बंद तालों का बदला - 2 Swati द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

श्रेणी
शेयर करे

बंद तालों का बदला - 2

निशा ने सारा दिन शॉपिंग की। फ़िर शाम को सारे दोस्त वाघा बॉर्डर पहुँचे । देश की सेना को देख प्रखर को अपने पिता की याद आई । सभी दोस्तों ने उसे गले लगाया और भारत माता की जय और वन्देमान्त्रम के नारे लगाते हुए सभी एक ढाबे में खाना खा रहे थे । रात हुई और घूमते-फिरते पता ही नहीं चला कि कब वक़्त गुज़र गया । और रात के बारह बज गए । जब होटल पहुंचे तो होटल के मालिक ने कहा कि-"आप सभी को रूम खली करना पड़ेगा । क्योंकि पुलिस आयी थी उनके कुछ लोग यहाँ पर ठहरना चाहते हैं । हमारी भी मजबूरी है, आप अपने आधे पैसे वापिस लेकर रूम ख़ाली कर दीजिये । असुविधा के लिए माफ़ी चाहता हूँ ।" यह कहकर होटल के मालिक ने सभी को कमरे का सामान खाली करने के लिए कह दिया । "यार ! हम इतनी रात को कहां जायेंगे ?" निशा ने कहा ।

"जाना कहा है? मिल जायगा कुछ, पहले यहाँ से बाहर तो निकले।" सुदेश ने कहा । "रात के 1 बज रहे है। कहाँ जायेंगे?" निशा फिर परेशान होकर बोली । "इसी का नाम तो रोमांच है"। विनय विपुल को गले लगाकर बोला ।

विपुल गाना गाते हुए जा रहा था कि 'रात बाकी बात बाकी' तभी सभी को चायवाले की दुकान नज़र आई । अरे ! वह देखो चायवाला और उसकी दुकान वहाँ चलते है, फिर देखते है कहाँ चलना है। सभी चाय की दुकान पहुँचे। "भैया पाँच कप कड़क चाय तो देना विपुल बोला । वही छोटी लड़की भी खड़ी सबको देख रही थी, पर प्रखर को उसकी आँखें घूमती हुई नज़र आयी । उसने एक दम ध्यान हटा लिया । "भैया कोई होटल मिल जाएगा । हम को मज़बूरी में अपना होटल खाली करना पड़ा है ।" विनय ने कहा। "चलना है तो हमारे घर चलो, वहाँ रात गुज़ार लेना।" चाय वाले ने चाय देते हुए कहा । सभी दोस्त मान गए पर प्रखर ने जाने से साफ़ इंकार कर दिया उसका दिल गवाही नहीं दे रहा था कि वो वहाँ कोई रात गुज़ारे। सबने उसे समझाया "यार! प्रखर रात की तो बात है फिर सुबह कही और निकल लेंगे।" विपुल ने कहा। "मुझे पहले से ही कुछ गड़बड़ लग रही है । मैं नहीं जा सकता । तुम्हें जाना है तो जाओ।" प्रखर गुस्से से बोला। देख! इनके घर जाकर तेरे मन का वहम भी दूर हो जायेगा। और हमारी रात भी आसानी से कट जाएँगी।" सुदेश ने भी यहीं कहा। "हाँ ज़िद न करो, प्रखर शॉपिंग करके मैं बहुत थक गयी हूँ ।" निशा ने भी यही कहा । न चाहते हुए भी प्रखर मान गया ।

सब के सब चाय वाले और उस छोटी सी लड़की के साथ चल दिए । रास्ते में मुकुल ने चाय वाले से उसके घर और उस छोटी बच्ची के बारे में पूछा। और जैसे ही उसने यह बताया कि यह लड़की उसकी बहन है और उसका घर जलियाँवाला बाग़ के पीछे है। तो एक पल के लिए सभी थोड़ा घबरा गए फिर विपुल ने पूछा, "वहाँ तो ज्यादातर घर बंद पड़े है न भैया?" "नहीं हमारा घर तो खुला हुआ है । हम तो बंसी चायवाले के नाम से यहाँ मशहूर थें ।" चायवाले ने उत्तर दिया । यह कहते ही लड़की की बदलता आँखों का रंग इस बार सुदेश ने भी देख लिया और प्रखर तो पहले ही डर के मारे पीछे चल रहा था। जैसे -जैसे वे उस गली की तरफ बढ़ रहे थे । वैसे-वैसे ही अँधेरा ख़ौफ़नाक होता जा रहा था । निशा को लगा कि उसके और सुदेश के साथ कोई और भी चल रहा था । सभी बंद पड़े मकान के ताले खुलते हुए से नज़र आये फिर उसने अचानक मुँह फेरा तो सब गायब। निशा थोड़ा डर गई और सुदेश का हाथ कसकर पकड़ लिया । तभी सुदेश ने पूछा, "क्या हुआ?" "कुछ नहीं शायद थक गई हूँ ।" निशा ने अनमने ढंग कहा । "बस अभी पहुंचने ही वाले है फिर आप सब आराम ही आराम कर लेना ।" यह कहते हुए चायवाले के चेहरे पर एक डरावनी हँसी और टेढ़े मेढ़े दाँत को प्रखर ही देख पा रहा था । वही विपुल और विनय सभी घरों को गौर से देख उनकी फोटो खींचते जा रहे थें ।

तभी एक बड़े 100-200 गज़ के मकान के सामने आकर वे रुक गए। दरवाज़ा खुलता गया अंदर अँधेरा था । लाइट नहीं आती क्या ? विपुल ने पूछा । "अभी बत्ती चल जाएँगी । तभी घर के दो-तीन बल्ब खुद ही जल गए । और आज वहाँ एक औरत भी नज़र आई । और कहने लगी "बंसी आ गए तुम ?" "हाँ ! आ गया कुछ मेहमान भी लाया हूँ।" बंसी ने कहा । औरत का मुँह ढका हुआ था। लाल रंग का घूँघट अँधेरे में और भी ज्यादा चमक रहा था । किसी को भी उसका चेहरा नज़र नहीं आया । मगर जब औरत की नज़र उन पर पड़ी तो अचानक प्रखर को उसके दाँत बाहर और बिलकुल उसका चेहरा काला-नीला और पीला नज़र आया । वह तो एकदम डर ही गया तभी बंसी ने कहा "भाग्यवंती इनको ज़रा ऊपर वाला कमरा तो दिखाओ । आज की रात यह यही रहेंगे । " सभी उस औरत के पीछे सीढ़ियों पर चलने लगे । एक विचित्र सा खौफ मानो ऐसा लग रहा था कि जैसे सीढ़ियों पर कोई एक नहीं अनेक लोग खड़े हों । अनेक लोगों का खड़ा होना सिर्फ़ निशा और प्रखर को महसूस हुआ। मगर जैसे ही वह कुछ बोलते तब कमरा आ चुका था और वह औरत वहाँ से जा चुकी थीं ।

कमरा पुराने समय के हिसाब से बना हुआ था। दीवारों का पेंट उखड़ा हुआ था। एक हलकी-हलकी सी दुर्गन्ध भी आ रही थी । और एक हल्का सा चांदनी सा बल्ब भी वही जगमगा रहा था। तभी प्रखर बोला-"मैं अभी भी कह रहा हूँ कहीं और चलो यह जगह बिलकुल भी ठीक नहीं लग रही यह न हो कि पता चले कि हम तो आये घूमने है और यहाँ किसी भूतिया में फँसकर भूल-भुलैय्या ही न बन जाएँ।" "मुझे भी कुछ अजीब सा डर लगता है सुदेश आज जब मैंने फेसबुक पर डालने के लिए कैमरा चेक किया था, तब उस भैया और लड़की की फ़ोटो कहीं नहीं थीं । मुझे लगा डिलीट हो गयी होंगी पर सिर्फ वही दोनों गायब थे बाकी सब तो थे । शायद प्रखर ठीक कह रहा है ।" निशा ने कहा । "तूने यह बात पहले क्यों नहीं बताई निशा ? सुदेश ने पूछा।" "मैं दुविधा में थी , क्या कहो ।" निशा ने सफाई दी । "यार ! वक़्त देखो रात के एक बजने वाला है फिर कुछ ही देर में सुबह हो जाएँगी । तुम लोगों से थोड़ा सब्र नहीं होता। चल यार विपुल मेरे दिमाग में कुछ खुराफाती चल रहा है । चल छत पर चलकर बात करते है। इन डरे हुए लोगों को यही रहने दो ।" यह कहकर विपुल और विनय कमरे से बाहर निकल गए । "चलो निशा थोड़ा सो लेते है, बहुत थक चुके हैं।" कहकर सुदेश कमरे में ही बिछी चारपाई पर लेट गया । निशा भी वही उसके पास बैठ गयी और प्रखर ज़मीन पर बैठ गया । थोड़ी देर में सुदेश और निशा तो सो गए पर प्रखर की आँखों में कहीं भी नींद का नामो-निशान नहीं था । वह तो बस कमरे की दीवार को देखे जा रहा था । ऐसे लग रहा था कि जैसे इस कमरे का कोई डरावना गुज़रा हुआ कल है । जो अभी उसके सामने शुरू हो जाएगा । और हुआ भी वही उसे टूटे हुए पंखे पर कोई लटकता हुआ नज़र आया और अचानक गायब हो गया। बस फिर प्रखर से उस कमरे में रुका नहीं गया और कमरे से निकल नीचे बरामदे में आ गया ।