Karm path par - 24 books and stories free download online pdf in Hindi

कर्म पथ पर - 24



कर्म पथ पर
Chapter 24


माधुरी जब घर लौटी तो परेशान व बुझी बुझी थी। संतोषी उसे इस हाल में देखकर घबरा गई।
"क्या हुआ बिटिया ? तू इतनी परेशान क्यों हैं। तुम तो अपने बाबूजी के साथ गई थी। अकेली क्यों आईं ? कहाँ हैं तुम्हारे बाबूजी ?"
माधुरी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। संतोषी बुरी तरह डर गई। उसे लगा कि शायद उसके पति के साथ कोई दुर्घटना हो गई है।
"माधुरी सच सच बताओ। तुम्हारे बाबूजी तो ठीक हैं ना। तुम रो क्यों रही हो ?"
माधुरी ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला। उसने अपनी माँ से जो कुछ भी उसके साथ घटा सब विस्तार से बता दिया।

शिव प्रसाद पार्सल लेकर चले गए। जाने से पहले एक बार फिर उन्होंने माधुरी से कहा कि वह उनका यहीं बाहर बैठ कर इंतज़ार करे।
शिव प्रसाद के जाने के कुछ ही क्षणों के बाद हैमिल्टन का एक नौकर माधुरी के पास आकर बोला कि साहब उसे भीतर बुला रहे हैं। माधुरी पहले कुछ सकुचाई। फिर उसे लगा कि शायद हैमिल्टन का दोस्त आ गया हो। वह देख ना पाई हो या फिर वह किसी और दरवाज़े से अंदर चला गया हो। वैसे भी हैमिल्टन की हवेली बहुत बड़ी थी। उसमें आगे और पीछे दो गेट थे। माधुरी नौकर के साथ हवेली के अंदर चली गई।
नौकर उसे हवेली के ऊपरी हिस्से में बने एक कमरे के बाहर ले जाकर बोला,
"साहब इस कमरे में हैं। अंदर चली जाओ।"
अपनी बात कह कर नौकर उसे वहीं छोड़कर चला गया। माधुरी कुछ पलों तक बाहर खड़ी होकर सोंचती रही कि वह क्या करे। फिर उसने दरवाज़े पर दस्तक दी। अंदर से हैमिल्टन ने कहा,
"दरवाज़ा खुला है। अंदर आ जाओ।"
माधुरी ने सकुचाते हुए दरवाज़ा खोला और धीरे से अंदर घुसी। बहुत बड़ा कमरा था। कमरे में कीमती फर्नीचर था। बहुत से कीमती सजावट के सामान थे। पर हैमिल्टन नहीं दिख रहा था। माधुरी ने पुकारा,
"सर आप कहाँ है ?"
"और अंदर आओ।"
माधुरी ने आवाज़ की दिशा में देखा। कमरे में एक हिस्से को पर्दे की सहायता से अलग किया गया था। वह उस पर्दे की तरफ बढ़ी। उसने पर्दा हटा कर अंदर झांका। हैमिल्टन एक आराम कुर्सी पर बैठा था। उसे देखकर बोला,
"मेरा दोस्त बस आता ही होगा। तुम वहाँ अकेली बैठी थी। इसलिए बुलवा लिया। यहाँ आकर बैठो।"
हैमिल्टन ने पास में पड़े पलंग की तरफ इशारा किया। माधुरी को कुछ अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"नहीं मैं बाहर जाकर ही बैठती हूँ। जब आपके दोस्त आ जाएं तो खबर भेज दीजिएगा।"
अपनी बात कह कर माधुरी वापस लौटने लगी। हैमिल्टन ने तेज़ आवाज़ में कहा,
"रुको, तुम कहीं नहीं जाओगी।"
वह फुर्ती से उठा। उसने माधुरी को पकड़ कर पलंग पर पटक दिया।
माधुरी की चीखें कमरे के बाहर हवेली में गूंज रही थीं। लेकिन सारे नौकर उसे अनसुनी कर अपने काम में लगे थे।
अपनी हवस मिटाने के बाद हैमिल्टन ने माधुरी को धमकाया।
"जो हुआ उसके बारे में अगर किसी से कुछ कहा तो तुम्हारे परिवार के लिए बहुत बुरा होगा। तुम्हारे पिता को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। तुम्हारी बहनों की पढ़ाई भी बंद हो जाएगी। इसलिए यहाँ जो हुआ वह किसी से मत बताना।"
हैमिल्टन ने अपने एक आदमी को बुला कर कहा कि वह माधुरी को उसके घर के बाहर तक छोड़ कर आए।

सारी बात सुनकर संतोषी सहम गई। माधुरी ने उससे कहा,
"अम्मा मैंने तुम्हें जो कुछ बताया वह किसी से ना बताना। बाबूजी को भी नहीं। वह बहुत ही खतरनाक आदमी है। उसने धमकी दी है कि वह बाबूजी को नौकरी से निकलवा देगा। हमें बर्बाद कर देगा।"
जो कुछ संतोषी ने सुना था उसे सुनकर उसका भी कलेजा कांप उठा था। वह भी समझती थी कि एक अंग्रेज़ अधिकारी से उलझना बड़ा महंगा पड़ सकता है। लेकिन अपनी बेटी की हालत वह अपने पति से कब तक छिपा पाएगी। पर वह भी नहीं चाहती थी कि अपनी बेटी पर हुए अत्याचार की बात सुनकर शिव हैमिल्टन से उलझ कर अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लें।
संतोषी माधुरी को लेकर अंदर चली गई। उसे नहा कर कपड़े बदलने को कहा।
शिव प्रसाद जब घर लौटे तो माधुरी को लेकर चिंतित थे। आते ही उन्होंने संतोषी से पूँछा,
"माधुरी आ गई। हैमिल्टन सर का काम निपटा कर जब मैं वापस पहुँचा तो उन्होंने बताया कि उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। इसलिए उन्होंने अपने आदमी के साथ घर भिजवा दिया। कहाँ है माधुरी। ठीक तो है ?"
संतोषी ने उन्हें बैठाते हुए कहा,
"माधुरी घर आ गई है। तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए भीतर आराम कर रही है।"
"क्या हुआ है उसे ?"
"हल्का बुखार है। मैंने तुलसी का काढ़ा पिला दिया है। अभी सो रही है।"
"मैं तो घबरा गया था। वैसे उसने बताया कि वजीफे के बारे में क्या बात हुई।"
"जब उसकी तबीयत ठीक नहीं है तो क्या बताती।"
"ठीक कह रही हो तुम। मालती और मेघना कहाँ हैं ?"
"पड़ोस में खेलने गई हैं।"
संतोषी को अचानक अपनी छोटी बेटियों की फ़िक्र हो गई। वह उन्हें बुलाने पड़ोस में चली गई।

तीन दिन हो गए। माधुरी अपने कमरे में ही रहती थी। बाहर नहीं निकलती थी। शिव प्रसाद उसे लेकर चिंतित थे। उन्होंने संतोषी से कहा कि वह डॉक्टर को बुला लाते हैं। पर संतोषी ने साफ मना कर दिया।
शिव प्रसाद को मामला ठीक नहीं लग रहा था। उन्होंने महसूस किया कि संतोषी उन्हें माधुरी से दूर रखने की कोशिश करती है। जब भी वह उसके पास जाने की बात करते तो कहती कि उसे आराम करने दो। ठीक हो जाएगी तो बात कर लेना।
सही बात जानने के लिए संतोषी के रोकने के बावजूद वो माधुरी के कमरे में गए। माधुरी करवट लिए लेटी थी। उसने चादर को अपने कानों तक खींच रखा था। शिव प्रसाद ने आवाज़ लगाई।
"बिटिया क्या हुआ है तुम्हें। तीन दिन हो गए तुम्हारा बुखार ही नहीं उतर रहा। आज मैं डॉक्टर गुप्ता को लेकर आता हूँ।"
माधुरी ने ऐसा जताया जैसे कि वह सो रही है। पर शिव प्रसाद ने कमरे में घुसते हुए उसे चादर खींचते देखा था। उन्होंने कहा,
"क्या बात है बिटिया। अपने बाबूजी से भी छुपाओगी।"
तभी संतोषी कमरे में आकर बोली,
"लगता है सो रही है। उसे सोने दीजिए।"
पर हमेशा शांत रहने वाले शिव प्रसाद गुस्से से चिल्ला पड़े।
"चुप रहो तुम। मैं नासमझ हूँ। नहीं समझता कि तुम दोनों मुझसे कुछ छिपा रही हो। बाप हूँ इसका। जो लड़की पांव की हड्डी टूटने पर भी थिर नहीं बैठती थी, वह बुखार से मुर्झा कर रात दिन कमरे में कैद रहती है। मुझे सब सच सच बताओ।"
संतोषी ने देखा कि मालती और मेघना कमरे के दरवाज़े पर सहमी सी खड़ी हैं। उन्होंने शिव प्रसाद से चुप रहने को कहा। शिव प्रसाद ने दोनों बहनों को जाकर पढ़ाई करने को कहा। उन्होंने उठ कर कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।
"माधुरी उठो, सारी बात बताओ। उस दिन हवेली में तुम्हारे साथ कुछ गलत हुआ।"
माधुरी उठ कर अपने बिस्तर पर बैठ गई। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। शिव प्रसाद ने उसे देखा तो उसकी हालत देखकर दहल गए। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उनके जाने के बाद हैमिल्टन ने उनकी बेटी के साथ गलत किया है।
शिव प्रसाद ने माधुरी को गले से लगा लिया। उनकी आँखों से भी आंसू बह रहे थे। पर कलेजे में आग लगी थी। वह माधुरी से कह रहे थे,
"मुझे माफ़ कर दे बिटिया। मैं ही तुझे अकेला उस शैतान के पास छोड़ कर गया था। पर अब मैं उसे छोडू़ँगा नहीं।"
शिव प्रसाद माधुरी को छोड़कर दरवाज़े की तरफ बढ़े। संतोषी ने उन्हें रोक लिया।
"इस तरह गुस्से में कुछ ना करिए। वह अंग्रेज़ अधिकारी है। ताकतवर है।"
"क्या चाहती हो तुम ? जिसने मेरी बेटी के साथ कुकर्म किया है उसे छोड़ दूँ। ऐसा कायर नहीं हूँ।"
माधुरी भी उठ कर आ गई।
"बाबूजी उसने धमकी दी है कि हमें बर्बाद कर देगा। आप अम्मा की बात मान लीजिए।"
शिव प्रसाद ने दृढ़ता से कहा,
"बिटिया अब तो चाहे सड़क पर रहना पड़े। पर उसे उसके कुकर्म की सज़ा ज़रूर दिलाऊँगा।"
शिव प्रसाद के ऊपर जुनून सवार था। उनका रूप देखकर संतोषी की उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं हुई। शिव प्रसाद ने दरवाज़ा खोला और तेजी से बाहर निकल गए।
संतोषी ने देखा कि मालती और मेघना एक दूसरे के गले लग कर रो रही हैं। उसके मन में आया कि अब ना जाने इन दोनों के भाग्य में क्या लिखा है।
.

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED