बडी प्रतिमा - 3 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 3

बडी प्रतिमा

(3.)

पढाकर आई लडकियां अपने कमरों में आकर कपडे बदलने लगीं । कुंआरी लडकियों में से अधिकांश ने छोटे छोटे फ्राॅक पहन लिए, विवाहिताओं ने मैक्सी से संतोष किया । सब अपने-अपने बेड पर बैठकर एक दूसरी से बातें करने लगीं । कोई, अपने बालों में तेल चुपडकर कंघा करने लगी तो कोई चंदन घिसकर चेहरों पर मलने लगी। कुछ लडकियां सुबह सूखने के लिए रखे गए कपडे ले आकर तह लगाकर तकियों के नीचे रखने लगीं तो कोई अपनी काॅपी में असाइनमेंट पूरा करने लगी। विनीता का गौना होना है। वह आजकल केवल अपना दहेज जुटाने में लगी रहती है। वह मोदी थ्रेड के रंग बिरंगे लच्छे लिए दोसूती की चादर पर का्रॅस स्टिच से फूल बनाने लगी। अपने इलाके के नामी रंगदार केतन चा की भतीजी रीता भी एक फ्रेम लाकर उसके चादर में फूल काढने बैठ गई। खिलंदडी डाॅली छोटी अंजना के मुंह की ओर ताकती कुछ बातें करने लगी। उसे देखकर विभा ने अपने बिछावन पर बैठे बैठे वहीं से आवाज कसी - तुम उसके चेहरे को ऐसे क्यों देखती हो जी जैसे पति अपनी पत्नी को देखता है ?

विधायक जी की मितभाषिणी बेटी रेखा, जो अब तक एक साफ सूती साडी को फाड फाडकर तहा-तहाकर एक बांस की डलिया में रखती हुई गुपचुप अपने आगामी पंचदिवसों की सुरक्षा का इंतजाम कर रही थी, वह विभा की इस बात पर खिलखिला उठी । विभा, जो न सिर्फ विवाहिता थी, बल्कि दो बच्चों की मां भी थी, वह इन सभी छात्राओं की कमांडर जैसी थी। उसने रेखा को खिलखिलाते सुना तो बोली – “अरे, पति - पत्नी की बात सुनते ही कंवारियों के कान क्यूं खडे हो गए ? और बातों पर तो तू कुछ बोलती नहीं री घुन्नी ?”

डाॅली बोली – “वही तो विभा दी। अच्छा भला भगवा सहेज रही थी, मेरी बात चली तो खिखियाने लगी।

रेखा धीमी आवाज में बोली – “सहेजूं नही ंतो क्या तुम्हारे जैसा ? दाग लपेटे घूमा करूं ?”

डाॅली – “देखिए विभा दी । दाग लपेटे घूमती हूं ? कल ही तो आपने कहा था कि तुमलोग अपने कपडे यहां वहां न फेंका करो, मिट्टी में गाडा करो । मैंने खुरपी लेकर गाडा कि नहीं ? फिर दाग कहां से आए ?”

डाॅली के पास वाली चौकी प्रधानाध्यापिका की पुत्री गीतू की थी। बेहद सुंदर, बहुत शालीन, बहुत स्टाइलिश । अपने मधुर स्वभाव के कारण वह सबको प्रिय थी । आजकल वह सैनिटरी मंत्री है।

उसने कहा – “वह तो विभा दी, इसने बीच मैदान में फेंक दिया था। कुत्ते झगड रहे थे, तब मैंने इसे गाडने को कहा । यह कहीं भी फेंक देती है।

रेखा – “वह तो कल । परसों इसकी साडी में पूरा ही दाग लगा था । फजली सर ने जयलक्ष्मी मैम को बुलाकर डांट लगाई कि लडकियों को ठीक से पहनना ओढना सिखाओ।

इटालियन देवी जैसी बडी अंजना बोल उठी – “फजली सर जयलक्ष्मी मैम के साथ रहते रहते खाली यही सब देखना सीख गए हैं। मालूम है विभा दी, अपनी छोटी प्रतिमा जब पिछले हफते तुलसी पत्तों के गुणों पर बनाया हुआ अपना कैप्स्यूल जमा कराने गई तो उन्होंने क्या कहा ? जयलक्ष्मी मैम को बुलवाकर उन्होंने हम सबसे कहलवाया कि लडकियों को कहिए, आंचल की पटटी और चैडी बनाया करें । अब बताओ, यही सब देखते हैं सर ?”

इस कमरे में दो प्रतिमा नाम की छात्राएं हैं, दो अंजना नाम की । इसीलिए, उम्र के हिसाब से उन्हें बडी-छोटी कहकर पुकार की सुविधा कर ली गई है।

छोटी प्रतिमा - वही जिसकी चोटी लंबी है, जिसके चौडे’गोरे ललाट पर साधना कट लटकते बाल लटककर उसके सौंदर्य को द्विगुणित करते हैं, उसकी ओर शरारत से देखती हुई विभा बोली – “हां रे, ये कहा ? तुम्हारा है भी तो एक्स्ट्रा लार्ज ? तुम्हारे पति के लिए तो बडी परेशानी हो जाएगी ?”

प्रतिमा लजाकर बोली – “विभा दीदी, कित्ते बेशर्म हो आप ? शादी करने से आदमी जो इत्ता बेशरम हो जाता है तो मैं तो फिर शादी ही नहीं करूंगी ।

अंजना – “चुप रहो, छटपट तो कर रही हो शादी के लिए । विभा दीदी इसका.......”

आगे की बात अंजना बोल पाती कि इसके पहले ही छोटी प्रतिमा भागकर जाकर उसका मुंह अपने हाथों से कसकर बंद करने लगी । दोनों में इधर धक्का-मुक्की चल रही थी और उधर अंजू वर्मा, जो अब तक भुने चूडे में हरी मिर्च और बारीक प्याज काटकर मिलाती हुई नाश्ता बना रही थी, उसने पहाडा रटनेवाले सुर में,उच्च स्वर में घोषणा की – “प्रतिमा अपनी दीदी के देवर को पियार करती है। दोनों मंदिर में शादी करेंगे। वह दीवाना छिपछिपकर इससे मिलने आता है, जब यह क्लास लेने जाती है ।”

अब बात को और गोपनीय रखने का कोई उपाय न देखकर छोटी प्रतिमा, अंजना को छोडकर वहीं जमीन पर बैठ गई। उसका चेहरा लाल हो आया। सब लडकियां हंसने लगीं।

विभा ने अंजू को डांट लगाई – “ऐ भोंपू, चुप कर। फजली सर को पता चल गया न कि क्लास लेते समय कोई रास्ते में इसे मिलने आता है, तो तुरंत एक्सपेल्ड कर देंगे इसे। याद है, जब मेरे बहनोई को छुट्टी में मुझे घर ले जाने के लिए मेरे पिता ने भेजा था, तब उन्होंने कैसे गुस्सा किया था ? कहने लगे थे - बहनोई ननदोई के साथ मैं छात्राओं को नहीं भेज सकता । यह सब रिश्ते बडे खतरनाक होते हैं।”

इस पर अंजू के भूंजे को पूरी मुट्ठी भरकर हाथ में लेती हुई बडी प्रतिमा बोली – “मगर फजली बउआ को तो जब जयलक्ष्मी बउआ हंसि हंसि पनमा खिलाती हैं, तब उन्हें बडा मीठा लगता है।”

“बडी प्रतिमा बडी अनगढ है। ऐसे भी कोई बोलता है भला ?”

अंजू ने इटालियन देवी सी सुंदर अंजना के कानों में कहा – “मैंने भूंजा लेने को कहा तो आधा एक बार में उठा लिया। इसीसे इनकी ससुराल में इन्हें कोई नहीं चाहता है।

अंजना – “मैं तो बाबा इन्हें खाने की कोई चीज अपने हाथ से उठाकर देती हूं। नहीं पूरा ही झपट्टा मार लेती हैं।”

इतने में हाॅस्टल वार्डन किरण मैम की “पेट्ट स्टूडेंट” नर्मदा कमरे में आई और पूछने लगी – “किसी ने नीलू को देखा क्या ? वह रो रही थी । ”

सभी लडकियों ने नर्मदा को घेर लिया और चर्चा नीलू के रोने की वजह की ओर मुड गई। नर्मदा किसी भी बात को बडी नाटकीयता से कहने में माहिर है। अपनी इसी नाटकीयता के बल पर वह वार्डन की दुलारी बनी हुई रहती है और बाकी लडकियों पर रौब दिखाती रहती है। वार्डन के कमरे में ही सोती है, उनका खाना बनाती है और वहीं खाती है। वार्डन मेस में खाना नहीं खाती हैं। अपना खाना अपनी रसोई में लडकियों से पकवाती हैं। मगर अपने हिस्से का कच्चा सीधा चावल दाल आदि जरूर ले लेती हैं जिसे फिर से मेस में ही बेच दिया जाता है। यही नर्मदा सीधा वसूलने आती है।

नर्मदा ने थोडी नाटकीयता और थोडी झिडकी के स्वर में बताया – “तुमलोगों को तो अपने ताश और हंसी ठिठोली से ही फुर्सत नहीं मिलती। पता भी है, नीलू के दो हजार रुपये गुम गए हैं ?”

ऐसा लगा जैसे छात्राओं पर वज्रपात हुआ हो । दो हजार रुपए ? किसने चुराए होंगे ? डाॅली तुरंत बोली – “देखा विभा दीदी ? मेरे सौ रुपए गुम गए थे तब तो आपने कहा था कि मैं लापरवाह हूं ! किसी ने नहीं माना था । कोई तो चोरनी है अपने कमरे में ।”

जिस अंजना का मुंह डाॅली ताकती रहती रहती है, उसके भी सौ दो सौ रुपए गुमने की खबर बीच बीच में आई थी। उसने भी मुस्कुराकर विभा को देखा । मानों कह रही हो – “देखा ? मेरी बात पर सावधान हो गए होते तो आज इतने पैसे गुमने की नौबत तो न आती ?”

बडी प्रतिमा ने अपनी साडी के आंचल को बडी बेसब्री से अपनी कमर के इर्द गिर्द लपेटते हुए व्यंग्य से कहा – “वह कंजूसनी दो हजार रुपए रखती भी थी क्या ? फेयरवेल के लिए तो तीन सौ रुपए दिए नहीं बना था उससे !”

सबने एकाएक बडी प्रतिमा की ओर देखा। फिर पता नहीं क्यों उनकी आंखें एक दूसरे से टकराईं और झुक गईं। ताश खेलनेवालियों का मन भी उचट गया था। वे बेमन से पत्ते फेंक रही थीं, मगर अब ध्यान उनका इसी बात पर था कि पैसे कौन लेता है ? आए दिन सौ दो सौ रुपए गुमने की खबर आने लगी थी । और आज तो सीधा दो हजार चोरी चले गए हैं ! ”

इसी बीच नेपाली छोरी राम्रो ने चिल्लाते हुए आकर खबर दी कि इटालियन ब्यूटी अंजना का पति आया है। खबर सुनते ही अंजना हाथ के पत्ते फेंककर भागी। प्रभा कहती रह गई कि अरी अपनी चाल तो चलती जा, पर अंजना तो “धत्तेरे चाल की” कहती सरपट भाग ली। छह महीने पहले ही कमसिन अंजना का विवाह संस्कृत विश्वविद्यालय में काम करनेवाले काले भुजंग अमर से हुआ था । वह चश्मा भी लगाता था ।जब कभी अंजना उसके आने की खबर सुनकर बेतहाशा भागती तब प्रभा उसे चिढाती हुई कहती थी – “अरे, तू उस चश्मा के पीछे इतना तेज क्यों भागती है री ? मर्दों को पता नहीं चलने देना चाहिए कि हम उन पर फिदा हैं। हमेशा रूठने का बहाना किया करो । दस बार मनाने पर एक बार मुसकुराने की कृपा करो। फिर चुप। उनको मनाते रहने दो, आदत पडी रहनी चाहिए। ”

अंजना कहती – “अपना ज्ञान रखिए अपने पास !”

तब प्रभा संजीदगी से कहती – “ज्ञान ? अनुभव बता रही हूं, फ्री में । काम आएगा । नही ंतो नाचना जीवन भर उसके इशारों पर। मैं तो हफ्ते में एक बार चुपके से भर पेट खाकर अन्न-जल त्यागने का अभिनय जरूर करती हूं । जब दस बार मनाएगा तब खाती हूं।”

टुप्प से डाॅली गलत प्रश्न कर बैठती – “जब भर पेट खा ही चुके होते हो तब फिर मान जाने पर किस पेट में खाते होओगे प्रभा दी ?”

प्रभा – “अरी अक्कल की पैदल, इतनी जल्दी मान जाती हूं क्या ? मनाने में उसे दो चार घंटे तो एडियां रगडवाती ही हूं, तो तब तक पच नहीं जाएगा खाना ? और मान जाने पर कौन सा दाल भात खाना है ? रबडी लाएगा, कचैडी लाएगा, आइसक्रीम खिलाएगा, तब न मानूंगी !”

मगर अभी यह सब परिहास न जम पाया। अंजना के जाते ही सभी लडकियां अपने अपने बिस्तर पर लेट गईं।रात के खाने के समय भी नीलू के दो हजार रुपए गुमने की चर्चा ही गर्म रही। किसी ने बडी प्रतिमा को कभी किसी के पैसे चुराते नहीं देखा था, मगर जाने क्यों एक अनकही बात की तरह सबके मन में उसके प्रति एक शक बैठ चुका था। अगले रोज फजली सर ने असेंबली में सभी छात्राओं को कडी चेतावनी देते हुए कहा कि चोर जिस रोज पकडी गई, उसे निष्कासित कर दिया जाएगा।यह आखिरी चेतावनी दी जाती है। अपनी आदतों से बाज आएं और पैसे चुपचाप शिकायती बक्से में डाल जाएं ।

शिकायती बक्से में कोई पैसे तो नहीं डाल गया, पर हां ! इतना जरूर हुआ कि इस चेतावनी के बाद दो-तीन दिनों तक फिर कोई चोरी की घटना न हुई। छात्राएं फिर अपने कामों में लग गईं।

क्रमश..