बात एक रात की - 13 Aashu Patel द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बात एक रात की - 13

बात एक रात की

Aashu Patel

अनुवाद: डॉ. पारुल आर. खांट

( 13 )

बाइक के पीछे बैठे युवान ने दिलनवाझ के बॉडीगार्ड के सिर में गोली मार दी। उस वक्त दिलनवाझ के शोफर की डर से चीख निकल गईं। दूसरी गोली शोफर की दाहिनी आंख में घुस गई। पचीस हजार रुपये की लालच में सिग्नल पे कार रोकने की वजह से उसने अपनी जान गंवाई!

दिलनवाझ भयभीत हो गया था। उसने मौत को आँखों के सामने देख लिया था। वह भूल गया था कि अमन कपूर का कॉल चालू है। दूसरे छोर से अमन को शोफर की चीख सुनाइ और दिलनवाझ सहसा चूप हो गया इसलिए अमन ने तुरंत ही पुछा, व्होट हेपंड? लेकिन दिलनवाझ कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। वह थर-थर कांप रहा था। वह फटी आंखो से हमलावर के सामने देख रहा था। उसी वक्त हमलावर ने दूसरी गोली दागी जो उसके दाहिने कान के पास से गुजर गई। उसके हाथ से मोबाइल फोन छूट गया लेकिन उसके दिमाग तक ये बात नहीं पहुंची।

गोलीबार करके हमलावर भाग गये लेकिन कुछ पल तक दिलनवाझ पलक झपके बिना पुतले की तरह बैठा रहा।

‘मयूरी, हेव यु हर्ड ध न्यूझ? तुम टीवी के सामने हो?’

जिम से एक्सरसाइझ करके लौटी हुई मयूरी फ्लेट में प्रवेश कर रही थी तभी उसके मोबाइल फोन पर उसकी फ्लेट पार्टनर काव्या का कॉल आया।

‘व्हिच न्यूझ?’ मयूरी ने टीवी रिमोट हाथ में लेते हुए पूछा।

काव्या बोल रही थी इस दौरान मयूरी ने रिमोट क बटन दबाकर टीवी ओन कर दिया था। उसने न्यूझ चेनल सर्फ की। सभी न्यूझ चेनल पे दिलनवाझ पे हुए हमले और उसके बोडीगार्ड की मौत की ब्रेकिंग खबर चल रही थी: दिलनवाझ के मर्डर का प्रयास हुआ। दिलनवाझ बच गया। उसके बोडीगार्ड पुलिसमेन और ड्राइवर मारे गये।

मयूरी सोफे पे गिर गइ। भय ने उसके मन को घेर लिया।

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‘शोकिंग न्यूझ। दिलनवाझ के मर्डर की कोशिश हुई! वह बच गया लेकिन उसका बॉडीगार्ड और ड्राइवर मारे गये।’ शेखर मल्होत्रा का एसोसियेट डिरेक्टर कह रहा था।

‘ओह नो!’ शेखर को धक्का लगा। अभी डेढ़ घन्टे पहले दिलनवाझ ने उसके साथ उध्दत बर्ताव किया था उसकी कड़वाहट उसके मन से निकलीं नहीं थी लेकिन दिलनवाझ के मर्डर के प्रयास की बात सुनकर उसके शरीर में से कम्पन पास हो गया। दिलनवाझ के साथ थोड़े ही महिने में वह एकदम थक गया था, लेकिन अब थोड़े ही दिन उसे सहना था। यह फिल्म पूरी हो जाने के बाद जीवन में कभी भी दिलनवाझ के साथ फिल्म नहीं करने का उसने निश्चय कर लिया था लेकिन अभी यह फिल्म किसी भी तरह पूरी करना चाह्ता था। दिलनवाझ मारा गया होता तो पहली बार हाथ में ली हुई बड़े बजेट वाली फिल्म का क्या होता इस विचार से वह कांप उठा था। दिलनवाझ की किसी भी फिल्म का बजेट डेढ़ सो करोड़ रुपये से कम नहीं रहता था। दिलनवाझ खुद पचास करोड रुपये फी लेता था और उपर से प्रॉफिट में पचास प्रतिशत हिस्सा लेता था।

‘किसी भी किमत पर हमलावरों को गिरफ्तार करो।‘

महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर किसनराव पाटिल बम्बई के पुलिस कमिशनर विकास पटनायक को ताकीद कर रहे थे।

‘हमने पूरी ताकत लगा दी है सर। एंटायर पुलिस फोर्स को एलर्ट कर दिया है। जगह – जगह नाकेबंदी भी कर दी गई है। बहुत जल्द ही हम हमलावरों को दबोच लेंगे।‘ पुलिस कमिशनर ने आश्वासन दिया।

‘मुझे तत्काल रिझल्ट चाहिए।‘ चीफ मिनिस्टर ने जोर दिया।

‘आई एम डुइंग माय लेवल बेस्ट,सर।‘

‘और हां, दिलनवाझ खान को तत्काल ‘वाय’ केटेगरी का सिक्युरिटी कवर प्रोवाइड करवाओ।‘ चीफ मिनिस्टर ने आदेश दिया।

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‘किसी पर आपको शंका है? किसी की ओर से आपको थ्रेट मिली थी?’

बम्बई के जॉइंट पुलिस कमिशनर अमोल कुमार दिलनवाझ को पूछ रहे थे। इस केस का सुपरविझन पुलिस कमिशनर पटनायक ने जॉइंट कमिशनर अमोल कुमार को सौंपा था। हालांकि अमोल कुमार और दिलनवाझ अच्छे दोस्त भी थे इसलिए भी वे ज्यादा रस ले रहे थे।

‘नो।’ दिलनवाझ ने नई सिगरेट सुलगाते हुए जवाब दिया। दिंडोशी बस डिपो के समीप उस पर हमला हुआ तब से दिलनवाझ 10 सिगरेट फूंक चुका था। वह अब भी नर्वस था।

‘किसी पर डाउट है आपको?’

‘नो।’ फिर दिलनवाझ ने एक ही अक्षर में जवाब दिया। उस वक्त उसके दिमाग में ये विचार चल रहा था कि कौन उसके मर्डर की कोशिश कर सकता है? वह अपनी स्मृति शक्ति पर जोर डाल रहा था लेकिन उसका दिमाग शून्य हो गया था।

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‘मैं भी फाइंड करने की कोशिश कर रहा हूँ। ढूँढ निकालेंगे सालों को।‘ एनकाउंटर स्पेश्यालिस्ट प्रशांत पाटणकर दिलनवाझ से फोन पे कह रहा था।

‘थेंक्यु।‘ दिलनवाझ ने कहा। उसका बात करने का मूड नहीं था इसलिए जल्दी से कॉल निपटाई।

कहीं पाटणकर ने तो फायरिंग नहीं करवाया हो !

कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद दिलनवाझ के मन में विचार कौंधा। उसने 250 करोड रुपये तीन महीने में लौटाने का पाटणकर को अल्टिमेटम दिया था। पाटणकर खुरापाती व्यक्ति था और उनके जैसा आदमी किसी भी हद तक जा सकता है। हालांकि उसके मन में तुरंत ही दूसरा विचार आया कि पाटणकर खुरापाती था लेकिन वह इतना स्मार्ट था कि वह ऐसा जोखिम नहीं उठायेगा। पुलिस कमिशनर से लेकर चीफ मिनिस्टर तक उसके सम्बन्धों की वजह से ऐसे मामले की गहन जांच होगी और जांच की आंच पाटणकर तक पहुंचे तो उसकी करियर खत्म हो जाये।

तो फिर कौन होगा जो मुझे मारना चाहता है? दिलनवाझ के मन में यह सवाल घूम रहा था।

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‘हमें जल्द ही हमलावरों को पकडना पड़ेगा। सी.एम. का बहुत प्रेशर है।‘ पुलिस कमिशनर पटनायक जॉइंट कमिशनर अमोल कुमार से कह रहे थे।

‘पूरी फोर्स काम पे लग गई है। कई जगह नाकाबंदी कर दी है। क्राइम ब्रांच के सभी यूनिट के हेड द्वारा माहितगार से जानकारी प्राप्त करने की कोशिश भी हो रही है।‘ अमोल कुमार ने कहा।

‘एनी क्ल्यु?’

‘नोट यट। एकदम बारीकी से सारी प्लानिंग हुई थी ऐसा समझ में आ रहा है। हमलावरों उसकी बाइक पे दिंडोशी बस डिपो से ओबेरोय मोल की ओर भाग गये थे। वे ओबेरोय मोल के सामने लेफ्ट में जा रहे रास्ते पे मुड़ गये थे। इस रोड़ पर थोड़े दूर उन्होंने बाइक को फेंक दी थी और वहाँ से दूसरे किसी वाहन में भाग गये थे। क्राइम में उपयोग में ली गई बाइक पर कब्जा कर लिया गया है, लेकिन ये बाइक एक दिन पहले ही चुराई गई थी। ये बाइक बिहार के मधुबनी के वतनी और अंधेरी में रहते एक साउंड एंजिनियर की थी और उसने अंधेरी पुलिस स्टेशन में बाइक चोरी की शिकायत भी दर्ज करवाई थी।‘ अमोल कुमार ने जानकारी दी।

‘दिलनवाझ को किसी पर शक है?’

‘नहीं, उसे किसी पर शक नहीं है।‘

‘दूसरी कोई उपयोगी जानकारी?’

‘दिलनवाझ ने उसके ड्राइवर को ताकीद कर रखी थी कि सिग्नल रेड हो तो भी कभी कार को रोकता नहीं, अगर सिग्नल पे आगे दूसरे वाहन की वजह से रास्ता ब्लोक हो गया हो तो ही रोकना। उसकी कार को कभी ट्राफिक पुलिस मेन रोकते नहीं थे और शायद रोक ले तो दिलनवाझ को देखते ही ‘सोरी’ कहकर जाने देते थे। लेकिन आज सिग्नल रेड हुआ तब आगे कोई वाहन भी नहीं था फिर भी शोफर ने कार रोक दी थी। उस वक्त दिलनवाझ उन्हें धमकाने जा ही रहा था, लेकिन वह शोफर को कुछ कहे इससे पहले ही हमलावरों बाइक लेकर उसकी कार के सामने आ गये थे।‘

‘इतने प्लानिंग के बाद भी वे शोफर और कार की पीछे की सीट पर बैठे हुए बॉडीगार्ड को मार के भाग गये थे, लेकिन दिलनवाझ को कुछ भी नहीं हुआ। इसलिए हमलावरों का आशय दिलनवाझ का मर्डर करने का हो ऐसा नहीं लगता। वे दिलनवाझ को मारना ही चाहते हो तो आसानी से मार सकते थे। बॉडीगार्ड और ड्राइवर को एकदम निशान लेकर शूट किया गया है, लेकिन दिलनवाझ आगे की सीट पर बैठा हुआ था फिर भी उस पर दागी गई गोली उसके पास से निकल गई। दिलनवाझ का मर्डर करना ही होता तो वे सिर्फ उसे मारकर चले गये होते। बॉडीगार्ड ने प्रतिकार करने की कोशिश की हो इसलिए उसे शूट कर दिया यह भी समझ में आ रहा है, लेकिन उन्होंने शोफर को भी मार दिया। दिलनवाझ को मारना आसान था फिर भी हमलावरों ने दागी हुई गोली उसके पास से निकल गई ! इसलिए स्पष्ट होता है कि हमलावरों को ऑर्डर होगा कि दिलनवाझ को मारना नहीं।‘ पटनायक ने कहा।

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उस रात दिलनवाझ स्लीपिंग पिल लेकर सोने की कोशिश कर रहा था, लेकिन भय की वजह से उसकी नींद हराम हो गई थी। आंख बंद करने के साथ ही उसे दिंडोशी बस डिपो के समीप हुए हमले के द्रश्य उसके मानसपट पर आने लगते थे।

दिलनवाझ करवटें बदल रहा था तभी सहसा उसके मोबाइल की रिंग बजी। उसने कॉल रिसिव किया।

सामने छोर से कहे गये शब्द सुनकर दिलनवाझ कांप उठा।

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