जिंदगी का सफरनामा.....!!
छियासठ साल की शाहिदा दिल्ली के अस्पताल एम्स में बहुत दिनों से भरती हैं, जिन्दगी का आखिरी पड़ाव तय कर रहीं हैं सोचा नहीं था कि जिंदगी के आखिरी दिन ऐसे बिस्तर में कटेंगे,बिस्तर में पडे़ पडे़ भी तो मन ऊबने लगता हैं, खुदा का शुक्र हैं कि उसका घर दिल्ली में ही हैं इसलिए परिवार का कोई ना कोई सदस्य आता जाता बना रहता हैं, ज्यादातर तो उसके शौहर ही उसके पास रहते हैं, लेकिन सुबह से घर गए हुए हैं दो तीन से घर नहीं गए थे,आज शाहिदा ने जबर्दस्ती घर भेजा कि जाओ,खाकर पीकर कुछ देर आराम करके शाम तक अस्पताल आ जाना।।
शाहिदा की दवाई और इंजेक्शन का समय हो गया, एक नर्स दवाइयां लेकर आई और बोली___
चलिए आंटी जी!आपकी दवा का समय हो गया हैं और उस नर्स ने शाहिदा को दवा दी और जाने लगी।।
तभी शाहिदा उस नर्स से बोली___
बेटी तुम्हें एतराज़ ना हो तो,व्हील चेयर पर मुझे कुछ देर लाँन तक ले चलोगी, इस कमरे मे पडे़ पडे़ जी सा ऊब गया हैं।।
वो नर्स बोली___
काम तो हैं लेकिन पहले आपकी सेवा,चलिए कुछ देर खुली हवा में चलते हैं और इतना कहकर नर्स ने वार्ड ब्वॉय को बुलाकर ,शाहिदा को व्हील चेयर मे बिठवाया और बाहर खुली हवा में ले आई,वहां और भी बुजुर्ग महिला और पुरुष अपनी व्हील चेयर में घूम रहे थे।।
ऐसे ही शाहिदा अपनी व्हील चेयर में ठहल रही थीं,तभी एक बुजुर्ग ने उन्हें आवाज देते हुए कहा___
अरे,सुखजीत, तुम जिंदा हो।।
शाहिदा ने उस बुजुर्ग को गौर से देखा और नर्स से बोली___
चलो!! बेटी अब अंदर चलो,बस हो गया घूमना।।
लेकिन क्यो आंटी? नर्स ने पूछा।।
बस,ऐसे ही बेटी मेरा जी शायद अच्छा नही हैं,शहिदा बोली।।
नर्स, शाहिदा को कमरें के अंदर ले आई,शाहिदा ने फौरन नर्स से पानी मांगा और बोली, मैं अब थोडी़ देर आराम करना चाहती हूँ, नर्स ने वार्ड ब्वॉय को बुलाकर शाहिदा को बिस्तर पर लिटवा दिया और शाहिदा ने आंखे बंद कर लीं।।
दूसरे दिन शाहिदा ने अपने शौहर को फिर से घर भेज दिया और नर्स के आने पर फिर से बाहर जाने का आग्रह किया, नर्स शाहिदा को लाँन में ले गई और शाहिदा की नजरें किसी को खोजने लगी,लेकिन इधर उधर देखने पर वो कल वाला शख्स शाहिदा को नज़र नहीं आया, शाहिदा ने एक गहरी साँस भरकर आँखें बंद कर ली और जैसे ही आंखें खोली वो कल वाला शख्स उसे सामने नजऱ आया, शाहिदा ने नर्स से कहा ,मुझे उस शख्स के पास ले चलो।।
नर्स, शाहिदा को उस शख्स के पास ले गई,उस शख्स की पीठ शाहिदा की ओर थी,शाहिदा उस शख्स के पास जैसे ही पहुंची,शाहिदा ने उससे कहा___
कैसे हो कुलजीत?
ये सुनकर वो शख्स पीछे मुड़कर अचानक चौंक पड़ा___
अरे ,सुखजीत तुम,मैंने कल भी तुम्हें आवाज़ दी थी,लेकिन तुम अनसुना करके चली गई, पता है सारी रात मैं ये सोचकर सो ना सका कि तुम जिंदा हो और अगर जिंदा थीं तो तुम वापस लौटकर क्यों नहीं आई।।
मैं आई थीं, सुखजीत लेकिन तब तक तुम सब घर छोड़कर वहां से चले आए थे,शाहिदा बोली।।
हां,सुखजीत, बहुत ही खराब हालात थे उस समय गुजरात के इसलिए हमारे पास जो भी था उसे लेकर मैं अपने मामा के पास चला आया था तुम भी तो साथ मे थी लेकिन रास्ते मे कहाँ बिछड़ गई,कुलजीत बोला।।
तभी नर्स बोली, लेकिन अंकल अब बार बार इन्हें सुखजीत क्यों कह रहें हैं, इनका नाम तो शाहिदा हैं।।
तभी कुलजीत बोला, ये सब क्या है? सुखजीत!!
तभी शाहिदा नर्स से बोली, बेटी! तुम अभी जाओ,मैं तुम्हें बाद में सब बताती हूं,कुछ देर में बस मुझे यहाँ से ले जाना।।
ठीक हैं आंटी,मैं थोड़ी देर में आपको लेने आती हूं, इतना कहकर नर्स शाहिदा को लाँन में छोड़कर चली गई।।।
कुलजीत और शाहिदा एक पेड़ के नीचें जाकर बातें करने लगें,कुछ देर बात करने बाद नर्स शाहिदा को लेने आ गई___
चलिए,आंटी !अंदर चलिए,बहुत देर हो गई हैं, अब आपको आराम कर लेना चाहिए और शाहिदा बोझिल मन से कुलजीत से विदा लेकर चली गई।।
नर्स ने देखा कि शाहिदा बहुत ही दुखी दिखाई दे रही हैं, नर्स के मन भी हलचल मची हुई थी कि आखिर शाहिदा आंटी को वो शख्स सुखजीत क्यो बुला रहा था,वो भी इसका राज जानना चाहती थी।।
नर्स ने शाहिदा से कहा____
आंटी! अगर कोई दिक्कत ना हो तो एक बात पूछूँ॥
मुझे मालूम है कि तुम क्या पूछना चाहती हो,यही ना कि कुलजीत मुझे सुखजीत कहकर क्यों बुला रहें थें, शाहिदा ने नर्स से कहा।।
हां आंटी मैं आपसे यही पूछना चाहती थी,नर्स ने शाहिदा से कहा।।
मेरी कहानी जानना चाहती हो तो सुनो____
बहुत समय पहले की बात हैं,यही कोई लगभग पचास साल पहले,तब सब इतना कुछ नहीं हुआ करता था,देश नया नया आजाद हुआ था,हम गुजरात से पांच छ: किलोमीटर दूर एक गांव में रहते थें, वहां तीन चार परिवार सिक्ख और ऐसे ही तीन चार परिवार हिन्दू रहें होगे, मैं भी सिक्ख परिवार से थी।।
बहुत ही खूबसूरत गांव था हमारा, बहुत अमन और शांति थी वहां, मिट्टी के छप्पर वाले घर,हर घर में जानवर थे,कभी भी दूध घी की कमी नहीं रहती थीं,सबके घर धन-धान्य से भरे रहते थे,खेती बाड़ी के समय सब खेतों में काम करके आते थे तो सारी औरतें मिलकर खाना बनातीं थीं और सारे मर्द उनकी सहायता किया करते थें, जिसे सांझा चूल्हा कहा जाता था,बहुत ही खूबसूरत दिन हुआ करतें थे,इसी तरह दिन बीत रहे थे।।
मैं अब सोलह की हो चली थी,घरवालों को मेरी शादी की चिंता सताने लगी थी और मैं अल्हड़ सी अपनी ही दुनिया मे मगन इस खेत से उस खेत,उस खेत से इस खेत एक आजाद पंक्षी की तर इधर-उधर फुदकती रहती हैं,मां मेरी इन हरकतों पर बहुत नाराज होती।।
हमेशा कहती कि घर के कामकाज सीख ले,कड़ाई-बुनाई ही काम आने वाली हैं,ये उछलना-कूदना नहीं लेकिन मैं कहाँ मानने वाली थी,बस गांव की सहेलियों के साथ नहर के किनारे उछल कूद करती रहती, लेकिन मैं अपनी सहेलियों की तरह कभी भी नहर मे नही नहाती क्योंकि मुझे पानी से बहुत डर लगता था,इसलिए मैंने कभी तैरना नही सीखा,लेकिन साइकिल चलाने का मुझे बहुत शौक था और उस समय केवल इक्का-दुक्का लोगों के पास ही साइकिल होती थी।।
मुझे जब भी किसी की साइकिल मिल जाती और मैं जब तक उससे एकाध चक्कर ना लगा लेती, मुझे चैन ना पड़ता था,इसी तरह एक दिन पोस्टमास्टर काका चिट्ठियां बांटने आए,मैंने उनकी साइकिल छीनी जो कि मैं उनके आने पर हमेशा करती थीं और चल पडी़ गांव के चक्कर लगाने।।
काका पीछे चिल्लाते रह गए कि सम्भालकर बिटिया, गिर मत जाना।।
और मैं अपनी मगन मे साइकिल पर सवार होकर नहर के किनारे चली जा रही थी,इतने में पता नहीं बकरियों का झुंड ना जाने कहां से आ गया और मेरा संतुलन बिगड़ गया,संतुलन बिगड़ जाने से मै साइकिल सहित नहर में जा गिरी और डुबकियां लेने लगी,बस डूबने की नौबत आ गई थी,मुझे लग रहा था कि आज तो बस मैं गई,
लेकिन तभी वहां एक लड़का मुझे डूबता हुआ देखकर मुझे बचाकर नहर के किनारे ले आया, तभी मैनें कहा साइकिल भी थी और वो फिर जल्दी से नहर के अंदर कूद पड़ा और थोड़ी देर में साइकिल के साथ वापस आ गया।।
मैंने उसका परिचय पूछा तो वो हमारी पडो़स की काकी का भतीजा था,पडो़स के ही गांव मे रहता था,मुझसे एकाध साल बडा़ होगा,वो काकी के यहां कुछ दिन के लिए रहने आया था,उसका नाम कुलजीत था,हम दोनों धीरेधीरे एक दूसरे को पसंद करने लगे,घरवालों ने हमारे बीच लगाव देखकर, हमसे शादी के लिए पूछा और हम दोनो राजी हो गए और घरवालों ने हमारी शादी तय कर दी।।
और कुछ महीनों बाद हमलोगों का ब्याह भी हो गया,मैं विदा होकर अपने ससुराल मतलब कुलजीत के घर चली गई, हमारी शादी को दो महीने ही बीते थे कि गुजरात मे १९६९ के दंगे भड़क गए, चारों ओर अफरा तफरा मची थीं, हिन्दू मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे थें, हम लोगों ने गुजरात छोड़ने का फैसला किया
और हम सब गांव के सिक्ख परिवार रातोंरात गांव से बाहर निकल कर बस अड्डे पहुंच गए लेकिन दंगाइयों ने हमें बस में नहीं चढ़ने दिया,सब जंगल और खुले मैदान की ओर भागने लगे,हम दोनों पति पत्नी भी भागें लेकिन इस अफरा तफरी में हम एक दूसरे से बिछड़ गए, मैं उस जंगल मे अपने आप को छुपाती हुई सारी रात भागती रहीं फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ, चक्कर खाकर मैं वहीं गिर पड़ी।।
जब मेरी आंख खुली तो एक शख्स ने मुझे मिट्टी के कुल्हड़ में पानी देते हुए पूछा___
आप,ठीक तो हैं ना!!
मैं ने पूछा, जी! आप कौन?
वो बोले, मैं शौकत अली।।
इतना सुनते ही मैं वहां से भागने के लिए उठ खड़ी हुई लेकिन उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा___
मुझे गलत मत समझें,मोहतरमा!! मैं भी आपकी ही तरह अपने इस बेटे के साथ अपनी जान बचाकर भाग रहा हूँ,मेरी बीवी भी दंगाईयों का शिकार हो चुकी हैं, उसकी लाश को तो मैं दफना भी नहीं सका,उनका इतना कहना ही था कि उनकी गोद मे जो लगभग दो साल का बच्चा था रो पडा़,वो मां ..मां...करके रो रहा था,मुझे उस पर तरस आ गया और मैने उसे गोद मे उठा लिया,मेरी गोद मे आते ही वो चुप हो गया।।
शौकत अली बोले, शायद आपको अपनी अम्मी समझ कर चुप हो गया और शौकत बोले ऐसा कीजिए आप अपना चेहरे पर पर्दा कर लीजिए तो लोग समझेगें कि हम एक ही परिवार हैं,मैने शौकत के कहने पर ऐसा ही किया, बचते बचाते हम एक सुरक्षित जगह पहुंच गए, जो मुसलमानों की बस्ती थी,कुछ दिन मैं शौकत जी के साथ रही,वो मेरे साथ बडे़ अदब के साथ पेश आए,दंगे खत्म होते ही उन्होंने कुलजीत को ढूंढने मे मेरी बहुत मदद की लेकिन कुलजीत कहीं नहीं मिला, तभी मुझे पता चला कि मैं बनने वाली हूं।।
अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ लेकिन शौकत की दूर की बड़ी बहन ने कहा कि ऐसा करो तुम सुखजीत के साथ निकाह पढ़वा लो,मेरे गांव चलकर एक जान पहचान के मौलवी हैं वो तुम दोनों का निकाह पढ़ देगें और गांव वालों की नजर मे तो तुम पहले से ही पति पत्नी हो और तुमनें सुखजीत का नाम शाहिदा बता रखा हैं,सुखजीत के पति का कुछ पता भी नहीं चला हैं और वो उसके बच्चे की मां बनने वाली हैं इसलिए अब इस रिश्ते को नाम दे दो और इस तरह मेरा शौकत से मेरा निकाह हो गया और आज तक वो रिश्ता कायम हैं,मेरे बच्चे को भी शौकत ने बडे़ प्यार से अपना लिया,मुझे बेटी हुई, दोनों भाई बहन मे भी बहुत प्यार है।।
इतने सालों बाद आज कुलजीत भी मिल गया, शायद यही नियति थी लेकिन अब मैं चैन से मर सकूँगी,बस यही था मेरी जिन्दगी का सफरनामा।।
समाप्त___
सरोज वर्मा__