यूँ ही राह चलते चलते - 6 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 6

यूँ ही राह चलते चलते

-6-

आज का दिन रोम के नाम था, सबसे पहले सबको कोलोसिमय दिखाने की योजना थी। रोम के नाम पर ही अनुभा का मन इतिहास की गलियों में भटकने लगा और कोलोसियम का चित्रों मे देखा रूप आँखों के सामने आ गया। आज उसे प्रत्यक्ष देखने को मिलेगा यह सोच कर ही वह रोमांचित हो गयी। उसने पढ़ा था कि रोम लगभग 3000 वर्ष पुराना शहर है प्राचीन काल में यह 7 पहाड़ियों पर बसा था ।

रास्ते में सुमित ने सबकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से पूछा ‘‘ आप लोग बताइये आप लोग कोलोसियम के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘ यहाँ साँड़ और ग्लेडियेटर की लड़ाई होती थी’’ रामचन्द्रन ने कहा।

‘‘ हाँ इस पर तो फिल्म ही बनी है जिसे आस्कर अवार्ड मिला था ’’ वान्या ने कहा।

‘‘ अरे वो तो मैंने भी देखी है, मेल गिब्सन इसमें हीरो था ’’ अर्चिता बोली।

‘‘आप लोग तो पहले से ही सब जानते हैं ’’ सुमित ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा ।

आगे सुमित ने बताया कि यह 72 एडी में बना था और आज विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है। कोलोसियम का नाम तब फ्लैवियन एम्फी थियेटर था। यह एक विशाल एरेना था जहां 50, 000 व्यक्ति एक साथ बैठ सकते थे यह विश्व का सबसे बड़ा थियेटर था यहाँ पर ग्लेडियेटर की सांड़ से लड़ाई होती थी जिसे देखने नगर की जनता एकत्र होती, यह वीरों की भूमि मानी जाती थी अतः यह पवित्र मानी जाती थी ।यह विपेसियन नामक राजा तथा उनके बेटे द्वारा बनवाया गया और नीरो के द्वारा बनवाई गई झील पर बनवाया गया था ं।सुमित ने बताया कि यह 527 मीटर लम्बाइ्र्र का चार तल का बना है । दूसरे एवं तीसरे तल पर 240 आर्च है जिनमें किसी समय में मूर्तिंयाँ रखी थीं जो अब नहीं हैं । कोलोसियम इतना विषाल है कि इसमें प्रवेश के 80 द्वार हैं जिनमें से दो मुख्य द्वार हैं जो राजा एवं उनके दरबारियों के लिये थे। कोलोसियम में चारों ओर दर्षक दीर्घा बनी है तथा मध्य मैदान में जहाँ युद्ध होता रहा होगा, इसमें बालू भरी रहती थी जो लड़ाई के दौरान गिरे खून को सोख लेता थी तथा एक सुरंग होती थी जिसके द्वारा हारे हुये ग्लेडियेटर को ले जा कर मौत दी जाती थी ।

यह सुन कर अनुभा का मन अनायास व्यथित हो गया, यह कैसी विडंबना है जो युगों से चली आ रही है। कोई देश हो, कोई जाति हो पर यह मानव की प्रकृति का कुत्सित रूप आदि काल से आज तक कोई न कोई जामा पहने मिल ही जाता है। सबल अपने स्वार्थ के लिये, यहाँ तक कि मात्र मनोरंजन के लिये भी निर्बल के प्रति क्रूरता की सीमाएँ लाँघ कर पशुवत व्यवहार करने में भी नहीं हिचकता। किसी वीर को मृत्यु के द्धार पर मात्र इसलिये जाना होता था कि उसके सांड़ से लड़ने पर राजा और जनता का मनोरंजन होता था । क्रूरता की यही सीमा होती तो भी संतोष होता पर पराकाष्ठा तो यह थी कि जो उस भंयकर पशु से हार जाता उसे मृत्यु दंड दे दिया जाता ।

जैसा कि राजतंत्र की प्रथा होती है वहाँ के दर्शक दीर्घा में सबसे पहले राजसी लोग, फिर धनी नागरिक और सबसे पीछे ऊपर की ओर आम नागरिक बैठते थे।

अब कोलोसियम कई स्थानों पर जर्जर हो गया है तथा उसका पुनरूद्धार भी किया जा रहा है अतः सुरक्षा के दृष्टिगत अन्दर जाता निषिद्ध था ।

सुनयना ने पूछा ‘‘ क्या ये लड़ाई जब तक राजा रहे चलती रही ?’’

‘‘ अन्तिम लड़ाई 435 ए डी में हुई थी’’सुमित ने बताया।

अभी सब चर्चा ही कर रहे थे कि रामचन्द्रन ने कहा ‘‘ सुमित मेरा कैमरा नहीं मिल रहा है ‘‘।

’’ आप याद करिये आप ने कहाँ रखा था?‘‘

’’ मैंने अपने पूरे सामान में देख लिया‘‘ रामचन्द्रन ने कहा ।

श्रीनाथ ने कहा ’’ याद करिये सबसे बाद में आपने कहाँ पर फोटो ली थी ?‘‘

स्ुानयना बोली ’’ याद आया कोच से उतर कर आपने टिंकू की फोटो ली थी‘‘ तब रामचन्द्रन को भी याद आया कि उसी समय टिंकू चाकलेट लेने का हठ करने लगा था तो उन्होंने चाकलेट की दुकान से चाकलेट लेते समय पैसा निकालने के लिये कैमरा दुकान पर ही रख दिया था। संभवतः वह वहाँ से उठाना भूल गये।कई लोग तुरंत रामचन्द्रन के साथ दुकान की ओर गये, पर कैमरा वहाँ नहीं था ।सुनयना तो रोने लगी ।एक तो इतनी अमूल्य स्मृतियां जो उन्होंने कैमरे में कैद की थीं खो गईं उस पर से यह नुकसान।

सुनयना ने रामचन्द्रन पर नाराज होते हुए कहा ’’ आपको पता था कि कैमरा मेरी दीदी का है और मैं उनसे माँग कर लायी थी फिर भी आप ने खो दिया ।‘‘

रामचन्द्रन वैसे ही परेशान थे, सुनयना का आक्षेप सुन कर क्रोधित हो गये और बोले ’’ मैंने जानबूझ कर तुम्हारी दीदी का कैमरा नहीं खोया है, और मैं उनको दूसरा दिला दूँगा। ‘‘

’’ पर यह तो उन्हांेने अमेरिका से जीजा जी के भाई से मंगाया था आप कहाँ से लाएँगे वो मॅाडल?‘‘

सुमित ने कहा ’’आप लोग इतना निराश न हों, मैं प्रयास करता हूँ ।‘‘

सुमित ने वहाँ की पुलिस से सम्पर्क किया। पुलिस तुरन्त सतर्क हो गई उसने उस दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे का फुटेज देखा तो उसमें एक आदमी उस दुकान से कैमरा उठाते हुए दिखा।

जब दुकानदार को दिखा कर पूछा तो उसने कहा ’’ अरे हाँ इसने तो मेरी दुकान से काफी सामान लिया था चिप्स, बिस्कुट के पैकेट, कोल्ड ड्रिंक, सोडा वाटर, पानी की बोतल वगैरह। ‘‘

फिर कुछ याद करता सा बोला ’’ हाँ उसने पैसे क्रेडिट कार्ड से दिये थे।‘‘

बस फिर क्या था पुलिस को उसके कार्ड से उसका लेखा जोखा मिल गया । ज्ञात हुआ कि वह कोई विदेशी टूरिस्ट था । तुरंत उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया गया। अभी वह कुछ ही दूर जा पाया था। वह क्षमा याचना करने लगा। पुलिस ने फोन पर पूछा कि रामचन्द्रन उस अपराधी पर पुलिस केस करना चाहते हैं कि मात्र अपना कैमरा लेना चाहते हैं।

रामचन्द्रन की प्रसन्नता का तो पारावार न था उसी प्रसन्नता की सदाशयता में और झंझट से बचने के लिये उन्होंने कहा ’’बस आप मुझे मेरा कैमरा दिला दीजिये।‘‘

सभी लोग रामचन्द्रन और सुनयना को बधाई दे रहे थे और वहाँ की पुलिस की क्षमता की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे थे।

सब पुनः घूमने में व्यस्त हो गये। चारों ओर से बाहर से ही कोलोसियम देख कर दर्शक फोटो लेने में व्यस्त थे उन्हे देख अनायास ही अनुभा को मान्या और महिम का ध्यान आ गया उसने दृष्टि घुमाई वो तो नहीं दिखाई दिये पर अर्चिता, यशील और चंदन अवश्य काफी कार्नर पर काफी पीते दिखाई पड़ गये। तब उसे ध्यान आया कि इस सारे प्रकरण मे अर्चिता यशील और चंदन तो कहीं दिखाई ही नहीं दिये थे हाँ वान्या अवश्य अपनी सलाह बीच-बीच में दे रही थी। इसका अर्थ यह है कि अपनी दुनिया में खोये, इन लोगों को पता ही नहीं कि सिर से कितना पानी गुजर गया।वह उन्हें देख रही थी कि श्रीमती चन्द्रा उसके पास आ कर बोलीं ’’ अनुभा जी आज कल हम लोगों का जमाना नहीं है, आज की जनरेशन में लड़के-लड़की में हेल्दी फ्रेन्डशिप होती है। उनके मन में कोई कुंठा या अपराध बोध नहीं होता इसीलिये वह आपस में खुल कर मिलते हेंै।‘‘

अनुभा को अनुभव हुआ कि वह उन लोगों को इतने ध्यान से देख रही थी संभवतः इसी लिये श्रीमती चन्द्रा उनकी ओर से सफाई देने का प्रयास कर रही हैं। सच तो यह है कि अनुभा को शर्मिन्दगी सी हुई कि वह क्यों इस तरह से उन्हंे घूर रही थी। भले वो प्रत्यक्ष रूप से वह स्वयं को निर्लिप्त दिखाती पर सच यही था कि स्वयं को परिपक्व और उदार विचारों का समर्थक मानने वाली अनुभा भी अनजाहे ही अर्चिता यशील और वान्या की मित्रता के बारे में अधिक ही रुचि रखने लगी थी । अपनी झेंप मिटाने के लिये स्वयं को सामान्य करते हुये उसने कहा ’’ अरे और क्या इसमें बुराई ही क्या है । छिपाते तो वो है जिनके मन में खोट हो । जब बच्चे साथ रहेंगे पढ़ेंगे काम करेंगे तो दोस्ती भी करेंगे न‘‘?

तभी रजत अनुभा को ढूँढते हुए आ गये और उसे देख कर बोले ’’ तुम यहाँ हो और मैं इधर उधर ढूँढ रहा हूँ, आओ चलो उधर दूर से देखें तो पूरा कोलोसियम का गोल आकार दिखाई देता है । अनुभा ने मन ही मन रजत को धन्यवाद दिया जिन्होने उसे अवांछित स्थिति से उबार लिया । अनुभा ने स्वयं को रोकते हुए भी पीछे मुड़ कर देख ही लिया। जिस बेटी की सफाई देने में श्रीमती चन्द्रा परेशान थीं वह इस सब से बेखबर अपने वर्तमान को पूरी तरह जी रही थी उसं न तो यहाँ के इतिहास में रुचि थी न वास्तुकला में। ठीक ही तो था प्रत्येक को अपनी-अपनी रुचि के अनुसार जीने का अधिकार है।

उन दोनो ने वहाँ बह रही टाइबर नदी के पुल से कोलोसियम के चित्र लिये । उस ऐतिहासिक स्मारक को देखना अपने में एक सुखद अनुभव था ।

क्रमशः---------------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com