेकर मेस में आ जाती हैं। लाइन सज जाती है। बडी कडछी से दो कडछी चावल, दाल और सब्जी लेकर सब अपने अपने कमरों में चली जाती हैं। जितना उस समय खा पाती हैं, खा लेती हैं, बाकी ढंक कर रख देती हैं। दोपहर में, क्लास खत्म होने पर वही प्रसाद फिर पा लिया जाता है, क्योंकि अब केवल रात में ही खाना मिल पाता है। रात में भी वही नेनुआ या परबल या गोभी आलू और रूखी रोटियां। पूर्णिमा को बडा खाना बनता है जिसमें खीर पूडी और छोले बनाये जाने की प्रथा है!

जो सामिष चटोरियां हैं, उनकी जीभ मांसाहार के लिए ज्यादा लपलपाती है तो इसी नेपालिन लडकी को पटा-पुटूकर, छुपा-छुपूकर कभी कभार आमलेट बनवा लेती हैं। नेपालिन छोरी राम्रो इससे एकाध रुपइया पा जाती है।

अभी वही राम्रो आंख मटकाती गीत गाती झूमती हुई आमलेट बनाने चली । सभी लडकियां अपने अपने कमरों में चली गईं। कमरे क्या थे डाॅरमेट्रीज थीं। तीन बडे कमरे उत्तर की ओर, तीन बडे कमरे दक्षिण की ओर । एक एक कमरे में बीस बीस चौकियां । हर दूसरी चौकी के पास सीमेंट की एक खुली अलमारी । हर लडकी के लिए काठ की एक चौकी , आधी अलमारी । उत्तर वाले कमरों में सीनियर्स रहती हैं, दक्षिण वाले कमरों में जूनियर्स। पूरब में तीन चार छोटे छोटे कमरे भी हैं। इसे बच्चा वार्ड कहते हैंे। जिन छात्राओं को बच्चे हैं उन्हें फजली सर के रहमोकरम से इन कमरों में बच्चों के साथ रहने की सुविधा मिली हुई है। वे अपने साथ अपनी एक सहायिका भी रख सकती हैं, कुछ चूल्हा-चक्की भी। बच्चा वार्ड के बगल से एक रास्ता पीछे की ओर एक और बडे अहाते की ओर जाता है, जहां बहुत सारे आम, इमली, कटहल, बडहल आदि के पेड लगे हैं। यहां दिन में भी अंधेरा रहता है। इसी अहाते में छात्राओं के लिए शौचालय बने हैंे। इनकी सफाई के लिए भी छात्राओं की पारियां बांधी जाती हैं जो इन्हीं में से चुनी हुई प्राइम मिनिस्टर बांधती है।

क्रमश..