जहाँ-जहाँ वो भागता जा रहे थें । वही नीचे ज़मीन से सड़े-गले हाथ निकलते जा रहे थें। एक हाथ ने निशा का पैर पकड़ लिया । वह ज़ोर से चिल्लाई तो सुदेश ने अपने पैर से मारना शुरू कर दिया। फिर अपने बैग से कोई धारधार चीज़ निकाल उस पैर में चुभो दिया\। तभी पैर छूट गया और फिर दोनों भागने लगे। तभी वही डरावनी शक्लों ने प्रखर को घेर लिया। तभी वही वो जो चोर डरावना आदमी था उसने प्रखर के सामने आकर कहा कि "तुम्हे तो कोई तुम्हारा अपना ही बचा सकता है ।" और प्रखर की तरफ ज़हरीला साँप फैंक दिया । जिसका मुँह उसके फन से भी ज्यादा बड़ा था। तभी प्रखर के पास सुदेश और निशा पहुँच गए । और उन्होंने जलती हुई माचिस की तीली को साँप के ऊपर फैंक दिया। "भाग प्रखर" सुदेश ने कहा। फिर तीनो भागने लगे। और भागते-भागते निशा का पैर फँस गया और वो अचानक से गिर गई ।
"अरे ! जल्दी चलो"। प्रखर ने कहा । " सब तेरी वजह से हुआ है, तुझे ही अमृतसर आने की पड़ी थी और तो और वाघा बॉर्डर देखने के लिए मरा जा रहा था । अब सचमुच ही मौत हमारे पीछे पड़ गई । अच्छा-खासा हमारा प्लान पहाड़ो की वादियों में घूमने फिरने का बन रहा था । वही चले जाते अब तू मर हम क्यों मरे ? अब कह रहा है जल्दी चलो ।" सुदेश ने निशा को उठाते हुए कहा । "मेरी वजह से? मैंने कहा था कि उन बंद तालों के घरों में जाओं । और तो और विपुल और विनय को भी मैंने नहीं कहा कि भूतो के साथ मिलकर कोई खेल खेलो ।" प्रखर ने भी लगभग चीखते हुए कहा। "तुम दोनों लड़ क्यों रहे हों ? हमें अपनी जान के बारे में सोचना है न कि उसके बारे में जो गुज़र गया सो गुज़र गया । निशा ने दोनों को समझाते हुए कहा।
अब तीनों लगे भागने अब स्टेशन ज्यादा दूर नहीं रहा बस स्टेशन पर पहुंचने ही वाले थे कि अचानक से ज़ोर से हवा आयी और निशा गायब हो गयी। वही झाड़ियों की सरसराहट ने निशा को ले जाने का अनुमान दे दिया। "निशा कहा गयी ? "निशा" दोनों सुदेश और प्रखर ज़ोर से चिल्लाने लगे । मगर कहीं कुछ नज़र नहीं आया। "इसका मतलब निशा हमेशा के लिए हमें छोड़कर चली गयी। " सुदेश ने लगभग रोते हुए कहा । "कैसी बातें कर रहा हैं ? ज़रूरी है, जो विपुल और विनय के साथ हुआ वो निशा के साथ भी हूँ । हो सकता है, वह रास्ता भटक गयी हूँ।" प्रखर ने सुदेश का कन्धा पकड़ उसे सँभालते हुए कहा । "आखिर सब खत्म हो गया तूने महसूस नहीं किया कि वो भूत निशा को उठाकर ले गए है। "यह कहकर उसने गुस्से में एक ज़ोर का घूंसा प्रखर के मुँह पर दे मारा । "अब हम कहीं के नहीं रहेंगे" बस सुदेश यह कहे जा रहा था और प्रखर को मारे जा रहा था । फिर दोनों में झगड़ा शुरू हो गया । लगे एक दूसरे को मारने सुदेश के सिर पर खून सवार हो रहा था । तभी एक ज़ोर का घूंसा सुदेश और प्रखर के मुँह पर लगा और वो दोनों दूर जा गिरे । उनके सामने विपुल और विनय भूत बन सामने खड़े थें । दोनों ने दोनों को मारना शुरू कर दिया और उसके बाद बाकी के भूत भी उन्हें खींच एक उस जगह ले आएं, जहा निशा को पेड़ से उल्टा टांग रखा था और उसका सिर आग की तरफ था । जो कटकर सीधा आग में गिरने वाला था। निशा ज़ोर से चिल्ला रही थी और बार-बार एक ही बात कह रही थी "कोई बचाओं मुझे" । प्रखर और सुदेश को ज़ख़्मी हालत में देख निशा ने और भी ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया । "सुदेश प्रखर बचाओं मुझे" निशा ने कहा । "तुम दोनों ने हमे बहुत परेशां किया है । 'बहुत भगाया अब हम तुम्हे तड़पा - तड़पा कर मारेंगे ।"भूत बने विपुल और विनय ने कहा । "भाई मेरी निशा और मुझे छोड़ दें और इस प्रखर की जान ले ले ।" सुदेश ने हाथ जोड़ते हुए कहा । "ये क्या कह रहा है तू साले ?' प्रखर ने सुदेश ने कहा । "बिलकुल ठीक कह रहा हूँ तेरे खानदान में तो वैसे भी मरने की बड़ी हिम्मत है। तभी उस लड़की बनी भूत ने कहा "सब मरेंगे हम भी मरे थे हमारे पूरे खानदान भी जलियावाला बाग़ में मारा गया था । सब मरेंगे ।" तभी उस प्रेत भूतनी का मुँह बड़ा हो गया और उसका हाथ इतना लम्बा हो गया कि निशा की गर्दन तक पहुंच गया । सुदेश ज़ोर से बोला निशा !!!!!!! तो बाकी के प्रेत ने भी उसकी गर्दन पकड़ ली इसे पहले की निशा का सिर उस दहकती आग में जाता ।
प्रखर को उस भूत चोर की बात याद आ गयी । 'तुम्हे कोई तुम्हारा अपना ही बचा सकता है ।' तभी प्रखर ने अपने पिता को याद किया और अचानक इतनी तेज़ रोशनी हो गई कि उस लड़की भूत का हाथ निशा की गर्दन को तोड़ नहीं पाया । सामने देखा तो उसके पिता की आत्मा खड़ी थी । सभी भूतों ने प्रखर के पिता की आत्मा पर हमला करना शुरू किया । फिर और भी कई आत्माएँ आ गई । तभी उस लड़की भूतनी को अपना परिवार और सारा पड़ोस जो उस जालियावाला कांड में मर चुका था नज़र आने लगा । तभी वो लड़की का भूत और बंसी की आत्मा शांत हुए और निशा पेड़ से नीचे गिर गई । "भागों बेटा स्टेशन पहुँचो बस पीछे मुड़कर मत देखना ।" उसके पिता की आत्मा ने कहा । तीनों भागकर स्टेशन पहुँचे । और दिल्ली वाली गाड़ी में चढ़ गए भीड़ होने के कारण दरवाज़े पर ही खड़े हो गए । सुदेश ने निशा को गले लगा लिया "शुक्र है, हम बच गए ।" सुदेश ने कहा । आज प्रखर के पापा और उन सभी नेक रूहो ने बचा लिया। निशा ने प्रखर को देखते हुए कहा । "हां देश के लिए मरने वाले शहीद क्यों कहलाते है ? आज समझ आया क्योंकि वह अमर हो जाते है और वो वो किसी से बदला नहीं ले सकते।" यह कहते हुए प्रखर की आँखों में आँसू आ गए ।
"अब यह नाटक बंद कर। बस यह हमारा आखिरी ट्रिप था। अब कहीं जाना होगा तो मैं और निशा खुद देख लेंगे । बस दिल्ली पहुँच जाये। " सुदेश ने प्रखर को घूरते हुए कहा । गाड़ी अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और सुदेश पागलों की तरह निशा को गले लगाते हुए "हम बच गए" कहने लगा। तीनों दोस्तों के चेहरे पर मुस्कान आयी थी कि ट्रैन के दरवाज़े से किसी ने सुदेश को ज़ोर से खींचा निशा ज़ोर से चिल्लायी सुदेश्शशशशशशशशशश दोनों ने देखा कि सारे भूत सामने दूर खड़े थे और सुदेश की गर्दन कट चुकी थीं और उनके हाथ में थीं । निशा ने न कुछ सोचा बस चलती गाड़ी से कूद गई और उसी दिशा में भागने लगी और अँधेरे में गायब हो गयी । प्रखर ने रोकना चाहा पर देर हो गयी गाडी अमृतसर स्टेशन छोड़ चुकी थी । और सुदेश के शब्द "आखिरी ट्रिप" उसके कानों में गूँज रहे थे । । । ।
समाप्त