यूँ ही राह चलते चलते - 3 Alka Pramod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यूँ ही राह चलते चलते - 3

यूँ ही राह चलते चलते

-3-

आज से तीन दिनों तक सबको क्रूस (पानी के जहाज ) का आनन्द उठाना था । क्रूस उनकी प्रतीक्षा में पलकें बिछाए, सागर तट के पाइरियास पोर्ट पर प्रहरी सा तना खड़ा था। जब सब क्रूस पर गये तो सभी की आँखें आश्चर्य से खुली रह गयीं। सम्भवतः सभी के लिये यह प्रथम अनुभव था। आठ तल ऊँचे इस जहाज में तो अपना एक अलग संसार ही था। सैकड़ों केबिन, दो डाइनिंग हाल लायब्रेरी, कैसीनो, लांज, स्वीमिंग पूल सभी कुछ तो था । इस नये संसार में यदि कोई खो जाये तो उसे ढूँढना आसान न था ।

सभी लोग जहाज के लांउज में एक़त्र हुए, जहाँ क्रूस की कार्यक्रम संचालिका मिस क्रिस्टीन ने उन्हें बताया कि तीन दिन उनका जहाज ‘एक्वा-मैरीन’, किस किस द्वीप पर जाएगा और प्रत्येक दिन उन द्वीपों के लिये अलग अलग पैकेज टूर हैं । जो भी उन द्वीपों पर जाना चाहता है अपना नाम आबंटित करा लें । मिस क्रिस्टीन के पर्दे के पीछे जाते ही लांउज में हलचल मच गई। हर कोई एक दूसरे से राय ले रहा था कि कहाँ जाना उचित है और कहाँ जाना पैसा व्यर्थ ही व्यय करना है ।

ऋषभ बोला ’’ हम तो सब जगह जाएगा नहीं तो लौट कर जाएगा तो सब लोग पूछेंगे तो क्या बताएगा‘‘ ।

श्रीनाथ ने कहा ’’पर किराये बहुत महँगे हैं, पहले तो कम्पनी ने कहा था कि हम वहाँ आपसे कुछ नहीं लेंगे औेर अब कह रहे हैं यह देखना है तो इतने यूरो का पैकेज लो। अब इतनी दूर कोई दोबारा तो आएगा नहीं तो मन मार के पेमेन्ट करके देखने जाएगा ही।‘‘

इस पर मीना श्रेष्ठ ने बोलीं ’’ कम्पनी ने अपने ब्रोशर में जो लिखा था वो तो वो दिखा ही रहे हैं ये तो एक्सट्रा है । मन हो तो देखिये नहीं तो न देखिये।‘‘

यशील, चंदन, वान्या, अर्चिता निमिषा सचिन, ऋषभ, संजना तो एक स्वर में हर जगह जाने के मूड में थे बड़ी आयु के लोग अवश्य अपनी जेब का आंकलन कर रहे थे। यही अंतर है युवा और परिपक्व आयु में। युवा अपने वर्तमान में जीता है तो परिपक्व व्यक्ति भविष्य के लिये सोचता है संभवतः यही अन्तर है नयी और पुरानी पीढ़ी में। पर यहाँ बड़ी आयु का उत्साह भी कम न था। आखिर काफी नाप-तौल और सोच-विचार के बाद अधिकांश लोग जाने के लिये तैयार हो गये ।

निमिषा ने अनुभा से पूछा ’’ आंटी आप चलेंगी कि नहीं ?‘‘

’’अरे क्यों नही चलूँगी इतनी दूर सोने के लिये थोड़े ही न आयी हूँ ‘‘अनुभा ने जोश में कहा।

’’ ये कोई बात हुई‘‘ निमिषा ने उत्साह से कहा।

’’ तुम्हारी आंटी उत्साह में तुमसे कोई कम नहीं हैं‘‘ रजत ने कहा ।

’’ तभी तो हम लोगों को उनके साथ मजा आता है ‘‘ ये संजना थी।

रजत ने घड़ी देखते हुए कहा ’’अरे भाई चलो लंच का टाइम हो गया है, ‘‘। सब लोग छठे तल पर पहुँच गये।

डाइनिंग हाल में फल, मेवे, कान्टीनेन्टल डिशेज से ले कर भारतीय खाना और डिसर्ट तक, इतनी विविधता थी कि समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या खाया जाये ।

सभी लोग ब्रेकफास्ट के लिये आ चुके थे। अर्चिता प्लेट ले कर क्या ले और क्या न ले सोच ही रही थी कि अनुभा ने देखा यशील एक प्लेट में आमलेट और पुडिंग ले कर आया और अर्चिता से अदा से बोला ’’ मैं आपके लिये ले आया। ‘‘

इस पर अर्चिता ने झिझकते हुये कहा ’’ सारी मैं इतना हेवी नहीं खाती प्लीज आप खाइये ‘‘। फिर बोली ‘‘वैसे आय एम थैन्कफुल कि आप मेरे लिये प्लेट ले कर आये।’’

यशील ने अदा से कहा ‘‘अरे आप कहिये तो मैं रोज आप के लिये प्लेट लगा दूँ ’’।

यशील की यह मोहक अदा अर्चिता का तन मन भिगो गयी। अभी वह उसी नमी को अपने अंदर संजो रही थी कि वहाँ वान्या आ गई उसने यशील से प्लेट लेते हुए कहा ’’ आई डोन्ट माइन्ड ।‘‘

यशील ने झुक कर कहा ’’ माई प्लेजर, वैसे आपको कान्शस होने की जरूरत भी नहीं है ।‘‘

यशील ने बात बहुत धीरे से कही थी पर अर्चिता की तो सारी इन्द्रियाँ इधर ही लगी थीं तो उसे तो सुनाई पड़ना ही था ।उसके चेहरे पर खिलखिलाती उजली धूप पर अचानक एक बदली सी छा गयी। सच तो यह था कि उसे अब पश्चाताप हो रहा था कि कि उसने यशील को मना क्यों कर दिया, एक दिन खा ही लेती तो क्या हो जाता। पर अब तो तीर तरकश से निकल चुका था।

अधिकतर लोगों ने एक प्लेट में इतना-इतना खाना भर लिया था कि लगता था अगले कई दिन तक पता नहीं खाना मिलने वाला है कि नहीं । खाने के बाद अनुभा को सुस्ती आने लगी, उसका मूड केबिन में जा कर एक झपकी लेने का था, पर रजत ने कहा ’’हमें चार बजे माइकोनास के लिये निकलना है, अगर हम सोने गये तो आलस्य आ जाएगा और जाने का मन नहीं होगा।‘‘

बात सही थी तभी उसे एक आइडिया आया उसने कहा ’’चलो ऊपर डेक पर चल कर सागर का नजारा लेते हैं ।‘‘

अनुभा और रजत आठवें यानि कि सबसे ऊपर के डेक पर गये । अनुभा ने देखा निमिषा और सचिन टाइटेनिक के हीरो-हीरोइन, जैक और रोज की तरह हाथ फैला कर डेक के एक सिरे की रेलिंग पर खड़े थे । अचानक अनुभा की दृष्टि वहीं खड़ी अर्चिता पर पड़ी, वह निर्मिमेष यशील को देख रही थी। निमिषा और सचिन को देख कर शायद अर्चिता और यशील का मन भी वैसा रोमांटिक पोज़ देने का मन हो गया था, यशील ने भी अर्चिता को देखा उसकी आंखों में शरारत झलक रही थी, दोनों एक दूसरे को देख कर आँखों ही आँखों में मुस्करा दिये।कहीं कुछ अंकुरित होने लगा था। इतना सुन्दर दृश्य शीतल बयार और दो युवा मन, थाती उर्वरा और बीज सभी कुछ तो था अंकुरण तो वांछित ही था पर झिझक का आवरण उनके मध्य आ कर मनचाही करने से रोक रहा था यशील बात तो अपने साथी चंदन से कर रहा था पर उसकी दृष्टि घूम फिर कर अर्चिता पर आ टिकती थी, ऐसा ही कुछ हाल अर्चिता का था, उसकी मम्मी ने उसे पुकारा ‘‘ अर्चिता देखो इधर दूर दूर तक फैला सागर कितना सुंदर लग रहा है ।’’

पर अर्चिता तो सुन कर भी नही सुन रही थी । वह किसी न किसी बहाने से एक अन्जाने आकर्षण के डोर से बँधी हुई, यशील के चारों ओर ही चक्कर लगा रही थी। चारों ओर दूर दूर तक सागर में लहरें मचल मचल कर अठखेलियाँ कर रही थीं उसका नीला रंग आकाश के रंग का प्रतिबिम्ब सा लग रहा था । तेज गति से चलती हवाएँ तन-मन दोनों का प्रफुल्लित कर रही थीं।

अनुभा ने दृष्टि उठा कर देखा तो ऐसा प्रतीत हुआ मानों ईश्वर ने कोई सुंदर पेन्टिंग बनायी हो। क्रूस के चारों ओर पानी की लहरें अछखेलियाँ कर रही थीं तथा उसके चारों ओर अर्द्ध चंद्र आकार मे द्वीप दिखाई दे रहे थे और उनका जहाज उनके केन्द्र की ओर बढ़ रहा था । सुमित ने बताया था कि ग्रीस में लगभग 3300 छोटे-छोटे द्व़ीप हैं, कुछ बसे हुये हैं तो कुछ वीरान हैं। उन्हीं में से एक छोटा सा द्वीप माइकोनॅास भी है जो लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। सब वहीं जा रहे थे।

दूर से ही एक द्वीप दिखाई पड़ने लगा, बिल्कुल किसी फिल्म के लिये बनाये हुए सेट सा दृश्य था। छोटे-छोटे सफेद घर जिनके दरवाजे खिड़कियां नीले और अधिकांश घरों में ऊपर गोल गुम्बद थे । सागर से घिरा छोटा सा द्वीप, एक समान बने हुए घर ओैर दूर से दिखाई पड़ती पवन चक्कियाँ किसी को आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम थे। कुछ ही देर में सब द्वीप पर पहुँच गये, अपना-अपना आई कार्ड स्वैप करके सभी लोग क्रूस से बाहर पोर्ट पर आये और बस से माइकोनॅास पहुँच गये।

महिम ने उतरते ही कैमरा ट्राईपाड पर रखा और चारों ओर दृश्यों का निरीक्षण करने लगा। फिर मान्या से बोला ’’ डार्लिंग थोड़ा साइड पोज दो ‘‘।

मान्या तिरछी हो कर खड़ी हुई तो बोला ’’ऐसे नहीं फेस सीधा करो ‘‘।

मान्या कुछ सेकेंड खड़ी रही पर महिम का कैमरा सेट ही नहीं हो रहा था, मान्या खीज कर बोली ’’रहने दो हमें नहीं खिंचवानी फोटो‘‘ वह गुस्से में पैर पटकती वह आगे बढ़ गयी।

तभी सुमित आ गया उसने कहा ’’ आप लोगों के पास चार घंटे का समय है, यह छोटा सा द्वीप है आप लोग घूम कर यहीं आ जाइयेगा’’।

सब लोगों ने एक द्वार से माइकोनास में प्रवेश किया । सागर की लहरों के किनारे शीतल हवाएँ तन ही नहीं मन को भी छू रही थीं । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों किसी चलचि़त्र की मायावी नगरी में पहुँच गये हैं। वहाँ सड़कें पत्थर के टाइल्स से बनी थीं जहाँ के छोटे-छोटे घर किसी स्वच्छ विकसित और आदर्श गाँव की अनुभूति दे रहे थे। घूमते-घूमते वो सँकरी गलियों में पहुँच गये जहाँ छोटी-छोटी दुकानें और रेस्ट्रां थे। चक्कर लगाते हुए वो थोड़ी ऊँचाई पर पहुँच गये वहाँ एक चर्च और पवन चक्की थी। सुमित ने बताया था कि यह चर्च विश्व प्रसिद्ध है इसका नाम पैरापर्शियन है । चर्च वास्तव में अलग ही वास्तुशिल्प का था उसमें एक घंटा लगा था जिस पर सूर्यास्त के समय जब सूर्य की रश्मियाँ पड़ती हैं तो वह चमकता है, यह दृश्य लुभावना होता है ।

संजना बोली ’’ यहाँ कितना सन्नाटा है ।‘‘

’’अरे यहाँ पर अधिकतर तो नाइट क्लब हैं इसीलिये सब दिन में सोते हैं और रात भर जागते हैं ‘‘ ऋषभ ने बताया ।

’’अरे फिर तो हम दिन में बेकार आये‘‘ सचिन ने चुटकी ली तो निमिषा तुनक कर बोली ’’ हाँ क्यों नही सबसे पहले तो तुम्हारा ही मन हो रहा होगा नाइट क्लब जाने का ‘‘।

इस पर सचिन बोला ‘‘ओफ्फो तुम्हारे सामने तो मजाक भी नहीं कर सकते, वैसे मैं तुम्हे बता दूँ कि नाइट क्लब से जादा यहाँ गे क्लब हैं ।‘‘

’’तब तो हम सेफ हैं ‘‘ निमिषा बोली, तभी पीछे से आते रजत को देख कर झेंप गयी और बोली ‘‘ जस्ट जोकिंग ।’’

सच में द्वीप इतना छोटा था कि चक्कर लगा कर उन्होने जहाँ से गली में प्रवे श किया था, वहीं पहुँच गये थे।

तभी बदहवास सी वान्या वहाँ आयी और उन्हें देख कर बोली ’’आंटी आपने अर्चिता को देखा है ?‘‘

’’नहीं क्यों क्या हुआ‘‘?

‘‘आंटी अर्चिता भी नहीं दिखाई पड़ रही है और यशील भी पता नही कहाँ है‘‘।

‘‘अरे वो कोई बच्चे थोड़े ही न हैं, वैसे भी यह द्वीप इतना छोटा है कि कोई खो नहीं सकता तुम परेशान मत हो ‘‘ अनुभा ने कहा।

वान्या बिना उसकी बात की प्रतिक्रिया दिये चली गयी, पर निमिषा बोली ’’आंटी वो दोनांे बच्चे नहीं है यही तो वान्या की चिंता है ।’’

’’उस पर मुश्किल ये है कि वान्या भी बच्ची नहीं है, यानि कि मामला ट्राइंगिल का है ‘‘ वह आँख दबा कर बोली।

संजना ने भी हाँ में हाँ मिलाई। उन दोनों का यशील के प्रति आकर्षण ग्रुप के सभी लोगों के ध्यान में आने लगा था। यह सच था कि वान्या की व्यग्रता उसके मन के भावों की चुगली कर रही थी।

घूमते-घूमते उन्हे एक मादक युवती के चित्र वाले नृत्य क्लब का बोर्ड्र लगा दिखाई दिया । निमिषा और संजना उसके आगे खड़े हो कर फोटो खिंचवाने लगीं। संजना बोली ‘‘ आंटी आप भी आइये’’ पर अनुभा को अपनी आयु को देखते हुए कुछ शोभनीय नहीं लगा अतः उसने कहा ‘‘ नहीं नहीं तुम्ही लोग खिंचवाओं ’’।

सचिन बोला आंटी ये लोग कहीं भी फोटो खिंचवाएं तो ठीक है पर यदि हम गलती से भी कह देते कि इस बोर्ड के साथ मेरी फोटो ले लो तो ये नाराज हो जाती’’।

‘‘ वो तो है ही, हम लोग लड़कियाँ हैं तुम्हे इसके साथ फोटो खिंचवाना अच्छा नहीं लगेगा’’

‘‘देखा आंटी मैं क्या कह रहा था ’’।

अनुभा ने कहा ‘‘ये तो गलत है निमिषा सचिन को भी अवसर मिलना चाहिये अपने मन की फोटो खिंचवाने का ’’।

‘‘ चलो आओ तुम भी क्या याद करोगे खड़े हो मैं लेती हूं तुम्हारी फोटो ’’ निमिषा ने नाटकीय उदारता दिखाते हुए कहा, पर सचिन आगे बढ़ गया।

अनुभा ने संजना से कहा ‘‘ तुमने देखा यहाँ कई घरों के सामने बिल्लियाँ बैठी हैं जो पालतू लग रही हैं, लगता है यहाँ लोग बिल्ली बहुत पालते हैं ।’’

‘‘ हाँ और ये बिल्लियां काफी हृष्ट पुष्ट भी हैं ’’ संजना ने अनुभा की बात की पुष्टि की।

उस माया नगरी में घूमते घूमते कब चार घंटे व्यतीत हो गये उन्हे पता भी नहीं चला ।

सब वापस क्रूस के लिये चल दिये। तभी उन्हे वान्या आती दिखायी दी अनुभा ने पूछा ‘’क्या हुआ अर्चिता और यशील मिले?’’

वान्या ने उसका प्रश्न अनसुना कर दिया। उसके मन में तो एक ही विचार उमड़ रहा था कि चाहे जो भी हो उसे यशील से आत्मीयता बढ़ानी ही होगी । वह पहले उससे मिली है उसका ही अधिकार है यह अर्चिता पता नही बीच में कहाँ से आ गयी।

क्रमशः--------------

अलका प्रमोद

pandeyalka@rediffmail.com