यूँ ही राह चलते चलते - 2 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 2

यूँ ही राह चलते चलते

-2-

कमरे में आ कर लम्बे सफर के बाद वो पीठ सीधी करने को लेटे ही थे कि आधा घंटा बीत गया।अनुभा ने रजत से कहा ‘‘उठिये, सुमित ने ठीक आधे घंटे बाद नीचे मिलने को कहा था’’।

‘‘ क्या यार अभी तो पैर भी सीधे नहीं हो पाये हैं’ रजत ने करवट बदलते हुए कहा । मन तो अनुभा का भी कुछ देर लेटने का हो रहा था पर सुमित ने पहले ही विनम्रता की चाशनी में लपेट कर सचेत कर दिया था कि समय की ढील सहन नहीं की जाएगी और जो देर में आएगा उसे छोड़ कर सब आगे बढ़ जाएंगे।

, संभवतः एथेन्स देखने की उत्सुकता ने सभी यात्रियों में ऊर्जा का संचार किया था क्योंकि दो मिनट में ही सब नीचे होटल की लाबी में एकत्र थे। सुमित ने उन्हे एथेन्स की स्थानीय गाइड क्रिस्टोफर के हवाले किया। क्रिस्टोफर ने थोड़ा झुकते हुये अपनी भाषा में कहा ’’कैलीमेरा‘‘(गुड मार्निंग)।

सब एक लोकल टूरिंग बस में बैठ गये, नये देश में पहली बार घूमने का रोमांच सभी के चेहरे पर परिलक्षित था। रास्ते में क्रिस्टोफर उन लोगेां को अपने देश के बारे में बताती जा रही थी उसने बताया कि देवी एथेना के नाम पर ही इसका नाम एथेन्स पड़ा। निमिषा मुँह बना कर बोली ‘‘ समझ नहीं आ रहा कि चलती बस से पीछे छूटते शहर को देखें फोटो लें कि इनकी बात सुने ।’’

सचिन ने चिढ़ाते हुए कहा ’’आँख से देखो, हाथ से क्लिक करो और कान से सुनो ।’’

‘‘ वेरी स्मार्ट’’ निमिषा ने मुँह बनाते हुए कहा।

सब लोग एथेन्स के स्टेडियम गये जहाँ 1896 में ओलम्पिक खेल प्रारम्भ हुए थे । इसका नाम उस समय ओलंम्पिक मैराथन के विजेता स्पाइरोस लुईस के नाम पर पड़ा । आष्चर्य हुआ जान कर कि उस समय इतने बड़े स्टेडियम में 50 हजार लोगों के बैठने का स्थान लकड़ी से बनाया गया था, जहंा बाद में संगमरमर लगा दिया गया । यह जान कर तो और भी रोमांच हो आया कि अंग्रेजी के यू आकार का यह स्टेडियम वर्तमान ओलम्पिक का जन्म स्थान था । स्टेडियम देख कर चुलबुली निमिषा तुरंत बैटिंग के पोज में फोटो खिंचवाने के लिये खड़ी हो गयी । पीछे से सहयात्रियों में से एक लड़का अचानक चिल्लाया ’’आउट‘‘!

निमिषा पोज देते देते चैांक कर सीधे हो गयी ।सब लोग खिलखिला कर हँस पड़े। निमिषा को चैांकाने वाला किशोर मानव, श्री कृष्ण मातोंडकर का बेटा था जो पत्नी, बेटे और बेटी वान्या के साथ मुम्बई से आये थे । वहाँ से सब एक्रोपोलिस गये, जो एक किला है। गाइड ने ऊचाई पर दूर बना एक मन्दिर दिखाते हुए बताया’’ वहाँ जो ऊँचाई पर एक मन्दिर बना है वह ज्यू देवता का मन्दिर है, उनकी पत्नी इरा थी। यह देवता एक बार धरती पर आये तो धरती की स्त्री से उनका सम्पर्क हुआ। हरक्यूलिस इन्ही देवता और धरती की स्त्री का पुत्र था ।

’’यानि यहाँ के देवता भी इधर-उधर चक्कर चलाते थे ‘‘ सचिन निमिषा से कह रहा था । अनुभा सुन कर मुस्करा दी यह देख कर सचिन झेंप गया ।

राह में चलते चलते वहाँ के पार्लियामेंट और आधुनिक स्टेडियम भी उन्होने बस में बैठे बैठे देखा।

रामचन्द्रन और सुनयना का नन्हा बेटा टिंकू ग्रुप का हीरो बन चुका था । उसे वहाँ की ट्र्र्राम देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ वह बोला ’’पप्पा देखो यहाँ की बस ऊपर से तार से लटकी है । ‘‘

’’नहीं बेटा यह ट्राम बिजली से चलती है अतः यह एन्टिना ऊपर के तार से जुड़ा है‘‘ पास बैठे श्री राठौर ने बताया। अनुभा ने मुड़ कर देखा तो आश्चर्य हुआ कि किस तरह सड़क पर ट्राम निर्धारित राह पर ऊपर से जुड़ी बिजली से चलती रहती है ।

रात का आगमन होने लगा था, अब तक सब लोग थक चुके थे और पेट में चूहे भी दौड़ लगा रहे थे । अब तो बस सब पूट पूजा को आतुर थे। उन्हें बहुत प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। टूर मैनेजर सुमित उन लोगों को एक भारतीय रेस्ट्रां में रात्रि भोजन के लिये ले गये। रेस्ट्रां के मालिक ने कहा ’’नमस्कार‘‘ तो समूह में से किसी ने कहा ’’कैलीस्पेरा‘‘(गुड ईवनिंग)।

मालिक मुस्करा दिया वह बोला ‘‘ यही विशेषता है हम भारतीयों की कितनी सरलता से हर संस्कृति और भाषा को अपनाते हैं ।’’

‘‘ हाँ भले आपस में एक दूसरे से भाषा को ले कर लड़ते रहें‘‘ किसी ने छींटाकशी की, पर उस आनन्द के वातावरण में उस विषय पर ध्यान देने का किसी को अवकाश नहीं था।

विदेश की धरती पर दाल मखनी तंदूरी रोटी पालक पनीर और मुर्ग मुसल्लम पा कर सभी लोग सुखद आष्चर्य से भर गये और टूट पड़े भोजन पर।

‘‘चलो अब कम से कम उन्नीस दिनों तक तुम्हारे बोरिंग खाने से छुट्टी मिली ‘‘रजत ने चुटकी ली ।

’’ और मुझे तुम्हारी फरमाइशों से ‘‘अनुभा ने नहले पर दहला मारा। अब इतने दिन उसे रसोई का मुँह भी नही देखना पड़ेगा यह सोच कर घूमने का आनन्द दोगुना हो गया ।

खाना लेते समय अनुभा का फिर यशील से सामना हो गया और दोनों मुसकरा दिये। प्लेट ले कर वह एक टेबल पर आ कर बैठी तो उसी लड़की जिसका सामान उठाने में यशील ने सहायता की थी, ने आ कर अनुभा से बोली ’’ आंटी प्लीज आप उधर बैठ जाएंगी ।‘‘

अनुभा उठ तो गई पर मन ही मन सोचा अजीब हैं ये आज के युवा, अरे खुद नहीं उधर जा सकती थी क्या, पर तभी उसका ध्यान गया कि उसके सामने वाली सीट पर यशील और उसका दोस्त बैठे हैं और तब उस लड़की के वही सीट लेने का कारण जान कर वह मन ही मन मुसकरा दी।...........

अनुभा ने ध्यान से उस लड़की को देखा, 23 -24 वर्ष की लम्बी छरहरी आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी वह । आत्मविश्वास उसके हावभाव से परिलक्षित हो रहा था।वह कुछ ऐसे बैठी थी कि यशील का ध्यान उसकी ओर जाए।उसका यह प्रयास व्यर्थ भी नही गया यशील ने उसे देख कर मुस्करा कर हाथ हिलाया, उत्तर में उसके चेहरे पर अपने प्रयास के सफल होने की आत्मसंतुष्टि और एक सुदर्शन युवक द्वारा महत्व दिये जाने के गर्व का मिलाजुला भाव, उजली उजास बन कर छा गया।

कुछ पल के लिये अनुभा का मन उसके रोकते रोकते भी हठी बच्चे सा अतीत के रोशनदान से ताँक-झाँक करने लगा।वह एम0ए0 कर रही थी प्रायः अपने नोट्स बनाने विभाग के वाचनालय पहुँच जाती थी। वहीं पर एक दिन वह आया था, सुदर्शन शालीन, गंभीर सा व्यक्तित्व था उसका । फिर प्रायः ही जब वह जाती तो वह वहाँ मिलता, नाक की सीध में आता पुस्तक लेता और किसी कोने में बैठ कर पढ़ने लगता, अपने काम से काम रखने वाला न ऊधो से लेना न माधो को देना। अनुभा को उसकी यही शालीनता और गंभीरता अच्छी लगती थी और न जाने कब वह उसके मन के द्वार में चुपके से प्रवेश कर गया था। अब अनुभा के वाचनालय जाने का उद्देश्य नोट्स बनाने से भटक कर उसे देखना, उसे महसूस करना हो गया था । वह प्रतीक्षा करती कि कभी वह उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठे, पर जहाँ अन्य छात्र बहाने से उसके सामने वाली सीट पर ही बैठते, पर अनुभा जिस की प्रतीक्षा करती थी वह भूले से भी कभी न बैठा । उसे तो संभवतः आभास भी न था कि कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा होता था।उस समय लड़कियों में इतनी लज्जा और झिझक होती थी कि उससे बात करना तो दूर किसी और से भी उसका नाम पूछने का साहस नहीं कर पायी और यह लड़की कितनी सहजता से उसे हटा कर अपने मनपसंद लड़के के सामने बैठ गयी । उसके मन में इतने वर्षों बाद आज उसके मन में एक विचार आया कि यदि वह आज के युग में होती तो उसके जीवन की दिशा क्या होती ? उसने अपने इन ऊलजलूल विचारों को झटक दिया और अपनी सोच पर पश्चाताप करते हुए प्यार से रजत को कुछ अधिक ही प्यार से देखने लगी। रजत को समझ न आया कि अचानक अनुभा उसे इतने प्यार से क्यों देखने लगी।उसने अनुभा को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा मानों कह रहा हो ‘ यह अचानक मुझपर मेहरबानी क्यों?’’

अनुभा झेंप गयी और कोई उत्तर न दे कर इधर-उधर देखने लगी। उसने देखा कि वह लड़की और यशील बीच बीच में एक दूसरे को देख लेते हैं, संभवतः उनका ध्यान खाने में कम और एक दूसरे में अधिक था निश्चय ही इनकी यात्रा अधिक रुचिकर होने वाली थी।

सुबह-सुबह छः बजे ही उन्हें जगाने के लिये फोन की घंटी घनघना उठी । अनुभा और रजत जब सात बजे डाइनिंग हाल में पहुंचे तो अधिकांश लोग प्लेटें ले कर लाइन में लग चुके थे। वो तो स्वयं को ही बहुत उत्साही समझ कर खुश थे पर यहां आ कर उन्हे अपनी खुशफहमी दूर होती लगी, सभी का उत्साह उफान पर था।

अनुभा ब्रेड मक्खन जैम दूध कार्नफलैक्स से प्लेट भर कर आई तो संजना ने आवाज दी ’’ आंटी आइये मैंने आपके लिये जगह ले ली है ‘‘।

यानि कि यहाँ भी कुर्सी का चक्कर अनुभा ने मन ही मन सोचा, उसने संजना को धन्यवाद दिया। नाश्ता तो चल रहा था पर साथ साथ ही लेाग फोटो ग्राफी करने में भी तन्मयता से रत थे। इतना भव्य डाइनिंग हाल इतने प्रकार के भोजन और उनकी वहाँ उपस्थिति, सभी को इन्हें अपने-अपने कैमरे में संजोना जो था।

नव विवाहित महिम, मान्या के किसी रूप को भी को भी छोड़ना नहीं चाहता था अतः लगातार उसकी फोटो ले रहा था, कभी प्लेट हाथ में लिये फोटो लेता तो कभी मेज पर मुस्कराती, तिरछी, सीधी, दांयी ओर से तो बांयी ओर से। उसका यह पल पल फोटो खींचने का शैाक शीघ्र ही लोगों के लिये मनोरंजन का कारण बन गया । ऐसा नहीं कि और लोग फोटो लेने में पीछे थे पर उसकी दीवानगी को लोगों ने मनोरंजन का साधन बना लिया ।

श्रीमती श्रीनाथ ने अपने श्रीमान रवि श्रीनाथ को ताना दिया ’’ देख लो कितना प्यार करता है अपनी बीबी को, एक तुम हो आज तक मेरी फोटो लेना तो दूर ठीक से देखा भी न होगा ।‘‘

इस पर रवि नहले पर दहला मारते हुये बोले ’’ अगर तुम भी उसके जैसी हाट लगो तो वादा है कि मैं महिम से दुगनी फोटो लूँगा तुम्हारी। ‘‘

गीता ने मुँह टेढ़ा करके कहा ’’हुँह तुमसे तो कोई बस बातें बनवा ले। ‘‘

यह देख कर अनुभ मन ही मन सोचने लगी कि शादी के चाहे कितने वर्ष क्यों न हो जायें पत्नी को हमेशा यही लगता है कि उसके पति को छोड़ कर दुनिया के सारे पति अपनी पत्नियों को बहुत प्यार करते हैं और एक वह ही है जो इन जैसे अनरोमंाटिक पति के साथ न जाने कैसे निभा रही है ।

श्रीनाथ युगल के बहस के कारण बने नये नवेले जो जोड़े को देखने के लिये अनुभा पीछे मुड़ी तो रवि श्रीनाथ भी उस गुटरगूं करते जोड़े को मुड़ कर देख रहे थे, जिनके प्रेम प्रदर्शन ने उनके प्रेम की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया था । अनुभा से दृष्टि मिलते ही वो झेंप गये और अपनी झेंप मिटाने के लिये कैमरा ले कर बाहर की फोटो खींचने में व्यस्त हो गये।

यशील और उसका दोस्त चंदन काफी लेने की लाइन में खड़े थे उनके पीछे कल वाली लड़की खड़ी थी उस ने कहा ’’ एक्सक्यूज मी, प्लीज मुझे काफी पहले ले लेने दीजिये मेरा आमलेट ठंडा हो जाएगा ‘‘ ।

यशील ने उसे आगे जगह देते हुए कहा ’’ मेरा नाम यशील है ‘‘।

उसने काफी ले कर कहा’’ थैंक्स मैं वान्या मुंबई से ‘‘।

’’अरे मैं भी मुबई से हूँ ‘‘।

’’वाउ दिस इस रियली इन्टरेस्टिंग ना, इस समय तुम क्या कर रहे हो ?‘‘

’’मैं मार्गन में डाइरेक्टर हूँ ।‘‘

’’और मैं शिवाजी कालेज से एम बी ए कर रही हूँ ‘‘।

लाइन में लगे लोगों का संयम जवाब दे गया। श्रीनाथ पीछे से बोले ’’अब आपका आमलेट ठंडा नहीं हो रहा है क्या?‘‘ वान्या ने मुँह बना कर उन्हें देखा।

पीछे लाइन में खड़ी अर्चिता जो उन दोनों के वार्तालाप से बेचैन थी खुश हो कर बोली ’’अंकल आपने सही कहा आमलेट वामलेट कुछ नहीं उसे तो पहले काफी लेनी थी वो ले ली और हम लोग इतनी देर से खड़े हैं ।‘‘

यशील ने उसे राह देते हुए कहा ’’कोई बात नहीं आप भी ले लीजिये‘‘।

’’नहीं-नहीं पहले आप लीजिये ‘‘।

’’लग रहा है लखनऊ से मैं नहीं तुम दोनो हो‘‘ अनुभा ने पीछे से चुटकी ली।

’’आंटी लखनऊ से तो नहीं, पर हूं नार्थ का ही, मैं गाजियाबाद को बिलांग करता हूँ ’‘ यशील ने हँस कर कहा।

यह सुन कर अर्चिता उत्साह में पंक्ति छोड़ कर आगे आ गई अैार यशील से हाथ मिलाते हुये बोली ’’आप गाजियाबाद से हैं और मैं अर्चिता दिल्ली से, मैं वहाँ इंजीनियरिग के फाइनल में हूँ । ‘‘

’’ यानि कि मैं और आप बस इतनी सी दूरी पर हैं‘‘ यशील ने हाथ से चुटकी बनाते हुए कहा और दोनों हँस पड़े।

तभी पंक्ति में खड़े ज्ञानेन्द्र से आशा मेहता ने कहा ’’ ये लोग आपस में इन्ट्रोडक्शन ही लेते रहेंगे, नौ बजे हमारा टूर चल देगा और हम लोग खड़े रह जाएँगे कुछ खा भी नहीं पाएँगे।‘‘

तभी सुमित आ गये, वो हँस कर बोले ‘‘जब आप लोग बे्रकफास्ट खा लेंगे तभी हम चलेंगे, आप को भूखा रखने का गुनाह हम नहीं करेंगे।‘‘

यह सुन कर आशा झेंप कर वहाँ से हट गई।

अनुभा के पीछे खड़ी निमिषा धीरे से बोली ’’ चलो अच्छा हुआ लाइन में एक तो कम हुआ‘‘ अनुभा ने उसे आँख दिखा कर चुप रहने का संकेत किया तो वह मुस्करा दी।

नाश्ते में इतने प्रकार के व्यंजन थे कि ग्रुप में आये लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या खाएँ और क्या छोड़ दें। निमिषा ने संजना से कहा ‘‘ क्यों न हम कुछ ड्राई फ्रूट्स पर्स में रख लें रास्ते में काम आएँगे।’’

‘‘ आयडिया तो अच्छा है। ’’

पीछे से सुमित ने सुन लिया उसने उनसे तो कुछ नहीं कहा पर अपरोक्ष रूप से उन्हे सावधान करने हेतु उद्घोषणा की ‘‘ कृपया आप लोग जो खाना है जितना खाना है यहीं पर खा लें पर साथ में पैक करके न ले जाएं, वह नियम के विरुद्ध है और मुझे आशा है कि आप इस विदेश की धरती पर अपने देश का नाम धूमिल करना नहीं चाहेंगे।’’

इस उद्घोषणा के बाद संजना और निमिषा ने अपनी पर्स में कुछ रखने का विचार त्याग दिया।संजना बोली ‘‘चलो कुछ नहीं तो एक-एक जूस तो और पी ही लिया जाये।’’

‘‘ हा यहाँ तो ऐसे कंजूस हैं ये लोग कि पानी तक नहीं ले जाने देते।अपने देश में कम से कम पानी पर तो कोई रोक नहीं है न ’’ निमिषा ने मुँह बना कर कहा।

सचिन ने कहा ‘‘ तुम लोग यूँ ही परेशान हो अभी इतना खा लिया है कुछ घंटों में लंच मिल जाएगा, बीच में खाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।’’

अनुभा ने कहा ‘‘ वैसे मैं थोड़े बहुत स्नैक्स ले कर भी आई हूँ हम सब मिल कर खाएँगे । ’’

‘‘ सो नाइस आफ यू आंटी, लायी तो मैं भी हूँ पर चुरा के खाने में जो मजा है वो अपना सामान खाने में कहाँ ’’ निमिषा ने कहा । अनुभा को उसका यह चुलबुला पन अच्छा लगता है । सदा मस्त रहने वाली यह लड़की स्वयं भी प्रसन्न रहती है और दूसरों को भी हँसाती रहती है।

खा पी कर प्रसन्न मूड में गुनगुनाता बातें करता कारवाँ चल पड़ा।

क्रमशः--------------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com