वसुंधरा गाँव - 2 Sohail K Saifi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वसुंधरा गाँव - 2

रेस्टोरेंट में घुसते ही इन्द्र और भानु देखते है। एक आदमी रेस्टोरेंट के मालिक से बेहस कर रहा था उनके बीच गरमा गर्मी इतनी अधिक हो गई थी कि किसी भी पल हातापाई हो जाती मोके की गंभीरता को भाँपते हुए इन्द्र और भानु दोनों बीच में आ गए। और हालातों को संभालते हुए। लड़ाई का कारण पूछने लगे जिस पर पता चला कि बात केवल इतनी सी थी कि जो कुछ वो व्यक्ति प्रति दिन खाने में लेता था उसका उलट आज उसको परोसा गया। मगर रेस्टोरेंट मालिक का कहना था कि वो रोज जो कुछ खाते है। वही आज भी उसको परोसा गया था, मगर पता नही क्यों आज ये झगड़ा कर रहा है।
खेर इतनी छोटी बात पर लड़ाई करना सही नही है। बोल कर वो दोनों को इन्द्र और भानु शांत करते है। फिर इन्द्र और भानु दोनों अपनी रेगुलर सीट पर आ कर बैठ गए।

भानु हँसते हुए बोला " लगता है। आज का दिन ही अजीब है। सुबह से अजीब अजीब चीजे हो रही है।

अभी भानु और इन्द्र बातें कर ही रहे थे कि एक वेटर उनकी टेबल पर उनकी रोज़ाना खाई जाने वाली चीज़े लाता है।
जब इन्द्र और भानु की नज़र उन चीज़ों पर पड़ती है तो।

इन्द्र तो उन को खाने लगता है। मगर भानु का पारा हाई हो जाता है। वो चिल्ला कर रेस्टोरेंट मालिक को आवाज़ लगाता है। और उसको अपनी टेबल दिखाता हुआ पूछता है ये क्या है। जो मैं रोज़ ऑडर करता हूँ वो क्यो नही भेजा,
उसकी बात को काटता हुआ इन्द्र बोला भानु वही तो है जो हम खाते हैं।
भानु बोला " यार मुझे नही पता होगा क्या हम हर रोज़ क्या खाते है, ले जा यार इन सब को यहां से।
और बड़बड़ाता हुआ भानु " सारा मुंड खराब कर दिया।

इन्द्र और भानु वहाँ से कुछ भी खाए बगैर चले जाते है।

शायद भानु के लिए ये सभी घटनाओ का इतना अधिक महत्व नही था तभी उस पर कोई खास प्रभाव नही पड़ रहा था।
मगर इन्द्र इन सभी घटनाओं से अत्यधिक प्रभावित हो चुका था इसी कारण रात भर वो इन सब के बारे में ही सोचता रहा और अपनी नींद भी नही ले पाया।

अगले दिन इन्द्र अपने सही समय पर थाने पहुँच जाता है। थाने में इन्द्र को वो कल वाली महिला बैठी मिलती है। और इन्द्र को देख हाथ जोड़ कर अपने बेटे को खोज निकालने की विनती करने लगी। इन्द्र के सर वैसे ही काम का भार अधिक था, ऊपर से नींद पूरी नही हुई थी। इस कारण इन्द्र चिड़चिड़ा सा हो कर उस महिला को असभ्य रूप से डांट फटकार लगा कर घर भेज देता है। महिला के जाने के बाद इन्द्र को अपने महिला के साथ किए दुर्व्यवहार पर ग्लानि होने लगी, वो मन ही मन सोचता है। वो ऐसा नही है। वो ऐसा कभी था ही नही, जैसा आज हो गया था, इस पर वो खुद को शांत कर उस महिला के पास खुद जाने का इरादा कर लेता है। उसको महिला से अपने बुरे बर्ताव पर मांफी मांगने में भी कोई झिझक नही होती।


पुलिस स्टेशन का थोड़ा कागजी काम निपटा कर, इन्द्र उस महिला का पत्ता लेकर उसके घर के लिए निकल जाता है। संयोगवश वो महिला अपने घर पर नही थी उसके घर पर ताला लगा था।
ये देख कर इन्द्र उसके पड़ोसियों से इस महिला के बारे में जानने की कोशिश करता है।
महिला के पड़ोस में पूछताछ के दौरान इन्द्र को जो पता लगा वो महिला की कहानी के बिल्कुल उलट था।
असल में लोगो का कहना था चार साल पहले महिला के बेटा का एक आदमी द्वारा अपहरण किया गया था। लेकिन अफसोस कि पुलिस की लापरवाही के चलते वो लड़का मारा गया।
अपने एक लोते बेटे की मौत का सदमा न सहन कर पाने के कारण वो चुप चुप रहने लगी, और उसने चार साल ऐसे ही खामोशी से काट दिए। लेकिन पिछले दो दिनों से उसको ना जाने क्या भूत सवार हो गया, की हर किसी से अपने बेटे के बारे में पूछती रहती है। और मानने को तैयार ही नही की उसका बेटा चार साल पहले किडनैपिंग के चलते मारा गया था।

लोगों का मानना था कि वो पागल हो गई, और अब इन्द्र को भी यही लगने लगा। पर फिर भी बात को पुख्ता करने के लिए वो वापिस आ कर, अपनी पुलिस चौकी के चार साल पुराने रिकॉर्ड देखता है। जिन्हें देख कर इन्द्र को एक और झटका लगा।
पुलिस रिकॉर्ड और पड़ोसियों की बातें तो एक जैसी थी पर इन्द्र जब लड़के की फ़ोटो देखता है, तो ये वही राजेश होता है। जिसने इन्द्र को एक बार घर दिखाया था।
बस राजेश फ़ोटो में अपनी असली उम्र से थोड़ा छोटा लग रहा था। इन्द्र के पास जवाब नही होते, उसे लगता है। क्या उस महिला की तरह वो भी मानसिक रोग का शिकार हो गया है।

एकाएक इन्द्र के जेहन में उसकी राजेश के साथ कि यादों का चलचित्र सा चलने लगा।
उस की बातों को याद कर इन्द्र मन ही मन बोला " नही ऐसा नही हो सकता, ना तो ये मेरा भ्रम है। ना ही पागल पन, मुझे उसकी एक एक बात अच्छे से याद है। कितना ज़हीन कितना होशियार लड़का था उसकी ज़बान पर तो लक्ष्मी का वास था क्या निराला और मनमोहक अंदाज़ था उसका, बड़ा ही मिलनसार और खुशमिजाज लड़का था, उसके इसी व्यवहार के कारण मैं अनुभवी लोगों को छोड़ कर उस के द्वारा मकान लेने को तैयार हुआ था। उसकी अपने वश में कर लेने वाली बातें, उसका मट्टी को भी सोना बता कर बेच देने का गुण, आज कल कम ही नोजवानों में देखने को मिलता है। ऐसे तेज दिमाग के लड़के को मैं कैसे भूल सकता हूँ।




जहाँ आज का पूरा दिन इन्द्र ने इस प्रकार की उलझनों में पड़ कर गुजार दिया, वही भानु को अपने ही बच्चे की निर्मम हत्या करने वाले माता पिता से पूछताछ के लिए नियुक्त किया गया।

भानु ने एक एक कर दोनों से बात की किन्तु अलग-अलग कमरे में होने पर भी उनका जवाब बिल्कुल एक जैसा और सटीक था मगर एक पल ऐसा भी आया जब भानु ने उन दोनों के व्यवहार में अंतर पाया।

सबसे पहले भानु पिता के पास गया उसने पूछा " जहाँ तक मुझे पता चला है। तुम एक बेहतर पिता हुआ करते थे, तुम्हारे लिए तुम्हारी संतान ही सबकुछ थी। फिर ऐसा क्या हुआ जो तुमने इतने ठोस कदम लिए इतने घिनोने अपराध को अंजाम दिया।

पिता " मैंने कोई अपराध नही किया है। मैंने केवल एक शैतान का वध किया था।

भानु " झुठ...... तुमने अपने 6 वर्ष के मासूम बच्चे की दर्द नाक हत्या की थी। क्योंकि तुम एक मानसिक रोगी हो।

पिता " मेरा बेटा आज से ठीक डेढ़ साल पहले अपने स्कूल की एक बस दुर्घटना में मारा गया था, जिसका सीधा सा अर्थ है। कि वो मेरा बेटा नही था जिसकी मैंने हत्या की थी।

भानु " तुम ये बात शुरू से कहते आ रहे हो इसलिए हमने उस स्कूल में छान बिन शुरू की तो ये पता चला कि आज से ठीक डेढ़ साल पहले एक बस दीर्घटना हुई तो थी। जिसमें 12 मासूम बच्चों की जान गई, मगर उनमें से एक भी तुम्हारा बेटा नही था। तुम्हारा बेटा उस बस में हो सकता था, अगर वो शरारत मे अपने स्कूल के एक टीचर से पहले ही बीमारी के बहाने से छुट्टी नही लेता तो,

यहाँ तक कि बातों में भानु को दोनों पति पत्नी का व्यवहार एक जैसा मिला,लेकिन इस बात को सुन कर दोनों के व्यवहार में अंतर आ गया। जैसे पत्नी ने इस पर पूछा " तो हमें अपने बेटे की पिछले डेढ़ साल की कोई भी बात याद क्यों नही है।

जवाब में भानु बोला " ये एक दुर्लभ बीमारी के कारण होता है। जिसमे अचानक हमारी कुछ समय की यदश गायब हो जाती है। आपके केस में आपके साथ आपके बेटे की डेढ़ साल की सभी यादें गायब हो गई होंगी।

इस बात को सुन माता को विश्वास हो जाता है कि उसको कोई मानसिक रोग है। फिर उसको अपने बेटे के वो शब्द याद आते है। जो उसने मरते समय कहे थे। माँ मुझे मत मारो मुझे डर लग रहा है। इतने में उसका पिता बच्चे के एक पैर पर कुल्हाड़ी मरता है। बच्चा दर्द से करहता हुआ चीख चीख कर बोलता है। माँ मुझे दर्द हो रहा है। माँ मुझे मत मारो मैं तो आपका प्यारा बेटा हूँ। और वो दोनों उसकी एक नही सुनते और बड़ी निर्दयता से उसकी हत्या कर देते है।
इस बात को याद कर माता अपने आपे से बाहर हो गई। उसने अपने ही बच्चे के साथ वो कर दिया जो एक दुश्मन भी दुश्मन के बच्चे के साथ नही कर सकता, वो फुट फुट कर पगलों की तरह रोने लगी।

मगर वही जब पिता को भानु द्वारा ये बात बताई गई तो उस पर कोई फर्क नही पड़ा बल्कि उलटा वो क्रोध से भर कर भानु की ही गर्दन पकड़ कर दीवार से मिला कर उसका गला दबाने लगता है। और बोलता है मैं पागल नही हूँ ना ही मुझे कोई दिमागी बीमारी है तुम सब मीले हुए हो वो मेरा बेटा नही था।

इतने में कुछ अन्य पुलिस कर्मी वहाँ आकर भानु को छुड़ाते है। और उस बच्चे के पिता को नींद के इंजेक्शन से बेहोश कर उस पर काबू पाते है। भानु अपनी रिपोर्ट सबमिट कर देता है। जिसमें वो माता पिता दोनों को मानसिक रोगी घोषित करवा कर एक पागल खाने भिजवा देता है।
खास कर अपनी रिपोर्ट में भानु बच्चे के पिता को अधिक घातक घोषित करता है। जिसको चौबीसों घंटे बंद कर के रखने की भानु मांग करता है।


यहाँ पर गौर करने वाली बात ये थी कि मान भी लिया जाए कि वो दोनों पागल थे पर एक ही समय में एक ही जैसी दिमागी बीमारी का लगना जिसमें एक ही प्रकार की यदश यानी उनके बेटे के जीवित होने की यदश दो व्यक्तियों में एक साथ होना बेहद अटपटा था, जिसको मानना किसी के लिए भी नामुमकिन है। तो कैसे भानु के दिमाग मे ये बात नही आई,
अब भानु के दिमाग मे या तो ये बात नही आई या फिर जान बूझ कर भानु ने इस बात को अनदेखा किया इसका खुलासा हमें आगे के भाग में होगा।