अंजलि...१ Ashish Garg Raisahab द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंजलि...१

अंजलि!! जी हाँ ...
        अंजलि अग्रवाल यही नाम था उसका देखने में इतनी खूबसूरत जैसे सारी कायनात की क्यूटनेस और ब्यूटी ईश्वर ने अपनी इसी रचना को दे दी हो,लम्बी कदकाठी ,तीखे नैन-नक्श उसके ऊपर सूंदर चेहरा उसको और भी आकर्षक बना देता था।
पहली बार मैंने उसको ट्यूशन पर देखा था । चूँकि मैं मैथ्स से बी.ए. नॉन कॉलेजिएट कर रहा था और प्रथम वर्ष के एग्जाम्स करीब आने वाले थे और मुझे सलेब्स तक का ज्ञान नहीं था ।आमतौर पर प्राइवेट स्टडी करने वालो का हाल ऐसा ही होता है और हमारे राजस्थान में खासकर वन वीक सीरीज आती है जिन्हें पढ़कर विद्यार्थी एक वीक में पास हो ही जाते हैं । परंतु मेरे साथ ओर बुरा हुआ पता चला कि मैथ्स की वन वीक सीरीज आती ही नहीं तो मैंने तुरंत कोचिंग का पता किया और दीपक सिंह सर के यहां बी.एस. सी की ट्यूशन चल रही थी लगभग आधा सिलेबस हो चूका था तो उनसे रिक्वेस्ट कर के कोचिंग ज्वाइन कर ली ।
अब आपको ज्यादा बोर न करते हुए सीधा कहानी पर आता हूँ ,तो हुआ ऐसा की क्लास के पहले ही दिन हम उनको यानि कि अंजलि जी को देखते ही अपने होश खो बैठे और हमारा ध्यान उन्ही की तरफ रहता । पता नही वो मोहब्बत थी या अट्टरक्शन हमारी समझ से बाहर था हालाँकि समझ तो मुझे अभी तक भी नही आया उनकी एक अलग ही अदा थी ,वो सबसे हंसकर बात किया करती थी और चेहरे की मुस्कराहट हरेक के लिए होती थी और मैं इसी को प्यार समझ बैठा ।
     

(रूटीन)
   दिसम्बर का महीना था हम लोग रोजाना शाम को ट्यूशन पर मिलते थे , बात तो नहीं होती थी कभी पर उनको देखकर दिल को सकूँ आ जाता था , हर सुबह इसी उम्मीद के साथ के स्फूर्तिदायक हो जाती थी कि उनके दर्शन होंगे । इसी बीच हमे पता चला कि उनके पिताजी की शॉप हमारी शॉप के सामने थी ,मतलब वो राजेंद्र जी किराना वालो की लड़की थी , एक बारगी तो उदासी सी छा गयी मुझ पर अगर डैडी को पता चल गया वो पढ़ाई छुड़वा कर दुकान पर बैठा देंगे डैडी का इतना खोफ था हम तीनों भाई बहन में कि हमारी आवाज खो जाती थी ।
     लेकिन भूत-ए-इश्क़ भी कोई छोटी चीज नही होता हर मुश्किल से टकराने का हमने फैसला ले लिया था ,इसी दौरान ट्यूशन में मैंने दोस्त भी बना लिए थे अंकुश माहेश्वरी और निखिल सेठी । हम तीनों की दोस्ती इतनी गहरी हुई की हम आज भी बहुत करीबी दोस्त है ,मेरी तरह उन लोगो की कमजोरी भी प्यार ही थी और अब समस्या ये हो गयी की हम तीनों की मंजिल भी एक ही थी अंजलि अग्रवाल ।।।
      अंकुश और निखिल तो अंजलि के साथ कॉलेज में थे,उनको पूरा मौका मिलता था ट्राय करने के लिए और सही मायने में मुझे अच्छा नहीं लगता था इसी बीच अंजलि कॉलेज जाने से पहले अपने पापा की शॉप आ जाती और वहां से कॉलेज जाने लगी और उसकी दो सहेलिया भी वही शॉप आ जाती और तीनों इकठा हो कर कॉलेज जाने लगी पहले तो मुझे इस बात का पता नही चला पर एक दिन डैड घर गए हुए थे और मै शॉप पर था सुबह के 10 बजने वाले थे की वो अपने पापा के साथ अपनी दुकान आ गयी
मैं बिलकुल सामने था अचानक से मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी  और कान गर्म हो कर लाल हो गए हालाँकि वो मेरी तरफ नहीं देख रही थी फिर भी ना जाने क्यों ये आस थी वो देखेगी जरूर ,आखिर वो खूबसूरत वक्त आ ही गया और उसने मुझे देखा और मुस्कुरा दी ,। बस यही पर मेरा यकीं पक्का हो गया कि उसको मुखसे प्यार हो गया है मैं हवा इ उड़ने लगा था फिर उसी दिन ये घटना दोबारा हो गयी दोपहर को 1 बजे वो वापिस आयी कॉलेज से और फिर अंकल उसको छोड़ने गये तब भी बाइक पर बैठे हुए उसने मुड़कर दोबारा देखा तो मेरे दिमाग ने भी काम करना शुरू कर दिया
वो आज ही अपनी शॉप पर क्यों आयी इससे पहले भी आ सकती थी या मैंने ही कभी ध्यान नहीं दिया पर ऐसा भी नहीं हो सकता कि कोई खूबसूरत लड़की रोजाना दुकान के आगे आये और मैं उसे देखु भी ना.....
   फिर तो यकीन मजबूत हो गया की वो सिर्फ मुझे देखने आयी थी , अब तो रोज का रूटीन हो गया उसका भी और मेरा भी मैं सुबह डैडी के आने से पहले ही शॉप खोल लेता और सफाई वगेरा कर के बैठ कर 10 बजने का इंतज़ार करता । ट्यूशन अपने ही ढंग से चल रही थी मेरा ध्यान उसकी तरफ ज्यादा रहता था मैथ्स के साथ दो और सब्जेक्ट भी थे इंग्लिश लिटरेचर और सोशियोलॉजी पर इनकी चिंता नहीं थी मुझे क्योंकि वनवीक मिल जाती थी ,मैं अंकुश और निखिल तीनो पढ़ाई के बहाने ट्यूशन ले बाद भी मिल जाते और हमारी चर्चा का एक ही विषय होता अंजलि , वो आज ज्यादा अच्छी लग रही थी या और भी अनाप शनाप
ब्लैक सूट में ज्यादा जचती है फिर तीनो में बहस भी हो जाती की वो किससे प्यार करती है हमे तीनो को यही लगता कि वो हमसे प्यार करती है पता नही वो जानबूझ कर दिखाती थी या हम तीनों ही बिलकुल बुधु थे , मैंने उन दोनों को उसके रूटीन की बात बताई और उसको डेली सुबह दोपहर को
देखना बताया। मगर उनदोनो को मुझ पर न जाने क्यों यकीं नही आया अगली सुबह दोनों मेरी शॉप पर थे सुबह साढ़े नो बजे ,लेकिन जब वो आयी और उनदोनो को यकीन हो गया
बेचारो का मुंह उत्तर गया और कॉलेज की तरफ चल दिए ।
क्रमशः