HUNN TAN MAIN THIK HAN books and stories free download online pdf in Hindi

हुँण तां, मैं ठीक हाँ

हुंण तां, मैं ठीक हाँ


जीवन में रिश्ते बनते नहीं और बनाए भी नहीं जाते l अनायास ही निस्वार्थ भाव से जो प्रेम पनपता है l वही सच्चा रिश्ता होता है l यह मैंने हरि, जिससे मैं कोई दो साल पहले किसी सेमिनार में मिली थी, एक सच्चे मैत्रीपूर्ण भाव को निभाने के लिए एक छोटी सी मुलाकात ही काफी होती है l अतः हरि स्वभाव से ही हँसमुख था l अभी छः माह पहले मैं जब मैं हरि से मिली थी, तब मेरे पैर में चोट लगी हुई थी l पैर में लगी चोट को देखकर हरि के मुख से एक टीस सी निकल गयी, जैसे खुद के चोट लगी हो- "अरे, देवी ! यह क्या?" मैंने कहा - "कुछ नहीं, सब नॉर्मल है l" अह्सास मन से जुड़ा होता है मैंने उसे ये तो नहीं कहा कि ये समस्या दो सालों से ही चली आ रही थी l जहाँ मन के तार जुड़े होते हैं, जहाँ मैत्री रिश्तों से न होकर मन से होती है, वहाँ सब कुछ आँखों के सामने आ जाता है l

संध्या को टहलते समय हरि का फोन आया l ''मीनू आज ही किसी डॉक्टर से मिलो, आज ही अपनी जांच करवाइए और तुरंत l पैर में सूजन का मतलब क्या है ? आप अपने स्वास्थ्य का नुकसान कर रहे हैं?" यह एक आदेशात्मक व्याख्यान था l मैंने कुछ न कहकर फोन काट दिया l

सुबह उठी तब मेरे मन में कुछ भाव जागे, मैंने डॉक्टर से संपर्क किया और मेरे पैर का इलाज शुरू हुआ l मैं बहुत खुश थी कि मैं अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दे रही थी, पैर की सूजन अब धीरे-धीरे कम हो रही थी l आजकल हरि का फोन आ जाया करता है l

हरि के पास दशमेश श्री गुरुगोविंद सिंह जी के ''जंगनामा'' का फारसी सहित अंग्रेजी रूपांतरण ग्रंथ था l कुछ शब्दों को न समझने पाने के कारण हरि ने मुझे फोन किया l ''मुझे कुछ नहीं आता, मैं अंग्रेजी नहीं जानती'' सिर में दर्द के कारण मैंने यही उत्तर दिया l लेकिन रात को सोते समय यूँ ही कुछ गुनगुना रही थी मुझे गंजशकरबाबा फरीद हजरत ख्वाजा की कुछ पंक्तियाँ याद आयी -

''जे तू अकल लतीफ हैं, काले लिख ना लेख,

अपनड़े गिरह बान में, सिर नीवां कर वेख।"

(यदि तुम में अक्ल है तो किसी की बुराई मत करो, बल्कि अपने गिरहबान में सिर झुका कर देखो।)

इन पंक्तियों का स्मरण होते ही मेरे सभी दर्द गायब थे, मुझे बाबा फरीद, मेरी अक्ल को सही मायने में उपयोग करने की चेतना दे रहे थे l अगले ही दिन मैंने हरि को ''जंगनामा'' अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद करके भेजे l हरि अपने जुड़वाँ भाई के साथ मिलकर जंगनामा का हिन्दी छंद में अनुवाद कर रहे थे l मेरा यह सुनहरा अवसर था कि दशमेश श्रीगुरु गोविंद सिंह जी जो एक संत, एक योद्धा और एक दूरदर्शिता के धनी युगपुरुष को जानने का अवसर मिला l

एक दिन ऑनलाइन कहानियाँ पढ़ते समय एक कहानी पर अनायास ही ध्यान गया l कहानी का शीर्षक था ''ज्ञान की सरिता'' l ज्ञान की सरिता का पात्र कोई और नहीं, वह मैं ही थी l मैं कहानी पढ़कर निस्तब्ध थी, इस सम्मान के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं l अब मैं ठीक रहने लगी, मैं खुश भी रहने लगी क्योंकि जब कोई स्वस्थ होता है तो वह स्वाभाविक ही खुश रहने लगता है l अब मैं पंजाबी भी जानने- समझने लगी हूँ l ''हूंण तां मैं ठीक हाँ''.... अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ ll



लेखक परिचय-

हेतराम भार्गव & हरिराम भार्गव

हेतराम भार्गव

शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार

हिन्दी शिक्षक, केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ

हरिराम भार्गव

शिक्षा - MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित

हिन्दी शिक्षक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली


माता-पिता -

श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव


प्रकशित रचनाएं -

जलियांवाला बाग दीर्घ कविता (द्वय लेखन - खंड काव्य )

मैं हिन्दी हूँ - राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य (द्वय लेखन - महाकाव्य )

सम्मान -

1 स्वास्तिक सम्मान( द्वारा- कायाकल्प फाउंडेशन नोयडा)

2 साहित्य श्री सम्मान (द्वारा - साहित्यिक साँस्कृतिक शोध संस्था मुम्बई)

आकाशवाणी वार्ता -

सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत

कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य -

यह मेरे पंजाब की धरती (द्वय लेखन - महाकाव्य )

तुम क्यों मौन हो - (द्वय लेखन - खंड काव्य )

पत्र - पत्रिकाएँ - शोध जर्नल अध्ययन

स्त्रीकाल - (यूजीसी लिस्टेड शोध पत्रिका) आजीवन सदस्यता I

अक़्सर - (पूर्व में, यूजीसी लिस्टेड शोध पत्रिका) आजीवन सदस्यता I

अन्य भाषा, गवेषणा, इन्द्रप्रस्थ भारती, मधुमती का नियमित पठन I

समाचार पत्र - प्रभात केशरी (राजस्थान का प्रसिद्ध सप्ताहिक समाचार पत्र) में समय समय पर विभिन्न विमर्श पर लेखन I


उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना।

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