आधा आदमी - 5 Rajesh Malik द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आधा आदमी - 5

आधा आदमी

अध्‍याय-5

ज्ञानदीप उसे इस हालत में देख कर पीठ घुमाकर खड़ा हो गया। साहिबा को आभास हुआ कि कोई बरामदे में है। उसने पलटकर देखा, तो उसकी शंका सही थी। वह तेजी से कमरे की तरफ़ भागी।

साहिबा को लिंग रहित देख कर ज्ञानदीप की चेतना के एक-एक तार हिल गए। पहली बार उसने किसी हिजड़े को निर्वस्त्र देखा था। वह लिंग जिससे संसार की उपज हुई। सल्तनत की सल्तनत तबाह हो गई। उसी लिंग का हिजडे़ समाज में कोई महत्व नहीं हैं? यह कैसा रहस्यमय समाज हैं? जहाँ हिजड़ा बनने के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है?

सहिबा नाइटी पहनकर बाहर आ गयी।

‘‘मैया कहाँ हैं?“ ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘सहालग में गई हैं,‘

‘‘कब आयेगी.‘‘

‘‘आ रही होगी.‘‘

‘‘क्या किसी खास वाले की सहालग में गई हैं?‘‘

‘‘मइया के लिए तो सभी खास हैं.‘‘

‘‘आप कहाँ की रहने वाली हैं?‘‘ ज्ञानदीप ने पूछा।

‘‘नेपाल की.‘‘

‘‘यहाँ कैसे आई?‘‘

सहिबा अवाक-सी ज्ञानदीप को देखती रह गयी। उसने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि कोई उससे इस तरह का सवाल करेगा। साहिबा भावुक हो गयी, ‘‘जिंदगी भी का चीज़ हय कब का हो जाये ई किसी को पता नाय। खैर, सब छोड़िए.......।‘‘

ज्ञानदीप का सेलफोन बजा। उसने उठकर हैलो कहा तो दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई। अगर यह गाना सुनना चाहते हैं। और किसी से अपने प्रेम का इज़हार करना चाहते हैं तो पाँच नम्बर दबाए। ज्ञानदीप ने झल्ला कर सेलफोन डिशकनेट कर दिया। जैसे कभी शाहरूख़ खान ने किया था।

‘‘इन साले कम्पनी वालों के पास भी कोई काम नहीं रहता। जब देखो तब उल्टे सीधे कॉल या मैसेज करते रहते हैं.”

‘‘अईसे ही एक दिन हमरी मुबाइल पर फून आई। हमने ऊके बताये अनुसार नम्बर दबा दिया। हमरा सौ रुप्या कट गवा। उ दिन के बाद से जईसे कॉल आवत हय तो हम्म तोरंत काट देती हूँ। जानत हव, इका नमबर हमने गिराकट नाम से फिट कर लिया हय’‘.

मगर ज्ञानदीप का सवाल अभी भी वही था, ‘‘बताइए न आप यहाँ कैसे आई?‘‘

‘‘का करियव जान कर सवाय दुःख-तकलीफ के आपको कुच्छ नाय मिलय्हें.‘‘

ज्ञानदीप के बार-बार पूछने पर भी साहिबा टाल-मटोल करती रही। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसके अतीत के बारे में जाने। पर ज्ञानदीप भी कहाँ हार मानने वाला उसने अंततः साहिबा को मना ही लिया।

‘‘बचपन में लोग हम्में साहब कहत राहें। गुड्डा-गुड़िया खेलने के सात-सात हम्में नाचने का भी सौक था। उ बखत हम्म कछा तीन में पढ़ित राहैं। हमरे डांस देख के मम्मी-पापा बहोत खुश होते थे। आठ साल के होते-होते हम्में सारी पहनने का सौक लग गवा। सब कुछ सही चल रहा था पर इक दिन हमरी अम्मा गर्भावस्था के दौरान चल बसी.‘‘ साहिबा की आँखें भर आई। फिर भी वह अपनी पीड़ा व्यक्त किए जा रही थी, “अम्मा के ग़म में पिता जी दिन-रात दारू पीने लगे। उनकी हालत पागलों जईसी होई गई। अउर इक दिन उनकी लहास नदी के किनारे मिली। मैं बिल्कुल अकेली होई गयी। पढ़ाई लिखाई सब छूट गई। दूर के रिश्तेदारों ने हमारी ज़मीन-जईदाद सब हड़प लिया। गाँव के लड़के हम्में हरदम छेड़ते अउर कहिते कि हमरे साथ सोओंगे। हम उनके ई बरताव पर रोवै लगित राहै। अउर इक दिन हमरी मुलाकात चाँदनी हिजड़े से हुई वह हम्में नखलऊ ले आई.‘‘

ज्ञानदीप बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था। साहिबा अपनी व्यथा कहे जा रही थी,

‘‘जब हम हिजड़ों के घर पहुँची तो ऊहाँ मोटी-मोटी हिजड़ो को देखकर हम्म घबरा गई। अउर मन ही मन भगवान को याद करने लगी। पर ई सब हमरा भरम था। उ लोगों ने हम्में बड़े पियार से बिठाया अउर कहा, ‘‘बेटा, ई हिजड़ों की मंडी हय इहाँ आया लौंडा बनाया रंडी। फिर का था हम्म साहब से साहिबा बन गईन। बस इहीं हय हमरे जीवन की कहानी.“

‘‘मगर मेरी समझ में एक बात नहीं आयी.‘‘ ज्ञानदीप ने प्रभु चावला स्टाइल में सवाल किया।

‘‘बताव‘‘

‘‘आप इतने दिन गाँव में रही उन लड़कों ने दूबारा आप के साथ....।‘‘ ज्ञानदीप ने आगे का वाक्य कहना उचित नहीं समझा।

पर साहिबा समझ गयी थी। वह हल्की मुस्कराहट के साथ बोली, “मान गै आपको, आप को तो पुलिस में होवैं चाही। खैर, अब पूछ लिया हय तो सुनव, गाँव छोड़े से दुई दिन पहिले हमरे चचेरे भाई ने धोखें से हम्में शराब पिलाकर हमरे साथ गलत काम किया। इक मन हुआ कि अपनी जान दई दी। पर अईसा कर न सकी अउर सहर चली आई.‘‘ साहिबा ने सिगरेट फर्श पर बुझायी और पलकें नीची करके बोली, ‘‘जऊने कारन के लियें हम्में गाँव छोड़ना पड़ा का पता था कि इक दिन इही हमार पेसा बन जियै। नसीब का लिखा कोई नाय मिटाये सकत हय। नसीब तो आपन खेल दिखाये के राहत हय.‘‘ साहिबा के अन्तिम शब्द ज्ञानदीप के दिल-दिमाग़ को झकझौर गए थे।

इससे पहले साहिबा कुछ और कहती दीपिकामाई आ गई। ज्ञानदीप ने उन्हें उठकर नमस्ते किया।

‘‘अउर सुनाव कईसे आना हुआँ?“ दीपिकामाई ने पर्स को तकिये के किनारे रखकर पूछा।

यह सुनते ही ज्ञानदीप के चेहरे की रौनक फुर्र हो गई। जैसे नेवार्क हवाई अड्डे पर चेकिंग के दौरान शाहरूख ख़ान की हुई थी।

अंततः ज्ञानदीप को झूठ बोलना ही पड़ा, “यहीं पास में आया था तो सोचा आप से भी मिलता चलूँ.‘‘

‘‘हम्म हिजड़ों से तो दो ही लोग मिलने आते हय, इक तो हिजड़े दूसरे ऊ लोग जो हमारे सौकीन होते हय.‘‘

“ऐसी कोई बात नहीं है.‘‘

सहिबा कटोरी में खुरमा और पानी का गिलास ले आई थी।

‘‘ई लो मुँह मीठा करव.‘‘ कहकर दीपिकामाई बाथरूम की तरफ चली गई।

ज्ञानदीप की निंगाहे दीवार पर लगे कैलेण्डरों पर गई। कई सवाल उसके ज़ेहन में उठे, ‘ये क्या एक तरफ भगवान दूसरी तरफ अल्लाह, नाम से तो हिन्दू लगती हैं?‘

दीपिकामाई का सेलफोन बजा और तब तक बजता रहा जब तक उन्होंने उठा नहीं लिया। ज्ञानदीप एकटक उन्हें देखे जा रहा था।

दीपिकामाई सेलफोन पर बिजी थी, ‘‘इहाँ सब ठीके हय अपना बताव.‘‘

दूसरी तरफ़ से बड़की की आवाज सेलफोन पर आई, “ड्राइवर ने कहा था फून करके पता करव बाबू का, का हाल-चाल हय.‘‘

(दीपिकामाई और ड्राइवर एक दूसरे को प्यार से बाबू कहते हैं)

‘‘ऊ मनहूस का नाम न लेव, हम्में उकी कौनों ज़रूरत नाय हय। तुमैं जादा मरदों की भूक हय आपन मरद लई के चाटव। आईन्दा के लिये हम्में फून मत करेव बताई दीत हय। तू कोई हमरी रिस्तनदार नाय हय.‘‘

‘‘का दिदया, जादा खफ़ा हव कहव तो ड्राइवर का कल्हें भेज दी.‘‘

‘‘कौनों जरूरत नाय हय, अउर भूले से भी हमरे घर भेजव न अईसे अहसान फ़रोमोस से कौनों मतलब नाय हय.‘‘

सेलफोन पर ड्राइवर की आवाज़ आई, “बाबू! नाराज न हो हम्म दू चार दिन में आई जईबे.‘‘

‘‘हमरे दरवज्ज़ें आव तो अपने अऊलादेन का गोस खाव, खलाये-खलाये तुम का चंगा करी अउर तुम हमका नंगा करव। हमने बहोत बरदास किया। अब हम्म नाय करबै। क्यूकि तुम खाये हव गन्दा तो ऊही की सीपों चाटव, मोटा किहिन दिया हय। खूब चुसाई ल्यो तबही आयेव। ज़ींदगी भर भौसड़ी के हम्में धोका दियौं, तोहरी तो कबर में ईट न लगम्हे, तुम हम्में बहुत चूतिया बनायेव.‘‘

‘‘बाबू! गुस्साव न हम्म सुभह आई जइबें.‘‘

‘‘सुबेरे का करे अईहव, मुँहवा देखे लायक नाय गाँड़ मारेक लायक नाय। खाली तोहका खाई -हगाई अउर चार दिन बाद तोहरी सीपों माता आवें, तो तू चलते बनव। कौनों जरूरत नाय हय तोहका इहाँ आवे की। हमका जादा परीसान करिहव तो हम्म डंडे से सुवागत करेगी। बहोत तीस-बत्तीस साल से तुमका झेला अउर का नाय किया। तुमरी अऊलादेन का पढ़ावा -लिखावा उनकी शादी की, पर तू हमरे साथ में का कियौं? तू लोग तो चार सौ बीसी का बिया खाये हव.‘‘

‘‘हम रहव सुनिहव की अपनेन गईहव?‘‘

‘‘तुमरी का सुनी सुवर चौदे, कव्वे से चालाकी लिहेव हव, गिरगिट से रंग बदलना सीकें हव, लोमड़ी से मक्कारी, आँसू लिहेव हव मगरमच्छ के..........खुदा के लिहैं हमरा पीछा छोड़ देव.‘‘ दीपिकामाई ने फोन डिशकनेट कर दिया। क्रोध की रेखाएँ अभी भी उनके चेहरे पर झलक रही थी। जैसे अक्सर मायावती के चेहरे पर झलकती हैं।

‘‘चले हमका लोतर (बहलाना) लगावे, कौनों गाड़ी-घोऱा ई पै नाय चढ़ जात हय.‘’

ज्ञानदीप के ज़ेहन में कई विचार आ-जा रहे थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी बात कहाँ से शुरू करे।

इसराइल बाहर से गुस्से में आया और अपनी भड़ास निकालने लगा, ‘‘कुईया मिली राहै अउर ईटे का पईसा माँगत राहे। कहे लगी, तुम तो मोच वाली बात करव, अगर पईसा नाय मिला तो दरवज्ज़ें पे चार लोगों का लाई के बेज़ती करबै.‘‘

‘‘ऊकी अम्मा की चूत.‘‘ दीपिकामाई ने मसाले की पुड़िया मुँह में फाँकी ।

“आदमी होईता तो गाँड़ में लाठी कर देतीन.“ इसराइल ने अपना क्रोध व्यक्त किया।

‘‘ई सब छोड़व ई बताव कई किलो कोइला लाय हव?‘‘

‘‘छह किलव.‘‘

‘‘दस किलो काहे नाय लायेव.‘‘

‘‘इक सौ दस रूप्या दिहे रहव.‘‘

‘‘अईसे कलहव कहा कि कीमा ले आव तो कलेजी ले आयेव.‘‘

‘‘नाय मिली तो का अपनी कलेजी ले आइत.‘‘

‘‘ सभईं गाँड़ेह मारे वाले हय.‘‘

इसराइल नाक-भौंह सिकोड कर चला गया।

अंततः ज्ञानदीप को भी उठना पड़ा क्योंकि उसके ट्यूशन पढ़ाने का समय हो रहा था। उसने दीपिकामाई से इज़ाज़त ली और चला गया।

ज्ञानदीप का तेवर भगतसिंह के अंदाज़ में था

कोहरे के आगे सूरज की एक भी न चली। सड़क, मोहल्लें, नुक्कड़ पर इक्के-दुक्के लोग दिखाई पड़ रहे थे। ट्राफिकमैन आज चैन की साँस लिए सिगरेट का धुआँ उड़ा रहा था। जबकि सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीना कानूनी जुर्म हैं।

आज दोपहिया और चार पहिया वाहनों के कम होने से प्रदूषण में काफी गिरावट थी। हालाँकि सरकार ने पर्यावरण की सेहत दुरूस्त रखने के लिए सीएनजी वाहन तो चलवा दिए। लेकिन सीएनजी मिलने का मुकम्मल इंतज़ाम आज तक नहीं किया।

पन्द्रह रूपये में बिकने वाला कोयला चालीस रूपये किलो बिक रहा था। जबकि ठेले वाले अपना सामान औने-पौने दाम पर बेचे जा रहे थे। मूँगफली का बाजार गर्म था। आधा दिन गुजरने के बाद लेबरों को सिवाया निराशा के कुछ हाथ नहीं लगा था। अधिकतरों घरों में चूल्हे ही नहीं जले थे। कुछ ऐसे भी थे जो बिना दवाइयों के जी रहे थे। कुछ ऐसे थे जो अपनी कमाई पब और पार्टियों में उड़ा रहे थे। और कुछ ऐसे भी थे जो होटलों की भट्टी और फुटपाथों पर लेटे थे।

तापमान पाँच डिग्री था। प्रशासन की तरफ़ से अलाव जलाने का कोई बंदोबस्त नहीं था। ज्ञानदीप ने साइकिल खड़ी की और दुकान के अंदर आ गया।

“कहाँ रह गए थे?‘‘ लल्ला ने पूछा।

‘‘सड़क तो देख ही रहे हो कि कितनी माँशाल्लाह हैं.‘‘

‘‘पूरी व्यवस्था ही माँशाल्लाह हैं तो सड़क को क्या कहे.‘‘

‘‘सही कह रहे हो.‘‘ ज्ञानदीप कुर्सी खींच कर बैठ गया।

तभी पाँच-छह साल का एक लड़का चाय ले आया। ज्ञानदीप ने देखा, तो उसे अपना बचपन याद आ गया। वह जब छोटा था तो इसी तरह लोगों को चाय देने जाता था। उसे यह भी याद हैं कि उसने एक बार नहीं, कई बार लस्सी का झूठा गिलास चाटा था।

‘‘लो भइया चाय.‘‘ लड़के के सम्बोधित करते ही ज्ञानदीप चैंका।

वह चाय देकर दुकान से बाहर चला गया। ज्ञानदीप उसे नंगे पैर जाते हुए देखता रहा।

‘‘क्या देख रहा हैं?‘‘ लल्ला ने अरविन्द केजरीवाल की स्टाइल में पूछा।

‘‘कुछ नहीं, आज देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं। जिनमे से बारह लाख खतरनाक उद्योगों जैसे चाय की दुकान, बीड़ी, दरी, माचिस के कारखानों में कार्यरत हैं। 17 फीसदी बच्चे स्कूल का मुँह नहीं देख पाते.‘‘ ज्ञानदीप अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया था।

लल्ला ने बीच में टोका, ‘‘यार, कैसे माँ-बाप हैं?“

सूरज का लोकतंत्र और लोकतंत्र से निष्कासित हिजड़े

पूरे दो दिन बाद सूरज अपनी ड्यूटी पर आया। उसके आते ही लोगों ने राहत की साँस ली। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी उसकी रोशनी में नहा गए थे। हवा खिलखिला रही थी बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह। आसमान साफ़ था जैसे किसी ने उस पर झाड़ू फेर दिया हो। अधिकतर लोग धूप का आनन्द ले रहे थे।

लेकिन पायल और चाँदबाबू अपनी मस्ती में मस्त थे। वह इमरान हाशमी की स्टाइल में पायल के होंठ चूसने लगा। पायल भी उसकी बाहों में मदहोंश थी।

‘‘छोड़व, तुमका तो बस मौका मिलैं चाही.‘‘ कहकर पायल उसकी बाहों से अलग हो गई।

‘‘पहिले आग लगाती हव फिर कहती हव छोड़ देव.“

‘‘अईसा हमने का कर दिया?‘‘

‘‘तुमरी ई सेक्सी अदा के आगे तो सन्नी लियोन भी बेकार हैं। इक मिनट में आदमी को तोड़ कर रख देती हव.’’

‘‘अच्छा ई बताव तुमैं हमरी कऊन सी चीज अच्छी लगत हय?‘‘ पायल उसके बालों में हाथ फेरती हुई पूछ पड़ी।

‘‘सेक्स करती हुई जब तुम छिपकली बन के मुझसे चिपकती हव तब अईसा लगता हय कि तुमरे आगे औरत बेकार हय.‘‘ कहकर चाँदबाबू ने पायल को तख़्त पर पटक दिया।

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