कर्म पथ पर - 23 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कर्म पथ पर - 23




कर्म पथ पर
Chapter 23


आंगन में पूरी तरह शांति थी। सिर्फ कोने में लगे नीम के पेड़ पर बैठी चिड़ियों की चहचहाट ही सुनाई पड़ रही थी।
संतोषी वृंदा के बारे में सोंच रही थी। वह जानना चाहती थी कि हैमिल्टन ने उसके साथ क्या किया। उसके मन में हो रही उथल पुथल को समझने की कोशिश कर रहा था। संतोषी ने जय से पूँछा।
"उस दानव ने वृंदा के साथ क्या किया ?"
जय ने वृंदा के साथ जो कुछ हुआ सब बता दिया। सब सुनकर संतोषी बोली।
"वृंदा सचमुच बहुत बहादुर है। उस राक्षस हैमिल्टन के चंगुल से बच कर निकल आना आसान नहीं है। इतना सबकुछ झेल कर भी वह उससे लड़ने की हिम्मत दिखा पा रही है। यह हौसले की बात है।"
रंजन जो अबतक चुप था, संतोषी की बात सुनकर होला।
"वृंदा दीदी हम सबकी प्रेरणा हैं। मेरे घरवाले नहीं चाहते थे कि मैं हिंद प्रभात के लिए काम करूँ। उन्हें डर था कि यह बात अंग्रेज़ी हुकूमत को नाराज़ कर उन लोगों को मुसीबत में डाल सकती है। पर वृंदा दीदी को देखकर मैं भी ‌देश के लिए कुछ करने को उत्साहित था। अतः जब परिवार वाले नहीं माने तो मैंने घर छोड़ दिया।"
जय ने रंजन की बात का समर्थन करते हुए कहा।
"तुमने अच्छा किया। जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए साहस करना पड़ता है। तुम वृंदा के साथ मिलकर देश की सेवा कर रहे हो।"
जय के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनना रंजन को बहुत अच्छा लगा। उसने जय की तारीफ करते हुए कहा।
"जय भाई तारीफ तो आपकी होनी चाहिए। इतने अमीर खानदान में पैदा हुए। ऐशो आराम का जीवन जीते रहे। पर आज देश सेवा के लिए हमारे साथ जुड़े हैं।"
अपनी तारीफ सुनकर जय‌ कुछ झेंप सा गया। बात बदलते हुए संतोषी से बोला।

"आप माधुरी के साथ जो कुछ भी हुआ हमें बताइए। हम हिंद प्रभात के जरिए उसके किए की सज़ा दिलाएंगे।"
संतोषी ने अपनी ‌बात आगे बढ़ाई।

शिव प्रसाद से प्रेरणा पाकर माधुरी अक्सर उन महिलाओं के बारे में पढ़ती रहती थी जिन्होंने समाज की लीक से हटकर कुछ अद्भुत कार्य किया हो। इसी क्रम में उसने भारत की पहली महिला स्नातक कादंबिनी गांगुली के बारे में पढ़ा। वहीं से उसके मन में एक स्वप्न ने जन्म लिया। उसने तय कर लिया कि वह अपने परिवार की पहली स्नातक बनेगी।
माधुरी ने अपनी यह इच्छा सबसे पहले अपने पिता शिव प्रसाद को बताई। उसकी बात सुनकर शिव प्रसाद को उस पर बहुत गर्व हुआ। अब तक अपने परिवार में सबसे अधिक पढ़े लिखे वही थे। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी। माधुरी अब उनसे ‌भी आगे जाकर स्नातक बनने की इच्छा रखती थी। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वह उसका स्वप्न पूरा करने में पूरी सहायता करेंगे।
दसवीं की परीक्षा में माधुरी ने अपने विद्यालय में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए थे। स्कूल ने उसे पुरस्कार देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम के ‌मुख्य अतिथि के तौर पर जॉन हैमिल्टन को बुलाया गया था। माधुरी को मंच पर बुलाकर हैमिल्टन द्वारा पुरस्कृत किया गया।
कार्यक्रम की समाप्ति के बाद माधुरी शिव प्रसाद के साथ जॉन हैमिल्टन से मिलने गई। शिव प्रसाद को माधुरी के साथ देखकर हैमिल्टन ने कहा।
"शिव ये तुम्हारी बेटी है ?"
"जी सर, मेरी बेटी माधुरी बहुत होशियार है।"
"बिल्कुल तभी आज इसे अवार्ड मिला है। वेल डन...कीप इट अप....।
हैमिल्टन ने माधुरी को शाबाशी देते हुए कहा। शिव प्रसाद ने माधुरी की प्रशंसा करते हुए कहा।
"सर.... माधुरी की इच्छा हमारे परिवार का पहला ग्रैजुएट बनने की है।"
"दैट्स गुड.... में कोशिश करूँगा कि तुम्हें वजीफा दिलाऊँ।"
शिव प्रसाद वजीफे की बात सुनकर खुश हुए। क्लर्क के उनके वेतन में सारे खर्च उठाना कठिन होता था। यदि माधुरी को वजीफा मिल जाता तो उनकी बहुत मदद हो जाती। वह हैमिल्टन के सामने हाथ जोड़कर बोले।
"सर अगर ऐसा हो जाए तो बहुत कृपा होगी।"
"इसे लेकर मेरी हवेली पर आना। आई विल डू समथिंग।"
हैमिल्टन चला गया। माधुरी वजीफे की बात सुनकर फूली नहीं समा रही थी। उसे वजीफा मिलने का मतलब उसकी योग्यता की जीत थी।

शिव प्रसाद और माधुरी एक उम्मीद के साथ घर लौट गए।
जॉन हैमिल्टन की लखनऊ के कैंट क्षेत्र में एक बड़ी सी हवेली थी। वह अपनी इसी हवेली में रहता था। इसके अलावा शहर के बाहर उसका एक बंगला भी था।
हैमिल्टन की पत्नी कई साल पहले उसे छोड़कर कर इंग्लैंड चली गई थी। उसके बाद हैमिल्टन ने दूसरा विवाह नहीं किया था।
हैमिल्टन बहुत ही शौकीन मिजाज़ था। औरतों को वह महज़ अपने मन बहलाव का साधन समझता था। अक्सर वह शहर के बाहर बने अपने बंगले का प्रयोग औरतों का शोषण करने के लिए करता था।
उस दिन जब स्कूल में उसने माधुरी को पुरस्कृत किया तो उसकी गंदी नज़र उस पर पड़ गई। उसने माधुरी को फंसाने के लिए वजीफे का जाल फेंका। सीधे सादे शिव प्रसाद को लगा कि वह उनकी बेटी की योग्यता की कद्र करता है।
कुछ दिनों के बाद एक संडे को शिव प्रसाद माधुरी को लेकर हैमिल्टन की हवेली पर गए। उन्होंने उसे याद दिलाया।
"सर आपने कहा था कि आप मेरी बेटी माधुरी को आगे की शिक्षा के लिए वजीफा दिलवाएंगे।"
"ऑफ कोर्स..... तुम्हारी बेटी को तो वजीफा ज़रूर मिलना चाहिए। माधुरी बहुत ही बुद्धिमान है। तुम इसे खूब पढ़ाओ। आई डोंट अंडरस्टैंड व्हाई यू इंडियन्स मैरी योर गर्ल्स सो अर्ली। पर तुम नई मिसाल कायम करो।"
हैमिल्टन की बात सुनकर माधुरी बहुत खुश हुई। उसने उत्साह से कहा।
"सर आई हैव अ गोल टु बिकम फर्स्ट ग्रैजुएट ऑफ माई फैमिली।"
"गुड....यू आर वेरी इंटेलीजेंट गर्ल।"
सही अवसर देखकर शिव प्रसाद ने कहा।
"सर अगर वजीफा मिल जाए तो माधुरी का सपना पूरा करने में सुविधा होगी।"
"बिल्कुल मिलेगा। मैं कुछ व्यस्तता के कारण भूल गया था। मैं अभी भीतर जाकर अपने दोस्त से फोन पर बात करता हूँ। वह ऐसी प्रतिभाओं को आगे बढ़ने में मदद करता है। तुम बैठो।"
हैमिल्टन अंदर चला गया। माधुरी की सुंदरता देखकर वह पागल हो गया था। इस कदर की अपनी हवस मिटाने बिना वह उसे जाने नहीं देना चाहता था। हर बार की तरह वह अपने कुकर्म के लिए माधुरी को बंगले में भी नहीं ले जाना चाहता था।
पर उसकी इच्छापूर्ति के बीच सबसे बड़ी बाधा शिव प्रसाद थे। अंदर जाकर वह इस बात पर विचार कर रहा था कि ऐसा क्या किया जाए कि वह माधुरी को वहाँ छोड़ कर चले जाएं।
बाहर बैठे माधुरी और शिव प्रसाद भविष्य के सुनहरे सपने संजो रहे थे। शिव प्रसाद माधुरी से कह रहे थे।
"बिटिया अगर तुम पढ़ लिख कर योग्य बन गई तो जो समाज आज हमें ताने देता है वही हमारी तारीफ करेगा। तुम्हारी सफलता तुम्हारी बहनों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।"
"बाबूजी आप निश्चिंत रहिए। मैं आपका नाम रौशन करके रहूँगी। सिर्फ मैं ही नहीं मालती और मेघना भी खूब पढ़ेंगी। मैं इस बात का खयाल रखूँगी कि उनका ध्यान अपने लक्ष्य से ना भटके।"
"शाबाश बिटिया.... मुझे तुमसे यही उम्मीद है।"
वह दोनों कुछ और बातें करते रहे। तभी हैमिल्टन बाहर आकर बोला।
"मेरी अपने दोस्त से बात हो गई। वह माधुरी को वजीफा दिलाने के लिए तैयार है। यही नहीं वह तो अपनी जेब से भी खर्च करने को तैयार हैं। कुछ समय में वह माधुरी से मिलने यहाँ आ रहा है।"
हैमिल्टन की बात सुनकर शिव प्रसाद हाथ जोड़कर बोले।
"किस तरह आपका शुक्रिया अदा करूँ। आप सही मायनों में औरतों की तरक्की के पक्षधर हैं।"
शिव प्रसाद की बात सुनकर हैमिल्टन थोड़ा परेशान हो गया। उसके माथे पर लकीरें देखकर शिव प्रसाद ने कहा।
"क्या बात है सर ? आप अचानक चिंतित हो गए।"
"बात ये है कि मेरा दोस्त किसी भी समय माधुरी से मिलने आने वाला है। उस समय मेरा यहाँ रहना बहुत आवश्यक है।"
"तो इसमें परेशानी क्या है सर ?"
"अभी मुझे याद आया कि मुझे एक पार्सल लेकर अपने परिचित के पास जाना है। पार्सल पहुँचाना भी ज़रूरी है और यहाँ रहना भी। पार्सल कुछ व्यक्तिगत है। इसलिए किसी नौकर के हाथ भी नहीं भेज सकता हूँ। इसलिए परेशान हूँ।"
हैमिल्टन की बात सुनकर शिव प्रसाद भी परेशान हो गए। माधुरी के चेहरे पर भी उदासी छा गई। सभी चुपचाप बैठे थे।
कुछ पलो के बाद हैमिल्टन ने कहा।
"एक उपाय है।"
यह सुनते ही शिव प्रसाद उत्साहित होकर बोले।
"बताइए क्या उपाय है ?"
"मिस्टर सिंह बुरा ना मानो तो ये पार्सल तुम ले जाओ। तुम मेरे दफ्तर में काम करते हो। मेरे परिचित को तुम्हारा पार्सल लेकर जाना बुरा भी नहीं लगेगा।"
हैमिल्टन की बात सुनकर शिव प्रसाद एक बार फिर सोंच में पड़ गए। हैमिल्टन ने पासा फेंका।
"मैं समझ सकता हूँ। तुम मेरे व्यक्तिगत काम करो ये ठीक नहीं है। कोई बात नहीं मैं अभी फोन करके अपने दोस्त को किसी और दिन आने को कह देता हूँ। तुम माधुरी को लेकर आ जाना। बस अब देखो कि उसे दोबारा फुर्सत कब मिलती है। आज तो वह यहीं पास में किसी से मिलने आया था।"
हैमिल्टन उठकर अंदर जाने लगा। शिव प्रसाद ने रोकते हुए कहा।
"सर आप मुझे पार्सल दे दीजिए। मैं पहुँचा दूँगा।"
हैमिल्टन ने रुकते हुए कहा।
"आर यू श्योर ?"
"यस सर..."
हैमिल्टन ने कहा।
"तुम माधुरी की फ़िक्र मत करो। मेरे दोस्त से भेंट कर यह यहीं रुकेगी। तुम काम निपटा कर इसे ले जाना। मैं अभी अपने परिचित के नाम एक पत्र और उसका पता लिखकर देता हूँ।"
हैमिल्टन अंदर चला गया। शिव प्रसाद ने माधुरी को समझाया कि वह काम होने के बाद यहीं बाहर बैठ कर उसके लौटने की राह देखे।