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कर्म पथ पर - 22




कर्म पथ पर

Chapter 22


खाना खाने के बाद जय ने मालती से कहा,
"बहुत ही स्वादिष्ट खाना था। तुम्हारी अम्मा ने बनाया था।"
"खाना अम्मा ही बनाती हैं। मैं कभी कभी उनकी मदद कर देती हूँ।"
"अपनी अम्मा को मेरे और मेरे साथी की तरफ से धन्यवाद देना। उनसे कहना कि मैं उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ।"
संतोषी आड़ में खड़ी जय की बात सुन रही थी। उसने आड़ में रहते हुए ही कहा,
"मेहमान को भोजन कराना तो हमारी रीत है। इसमें धन्यवाद की ज़रूरत नहीं है। पर आप मुझसे किस विषय में बात करना चाहते हैं।"
जय ने नम्रता से कहा,
"आपने बिन बुलाए मेहमानों को सम्मान दिया इसके लिए मैं दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ। दरअसल मैं लखनऊ के अखबार हिंद प्रभात की तरफ से आया हूँ। मैं आपकी बड़ी बेटी के बारे में बात करना चाहता हूँ।"
उसकी बात सुनकर संतोषी ने कहा,
"क्यों हमारे जख्मों को कुरेदना चाहते हैं। अपनी बेटी के दुख को किसी तरह दिल में दबा कर बड़ी मुश्किल से ज़िंदगी दोबारा शुरू की है।"
"हम यह सब आपके जख्मों को कुरेदने के लिए नहीं कर रहे हैं। हम आपकी मदद करना चाहते हैं।"
"आप हमारी क्या मदद करेंगे। कोई हमारी सहायता नहीं कर सकता है।"
"आप नहीं चाहती हैं कि उस हैमिल्टन को उसके किए की सज़ा मिले।"
"उसे क्या सजा मिलेगी। सजा तो हमें मिल रही है।"
"हम उस हैमिल्टन के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। उसकी काली करतूतों को सबके सामने ला रहे हैं।"
"वो बहुत ख़तरनाक है। उसका कुछ नहीं होगा। हमारी दोनों छोटी बेटियों के लिए मुश्किल हो जाएगी।"
"हम आपकी समस्या समझते हैं। सिंह साहब से मेरी बात हुई थी। सब जानकर ही वह हमें यहाँ लेकर आए हैं। आप निश्चिंत रहें। हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जिससे आपकी मुश्किल बढ़े।"
यह जानकर कि उनके पति सब जानते हैं संतोषी कुछ निश्चिंत हुई। उसके चेहरे पर उभरे संतोष को देख कर जय ने कहा।
"आप निश्चिंत होकर जो कुछ भी हुआ हमें बता सकती हैं। हम आपकी सहायता करेंगे। आपकी तकलीफों में इजाफा नहीं करेंगे।"
जय की बात सुनकर संतोषी कुछ देर शांती से मन ही मन विचार करती रही। शायद यह सोंच रही थी कि बात की शुरुआत कहाँ से करे। कुछ पलों तक चुप रहने के बाद संतोषी आड़ से निकल कर सामने आई। जय समझ गया कि वह कुछ बताना चाहती है। उसने आंगन में रखा एक मोढ़ा सामने रखते हुए कहा।
"बैठ कर बिना किसी संकोच के सब कुछ बताइए।"
संतोषी ने मालती से कहा कि वह मेघना को लेकर भीतर जाए। दोनों बच्चियों के जाने के बाद संतोषी ने आपबीती बताना शुरू किया।

शिव प्रसाद आर्य समाजी थे। वह अक्सर समाज की सभाओं में जाया करते थे। आर्य समाज के सदस्य मूर्ति पूजा, जात पात आदि पर विश्वास नहीं करते थे। आर्य समाज हिंदू धर्म में प्रचलित कुरीतियों का विरोध करता था। अपनी किशोरावस्था में ही शिव प्रसाद आर्य समाज के संपर्क में आए थे। उनके व्यक्तित्व पर आर्य समाज के विचारों का गहरा प्रभाव था।
उनकी पत्नी संतोषी पर भी उनके विचारों का असर था। संतोषी कुछ हद तक पढ़ लिख लेती थी। शिव प्रसाद उसे पुस्तकें पढ़ कर अपना ज्ञान बढाने के लिए प्रेरित करते रहते थे।
शिव प्रसाद व संतोषी की तीन बेटियां थीं। दोनों पति पत्नी अपने जीवन से संतुष्ट थे। पर रिश्तेदार व आस पड़ोस के लोग बातें करते रहते थे। अक्सर रिश्तेदार उन्हें इस बात का एहसास कराने का प्रयास करते थे कि उनका कोई पुत्र नहीं है। अतः उनका वंश आगे नहीं बढ़ सकेगा। वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा। किंतु शिव प्रसाद व संतोषी इन बातों पर ध्यान नहीं देते थे।
शिव प्रसाद समाज में स्त्री और पुरुषों की समानता पर यकीन करते थे। उनका मानना था कि जिस तरह समाज लड़कों को पढ़ने लिखने के अवसर प्रदान करता है वैसे ही लड़कियों को भी मौका मिलना चाहिए। एक लड़की के जीवन का उद्देश्य केवल अच्छा पति प्राप्त कर घर गृहस्थी का संचालन ही नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे भी शिक्षा प्राप्त कर स्वयं को देश व समाज कल्याण के कार्यों के योग्य बनाना चाहिए। वह अपनी बेटियों को सदा यही सिखाते थे कि वह स्वयं को लड़कों से कम ना समझें। पढ़ लिख कर अपनी पहचान बनाएं।
उनकी सबसे बड़ी बेटी माधुरी बहुत ही गुणी लड़की थी। बहुत अधिक बुद्धिमान थी। अपनी बेटी की पढ़ने की ‌इच्छा को देखते हुए ‌शिव प्रसाद ने ‌समाज के तमाम ‌विरोध के बावजूद उसे विधिवत स्कूल भेज कर पढ़ाना आरंभ किया।
माधुरी ना सिर्फ पढ़ने में अच्छी थी बल्कि अपने स्कूल में होने वाले खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेती थी। अक्सर पुरुस्कार जीतती थी।
परंतु माधुरी की उपलब्धियां उसके आसपास के समाज को पसंद नहीं आती थीं। माधुरी पंद्रह साल की हो गई थी। उसके रिश्तेदारों का कहना था कि इस आयु तक तो उसका विवाह हो जाना चाहिए था। जबकी शिव प्रसाद उसका विवाह करने की जगह उसे स्कूल भेजते हैं। वहाँ वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सबके सामने स्टेज पर नाचती गाती है। यह अच्छी बात नहीं है। इसका उनकी बच्चियों पर भी बुरा असर पड़ेगा। अतः शिव प्रसाद पर माधुरी का विवाह कराने के लिए दबाव बनाया जा रहा था।
वैसे तो शिव प्रसाद अपनी नौकरी व आर्य समाज के कामों में ही व्यस्त रहते थे। रिश्तेदारों व पड़ोसियों से उनका वास्ता कम ही रहता था। पर पर तीज त्यौहार या पारिवारिक कार्यक्रमों के दौरान जब भी वह लोगों के संपर्क में आते थे तो उन्हें रिश्तेदारों से तरह तरह के ताने सुनने पड़ते थे। पर शिव प्रसाद इन सबकी आंच अपनी बेटियों पर नहीं पड़ने देते थे। वह उन्हें सदैव गार्गी, मैत्रेयी, अपाला, घोषा जैसे पौराणिक चरित्रों व चाँद बीबी, बेगम हजरत महल व रानी लक्ष्मीबाई जैसे ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में बताते रहते थे। इसके अलावा समकालीन महिलाओं जैसे सरोजिनी नायडू, ऊषा मेहता, सुचेता कृपलानी आदि से प्रेरणा लेने की सीख देते थे।

अपनी कहानी सुनाते हुए संतोषी रुकी। उसने जय से कहा।
"अभी आपने बताया कि आप हिंद प्रभात से आए हैं। ये पत्र हमारे घर में बहुत महत्व रखता था। हम प्रतिदिन बेसब्री से इसके आने की राह देखते थे। हिंद प्रभात के आते ही मेरी बेटी माधुरी उसे पढ़ कर सबको सुनाती थी। खासकर वृंदा के लेख उसे बहुत पसंद थे। वह उससे बहुत प्रभावित थी। आपने जब मेरे पति को हिंद प्रभात के बारे में बताया होगा तो ही वह आप पर विश्वास कर यहाँ लाए होंगे। मैं भी इसीलिए आपको सब बताने को तैयार हो गई।"
संतोषी की बात सुनकर जय ने रंजन की तरफ देखा। दोनों के ही मन में वृंदा के लिए आदर का भाव था। जय ने बात आगे बढ़ाई।
"जिस तरह उस शैतान हैमिल्टन ने आपकी बेटी माधुरी का जीवन बर्बाद किया, उसी तरह उसने वृंदा को भी तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन वृंदा के फौलादी इरादों को वह कमज़ोर नहीं कर सका।"
जय ने संतोषी के चेहरे पर उठ रहे भावों को परखने का प्रयास किया। संतोषी उसकी बात सुनकर प्रभावित थी। जय ने कहा।
"अपने साथ हुए अन्याय के बावजूद भी वृंदा ने उस हैमिल्टन को सबक सिखाने के लिए कमर कसी है। वह हिंद प्रभात में अपने लेखों के माध्यम से उसकी काली करतूतों को लोगों के सामने लाना चाहती है। आपने हिम्मत की है तो उसकी यह करतूत सबके सामने आएगी। उसकी जड़ें खोदने में हमारी सहायता करेगी।"
जय की बात ने संतोषी के दिल में उम्मीद का दीपक जला दिया था।

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