यूँ ही राह चलते चलते - 11 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 11

यूँ ही राह चलते चलते

-11-

सुबह ग्रुप के काफी लोग लाबी में एकत्र हो गए थे सुमित ने कहा ‘‘ आज हमारे ग्रुप में एक सदस्य और जुड़ गया है, ये यहाँ से टूर में सम्मिलित हो रहे हैं। आइये उनसे मैं आपका परिचय करवा दूँ।’’

‘‘ ये हैं मिस्टर संकेत ।’’

सबने ताली बजा कर उसका स्वागत किया।

रामचन्द्रन ने पूछा ‘‘ क्या आप यहीं रहते हैं ? ’’

‘‘ नहीं नहीं मैं भी मुम्बई में ही रहता हूँ मुझे अपने बिजनेस के सिलसिले में यहाँ आना था तो मैंने इस तरह प्रोग्राम बनाया कि यहाँ से टूर को ज्वायन कर सकूँ । ’’

मीना ने कहा ”वैसे आपने काफी कुछ मिस कर दिया ।’’।

‘‘जी हाँ मुझे पता है पर मेरी मजबूरी थी ।’’

‘‘ कोई बात नही यंग मैन अभी तो बहुत कुछ बाकी है तुम्हारा वेलकम । चलो यंग लोग और जुड़े ’’ राम चन्द्रन ने कहा।

तभी लता जी और श्रीकृष्ण मातोंडकर आये और संकेत को देख कर एक साथ बोल पड़े ‘‘तुम ?’’

संकेत ने उनको अभिवादन किया ।

सुमित ने पूछा ‘‘ क्या आप लोग एक दूसरे को जानते हैं?’’

श्रीकृष्ण ने कहा ‘‘ हाँ सुमित, ये मेरे क्लोज फ्रेंड का बेटा है या यह कहो कि मेरा ही है।’’

श्रीकृष्ण अति प्रसन्न दिखायी पड़ रहे थे पर लता जी मौन थीं ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अचानक उन्होंने संकेत को नहीं वरन् कोई कर्ज उगाहने वाला पठान देख लिया हो जो उनसे कर्ज वसूलने आया हो और वह स्वयं कोई कंगाल हों। मीना ने कहा ‘‘ लता ताई अब तो अपनी वान्या खुश हो जाएगी उसका एक फ्रेन्ड आ गया।’’

लता ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया।

संकेत ने उधर-उधर देखते हुए पूछा ‘‘ आंटी वान्या नहीं दिखायी पड़ रही है ?’’

‘‘ आ रही होगी’’ लता जी कहते हुए दूसरी ओर चल दीं । तभी मानव और वान्या आ गये । मानव ने संकेत को देख कर जोश से कहा ‘‘वाउ व्हाट ए प्लेजेंट सरप्राइज़।’’

वान्या भी उन्हें देख कर चैांक पड़ी उसने पूछा ‘‘तुम यहाँ कैसे ?’’

‘‘ सरप्राइज फार यू ’’ संकेत ने प्रसन्नता से कहा पर वान्या की प्रतिक्रिया भी निर्लिप्त सी ही थी हाँ पर उसके चेहरे पर लता जी जैसा उपेक्षा का भाव नहीं था।

संकेत ने कहा ‘‘ वान्या अब हम लोग मिल कर घूमेंगे तो और मजा आएगा ।’’

वान्या को उसका यह विचार कुछ रुचिकर नहीं लगा पर वह चुप ही रही। उसकी दृष्टि तो यशील को ढूँढ रही थी।

सब लोग आस्ट्रिया के लिये निकल पड़े थे । आस्ट्रो-इटैलियन बार्डर पार कर वो वेरेना में पदार्पण कर गये । सुमित ने बताया कि रोमियो-जूलियट यहीं के थे । निमिषा ने चुटकी ली ’’ अरे अपने ग्रुप में भी तो रोमियो-जूलियट हैं। ‘‘

निमिषा ने दूर खड़ी अर्चिता की और संकेत किया, पर पीछे खड़ी श्रीमती चन्द्रा ने सुन लिया।

’’क्या मतलब है तुम्हारा‘‘ श्रीमती चन्द्रा ने तमक कर कहा।

’’कुछ नहीं आंटी हम आपस में बात कर रहे हैं ‘‘।

’’मुझे सब पता है ‘‘ वो बड़बड़ायीं। तभी अर्चिता आ गई ओर बोली ’’ मम्मा पता है यशील इस सो इन्टेलिजेन्ट । ‘‘

’’ चुप रहो, यशील के बारे में बात करने की कोई जरूरत नहीं है । ‘‘

’’ मम्मा ही इज माई फे्रन्ड ‘‘ अर्चिता ने अपनी मम्मा की प्रतिक्रिया पर आश्चर्य से कहा।

’’ हाँ, पर यहाँ लोग पता नहीं क्या-क्या बातें कर रहे हैं। ’’

‘‘मम्मा वही वान्या होगी एक्चुअली शी इस जेलस आफ मी‘‘ अर्चिता ने कहा। यशील पास ही खड़ा था और अर्चिता नहीं चाहती थी कि उसके सामने ऐसी बातें हों अतः वह बात पलटते हुये बोली ’’ छोड़ो मम्मा आप भी क्या बात ले बैठीं ।’’

श्रीमती चन्द्रा ने कहा ’’नहीं वान्या तो तुझसे कम्पटीशिन करती ही है, उसकी तो मैं परवाह भी नहीं करती पर अपने नार्थ वाले ही ऐसे कहें तो क्या कहें ‘‘ फिर रूक कर बोलीं ’’ एक वो साउथ वाले हैं जो सब मातोंडकर फैमिली का साथ दे रहे हैं। ’’

निमिषा से चुप न रहा गया वह बोली ’’ आप बिना बात के बात बढ़ा रही हैं, मैंने तो किसी का नाम नहीं लिया आप बेकार ही गिल्ट फील कर रही हैं।‘‘

सचिन ने निमिषा को आँख के इशारे से चुप रहने को संकेत किया और बोला ‘‘ इधर देखो कितना सुंदर दृश्य है। ’’

वेरेना में पहाड़ियाँ फैली थीं । एक ओर एडिजा नदी थी । जैसे-जैसे वो ऊपर जा रहे थे एडिजा नदी सँकरी होती जा रही थी ।लगभग पाँच घंटे के सफर के बाद वो एल्पाइन पहाड़ी क्षेत्र पहुँच गये थे । यहाँ घरों की छतें तिरछी थीं और जगह-जगह अंगूर की मदिरा के यार्ड थे जिनका मनोरम दृश्य ही नयनों को आनन्द का नशा दे रहा था। राह में अनेक किले थे जो उन नगरों की रक्षा के लिये बने थे । हाँ चट्टाने पास की डोलोमाइट खानों के कारण रंगीन विशेषकर गुलाबी थीं।

श्रीनाथ ने पूछा ’’ सुमित यहाँ की भाषा क्या है?

सुमित ने बताया ’’ जर्मन है पर इटली से पास होने के कारण यहाँ लोग इटैलियन भी बोलते हैं। ‘‘

उसने बताया ’’ यहाँ की आबादी केवल 8 लाख है और अधिकतर लोग नौकरी करते हैं तथा आर्थिक स्थिति अच्छी है । ‘‘

रजत ने कहा ’’अगर हम गलत नही हैं तो 1974 और 1976 में यहाँ ओलम्पिक हुआ था।‘‘

’’येस यू आर राइट ‘‘ सुमित ने कहा।

आज लता जी का किसी बात में मन नहीं लग रहा था संकेत का आना उन्हे निष्प्रयोज्य नहीं लग रहा था।जब नहीं रहा गया तो उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा ‘‘ संकेत को आप ने यहाँ बुलाया है?’’

‘‘मैं क्यों बुलाऊँगा?’’

‘‘ यह संयोग तो नहीं हो सकता कि वो इसी समय यहाँ आ गया और हमारा ग्रुप ज्वायन कर लिया, जरूर आपने उसे कहा होगा ’’लता ने शंका प्रकट की।

फिर बोली ‘‘ झूठ मत कहियेगा आपको नहीं पता था कि ये यहाँ से ज्वायन करेगा?’’

‘‘ हाँ यह तो पता था मैंने उसे अपने टूर के बारे में बताया तो संकेत ने कहा कि उसे भी यहाँ अपना बिजनेस का काम था तो उसने कहा कि आगे वो हम लोग के साथ यूरोप घूम लेगा।’’

‘‘ उसने कहा कि आप ने उसे राय दी और बिजनेस-विजनेस का कोई काम नहीं ये सब तो बहाना है उसे तो बस हमारे साथ आना था’’ लता ने क्रोध में कहा।

श्रीकृष्ण को भी क्रोध आ गया ‘‘ अगर वो आया भी है तो तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि वो तुम्हारी बेटी को पसंद करता है । अपनी बिरादरी का है धनवान है सुशील है और क्या चाहिये तुम्हे?’’

‘‘ हाँ मैं तो जानती हूँ आप का क्या प्लान है पर कान खेाल कर सुन लीजिये मुझे नहीं देनी अपनी बेटी उसके ट्रे्रडिशनल परिवार में । वान्या वहा नहीं रह पाएगी’’।

‘‘क्यों क्या परेशानी है उनके घर मे क्या कमी है? जितना वो कमाते हैं तुम्हारे नौकरी वाले जीवन भर नहीं कमा सकते ।’’

‘‘ हमारी वान्या दूसरे ढँग से पली बढ़ी है, वह सुखी नहीं रहेगी। ’’

‘‘ सुखी कैसे रहेगी अगर तुमने उसके मन में इतना कूड़ा भर दिया है। ‘’

‘‘मैंने जो भी किया पर मेरी बेटी आपके मित्र के बेटे से शादी नहीं करेगी और आप न कह पा रहे हों तो मैं ही कह देती हूँ उस संकेत से ’’लता जी ने कहा।

‘‘ खबरदार जो तुमने उससे कुछ कहा ।’’

‘‘ और आप भी सुन लीजिये अगर आपने उससे वान्या के विवाह के बारे में सोचा भी तो मैं घर छोड़ दूँगी। ’’

सब लोग इन्सब्रक पहुँच गये थे ।

’’सुमित ने पूछा, ‘‘आप में से कोई बता सकता है कि यहा का सबसे बड़ा शहर कौन सा है ?‘‘

’’इन्सब्रक‘‘ चंदन ने कहा ’’यही नहीं वो यहाँ की पाँच राज्यों में से एक की राजधानी भी है ।

’’गुड‘‘ सुमित ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा।

सब लोग इन्सब्रक में होटल ‘ग्रेआर बार’ में रुके होटल की लाबी बड़े कलात्मक ढंग से सजायी गई थी। श्रीनाथ ने कहा ’’अरे भाई कहाँ गये फोटो मीनियक लोग इतनी सुन्दर सज्जा कहीं नहीं मिलेगी चलो चलो लग जाओ अपने काम में ‘‘।

’’अरे अंकल आपको बताने की जरूरत नहीं है वो देखिये ‘‘ चंदन ने लाबी में रखे कलात्मक ढंग से बने सोफों की ओर संकेत किया । श्रीनाथ ने मुड़ कर देखा तो सच में वह कोना आलीशान था और उसकी भव्यता का पूरा लाभ उठाते हुये महिम मान्या की फोटो लेने में व्यस्त था। श्रीनाथ और चंदन एक दूसरे को देख कर हँस पड़े। इतने दिनो में समूह में सब शनैः शनैः एक दूसरे से आत्मीय हो रहे थे। इस छोटे से वार्तालाप ने श्रीनाथ और चंदन को भी एक दूसरे के पास ला दिया था । बस कुछ ही देर में सब घूमने निकल पड़े, उस स्थान को देखने का उत्साह सफर की थकान पर भारी था । यहाँ की शान्त सड़कें बता रही थीं कि यहाँ की जनसंख्या कितनी कम है। सभी लोग पैदल ही घूमने निकले ।रास्ते में कई युवा स्केट्स पर ही चलते दिखाई पड़े ।

’’काश हमारे यहाँ भी इतनी अच्छी सड़के होतीं कि हम भी निडर हो कर सड़कों पर स्केटिंग कर पाते ‘‘ रजत ने कहा । सबसे पहले उन लोगों ने ‘आर्च आफ विक्टरी’ देखा फिर सुमित उन्हे मारिया टेरेसा का महल दिखाने ले गये जिसकी छत सुनहरी थी, ज्ञात हुआ कि उनके 16 बच्चे थे और उनको यूरोप की मदर इनला कहते हैं ।

यह सुन कर ऋषभ ने कहा ’’बाप रे 16 बच्चे हमारा देश बेकार ही बदनाम है कि आबादी बहुत है ।‘‘

’’अरे बदनाम क्यों है हम तो हर बात में आगे हैं अगर इनके 16 बच्चे थे तो अपने यहाँ धृतराष्ट्र के तो 100 बच्चे थे‘‘ सचिन ने कहा और दोनो हँस पड़े।

सुमित बता रहे थे ’’ मारिया टेरेसा के बाद से यहाँ शिक्षा निःशुल्क है, यही कारण है कि यह शिक्षा और संगीत के लिये प्रसिद्ध है । ‘‘

सुमित ने उसी के पास 450 से 500 वर्ष पुराना चर्च हान्स कर्फ दिखाते हुये बताया कि कहते हैं कि यहाँ एक समाधि है जिसमें प्रभु यीशु के पाल और नाखून रखे हैं ।‘‘

यशील बोला ’’ क्या सबूत कि वो प्रभु यीशू के ही नाखून हैं?‘‘

अर्चिता ने कहा ‘‘यशील यह बहस का टापिक नहीं है, ये तो केवल आस्था की बात है।‘‘

वान्या ने कहा ’’ पर ऐसे आँख बन्द करके आस्था नहीं कर ली जाती है हर बात का सबूत और लाजिक होता है। ’’

’’यशील यू आर राइट कुछ साक्ष्य तो होना चाहिये ऐसे थोड़े ही कोई मान लेगा। ‘‘वान्या ने यशील का समर्थन करते हुये कहा।

अर्चिता को वान्या का यू यशील का समर्थन करना नहीं भाया। उसने तो बस यू ही यशील से बात करने के उद्देश्य से कह दिया था पर वान्या ने तो बाल कैच करके सिक्सर लगा दिया। अब अर्चिता को हार मानना स्वीकार न था, उसने कहा ’’ अच्छा एक बात बताओं तुम ईश्वर को मानती हो‘‘?

’’हाँ, सभी मानते हैं‘‘ वान्या ने कंधे उचका कर कहा।

अर्चिता को अवसर मिल गया उसने उत्साहित हो कहा ’’ फिर बताओ क्या प्रूफ है कि ईश्वर है?‘‘

वान्या अपनी कही बात पर ही जाल में उलझ गई थी उसने कहा ’’ तुम तो मेरी हर बात काटती हो, देअर इस लाट आफ डिफरेन्स बिटवीन नेल ऐन्ड गाड‘‘।

’’ पर लाजिक तो वही है ‘‘ अर्चिता भी पूरे बहस के मूड में थी।

अन्ततः यशील ने उनके रबर के समान खिंचती बहस को विराम देने हेतु दोनों का बहस करते हुये वीडियो बनाना प्रारम्भ कर दिया । यह देख दोनों चुप हो गई और यशील को बनावटी गुस्से से मारने दौड़ीं, यशील हँसने लगा। संकेत ने कहा‘‘ वैसे वान्या आज तुम अर्चिता की बातों में फँस गई यू डोन्ट हैव पाइन्ट। ’’

संकेत का अर्चिता का पक्ष लिया जाना वान्या को बुरा लग गया उसने रुक्ष स्वर में कहा ‘‘ ओ0 के0 इफ आय हैव नो पाइन्ट डोन्ट टाक विथ मी ’’।

संकेत जब से आया था वान्या प्रायः ही उसे किसी न किसी बात पर झिड़क देती थी। संकेत हतप्रभ हो गया जब से वह यहाँ आया था उसने लता जी की उपेक्षा स्पष्ट रूप से अनुभव की थी, वान्या भी कुछ बदली-बदली सी लग रही थी। मुम्बई में वो जब भी मिले वान्या ने किसी अंतरंग भावना की अभिव्यक्ति तो कभी नहीं की पर सामान्य मित्रता का शिष्टाचार तो निभाया ही है। वह इतना नादान नहीं है कि यह न समझ सके कि लता जी उसे पसंद नहीं करतीं पर अंकल का उसके लिये विशेष झुकाव और वान्या का सामान्य व्यवहार उसे इतना भरोसा तो दिलाता ही था कि एक न एक दिन वह वान्या को अपने प्रति आकर्षित कर ही लेगा। पर यहाँ दोनो का व्यवहार उसकी समझ से परे था। वह उनके इस व्यवहार का विश्लेषण कर रहा था और उसके परोक्ष इसके कारण में उसकी छठी इन्द्रिय में कहीं यशील का चेहरा प्रतिबिम्बत हो रहा था।

जिस तरह वान्या यशील के आसपास मंडराती, उसे जिस मोहित दृष्टि से देखती और उसे ले कर जिस तरह अर्चिता से प्रतिद्वन्दिता करती उससे उसके भावों का अंदाज लगाना किसी के लिये भी कठिन नहीं था। सच तो यही था कि केवल वान्या से सामीप्य बढ़ाने के लिये ही वह इस टूर मे सम्मिलित हुआ था, पर यहाँ तो कुछ और ही खिचड़ी पकती प्रतीत हो रही थी। उसकी राह और भी ऊबड़ खाबड़ हो गयी थी, उस पर लता आंटी का असहयोग आंदोलन एक बड़ी बाधा थी उसकी दौड़ की ।

क्रमशः--------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com