ईश अनुभव Ashish Garg Raisahab द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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ईश अनुभव

मैं हर साल 31 दिसंबर को अपने मित्रों ले साथ बालाजी मंदिर सालासर (राजस्थान) ओर बाबा श्याम मन्दिर खाटूश्याम (राजस्थान) जाता हूँ , 2008 से 2018 तक मैं अनवरत इसी तरह साल दर साल गया हूँ । इसी दौरान कुछ ऐसा घटित हुआ जो मेरे अंतर्मन को छू गया ऐसी घटना जिसे कभी भुलाना मेरे लिये ओर मेरे मित्रों के लिए असम्भव है ।
बात 2010 की है , मेरे साथ मेेेरे 6 मित्र और थे हम सब 31 दिसंबर 2009 को मेरे गृहनगर संगरिया (राजस्थान) से चले थे और शाम को सालासर पहुंच गए , यहां पर हमने धर्मशाला में कमरा किराये पर लिया ओर समान रख कर बालाजी मंदिर में माथा टेका ।


पूरे सालासर में इस दिन उत्सव का माहौल होता है , दुकाने सजी होती हैं , पूरी भीड़भाड़ होती है रात को सभी धर्मशालाओं ओर मन्दिर प्रांगण में जागरण होते हैं तत्पश्चात रात को 12 बजते ही पटाखे छोड़े जाते है और भव्य आतिशबाजी की जाती है , पूरे हर्ष ओर उल्लास के बीच नववर्ष का स्वागत किया जाता है , हम सबने भी इस का खूब आनंद लिया और ढोल व डी जे पर खूब नाचे ।


इस सब के बाद हम सब रात को 1 बजे के करीब कमरे में जाकर सो गए क्योंकि सुबह जल्दी उठकर नए साल की धोक लगानी होती है और भीड़ बहुत होती है , सुबह 5 बजे हम सब नहा कर मंदिर प्रांगण में पहुंचे और लाइन में लग गए हमे दर्शन करने में लगभग 6 घण्टे लग गए और लगभग 12 बजे तके हम मन्दिर से बाहर आ गए उसके बाद हम अंजनी माता मंदिर गए और दर्शन करके वापिस धर्मशाला आ गए वहां से निकलने में हमे 2 बज गए और हमने खाटूश्याम की ओर प्रस्थान किया लगभग 4 बजे हम खाटूश्याम जी पहुंच गए ।

खाटूश्याम में कुंतीपुत्र भीम के पोत्र , घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक महाराज जो कि श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं उनका मंदिर है , इन्हें शीश का दानी ओर हारे का सहारा के नाम से जाना जाता है , भगवान श्री कृष्ण ने दान में इनका शीश मांगा था जब ये महाभारत के युद्ध मे भाग लेने जा रहे थे तो श्री कृष्ण ने इन्हें श्याम नाम दिया था ।

वहां पहुंच कर हमने देखा कि भीड़ इतनी अधिक थी कि हमे दर्शन करने में 5 से 6 घंटे लग जाते और उसी दिन हमारा घर पहुंचना भी जरूरी था क्योंकि घर पर से 2 ही दिनों की परमिशन ही मिली थी ।
काफी देर के बाद जब हमे कोई और रास्ता ना दिखा तो हमने बाहर से ही बाबा श्याम को प्रणाम करने का निश्चय किया ओर सीधा श्याम कुंड में स्नान करके निकलने का निश्चय कर लिया पर हमें क्या मालूम था कि बाबा ने हमारे लिए कुछ और ही सोच रखा था । जब हम चलने लगे तो हमे पीछे से किसी व्यक्ति ने आवाज लगाई और कहा कि आजाओ मैं थाने दर्शन करवाऊं मेरे लारे आजो (मेरे पीछे आ जाओ मैं आपको दर्शन करवाता हूँ) हम सब उस के पीछे पीछे जाने लगे वो हमें लाइनों के मध्य से जहां सुरक्षाकर्मी खड़े होते हैं वहां से ले जाने लगा उसे किसी ने नही रोका और हम भी उसके पीछे जाने लगे , हमे पता ही नही की हमारे साथ क्या हो गया , वहां मंदिर के मुख्य दरबार के साथ मे ही एक छोटा सा दरवाजा है जिसके अंदर प्रवेश करते ही सीढियाँ है वो हमे उस रास्ते से ले गया हम पहले ऊपर की ओर गए फिर थोड़ी दूर गैलरी में चले और फिर नीचे की ओर सीढ़ी आयी हम उसके पीछे ही उतर गए आगे एक छोटा दरवाजा आया जिसे लांघकर सामने मंदिर की मुख्य मूर्ति लगी हुई है , सुरक्षा कर्मी ओर पंडित जहां खड़े होते हैं ओर बाबा के मध्य जो जगह होती है वहां पर से हमे दर्शन हो गए , हम तो दर्शनों मे ही खो गए और वो व्यक्ति कहीं गायब हो गया । हमने उसे बहुत ढूंढा मगर वो नही मिला फिर अचानक दिमाग मे आया कि कहीं वो श्याम बाबा ही तो नहीं थे जो हमे दर्शन देने स्वयम आये थे और हम पहचान भी ना सके , आंखों से अविरल अश्रुधार बह गयी और हमने एक दूसरे को गले लगाया।
कहीं तो कह रहे थे कि दर्शन हो के नही हो और कंही 10 मिनट में हम दर्शन कर के मन्दिर परिसर से बाहर आ गए ये तो उन परमात्मा की कृपा है जो खुद आकर भगवान हमे दर्शन दे गए तभी तो कहते हैं कि कोई पता नही भगवान कहाँ ओर किसमे विद्यमान हो कर आपके सामने आ जाये और आप पहचान भी न पाएं ।
फिर हम श्याम कुंड को गये वहां से स्नान करके घर को वापिस चल दिये रास्ते में इच्छा पूर्ण बालाजी मंदिर सरदार शहर के दर्शन किए और रात को करीब 2 बजे हम घर पहुंच गए ।
जय श्री श्याम