हमें घर जाना हैं हरिराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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हमें घर जाना हैं

भूख

शाम का समय था l सूरज अभी डूबा न था, लालिमा छा गयी l आज सारे दिन मेरा एक ही काम था l जिला दंडाधिकारी दिल्ली से बाहर जाने के लिए पास जारी हो रहे थे l पास बनवाने वालों की बहुत भारी भीड़ और ऊपर से दिनभर की तप्ती गर्मी भी परेशान कर रही थी l सभी को अपने- अपने घर जाने की लालसा थी l छोटे बच्चे, बूढे, जवान और औरतें भी पास बनवाने के लिए कतार में खंभे की तरह अस्थिर खड़े थे l कहीं कोई पानी की व्यवस्था न थी, केवल प्रकृति ही सबका सहारा थी l वहीं चार पेड़ ही सबको शीतलता से रहे थे l पर आम लोगों के फासले ने पेड़ों की छाया का सुख भी नहीं लेने दिया l मजबूरी में सारे चिलचिलाती धूप में ही कतार बद्ध थे l आधुनिक और तकनीकी संचार के युग में यह दृश्य भयानक था l इससे भी ज्यादा भयावह और करुणा के पात्र थे तीन नव युवा l वहीं भीड़ में छोटे-छोटे तीन लड़के शक़्ल और पहनावे में गरीब और कमजोर थके से, उम्र कोई 16 से 18 के बीच की l भूखे प्यासे पीली आंखें उनकी भूख को साबित कर रही थी l अभी शाम के 5:30 बज चुके थे l वे भी अपने घर जाने के लिए पास बनवाने वालों में से थे, अब वे केवल तीन ही शेष रह गए थे l बाकि लोग अपने - पास लेकर जा चुके थे l केवल ये युवा अनभिज्ञता लिए हुए अतृप्त निगाहों को गड़ाए वहीं खड़े थे l
"अरे सब चले गये तुम्हारा क्या काम है? यहाँ क्यों खड़े हो?" गार्ड ने पूछा l
"हम तीनों को बिहार जाना है l" तीनों एक साथ बोल पड़े l
यहाँ गाड़ियों वालों का पास बनता है l तुम्हारे पास गाड़ी है? गार्ड के इस कथानक से वे मौन थे, गर्दन जमीन की ओर झुकी थी l
"तुम्हारी आंखें पीली कैसे हो रही है ! बुखार है? गार्ड ने फिर तेज आवाज में एक लड़के से कहा l
" सहाब, सुबह 6:00 बजे निकला था, पास बनाने के लिए अभी तक खाना नहीं खाया l" लड़के ने बड़ी सी मासूमियत से धीमे से स्वर में कहा l
गार्ड के तेज स्वर ने सबको चौंकन्ना कर दिया l किसी का ध्यान उनकी भूख पर न गया, न घर जाने की तड़प पर, केवल कोरोना पर केंद्रित हो गया l तुरंत प्रभाव से डॉक्टरी जाँच की गयी l तापमान सामान्य था l
नादान नवजात पिल्लों को रोटी का चुरा डालने की तरह होम सेलटर और स्कूलों में खाने मिलने की सलाह देकर घर भेज दिया गया l सलाह सही थी, सरकार के प्रयास भी उत्तम हैं, परंतु जो दो सालों से घर जाने के की भूख और अंदर पेट की दिनभर भूखे रहने की आग लिए दिनभर धूप में खड़ा रहा, उसके आगे ये कुछ न था l तीनों मासूम मजदूर नीचे गर्दन किए जा रहे थे, वहीं हिप हिप हूरें हिप हिप हूरें करते पास मिलने की खुशी में कार वाले हॉर्न देते हुए उनका ध्यान बीच सड़क से हटा रहे थे l

©हरिराम हेतराम भार्गव हिन्दी जुड़वाँ