दोस्ती के संग मेहनत लाये रंग Chiranjiv द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दोस्ती के संग मेहनत लाये रंग

करीब करीब दस बजे के आसपास में धनबाद स्टेषन पहुँचा। दो ट्रोली बैग को खीचते हुए मैं स्टेषन के बहार निकला । “कहां चलियेगा भैया, गाड़ी लगेगा क्या ? AC कार है बोलिये कहां चलना है। “ पास आकर एक कार डार्इवर ने कहा।

आंखो से गोगल्स उतारते हुये मैंने कहा “ भैया आर्इ एस एम चलोगें।”

“ हां चलेगे ना, लाइये सामान आप मुझे दे दिजिए।”

“ कितना लोगे ? “ हैडफोन को कान से उतार कर गले पर रखते हुये कहा।

“ वैसे 300 रूपये भाड़ा है। आप 250 दे दिजिएगा और क्या ?”

“ भैया 200 ले लिजिएगा चलिए। “

“ ठिक है पर एक ठो और सवारी ले लेंगे ह·।”

वैसे अगर वह नही मानता तो भी मुझे कोर्इ दिक्कत नही था। पर बारगेनिंग करना तो स्टुडेंन्स का कर्तव्य है सो मैनें बस उसी का पालन किया।

मुझे कार में बिठाकर डार्इबर बाहर खड़ा होकर तीन चार मिनट तक आर्इ एस एम , आर्इ एस एम चिल्लाता रहा।

मैने तंग होकर कहा भैया चलना चलिए वरना छोड़िये। इतने में एक काला कलुटा देहाती टार्इप दिखने वाला लड़का कार के पास से गुजर रहा था। तो डार्इवर ने उनसे पूछा “ कहा चलना है हिरापुर, बिग बजार ? “

“ आर्इ एस एम धनबाद “ उस लड़के ने धीरे से कहा। आर्इ एस एम का नाम सुनकर मेरा ध्यान उसपर पड़ा। वह दोनो कंघे में दो बड़े बडे़ बैग टांगे खड़ा था। पसीने से लथपथ “ारीर को देखकर कोर्इ भी बता सकता था कि उसका रिर्जवेषन एसी कोच में तो नही था।

“ चलिए चलिए, हम भी आर्इ एस एम ही जा रहे है। सामान पीछे रख दिजिए और आगे सीट पर बैठ जार्इए। “

“ नही भैया आप जार्इए। मैं “ोयर वाले ओटो से चला जाऊंगा।” उस लड़के ने भाड़ा जानने की भी जरूरत नही समझा । वह वहां से पैदल आगे चौक की ओर चला गया। डार्इवर खिसकते हुए गाड़ी के अंदर आकर बड़बड़ाया “ जाना तो होता नही, फालतू का टार्इम पास करता है। “ कुछ कैबवालो का यह हरकत मुझे आज तक नही समझ आया पहले तो वह खुद आपका रास्ता रोकेगें फिर बात न बनने पर गाली भी आप को ही गाली देंगे।

स्टेषन रोड पर ट्रैफिक इतना था कि वह लड़का पैदल और हमलोग कार में लगभग दो सौ मीटर आगे श्रमिक चौक तक साथ साथ ही पहुँचे। फिर वह मेरे आंखो से ओझल हो गया। पहली बार जब टेंथ पास करने बाद धनबाद आया था तभी आर्इ एस एम का एक चक्कर लगाकर यह सोच लिया था कि आर्इ आर्इ टी निकालकर यही एडमिषन लेना है। विष्वास नही हो रहा था कि दुसरी बार मैं धनबाद सीधे आर्इ एस एम में एडमिषन लेने आ रहा हुँ। करीब दो घंटो की लंबी एडमिषन प्रोसेस खत्म होने के बाद मेरा मुलाकात एकबार फिर उस लड़के से हुआ जब उसने मेरे पास आकर कहा “ सर आपके पास गम है फॉर्म में फोटो साटना हैं।” मैनें उसे अपना फैबी स्टिक का ग्लु निकाल कर दिया। और मुस्कुराते हुये कहा “ हे ब्रो, मेरा नाम आदित्य है। मैं भी न्यू कैंडिडेट हुँ।”

“ अच्छा जी। मैं कुछ देर में आपको ये लाकर देता हुँ। “ अपना नाम बताये बिना ही वह वहां से हड़बड़ी में चला गया। मुझे बहुत भुख लगी थी तो ढुढते ढुढते मैं कैंटिन की ओर चला गया। वापस आने के बाद मुझे पता चला होस्टल एलॅाट होना चालु हो चुका है। सभी को अपने अपने रूममेट खुद ही ढुढने होगे। कॉम्पलेक्स में नये लड़के तो ढेरो थे पर उनमें से सिविल ब्रांच का कौन है वह किसी के चेहरा देखकर तो नही पता चल रहा था। इतने में वह लड़का मेरे पास आया। “ आदित्य जी , ये लिजिए आपका गोंद।” ग्लु आपस देते हुये कहा।

“ भार्इ ब्रांच क्या है तुम्हारा ? “ यह वह समय था जब नाम से पहले से ब्रांच जानना जरूरी था।

“ जी मेरा सिविल इंजीनियरिंग है और आपका ?”

“ सेम है।”

“ जी क्या कहां आपने ?”

“ वही जो तुम्हारा है। और रूममेट मिल गया ?”

“ नही जी, कहां मिल रहा। मैंने एक दो भार्इलोगों से पूछा तो कहा तो उनलोगों ने ‘ आर्इ एम सॉरी ‘ कह दिया। बेचारे का बैग इतना भारी था कि उसे कंघा में टांगने वाला फिता भी फट चुका था। वैसे उस लड़के के हुलिया देखकर “ाायद ही कोर्इ चमचमाता आर्इ आर्इ टी एन उसके साथ रूम “ोयर करना चाहेगा। मुझे वह लड़का कम बात करने वाला और मृदुभाशी लगा। सोचा ऐसा रूममेट रहा तो उससे काम भी निकलवा सकते है। मैनें उसे अपना रूममेट बनने का ऑफर दिया तो उसने झट से मान लिया।

“ भार्इ अब तो अपना नाम बता दे ।”

“ ओह सॉरी, मेरा नाम अमितेष मंडल हैं।” रूम में सिफ्ट करने के बाद उसने बताया कि सुबह से उसे कुछ खाने का मौका नही मिला। उसे मैनें एक आरिओ का पेकेट दिया ।उसे खाने के बाद उसने पूरा रूम साफ किया, बकायदा पोछा लगाया और फिर वॉटर कुलर से दो बोतल पानी भी भरकर लाया। मुझे लगा इससे अच्छा रूम पार्टनर हो ही नही सकता। एक दुसरे को जानते जानते “ााम हो गया। मैंने रात को उसे एक अच्छे रोंस्तरा में ट्रिट देने ले गया।

“ आदित्य जी सुबह कारवाला आपसे कितना भाड़ा लिया था। “ अमितेष ने पानी पीते हुये कहा।

“ 300 बोल रहा था पर 200 में बात बनी थी।”

“ बाप रे बाप। आपको तो एकदमे लुट लिया। मैं तो सात रूपये में पहुँच गया। “ उसके चेहरे में 193 रूपये बचा लेने की अलग ही खुषी थी और मुझे उसके दुवारा किये गये कश्ट और चेहरे की खुषी देखकर तरस आ रहा था।

“ उसने बताया कैसे उसके पापा कृशि कार्य करके उसको पढ़ाया और कैसे वह लोन लेकर आज एडमिषन लिया है। अगर उसे आंनद कुमार के सुपर 30 में एडमिषन नही मिलता तो “ाायद वह आज मेरे पास नही बैठा होता। “ाायद आज वह भी पापा के साथ फसल बो रहा होता।

“ ब्रो तु मुझे सेन्टी मत कर। अभी मजे से खाओ और मुझे भी खाने दो।” मैं उसकी कहानी सुनकर बस इतना ही कह पाया। वैसे एक साल पहले अगर मैं यह कहानी सुनता तो “ाायद काफी मोटिवेट होता “ाायद आज आर्इ एस एम धनबाद की जगह आर्इ आर्इ टी मुम्बर्इ में होता पर जब से मेरा आर्इ आर्इ टी में हुआ है तब से मैं खुद लोगो को मोटिवेट कर रहा हुं इसलिए आज मुझे कोर्इ ऐसा मोटोवेसन फील नही हुआ ।

इसी तरह से हमारी दोस्ती बढ़ने लगी। वह रोज सुबह के छह बजे बिन अलार्म के उठकर पढ़ने लग जाता और मैं वही क्लास “ारू होने के आधे धंटे पहले उठकर नहा धोकर के दौड़ा दौड़ा क्लास जाता। धीरे धीरे दोस्तो की संख्या बढ़ता गया। और अमितेष से दोस्ती काम भर ही रह गया बस उतना ही जितना कम एक रूममेट के साथ हो सकता था। फिर भी हमलोगो में कभी अनबन नही हुआ। कभी मैं गुस्से में कुछ कह देता था तो वह चुपचाप सुन लेता था फिर जब उसे अगली सुबह कमरे को झाड़ु पोछा लगाते देखता तो मेरा दिल पिघल जाता और खुद ही सॉरी बोल देता। वह बस इतना कहता “ कोर्इ बात नही जी, बस आगे से ध्यान रखियेगा। “ वैसे तो सारे आर्इ आर्इ टी एन काफी समझदार होते है पर इतनी कम उम्र इतना ज्यादा समझदारी “ाायद किसी और आर्इ आर्इ टी एन में मैने नही देख था। हमारी एक फोज थी कालेज में जो दिन भर मस्ती, खेल कुद ,नाच गाना , ये फेस्ट वो फेस्ट में लगे रहते थे। पार्टिया तो लगे रहते थे हमारे पर वह कभी कभार ही हमारे साथ “ाामिल होता था। ऐसा नही था कि वह एंग्जाय नही करता था पर उसे अपना दायरा मालुम था। वह भी किसी दोस्त के बर्थ डे के दिन अपने हिस्से का लाथ चप्पल मार लेता था और अपने बर्थ डे में भी उसे चप्पल पे चप्पल खाना स्वीकार था। उसकी मां नही थी सो वह अपने पापा से बेइनताह प्यार करता था। इस बात का पता हमे तब चला जब क्लास की सबसे खुबसूरत लड़की ने उसे मजाक मजाक में बाप की गाली दे दी। वह लड़की इतनी खुबसूरत थी कि वह अगर किसी लड़के को पुरे खानदान की भी गाली दे देती तो भी लड़का कहतस “ हाउ क्यूट यू यार “। पर अमितेष ने उसे सभी लड़के के सामने वही थप्पर मार दिया । वह अलग बात है कि अगले दिन उस लड़की को वह सबके सामने सॉरी बोला था। तीन साल में मैं उसे पहली और आखरी बार हाथ चलाते देखा था। हम सब चोर्थ यिअर में आ चुके थे। पेल्समेंट का सीजन था। पर हमारा जो गुप था उसमें अधिकतर बिहारी थे। और उनका कहना साफ था करेगें तो सरकारी नौकरी वरना अपना स्टार्टअप होगा। अमितेष को कोर्इ भी अच्छी नौकरी चाहिए था। मेरे पापा का हार्डवाउर का “ाोरूम था तो पापा ने पहले ही कह दिया था अगर ऑफसर बन सकते हो तो नौकरी करना वरना दुसरो के कंपनी में काम करने से अच्छा है अपना बिजनस करो जहां कम दस और लोग तुम्हारे अंदर नौकरी करेगें। पेल्समेंट का पहला सीजन निकल गया। कर्इ सारे लड़के लड़कियो का बड़े बड़े साफ्टयेर कंपनियो में जॉब हो गया। मैं उस चंद लड़को में से था जिसको पेल्समेंट में बैठना ही नही था। अमितेष को भले ही आपार टेक्नीकल नोलेज था पर स्पोकेन इंग्लिस और कोडिंग दोनो उसका कमजोर था। सो पहले सीजन में उसका भी नौकरी नही लगा। क्योकि इस सीजन में सारी छोटी बड़ी कंपनी साफ्टयेर की ही थी। दुसरा सीजन “ाुरू होने से ठिक दो दिन पहले अमितेष के पापा का खेत में सांफ के डस देने से मृत्यु हो गयी। पेल्समेन्ट के सीजन चलने के कारण घरवालो ने उसे इस बात की जानकारी भी नही दिया क्योकि जाते जाते उसके पापा ने घरवालो से कहा था कि मेरे बजह से मेरा और मेरे बेटे का सपना अधुरा नही रह जाना चाहिए। एक गरीब किसान को मरते बक्त भी “ाायद बैंक का कर्ज भी याद आ रहा होगा। अमितेष तैयार होकर इंटरव्यू के लिए जा ही रहा था कि गांव के किसी दोस्त ने फोन करके यह पूछ दिया “ साले तू कितना बड़का अफसर बन गया कि अपने बाप को मुखाग्नि करने का भी समय नही था तेरे पास ? “ जिस बाप के लिए वह मेरी गर्लफेन्ड को थप्पर मार चुका था जिसके लिए वह सब कुछ कर सकता था उसके बारे में यह सुुनते हुये वह ऐसे “ाुन्य हो गया कि डॉक्टर बुलाने के बाद ही होष आया। उसी बक्त वह उसी हालत में रोते रोते घर जाने की जिद करने लगा। ऐसी हालत में उसे ट्रेन से घर भेजना मुझे ठिक नही लगा तो मैनें उसे एक कार बुक करे घर भेज दिया। पंद्रह दिन बाद क्रिया कर्म खत्म होने के बाद जब वह दोबारा कॉलेज आया तब कॉलेज के पास उसे देने के लिए कुछ नही बचा था सिवाय कुछ दोस्तो के सहारे के। ऐन्ड सैम में सभी सिविल बान्च के बचे खुचे लड़के जिसके हाथ में अबतक कोर्इ जॉब नही था सबने एस एस सी जुनियर इंजिनियर , गेट और यु पी एस सी के इंजिनियरिंग सर्विस का फॉम डाला। ये सब एग्जांम होते होते कॉलेज भी खत्म हो चुका था। यु पी एस सी तो किसी का नही हुआ। गेट से एक दो को अच्छे पी एस यू में जॉब हो गया। अधिकतर लड़को ने एस एस सी जुनियर इंजिनियर का नौकरी निकाल लिया । खुष किस्मती से उसमें मेरा भी नाम था। पर अमितेष ने पापा के सदमें उभरते उभरते इतनी देर कर दी कि तब तक सारे एंग्जाम निकल चुके थे। कुछ दिनो में हमारी ज्वार्इनिंग हो गयी। पर अमितेष से कॉलेज छोड़ते बक्त जो आखरी बार बात हुयी थी उसके बाद उससे कोर्इ बात नही हुंआ। उसने कभी मुझसे बात करने की कोषिष नही की। उसने अपना नंबर बदल लिया था या डिप्रेषन में अपना दुनिया बदल लिया था कुछ पता नही था। साल भर से अधिक हो गया था। अब सबकुछ एक कहानी लगने लगा था। फिर कुछ दिन पहले की बात है मैं अपने सुबह से ऑफिस में बैठा हुंआ था। इतने में असिस्टेंट एग्जीक्टिव इंजीनियर साहब की गाड़ी मेरे ऑफिस के बहार आया तो जैसे ही मैं उनसे मिलने गया , एकदम से हैरान रह गया। कंघा में लेदर का बैग टांगे और दुसरे हाथ में ऐपल का लैपटाप लिये मुझे वही अमितेष नजर आया जिसे पांच साल पहले धनबाद स्टेषन पर पसीने से लथपथ इसी कंधो पर दो बड़े बड़े बैगो को टांगे देखा था। उसने मुझे देखते ही गले लगा लिया और कहा चल आज मैं तुम्हे ट्रिट देता हँु। जो लड़का रोज हमारे रूम को साफ किया करता था मेरे लिए पानी बोतल भरा करता था उसके चेम्बर को मैं आज सुबह सजा रहा था और उनके लिए मैंने खाने पिने के नजाने क्या क्या इन्जाम किया। उसने अपने कुर्सी पर बैठकर उसी अंदाज में कहा “ आदित्य जी, गम है क्या ? फोटो साटना था।” मैंने मुस्कुराते हुये अलमारी से फैबी स्टिक का ग्लु निकाल कर दिया। उसने भी हंसते हुये कहा “ साथ काम करने में बहुते मजा आयेगा”।