स्त्री स्वयं ब्रह्म है, गुरु हैं
(लघु कथा)
एक बार की बात है, एक प्यासा किसी कुएं के पास गया जहाँ एक स्त्री पानी भर रही थी, उसने स्त्री से पानी मांगा और पीया, उस पुरुष ने उस स्त्री से पूछा हे स्त्री मेरा प्रश्न अद्भुत है कृपया उसका सुनिश्चित उत्तर दें, स्त्री ने कहा बोलो पथिक । वह बोला - स्त्री छल कैसे करती है? उस स्त्री ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया तो आदमी डर गया, काँपने लगा। उसने कहा ऐसा क्यों कर रहे हो, उसने स्त्री ने कहा स्त्री का एक छल ये भी है, मेरे कहने पर आपको लोग जान से मार देंगे। इसका तात्पर्य है की स्त्री स्वयं विधाता है, वह शक्ति व शिव दोनों का ही प्रतिरूप हैं, स्वयं सृष्टि की जननी है, वह सहनशील और शक्तिमान है उससे कोई छल नहीं कर सकता,इसलिए स्त्री गुरु भी है। इससे स्पष्ट है कि गुरु (स्त्री) के सामने हम पुरुष शिष्य हैं, जिस प्रकार एक कक्षा में एक छात्र भटकता है तो केवल एक छात्र ही अपने भविष्य को बर्बाद करता है, जबकि एक गुरु भटकता है तो हजारों छात्रों के भविष्य बर्बाद करता है और हजारों छात्रों का भविष्य बर्बाद होता है तो संपूर्ण मानवीय सृष्टि बर्बाद होती है। इसलिए गुरु को छल रहित होने चाहिए। स्त्री सामाजिक कार्यों, गृह कार्यों के अतिरिक्त परिवार की जिम्मेदारी का पूर्ण निर्वाह निःस्वार्थ भाव से करती हैं, यही निःस्वार्थ भावना उसे सृष्टि का गुरु बनाती है यही स्त्री की सच्ची शक्ति है अर्थात् हर स्त्री स्वयं ब्रह्म है, गुरु हैं।
इसी संदर्भ में नारी शक्ति पर एक कविता समर्पित हैं-
नारी तुम वंदन हो
अंश आस्था आत्म अध्यात्म अभिमान हो
हे कलम ईश्वर का साक्षात वरदान हो
तुम इच्छा ईष्ठा ईश्वर इन्द्री ईडा़ हो।
चेतना जिस प्रेम में खेले वह क्रीड़ा हो
ऊर्जा उष्मा हो उषा उज्वला उमंग हो
जीवन पट पर मेरे भर रही तुम रंग हो
कैवल्य कर्त्तव्य काम कल्पना कविता हो
मसी का अधरपान कराती तुम विनीता हो
गरिमा गौरव गीत हो गंतव्य तुम गति हो
निरक्षर बुद्धि में उत्पन्न होती मम मति हो
तुम चतुर्थी चंचला चेतना चक्षु चरित्र हो
अवलंबन जीवन की श्रेष्ठ मेरी मित्र हो
तुम जीवन जन्या जया जयन्ती जाति हो
यशश्वी मेरे जीवन की वृद्धि ख्याति हो
तत्व हो तृप्ति हो ताल हो तरणी हो तन हो
हृदय प्राण बनकर प्रदान करती जीवन हो
दीप्ति दक्षिणा हो दिव्या दिशा हो दात्री हो
सृजन करती मुझे जैसी मेरी विधात्री हो
धम्म - धमनी हो धैर्य ध्यान हो धरणी हो
मेरे कर्म कर्त्तव्य की रचना तुम करणी हो
नीति हो नयन हो नग हो निद्रा हो नमन हो
तुम्हीं उपमेय संपूर्ण संसार की सप्रसंग हो
प्रेरणा - प्रार्थना - पूजा - प्रेम- परीक्षा हो
हे कलम , ईश्वर द्वारा प्रदत दीक्षा हो
ब्रह्म ब्रह्मांड हो बंधन हो बल हो बुद्धि हो।
मेरे नूतन विचारों की विशुद्ध शुद्धि हो
महिमा हो मोक्ष हो मोह हो मणि माया हो
मेरे तन मन की अमिट जीवन छाया हो
भक्ति भावना हो भौतिकी भव भवानी हो
हे कलम शक्ति कविता कल्पना कहानी हो
यश यौवन हो योजन हो यजु हो योग हो
तन - मन में तुम्हें पाया तुम मेरा भोग हो
रस हो रक्त हो रंग हो राजसी हो रति हो
वरदान से पाया है तुम्हें तुम वह गति हो
लय हो लक्ष्मी हो लक्ष्य लिपि हो लेखन हो
मेरे शब्दों का तुम प्रिय प्रासंगिक प्रश्न हो
वर्तनी वरिष्ठा वंदना हो विभा वासना हो
मेरे मन में अनुनय प्रेम की उपासना हो
श्री हो शौर्य शिखा हो शिक्षा हो शाखा हो
शब्द कल्पद्रुम मेरे तुम मेरी विशाखा हो
सौंदर्य सरस्वती सृष्टि हो स्वप्न सुजान हो
संपूर्ण जीवन तुम्हारा तुम मेरे प्राण हो
हृदय हर्ष हरीतिमा होतृ हित हरिचंदन हो
श्रद्धा तुम विभूति तुम नतमय वंदन हो
हरिराम भार्गव "हिन्दी जुड़वाँ"
शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय पूठकलां, शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली
9829960782 hindijudwaan@gmail.com
माता-पिता - श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
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वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ - महाकाव्य )
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