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आघात - 41

आघात

डॉ. कविता त्यागी

41

धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था । दो वर्ष हो चुके थे, किन्तु अभी तक कोर्ट के माध्यम से पूजा को और उसके बच्चों को रणवीर की ओर से गुजारा-भत्ता नहीं मिल पाया था । एक बार न्यायालय के द्वारा इस विषय में निर्णय दिया जा चुका था, किन्तु रणवीर ने उसमें यह आपत्ति करके उस निर्णय को रुकवा दिया था कि निर्णय के दिन वह बहस के समय कोर्ट में उपस्थित नहीं था । पूजा रोज-रोज न्यायालय जाने में कठिनाई का अनुभव करती थी । वह वहाँ जाकर अपने बहुमूल्य समय और धन का दुरुपयोग भी नहीं करना चाहती थी । लेकिन अब वह जहाँ तक पहुँच चुकी थी, वहाँ से लौटना भी उसको उचित नहीं सूझता था । अतः वह प्रत्येक निर्धरित तिथि को न्यायालय में उपस्थित होती थी।

कोर्ट में केस लड़ते-लड़ते पूजा और रणवीर को दो वर्ष हो चुके थे । जब वे दोनों कोर्ट-कैंपस में आमने सामने होते थे, तब उनके बीच में परस्पर कटु-संवाद या अप्रिय व्यवहार न होकर उनकी मूक वाणी में परस्पर सहयोग तथा सद्भाव व्यक्त होता था अथवा दोनेां के बीच शान्ति का वातावरण बना रहता था । कोर्ट में बहस के समय भी उनमें से किसी ने कभी भी एक दूसरे के ऊपर कटु और अपमानजनक शब्दों से छींटाकशी नहीं की । न्यायाधीश भी उनके इस व्यवहार से प्रभावित थे, इसलिए बार-बार उनके झगडे़ के कारण की तह में जाने का प्रयास करते थे। पूजा उनके प्रत्येक प्रश्न के उत्तर में यही बताती थी कि उसे अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए अपने पति की सामर्थ्यानुसार न्यूनतम धन अवश्य चाहिए । वह धन, जिस पर उसका और उसके बच्चों का कानूनी और सामाजिक अधिकार बनता है, और रणवीर का कत्र्तव्य है कि वह अपने बच्चों के सफल, उज्जवल भविष्य के लिए उस धन को खर्च करे, परन्तु वह ऐसा नहीं करता है ! न्यायाधीश के यह पूछने पर कि यदि रणवीर अपने अर्जित धन को अपनी पत्नी तथा बच्चों के लिए खर्च नहीं करता है, तो किसके लिए करता है ? और क्यों करता है ? पूजा का उत्तर केवल इतना होता था कि इसका उत्तर स्वयं रणवीर ही दे सकता है। वह केवल इतना जानती है कि पिछले दो-तीन वर्ष से वह अपने बच्चों के पालन-पोषण, पढ़ाई-लिखाई का व्यय-भार स्वयं मजदूरी करके तथा अपने निकट सम्बन्धियों से ऋण लेकर उठाती रही है ।

इन दो वर्षों में प्रियांश बारहवीं कक्षा उतीर्ण कर चुका था । उसने अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था । वह अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आई.आई.टी. में प्रवेश लेकर इंजीनीयरिंग की पढ़ाई करना चाहता था । उसमें प्रवेश पाने के लिए वह एक वर्ष किसी अच्छे कोचिंग संस्थान में पढ़कर आई.आई.टी. प्रवेश-परीक्षा की तैयारी करना चाहता था ।

आज तक कोर्ट में रणवीर के साथ पूजा का सामान्य व्यवहार रहता था और प्रायः बातचीत भी होती रहती थी, इसलिए उसने प्रियांश को निर्देश दिया कि वह अपने पिता को यह शुभ समाचार दे कि उसने बारहवी कक्षा में अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है । प्रियांश अपनी माँ की प्रत्येक आज्ञा का पालन करता था, किन्तु आज उसने माँ की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए कहा कि वह किसी भी दशा में अपने पिता से सम्पर्क नहीं करेगा। उसने पूजा के समक्ष अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहा कि यदि उसके पिता को बेटे के प्रति अपने दायित्व का अहसास नहीं है, तो उसे भी पिता की आवश्यकता नहीं है । वह पिता का सम्बल लिये बिना भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। अपनी माँ को नकारात्मक उत्तर देते हुए उसके चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव उभर रहे थे कि उसके पिता ने उनके प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह किया होता, तो आज ऐसी स्थिति उत्पन्न न होती !

पूजा को अपने बेटे की प्रकृति का तथा उस समय उसके अन्तस् में उठने वाले तूफान का भली प्रकार आभास था, इसलिए अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने पर उसने प्रियांश पर न तो क्रोध ही किया, न ही उस पर पिता से सम्पर्क करने के लिए किसी प्रकार दबाव बनाया । परन्तु, दोनों बच्चों की पालन-पोषण और पढ़़ाई का व्यय-भार उठाने के पश्चात् अभी पूजा के पास इतनी बचत नहीं हो पायी थी कि प्रियांश को किसी अच्छे स्तर के कोचिंग सेन्टर मे भेजकर आई.आई.टी. प्रवेश-परीक्षा की तैयारी करा सके। अपनी इस समस्या के समाधनस्वरूप पूजा चाहती थी, प्रियांश की कोचिंग के लिए रणवीर से पैसा मिल जाए ! अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूजा ने स्वयं रणवीर को प्रियांश का परीक्षा-परिणाम - उसके कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने का शुभ समाचार देने का निश्चय किया, ताकि वह प्रियांश की आगे की पढ़ाई के विषय में रणवीर से चर्चा कर सके । एक बार चर्चा आरम्भ करने के पश्चात् वह प्रियांश के लक्ष्य के विषय में बताकर रणवीर से यह निवेदन निःसंकोच कर सकती थी कि उसके पास कोचिंग कराने के लिए पर्याप्त धन नहीं हैं। पूजा को आशा थी कि बेटे द्वारा प्रथम स्थान प्राप्त करने की सूचना से रणवीर उसकी कोचिंग क्लासेज में सहयोग अवश्य करेगा !

अपनी इस आशा और विश्वास से प्रेरित होकर पूजा ने रणवीर के मोबाइल पर सम्पर्क किया -

‘‘हैलो !’’

‘‘हाँ ! बोलो, क्या बात है ?’’ रणवीर ने रूखे स्वर में पूछा ।

‘‘आज बारहवीं कक्षा का परीक्षा-परिणाम घोषित हुआ है, आपको ज्ञात है ?’’

‘‘नहीं !’’ रणवीर का स्वर अभी भी रूखा था।

‘‘प्रियांश ने अपना परीक्षा-परिणाम अभी-अभी देखा है । बहुत प्रसन्न है आज प्रियांश ! आप भी सुनेंगे, तो फूले नहीं समाएँगे ! अपने विद्यालय में प्रथम-स्थान प्राप्त किया है आपके बेटे ने !’’

‘‘ठीक है ! प्रथम स्थान प्राप्त किया है, तो करता रहे ! मेरी बला से !’’

‘‘आपको प्रसन्नता नहीं हुई, बेटे का इतना अच्छा परिणाम जानकर ?’’

‘‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, किसी के अच्छे या बुरे परिणाम से !’’

यह कहकर रणवीर चुप हो गया। उसकी सपाटबयानी से पूजा को आज साहस नहीं हुआ कि वह प्रियांश के भविष्य की योजना के विषय में उससे बात को आगे बढ़ाए । अतः क्षण-भर बाद उसने भी सम्पर्क काट दिया । फोन का सम्पर्क कटते ही प्रियांश ने माँ से कहा -

‘‘मैं तो पहले से ही जानता था, पापा इस शुभ समाचार को सुनकर कैसी प्रतिक्रिया देंगे। परन्तु, आप हैं कि बीस वर्ष तक उनके साथ रहकर भी उनके स्वभाव को नहीं समझ सकीं !"

‘‘मैंने तेरे पापा से सम्पर्क इसलिए नहीं किया था कि वे तेरे परीक्षा-परिणाम को जानने के लिए उत्सुक थे । मैं उनसे इसलिए सम्पर्क करना अत्यावश्यक समझती थी कि वे तेरी कोचिंग फीस में कुछ सहयोग कर दें या कम से कम गुजारा भत्ता देने में तो कोई बाध न डालें, ताकि तेरी प्रवेश-परीक्षा की तैयारी सुचारू ढंग से हो सके !’’

‘‘मम्मी आप मेरी चिन्ता करना छोड़ दो ! और हाँ, भविष्य में पापा से हमारे लिए किसी प्रकार की आशा करके कभी सम्पर्क मत करना ! ‘मैं’ अब इतना बड़ा हो चुका हूँ कि अपनी पढ़ाई के लिए ट्यूशन करके कमा सकता हूँ ! समझीं आप !’’

प्रियांश ने अपने अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास करते हुए ‘मैं’ पर विशेष बल देकर कहा ।

‘‘ट्यूशन करके तू अपनी कोचिंग क्लास की फीस के लिए कमा सकता है ! लेकिन, उसके बाद तेरी इंजीनीयरिंग की पढ़ाई के लिए इतनी बड़ी धनराशि का प्रबन्ध कहाँ से होगा ? इस विषय में भी सोचा है कभी ?’’

मैंने सब कुछ सोच लिया है ! मैं कठोर परिश्रम करके तैयारी करुँगा ! जब मुझे मेरे परिश्रम का फल मिलेगा- मेरी अच्छी रैंक आयेगी, तब मुझे कोई भी बैंक एजूकेशन लोन देने के लिए तैयार हो जाएगा ! यदि आप पापा से सहायता माँगती रहीं, तो सहयोग के बजाय तनाव ही मिलेगा ! तब मैं अपनी तैयारी अच्छी तरह नहीं कर पाऊँगा !’’

प्रियांश के आत्मविश्वास और स्वाभिमान को देखकर पूजा का वह सारा तनाव दूर हो गया, जो कुछ समय पूर्व रणवीर की बातों से अनुभव हो रहा था । वह भी कब चाहती थी कि उसे रणवीर से प्रार्थना करनी पड़े ! अपने जीवन की स्वर्णिम आयु में वह अपने अस्तित्व को पति में विलीन करती रही थी - कभी मर्यादावश, कभी प्रेमवश, तो कभी मजबूरीवश ! लेकिन आज प्रियांश ने उसको एहसास करा दिया था कि अब वह किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रार्थना करने के लिए विवश नहीं है, जो उसके प्रति सद्भाव न रखता हो और उससे दूर भागता हो !

स्वाभिमान के धनी और अपनी कथनी-करनी को समरुप रखने वाले प्रियांश ने अपने घर पर ही आठवीं कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाना आरम्भ कर दिया और अपनी आई.आई.टी. प्रवेश-परीक्षा की तैयारी करने लगा। सुधांशु ने भी अच्छे अंको के साथ दसवीं कक्षा की परीक्षा इसी वर्ष उत्तीर्ण की थी । बड़े भाई को कठोर परिश्रम करते देखकर वह इतना प्रेरित हुआ कि उसने भी प्रथम कक्षा से सातवीं कक्षा तक के बच्चों को टयूशन पढ़ाना आरम्भ कर दिया। दोनों भाइयों को परिश्रम करके आत्मनिर्भर बनते हुए और आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम और लगन से अध्ययन करते देखकर पूजा अत्यन्त प्रसन्न थी । पूजा को इस बात का सन्तोष था कि पिता के नियन्त्रण के अभाव में भी उसके दोनों बच्चों पर ईश्वर की ऐसी कृपा रही है कि वे परिश्रम करते हुए सन्मार्ग पर चलकर उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे है !

प्रियांश और सुधांशु को कठोर परिश्रम करते हुए एक वर्ष पूरा होने के पश्चात् वर्ष के अन्त में उन्हें अपनी आशानुरुप फल प्राप्त हो गया। अपनी आशानुरूप सुधांशु ने ग्यारहवीं कक्षा में अपने विद्यालय में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था और प्रियांश ने आई.आई.टी. की प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक प्राप्त करके अपनी प्रतिभा का परचम लहरा दिया था । प्रियांश की सफलता से पूजा अत्यन्त प्रसन्न थी। उसने सुधाशु द्वारा मिठाई मँगवाकर अपने पड़ोसियों में बाँटी, किन्तु यह शुभ समाचार रणवीर को देना किसी ने आवश्यक नहीं समझा । प्रियांश और सुधांशु ने निश्चय कर लिया था कि वे अपने पिता को अपनी खुशियों में शामिल नहीं करेंगे । अपने निश्चय को उन दोनेां ने पूजा के समक्ष दोहराते हुए स्पष्ट किया था -

‘‘मम्मी जी ! हम ऐसे किसी भी व्यक्ति को यह शुभ समाचार नहीं देना चाहते हैं, जिसको हमारी सफलता से कोई फर्क नहीं पड़ता हो ! हमारी खुशियों में सम्मिलित होने का अधिकार केवल वही व्यक्ति रखता है, जो हमें स्नेह करता है, हमारी चिन्ता करता है और हमारे कष्टों को दूर करने का प्रयास करता है !’’

दोनों बेटों के निर्णय के अनुरुप पूजा ने रणवीर को किसी प्रकार की कोई सूचना नहीं दी । यद्यपि वह बेटों के मना करने के बावजूद भी रणवीर को प्रियांश और सुधांशु के परीक्षापफल का शुभ समाचार दे सकती थी और माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए दोनों बेटों में से कोई भी उसे रोकने का प्रयास नहीं करता, लेकिन पूजा ने ऐसा नहीं किया । एक बार उसके मन में आया था कि दोनों बेटे तो अभी अबोध हैं, अनुभव के अभाव में अभी सम्बन्धों के महत्व का ज्ञान नहीं है ! सम्बन्धों का निर्वाह करना या पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कितना आवश्यक है ? इस बात का इन्हें एहसास नहीं है, परन्तु अगले ही क्षण उसका मन ग्लानि से भर गया। वह सोचने लगी -

"आज बच्चों ने जो लक्ष्य प्राप्त किया है, वह उनकी अपनी उपलब्धि है ! इसमें रणवीर की प्रसन्नता या अप्रसन्नता का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? जब इन बच्चों को पिता के सम्बल की आवश्यता थी, तब वह इनके प्रति अपने कर्तव्यों से विमुख होकर इन्हें छोड़कर चला गया था ! अब यदि दोनों बेटों में अपने पिता के प्रति क्रोध है, तो इसमें अनुचित ही क्या है ? वैसे भी, रणवीर का विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता कि वह यहाँ आकर सबको प्रफुल्लित-प्रसन्नचित देखकर सुख और प्रसन्नता का अनुभव करेगा !"

रणवीर के विषय में इस प्रकार की बातें सोचते-सोचते पूजा को वह क्षण स्मरण हो आया, जब उसने रणवीर को प्रियांश की बारहवीं कक्षा के परीक्षा-परिणाम के विषय में सूचना दी थी कि उनके बेटे ने अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, तब रणवीर ने बेटे का उत्साहवर्द्धन करने के स्थान पर उपेक्षा-भाव प्रकट करते हुए कह दिया था कि उसे बेटे के प्रथम आने से कोई फर्क नहीं पडता है !

पर्याप्त समय तक पूजा के अन्तःकरण में रणवीर को लेकर तर्क-वितर्क चलते रहे । अन्त में वह अपने मन को यह समझाकर शान्त चित्त हो गयी -

‘‘अब बच्चे बडे़ हो गये हैं ! उन्हें अपने विषय में निर्णय लेने का पूर्णाधिकार है ! उन्होंने जो किया है, अपने विचार से ठीक ही किया होगा ! ऐसे अवसर पर मुझे उदास रहकर बच्चों की प्रसन्नता में अवरोधक नहीं बनना चाहिए, क्योंकि मेरी उदासी देखकर बच्चे भी उदास हो जाएँगें !’’

पूजा स्वयं को निर्दोष तथा बच्चों के व्यवहार का औचित्य सिद्ध करती हुई, मुख पर प्रसन्नता का भाव लेकर बच्चों के पास गयी । दोनों बच्चे अपने मित्रों के साथ मस्ती कर रहे थे । माँ को अपनी ओर आती हुई देखकर प्रियांश और सुधांशु दोनों आगे बढे़ और माँ को भी अपने मित्रों के साथ मस्ती में शामिल कर लिया । कुछ ही क्षणों में वहाँ पूजा को अनुभव होने लगा कि उसके बेटों और उनके मित्रों को माँ की उपस्थिति के कारण अनुशासनवश और शिष्टाचारवश उस अवसर का पूर्ण आनन्द लेने में संकोच हो रहा है । अतः पूजा वहाँ से आवश्यक कार्य का बहाना करके अपने कमरें में लौट आयी ।

अपने कमरे में आकर पूजा हारी-थकी-सी आँखें बन्द करके लेट गयी । पिछले कई दिनों से वह अपने सिलाई-उद्योग में इतनी अधिक व्यस्त थी कि आराम करने के लिए दिन में उसे जरा-सा भी समय नहीं मिल पाता था । आज भी वह अपरान्ह चार बजे तक उद्योग में कार्य करती रही थी । चार बजे जब प्रियांश ने उसको अपने प्रवेश-परीक्षा के परिणाम की शुभ सूचना दी थी, तभी उसने उद्योग से छुट्टी ली थी । थकावट के कारण पूजा के सिर में दर्द था और आँखों में नींद भी भरी हुई थी । लेटने के तुरन्त पश्चात् उसकी आँखों में नींद की एक मीठी-सुखदायक झपकी आयी थी, तभी उसके मनःमस्तिष्क में चिन्ताजनक-विचारों का एक ज्वार आया और उसकी नींद को उड़ाकर अपने शक्तिशाली अस्तित्व में आत्मसात कर लिया । वह उठकर बैठ गयी और गहरे चिन्ता के सागर में विचारों की तरंगों पर तैरने लगी । कुछ समय तक वह गम्भीर चिन्तन-मनन की अवस्था में बैठी रही, किन्तु शीघ्र ही वह उस चिन्ता से बाहर आ गयी । जाग्रत-सी होकर वह पुनः उस कमरे में गयी, जहाँ उसके दोनों बेटे अपने मित्रों के साथ मौज-मस्ती मनाते हुए नाच रहे थे ; बातें कर रहे थे और हँसी-ठिठोली कर रहे थे ।

पूजा ने अपने दोनों बेटों के निकट जाकर सस्नेह समझाते हुए उनसे कहा -

‘‘बेटा, बहुत मस्ती हो चुकी है ! चलो, अब चलकर आराम करो और कल क्या करना है ? इस विषय में योजना बनाओं !’’

‘‘मम्मी जी, कल हमें कुछ नहीं करना है ! कल हम आराम करेंगे और थोड़ी-सी मौज-मस्ती भी करेंगे ! पूरे साल हमने परिश्रम किया है, एक-दो दिन तो हमें हमारे फ्रैंड्स के साथ मस्ती करने दो ! प्लीज, मम्मी जी ! हमारी प्यारी मम्मी जी !’’

प्रियांश और सुधांशु दोनों एक स्वर में बालहठ दिखाते हुए विनम्रतापूर्वक बोले,तो पूजा उनकी बालहठ से अभिभूत होकर पुनः अपने कमरे में आकर लेट गयी और पुनः चिन्ता में डूबने-उतराने लगी। अपनी चिन्ता के अतिरिक्त इस समय पूजा की एक समस्या यह भी थी कि वह चिन्ता के कारण के विषय में अपने बेटों के साथ विचार-विमर्श नहीं कर पायी थी ।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com

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