गांव से लौटकर Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • जंगल - भाग 12

                                   ( 12)                       ...

  • इश्क दा मारा - 26

    MLA साहब की बाते सुन कर गीतिका के घर वालों को बहुत ही गुस्सा...

  • दरिंदा - भाग - 13

    अल्पा अपने भाई मौलिक को बुलाने का सुनकर डर रही थी। तब विनोद...

  • आखेट महल - 8

    आठ घण्टा भर बीतते-बीतते फिर गौरांबर की जेब में पच्चीस रुपये...

  • द्वारावती - 75

    75                                    “मैं मेरी पुस्तकें अभी...

श्रेणी
शेयर करे

गांव से लौटकर

गांव का आख़री दिन बहुत अजीब सा अकेलापन में शामिल कर लेता है। रात में ही दिमाग से घर में बिताया समय खत्म हो चुका होता है। अगली सुबह लगता हैं, घर के बाहर शहर मेरा इंतजार कर रहा । आज सुबह अचानक नींद से उठकर समय देखा 8 बज चुके थे। जल्दी से तैयार होकर आंगन पर पंहुचा। सुबह एकदम खाली लग रही थी। यात्रा से वापिस लौट जाने वाले दिन की सुबह हमेशा बदली हुई रहती है। जब दो दिन पहले गांव पंहुचा था सुरज की रोशनी में अलग चमक थी। हवां मन को खुश कर रही थी। बादल आकृति बनाते हुए मेरे स्वागत में थे। शायद उसे मेरा आना और जान ठीक तरह से पता होगा। इसलिए अब हवां भी अपनी दिशा से ठीक विपरित चल रही है। आकाश में बादल की कोई आकृति नहीं बना रहा । धूप की चमक मानों कह रही हो हमें थोड़ी देर में यहां से निकलना है। अगर इस वक्त कह देता आज यह यात्रा नही करूँगा तो क्या सुबह कल की तरह सामान्य हो जाती ?

अक्सर शहर के लिए गांव से जल्दी निकल जाता हूँ । ताकि समय से रूम पहुंच सकू। गांव छोड़ते वक्त एक बार सोचा था की ऐसी कोई जगह छुटी तो नहीं जहां दो दिनों में गया ना हूँ ? भीतर से आवाज आई नहीं। मुस्कुरा कर गाड़ी चलाते हुए गांव से निकल गया। रास्ते में बार-बार घंडी देख रहा था। जैसे मुझे समये से पहले रूम पहुंचना है। नहीं पहुंचने पर एक सच पकड़ा जाएगा। एक घंटे तक खुद से बाते करते हुए शहर पहुंचा। रूम की चौथट में खंडे होकर जब समय देखा 9:30 बजे थे और मैने राहत की सांस ली। जेब से बिना शोर करे रूम की चाबी निकाली और चोरों की तरह उसे खोलने लगा। मानों अंदर व्यक्ति सोया है वह उठ ना जाए इसकी सावधानी मैं बरत रहा हूँ । दरवाजा को बिना आवाज किए धीरे से खोला फिर बंद किया।दबे पाँव रूम के उस तरफ बढ़ा। बिस्तर की ओर देखा मैं अभी भी सोया हुआ था। जब रात के अंधेरे में दो दिन पहले बिना बताए गांव चला आया था।

यह बिलकुल वैसा ही था जैसे रात में घर से निकलने पर जब सुबह घर लौटने पर मां को देखकर खुश होता था की उन्हे अब कभी पता नहीं चलेगा की मैं रातभर घर से बाहर था। रूम का सामान बिखरा पड़ा था। 20 मीनट में सारा बिखरा हुआ पुरानी जगह पर रख दिया। अब रूम दो दिन पहले की तरह हो चुका था। सारे बदलाव ठीक हो चुके थे। तभी विचार आया बाहर तो आसमान पूरा बदला हुआ है कही भीतर का व्यक्ति जो अभी सो रहा है यह देखकर मुझे पकड़ ना ले ! इस डर से भागने बिस्तर में सो गया। जैसे आंख बंद हुई आंखों के सामने गांव की कुछ जगह आने लगी जिसे मैंने दो दिनों तक करीब से जिया था। जैसे ही 10 बजे बाहर का व्यक्ति जाग उठा। उस वक्त भीतर से गहरी निंद में सोया था।

उसने अचानक कहां, आज सपने गांव को देखा। यह सुनते ही मेरे आंख खुल गई की कहीं उसे पता तो नहीं चल गया मैं गांव गया हुआ था?उत्सुकता से पुछा सपने में क्या देखा? उसने कहां, अपना घर, दुकान और हमेशा की तरह अपनी एकांत जगह पर बैठकर बहते पानी को जाते हुए देखा रहा था। और क्या देखा? कुछ चिड़िया शरीर में शामिल हो रही थी मनो वह एक कहानी हो ! और दोस्त? उनसे नहीं मिला। यह सुनकर इच्छा हो रही थी उसे कह दूँ मैंने भी यह समय जिया है। अफ़सोस था मैंने वह यात्रा अकेले तय की थी। वह बहुत खुश था की उसने सपने में अपना गांव को देख लिया है। खंडे होकर उसने खिड़की से पर्दा हटाया। और मुझे लगा अब मैं पकड़ा जाऊंगा। तभी आसमान से हवां कमरे में प्रवेश करनी लगी उसकी सुगंध कह रही थी यह दफ्तर जाने वाली खुशबू है। हवां ने मुस्कुराते हुए कहा, घबराओ मत मैंने तुम्हे बचा लिया है। मुझे पता है की तुम गांव से अभी-अभी लौटे हो। मैंने सारा आसमान दो दिन पहले की तरह कर दिया है जैसे तुमने उस दिन चुपके से शहर छोड़ा था।

बाहर के व्यक्ति के लिए यह वर्तमान पहले की तरह था। वह ख़ुशी-ख़ुशी दफ्तर जाने की तैयारी कर रहा था। उसे देख मैं भी अपने पुराने जीवन की व्यस्ता घूल मिल गया। असल में भीतर के व्यक्ति ने सपने में जो गांव देखा था मैंने उसे वर्तमान में जिया है। फर्क इतना था सपने में उसे गांव से लौटता हुआ व्यक्ति नजर नहीं आ रहा और मुझे वही नजर आ रहा था। शुरूआत से गांव की यात्रा में बाहर और अंदर का व्यक्ति कभी यात्रा में शामिल नहीं हुए, जिस दिन ऐसा हुआ शहर हमेशा के लिए छुट जाएगा। खैर..😊