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मेरा आठवां प्यार ...

वर्ष 2012 , बी.एड. उस वक्त एक वर्ष की होती थी ,ओर प्री एग्जाम में मेरे अच्छे नम्बरों की वजह से मुझे मेरे होम टाउन में ही प्रेस्टीजियस कॉलेज मिल गया था । 
नए जोश और उमंग के साथ मैंने कॉलेज में एडमिशन लिया। कुछ बात यह भी तो थी मेरे जोश की मैने कभी कॉलेज जॉइन नहीं किया था क्योंकि बी.ए. मैंने प्राइवेट यानी नॉन कॉलेजिएट किया था ।कॉलेज में 180 सीट्स थी बी. एड के लिए ओर लगभग इतनी ही सीट्स एस.टी.सी के लिए थी । कॉलेज का पहला दिन 8 अगस्त 2012 पूरा मस्ती में बीता ,को एड कॉलेज था सो लड़कियां होना स्वभाविक है और मुझे तो पहले भी कई बार प्यार हो चुका था और वो भी कोई ऐसे वैसे वाला नहीं सच्चा वाला प्यार सो इस बार सोच रखा था प्यार के झंझट में ही नही पड़ना कितनी बार दिल टूट चुका था मेरा क्योंकि जितनी बार भी प्यार हुआ एक तरफा ही हुआ था सो 
      'इश्क़ में नादान हम इस कदर 
      बस उनहें देखने की चाहत रखते हैं ..
     उन्हें फुर्सत नहीं हमसे बात करने की ,ओर
     हम उन्हें अपना बनाने की ख्वाहिश करते हैं ..'
पुरानी प्रेम कहानियां तो फिर कभी सुनाएंगे आज तो इस आठवीं प्रेम कथा को आगे बढ़ाता हूँ । कॉलेज का पहला दिन ओर इसी तरह आगे के कुछ दिन इसी तरह से निकल गए और एक दिन मैं कॉलेज नही जा पाया क्योंकि पिताजी उस दिन आउट ऑफ टाउन गए थे और मेरी ड्यूटी शॉप पर लग गयी शॉप हम लगभग 9 बजे खोलते थे ओर कॉलेज का वक़्त भी यही था ओर उस दिन मैं शॉप पर झाड़ू लगा रहा था और मेरे कॉलेज की चार लड़कियां शॉप के आगे से जा रही थी उनमे से एक मुझे देखकर हंसने लगी पता नहीं वो मुझे झाड़ू लगाते देख हंस पड़ी या फिर बात कुछ और हो ।
अगले दिन जब मैं कॉलेज गया तो नजरें बस उसी को तलाश रहीं थी । 
   बी एड में क्या होता है कि सब कुछ स्कूल जैसे होता है जैसे स्कूल में प्रेयर होती है और उसके बाद जन गन मन (राष्ट्र गान ) ओर उसके बाद प्रतिज्ञा (भारत मेरा देश है , समस्त भारतीय मेरे भाई बहन हैं ........) होती थी तो ये सब होने के बाद हम सब 180 स्टूडेंट्स को 45 -45 स्टूडेंट के चार सेक्शन में बांट दिया गया लेकिन किस्मत अच्छी थी कि हम दोनों को एक ही सेक्शन मिला 'ए' सेक्शन ।
उसे तो पता नही लेकिन मेरे दिल को बहुत सकूं मिला नाम तो उसका मैंने अभी पूछा नही था लेकिन मेरे दोस्तों की मदद से वो भी पता चल ही गया 'मोनिका अरोरा ' ।
   हमारी प्रेम कहानी अभी भी शुरू नही हुई थी ,ना मैन उसे बुलाया था ना उसने मुझे बस एक दूसरे को देखते रहते थे ,क्लास में एक ही रो में बैठते थे हम लोग ओर हमारी कुर्सियां एक दूसरे की तरफ 45 डिग्री के कोण पर रहती थीं , दोनों मुस्कुराते रहते थे
लेकिन कहते कुछ भी नही थे । इसी बीच हमारे कॉलेज में स्कूल की तरह ही शनिवार को बालसभा का आयोजन करवाया गया और हमसे बिना पूछे ही उन मोहतरमा ने हमारा नाम लिखवा दिया ,हम बेखबर ,बेसबब बैठे थे महफ़िल में ,के होस्ट ने हमारा नाम पुकार लिया हमारे तो होश फाख्ता हो गए और उधर से उसने तालियां बजाने शुरू कर दिया जिसके पीछे सब ने तालियां बज दी और मजबूरन हमे उठना पड़ा ,कांपती हुए पैरों से हम स्टेज को पहुंच गए और कुछ सूझ नही रह था कि क्या बोलें तो सभी को नमस्कार बोल हम वापिस सीट को आने लगे तो सर् ने टोका के अरे दीपक !!
नमस्कार करने को थोड़े बुलाया था तो हमने जवाब दिया सर कुछ याद नही आ रहा ,इतनी बेइज्जती महसूस हो रही थी कि हम क्या बोलें तभी जेहन में एक गाना याद आ गया ,जी वो गाना था ' शाहरुख खान' अभिनीत फिल्म बाजीगर का 
छुपाना भी नहीं आता 
जताना भी नहीं आता
हमें तुमसे मोहब्बत है 
बताना भी नहीं आता ..
........................
मेरे सभी मित्रों ने जोर शोर से तालियां बजायी ओर एक ने तो उठकर बोला भाई गाना सुना रे हो या प्रोपोज किया है ।मेरे मुंह से कोई शब्द नही निकला ओर वो भी सिर झुकाए बैठी थी 
दिल की धडकने बहुत तेज चल रही थी मानो रेलगाड़ी धड़धड़ाती निकली जा रही हो 
इसी तरह वो शनिवार गुजर गया फिर सोमवार आ गया और उस दिन उसने हमें पहली बार बुलाया चूंकि कॉलेज का टाइम चेंज हो गया था और मैने कभी सब्जेक्ट की क्लास नहीं लगाई थी कॉमन क्लासेज लगा लेता था जो के हाफ टाइम से पहले होती थी सो उस दिन उसने मुझे बुलाया और कहा दीपक ! मैं खुद पर यकीन नही कर सका के उसने मुझे बुलाया है दिल धक धक करने लगा मैने सोचा आज तो ये कहेगी कि तुम सारा दिन मुझे घूरते क्यों रहते हो या कुछ और उल जलूल कहेगी लेकिन उसके मुंह से शानदार शब्द निकले और बोली 'मैम ने कहा है कि इंग्लिश की क्लास 2:50 pm पर लगेगी क्लास लगाने आ जाना !'
मैने मना कर दिया कि 'मैं नहीं आ सकता '
ना जाने मुझे क्या हुआ इतने लफ्ज कह कर में वापिस आ गया और घर को चला आया 
इस घटना के बाद उसने मुझे बुलाया नही ओर मेरी तरफ एक बार भी नही देखा ऐसा 4-5 दिनों तक चलता रहा मुझे बहुत तकलीफ हुई और उसके लिए प्यार और ज्यादा बढ़ गया तो आखिर मैंने ही उसे बुलाने का फैसला किया और पूछा ,
'इंग्लिश की क्लास कब लगेगी ?'
वो बोली 'पता नही मैम से पूछ लो ' 
मैं,' प्लीज़ नाराज मत हो बता दे कब लगेगी क्लास?'
मेरी बात सुनकर वो मुस्कुरा कर बोली कि 2:50 पर ।
मेरी खुशी का ठिकाना न रहा 1 और 1 बजे हाफ टाइम के बाद मैं घर चला गया और ठीक 2:30 पर वापिस आ गया ,सिर्फ इंग्लिश वाले 5 स्टूडेंट हॉल में बैठे थे और में भी हॉल में चला गया ओर उसके आगे वाली कुर्सी को पलट कर उसके सामने बैठ गया ,उसने बोला 'आ ही गये जनाब '
मैने भी कह दिया 'आपने बुलाया हो और हम ना आएं ये कैसे मुमकिन है'....
उस दिन क्लास में हम दोनों पास पास बैठे थे ओर एक दूसरे को ही देख रहे थे..... लेकिन जल्दी ही क्लास समाप्त हो गयी और में अपनी बाइक से शॉप आ गया और वो पैदल अपनी सहेली के साथ आने लगी , शॉप आकर में बैठ गया और उसके आने का इंतज़ार करने लगा क्योंकि उसके घर जाने का रास्ता भी यही था फिर थोड़े से इंतज़ार के बाद वो आ गयी और देखकर मुस्कुरा कर चली गयी ,
'बैचैन मेरे दिल को सकूं मिल जाता था 
जब जब वो मुझे देखकर मुस्कुराती थी'



कुछ दिन बाद ऐसा हुआ कि मैं दो तीन दिन कॉलेज नही जा पाया तो वो शॉप पर आ गयी उस दिन मैं शॉप पर अकेला था पापा दिल्ली गए हुए थे और मुझसे पूछा कि कॉलेज क्यों नही आ रहे तो मैं बोला की पापा बाहर गए हुए हैं तो एक दो दिनों में आऊंगा 
वो मेरे पास मेरी शॉप पर भी आ गयी इसके बावजूद भी मैं उससे अपने दिल की बात नही कह पाया जब भी दिल चाहता कि उसे बता दूं इस डर से की वो मना ना कर दे चुप हो जाता था ।
इसी के दरमियान टीपी स्टार्ट हो गयी टीपी यानी कि टीचिंग प्रैक्टिस जो कि स्कूलों में होती थी इस बार हमें अलग अलग स्कूल मिले सो लगभग डेढ़ महीने तक मुलाकात भी नही हो पाई ,
 टीपी के कठिन दिनों के गुजर जाने के बाद हमारे कॉलेज के दिन फिर शुरू हो गए और एक दिन जब वो बाइक स्टैंड के पास खड़ी थी और अपनी सहेली का वैट कर रही थी और साथ ही स्कूटी के साइड मिरर में अपनी जुल्फें सवार रही थी तभी मुझे पता नही कहा से मुकेश का गाया गाना याद आ गया ओर मैं गुनगुना उठा ,
            'दर्पण को देखा तुमने 
           जब जब किया श्रृंगार
        फूलों को देखा तुमने
       तब तब आयी बहार
     इक बदनसीब हूं मैं 
     जो देखा ना इकबार....'
मेरा ये गाना सुन वो बोली कि ये कहाँ कहाँ से तुम पुराने गाने उठा लेते हो ...
तब मैंने कहा ये पुराने गाने ही है जो इस मोमेंट पर काम आ गए कोई नया गाना इस परिस्थिति पर फिट भी नही आना था । वो मेरी बात सुनकर हंस दी । पता नही शायद ऐसा क्यों लगा वो मुझ पर हंसी या मेरे गाने पर ...खैर जाने दीजिए इस बात को अब हम आगे बढ़ते हैं --.......

कुछ दिन बाद नोटिस बोर्ड पर  सूचना लगी थी कि एक नेशनल लेवल का कार्यक्रम कॉलेज में आयोजित हो रहा है जिसमे देश के प्रतिष्ठित कॉलेजेस से लोग आएंगे और कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे इस मे 10 लड़के और 10 लड़कियां हिस्सा लेंगी जिनको नाम लिखवाना हो वो चौधरी सर को अपना नाम लिखवा दें उस ने तो अपना नाम लिखवा दिया और जब मैं लिखवाने गया तो सर ने कहा कि नाम तो कम्पलीट हो गए मैने उनसे मिन्नत कर हाथ जोड़े तो उन्होंने नाम लिख लिया ।
तीन दिन के कार्यक्रम में हमे वहीं रहना था और हमारा ब्रेकफास्ट ,लंच ओर डिनर सब वही पर होना था गर्ल्स तो घर चली जाती थी और बॉयज वहीं रह जाते थे ,इन तीन दिनों में हम पूरी तरह से घुल मिल गए और सबने पूरी मौज मस्ती की । कार्यक्रम के अंतिम दिन मैंने मौका देखकर उसको रोक लिया हॉल के बाहर बरामदे में मैन उस से पूछा कि उसके दिल मे क्या है तो उसने साफ मना कर दिया ।
मेरा वहां रुकना ही मुश्किल हो गया में तबियत खराब होने का बहाना कर के घर आ गया ओर लेट गया कुछ भी खाया पिया नही मन बहुत उदास था घर पे सब ने पूछा कि क्या हो गया पर क्या बताता?
मैन कॉलेज जाना बंद कर दिया और दिन भर सोचता कि आखिर ये सब क्या था वो क्यों बार बार देखती थी क्यों मुस्कुराती थी और इस सब मे मेरी क्या गलती थी।
 शुरुआत भी तो उसी ने की थी फिर मुझे क्यों नकार दिया । रह रह कर तरह तरह की बाते मन मे आ रही थी ,मन कही भी लगता नही था, कभी कभी तो अकेले में बैठकर मैं खूब रोया पर क्या हो सकता था फिर एक दिन एक दोस्त चंद्र आया घर उसने पूछा तो रो रोकर मैने सारी बात बताई तो वो बोला 
वाह रायसाहब !!! (रायसाहब - ये उपाधि मेरे दोस्त चंद्र ने ही दी थी ) भी कोई बात है , ऐसा तो होता ही रहता है लाइफ में कॉलेज क्यों छोड़ दिया 
मैने साफ मना कर दिया कॉलेज के लिए,पर वो भी जिद्दी था आखिर मुझे कॉलेज जाना पड़ा मैंने किसी से भी बात नही की ,मोनिका ने भी बुलाने की कोशिश की पर में नही बोला । 
फिर कुछ दिन बाद पता चला कि मोनिका की इंगेजमेंट हो चुकी थी और दिसंबर में उसकी शादी होने वाली थी ये बात चंद्र की गर्लफ्रैंड जो कि मोनिका की सहेली थी उसने चन्द्र को बताई जो मुझे बाद में पता चली ।
लेकिन एक बात जरूर है कि कहीं न कहीं उसे भी मुझसे प्यार था जो वो अपनी मजबूरी के चलते बता नही पायी उसे बेवफा कहने का कोई हक नही है मुझे ,आज भी वो सब यादें मेरे दिलो दिमाग मे वैसे ही हैं जैसे कल परसों की बाते हो ...
एक गाना फिर उसके लिए ...
'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर
यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर 
रखूंगा दिल के पास
मत हो मेरी जान उदास' 
पहले के सात प्यार जो मुझे हुए थे उनकी कहानी फिर कभी .... 
(समाप्त)

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