यूँ ही राह चलते चलते - 4 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 4

यूँ ही राह चलते चलते

-4-

कोच आया तो अपनी आयु को भूल कर कोच में आगे सीट के लिये सभी दौड़ पडे़। सब सीट लेने में व्यस्त थे पर वान्या की दृष्टि बस यशील और अर्चिता को ढूँढ रही थी । वह मन ही मन पछता रही थी कि जाते समय वह यशील के साथ क्यों नहीं गयी । तभी उसने देखा कि अर्चिता अपने मम्मी पापा के साथ आ रही है उसके मन के तनाव में अचानक ढील आ गयी। वह व्यर्थ ही न जाने क्या क्या कल्पना करके आशंकित थी।पर दूसरे ही क्षण उसने स्वयं को सावधान किया कि माना इस बार यशील और अर्चिता साथ साथ नहीं थे पर जिस प्रकार अर्चिता यशील के प्रति आकर्षित है उसकी कल्पना कभी भी सच का बाना पहन सकती है।उसने निश्चय किया कि वह आगे से यशील के आस पास ही रहेगी उसे किसी भी स्थिति में अर्चिता को यशील के पास नहीं आने देना है।

हमेशा की तरह निमिषा और संजना ने आगे की सीटें हथिया लीं । उत्तर भारतीय होने के कारण बिना किसी प्रयास के ही अनुभा उनके गुट में आ गई थी और इसका लाभ उसे यह मिला कि वो लोग नित्य उसके और रजत दोनों के लिये भी सीट ले लेती थीं । तीन चार दिनों से यही सिलसिला चल रहा था। आज रामचनद्रन ने विरोध का झंडा गाड़ दिया । उन्होने कहा ’’ ये नहीं चलेगा, रोज एक ही लोग आगे बैठे।ं‘‘

’’तो आप पहले आ जाइये जो पहले आयेगा वही तो सीट लेगा, हम पहले आते हैं तो आगे बैठते हैं‘‘ निमिषा ने कहा।

तब सुमित को शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिये बीच में आना पड़ा उसने झगड़ा सुलझाने के लिये निर्णय सुनाया ’’ देखिये हम सब को उन्नीस दिनों तक साथ रहना है इसलिये हमें एक दूसरे का सहयोग करना होगा। आज से बारी-बारी से एक एक कर के सब लोग सीट बदल बदल कर बैठेंगे। आज जो जिस सीट पर बैठा है, वह कल उससे आगे वाली सीट पर बैठेगा और जो सबसे आगे बैठा है वह अगले दिन सबसे पीछे वाली सीट पर बैठेगा।’’

वान्या के तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़े। उसके निश्चय को अभी कुछ देर भी न बीती थी कि उस पर प्रहार हो गया। वान्या को नये बने आचार के अनुसार सबसे पीछे बैठना पड़ा जबकि यशील की सीट सबसे आगे थी। उसका मूड पहले ही उखड़ा था उस पर यह सीट की व्यवस्था। रोज पूरी देर रास्ते में प्रश्न पूछ-पूछ कर सुमित को परेशान करने वाली वान्या आज बिल्कुल चुप बैठी थी । मानव ने उसे छेड़ते हुयेे कहा ’’ आज लगता है वान्या के प्रश्नों का स्टाक समाप्त हो गया है ।‘‘

’‘जब जानबूझ कर मुझे पीछे बैठाया जा रहा है तो मैं क्यों किसी के पीछे पडूँ ‘‘ वान्या ने तुनक कर कहा । तब अनुभा का ध्यान इस बात पर गया कि यशील सबसे आगे से पीछे वाली सीट पर बैठा है और वान्या सबसे पीछे । यहाँ तक तो ठीक था पर इससे भी बड़ी बुरी लगने वाली बात थी कि अर्चिता यशील के पीछे वाली सीट पर बैठी थी । वान्या की नाराजगी उसके मन की भाव को प्रदर्शित कर रही थी । उस पर करेला नीम चढ़ा था कि अर्चिता लगातार यशील से बात किये जा रही थी।

जब वान्या से नहीं रहा गया तो उसने सुमित से कहा ’’ सुमित लोगों से कहिये कि बातें कम करें आपकी बाते सुनाई नहीं पड़ रही हैं।‘‘

भले बात सुमित से कही गई थी पर तीर का लक्ष्य तो अर्चिता ही थी और उसे यह चोट असह्य थी उसने की इस चोट प्रतिक्रिया में अपनी सीट यशील के बगल में बैठे चंदन से बदल ली और वान्या को व्यंग्य में तिरछी नजर से देखते हुये यशील के बगल में जा बैठी। वान्या कसमसा कर रह गयी । उसके लिये तो आज मानो सारे दृश्य अदृश्य हो गये उसकी समग्र इन्द्रियाँ बस एक बिन्दु पर केन्द्रित थीं वह बस यही देख रही थी, सुन रही थी और समझ रही थी कि यशील और अर्चिता क्या कर रहे हैं। अनुभा को आने वाले दिनों में वान्या अर्चिता और यशील के मध्य की रस्साकशी का पूर्वाभास सभी को होने लगा था।

लौटते लौटते सब बुरी तरह थक गये थे पर जो अद्भुत अनुभव हुआ था उसके आगे थकान का कोई मोल नहीं था सभी अपने अपने अनुभवों पर चर्चा कर रहे थे। अनुभा ने रजत से कहा ’’ आज मैंने वो सब देखा जिसकी पढ़ कर कभी कल्पना किया करते थे, थैंक्स आपने मेरा सपना पूरा कर दिया ।‘‘

’’ अरे अभी तो शुरुआत है मैडम आगे आगे देखिये होता है क्या‘‘ रजत ने नाटकीयता से हाथ ऊपर उठाते हुए कहा।

वे आगे बढ़े तो साथ-साथ चलते हुए सुनयना रामचन्द्रन ने पूछा ’’ मैं आपसे एक बात पूछ सकती हूँ?‘‘

’’हाँ हाँ पूछिये ‘‘

आप कहाँ को बीलांग करती हैं?

’’जी हम लखनऊ से हैं।‘‘

’’हाँ वही तो आप की लैग्वेज से लग रहा था, बहुत साफस्टिकेटेड है आप लोगों की लैंग्वेज‘‘।

’’थैंक्स ‘‘ अनुभा ने कहा। उसे अच्छा लगा कि उसकी बोली अपनी नफ़ासत के लिये जानी जाती है । उसके नयनों के सामने लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर लगे बोर्ड पर लिखी पंक्तियाँ प्रत्यक्ष हो उठीं ‘‘ मुस्कराइये कि आप लखनऊ में हैं ’’।

अपने शहर में रहते हुए उसका महत्व समझ में नही आता पर बाहर जब कोई उससे उसके शहर की पहचान कराता है तो सिर गर्व से उन्नत हो जाता है। अपना नाम, अपना शहर, अपना देश ही किसी के व्यक्तित्व की पहचान होता है।

प्रातः जब अनुभा ब्रेकफास्ट के लिये पहुँची तो निमिषा मानों उसकी प्रतीक्षा ही कर रही थी पास आ कर उसके कान में बोली आंटी आज तो अर्चिता और वान्या की हो गई ‘‘

‘‘क्यों क्या हुआ’’ अनुभा ने उत्सुकता से पूछा ।

’’अरे आज जरा वान्या को देखिये तो सही यशील पर बिजली गिराने का पूरा इंतजाम किया हुआ है ‘‘ अनुभा ने मुड़ कर देखा वान्या आज आकर्षक और सेक्सी सा काले रंग का टाप और जीन्स पहने थी, इसमें कोई शक नही कि छरहरी वान्या किसी माडल से कम नहीं लग रही थी।

तभी अर्चिता भी उधर ही आती दिखाई दी, उसे देखते ही अनुभा को याद आया कि निमिषा कुछ बता रही थी उसने निमिषा से पूछा, तो पता चला कि अर्चिता यशील के आते ही प्लेट ले कर आयी और उससे लेने का आग्रह करने लगी । संभवतः कल यशील की प्लेट ठुकराने की भरपाई की जा रही थी, तभी वान्या उसके लिये जूस ले कर आ गई और यशील को देने लगी । अर्चिता को बुरा लग गया, कल यशील को मना करने की भरपाई अभी हो नहीं पायी थी और वान्या बीच में आ गयी। वह चाह कर भी अपने मन के भाव छिपा नहीं पायी उसने तुनक कर कहा ’’जब यशील मेरे साथ खा रहा है तो तुम्हे बीच में आने की क्या जरुरत थी ‘‘।

वान्या हतप्रभ हो गयी उसने कहा‘‘ अरे बीच में क्या आना, ही इज नाट युअर प्रापर्टी, वो मेरा भी दोस्त है ’’ उसने अपनी बात की सहमति के लिये यशील को देखा ।

तभी चंदन दोनो हाथेंा में जूस के गिलास ले कर आ गया । यशील ने तुरंत उससे दोनो गिलास ले कर वान्या और अर्चिता को प्रस्तुत किया और अदा से कहा ’’ आज मेरी तरफ से ये हेल्दी जूस पीजिये चेहरे पर चमक लाइये और मुस्कराइये।‘‘

पर इस समय दोनो ही सामान्य मूड में नहीं थीं, वो एक दूसरे को घूरती हुई वहाँ से चली गयीं।

यशील खिसिया गया, तब चंदन बोला ’’और मेरे बीच में आओ, मैं अच्छा खासा उन दोनांे को इम्प्रेस करने के लिये जूस लाया था पर तुमने वो मौका भी छीन लिया ‘‘।

’’ अरे वो दोनों ही बिगड़ गई तो बात सँभालने के लिये मैं और क्या करता ।‘‘

’’जब दोनो से दोस्ती निभाओगे तो यही होगा, यह नही कि एक अपने यार के लिये छोड़ दो ‘‘चंदन ने रूठते हुये कहा।

’’ अरे तो ले लो न मैंने कब मना किया है ‘‘यशील ने कहा।

’’ एक ले लो ‘‘चंदन नकल उतारते हुये बोला ’’मानो कोई चीज हो, अरे वो दोनो ही तुम पर फिदा है तो मैं कैसे इम्प्रेस करूँ ‘‘चंदन ने कहा।

यशील अपना कालर ऊपर करता हुआ बोला ’’मैं चीज ही ऐसी हूँ तो क्या किया जाये।‘‘

चंदन ने मुँह चिढा़ते हुये कहा ‘‘रहने दे मुझसे पूछ तो मैं बताऊँ कि तू क्या है। ‘‘

यशील ने हाथ जेाड़ते हुये कहा ’’ ऐसे ही वो दोनों मुझसे नाराज हो गयी हैं अब तू कुछ गड़बड़ मत करना ।‘‘

’’ चल तेरे लिये यह भी सही, तू भी क्या याद करेगा कि क्या दोस्त पाया है ‘‘।चंदन ने शंहशाह की अदा से कहा और दोनो हँसते हुये नाश्ता लेने चले गये।

अनुभा को अर्चिता और वान्या की बचकानी हरकत भायी नहीं, दोनो ही इतनी मेधावी है पर क्या यह बात इनकी समझ में नहीं आती कि इस प्रकार वो अपना तमाशा बनवा रही हैं ?वो भी एक अन्जान लड़के के लिये। फिर उसने स्वयं को समझाया कि संभवतः बात जब मन की हो तो मस्तिष्क के सारे तर्क व्यर्थ हो जाते हैं, अच्छे अच्छे समझदार लोग भी आपे में नही रहते, ये तो फिर भी युवा ही हैं और दोनो ही यशील को पसंद करने लगी हैं।वैसे पूरे ग्रुप में वही एक सुदर्शन युवा है, तो स्वाभाविक ही है दोनो का उसके प्रति आकर्षण। अब यशील के मन में किसके लिये आकर्षण है या किसी के लिये है भी कि नहीं क्या पता। अनुभा अपने विचारों के जाल में उलझ रही थी कि संजना ने आ कर पूछा ‘‘ आंटी क्या सोच रहा हैं ?’’

‘‘ कुछ नही मैं वान्या और अर्चिता को देख रही हूँ इन्हे तो एक आयु की हैं तो आपस में मित्रता करनी चाहिये पर दोनो बिना बात ही प्रतिद्वन्दिता कर रही हैं। ’’

‘‘ अरे आंटी आप भी क्या बिना बात की बात कह रहा हैं यहाँ तो छः फुट का जीता जागता कारण है, ’’फिर फुसफुसा कर बोली ‘‘ वैसे मेरा तो सादी हो गया नहीं तो मैं भी कोसिस करता ’’।

अनुभा ने उसे देखा तो हँसते हुये बोली ‘‘हम मजाक कर रहा है ’’।

आज उन लोगों का क्रूस पर अन्तिम दिन था । रात में क्रूस पर चैथे तल पर बने लाउंज में कार्यक्रम था जिसमें क्रूस के कलाकारों ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया । लाउंज के मद्धिम प्रकाश में अपूर्व सुन्दरियों द्वारा प्रस्तुत लैटिन अमेरिकन एवं सालसा नृत्यों ने अद्भुत समा बाध दिया। वहाँ बैठा हर व्यक्ति झूम उठा। कार्यक्रम का अंत होते-होते तो स्थिति यह हो गई कि निमिषा स्टेज पर पहुँच कर उन लोगों के साथ नाचने लगी फिर ज्ञानेन्द्र और आशा मेहता भी स्टेज पर पहुँच गये, उन्हे देखते ही अर्चिता के पाँव भी थिरकने को मचल उठे । पर इससे पहले कि वह मंच पर जाती वान्या वहाँ पहुँच गयी । अब तो अर्चिता का रुकना किसी भी स्थिति में संभव न था वह भी मंच पर पहुँच कर अपने नृत्य से छा गयी। थोड़ी देर में तो कुर्सियाँ खाली हो गईं और स्टेज पर पाँव रखने की जगह न बची, क्या बूढ़े क्या बच्चे सब झूम रहे थे । सभी युवा तो नृत्य में पूरी तरह लीन हो गये। कोई रुकने का नाम नहीं ले रहा था। कलाकारों के लिये इससे बढ़ कर प्रशंसा और सम्मान और क्या हो सकता था।

जम के नाचने के बाद सब डाइनिंग हाल में पहुँचे तो कुछ ही देर में उन्ही कलाकारों में से कुछ को शेफ की पोशाक में देख कर रजत सुखद आश्चर्य से भर गये। उन्होने अनुभा से कहा ‘‘ कितनी कड़ी मेहनत करते हैं ये लोग हमारी सेवा भी करते हैं और मनोरंजन भी’’।

अनुभा भी उनसे प्रभावित हुए बिना न रह सकी उसने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को मन ही मन प्रणाम किया ।

क्रमशः--------------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com