बुरी औरत हूँ मैं
(2)
“ मिस्टर ! तुम चिंता मत करो, मैं खुद देख लूंगी मुझे क्या करना है और देखो तुमने मेरा बहुत टाइम वेस्ट कर दिया है, मुझे लगता है मुझे चलना चाहिए, कभी मेरी जरूरत समझो तो इस नंबर पर कॉल कर देना मैं आ जाऊँगी”, कह उसने एक कार्ड अपने पर्स से निकाल मुझे दिया और चली गयी मुझे मेरे सवालों के साथ छोड़.
सपना था या हकीकत ? एक उहापोह में खुद को पाया. नहीं ये सच नहीं है, वो जो दिखती है या कहती है उससे कहीं बहुत गहरे अंदर गड़ी हुई है, मुझे उसे उससे परिचित कराना होगा नहीं तो वो अपनी ज़िन्दगी एक दिवास्वप्न में ही गुजार देगी. उसे वक्त देना होगा जितना वो चाहे क्योंकि अभी दो मुलाकात हुई हैं तो कैसे संभव है वो भी मुझे चाहे या मुझे और मेरे प्यार को समझे............ अब जरूरी तो नहीं जो हाल मेरा है वो ही सामने वाले का हो..........मुझे इंतज़ार करना होगा और समय समय पर उसे खुद से भी वाकिफ कराना होगा तभी शायद समझेगी वो मुझे और मेरे प्यार को......... अंतर में उठते भाव से ख्याल अन्दर की मिटटी को नमी दे रहे थे तो बाहरी स्वरुप में मैं हताशा की सीढ़ियों पर बैठा वो दरिया था जिसके किनारों से लगकर नदी बहती थी और वो अब तक सूखा था, निर्जल था, मानो कफ़न ओढ़े कोई अपनी लाश की शिनाख्त कर रहा हो.
दिन हफ्ते महीने गुजरने लगे, उसके ख्याल, उसकी चाहत मुझे बेचैन करती रही. फिर भी नहीं लांघ पाया कोई मर्यादा, नहीं कर पाया उससे दोबारा बात......... आखिर उसका और मेरा सम्बन्ध ही क्या था सिवाय अजनबियत के........ ऐसे में यदि उसे परेशान करता मिलने को कहता तो हो सकता है वो मुझे गलत समझती या गलत कदम उठा लेती.........ये सोच चुप रह् जाता मेरे फरिश्तों की ओक में नहीं था पर्याप्त पानी जो मुझे सिंचित कर सके.
मगर वो कहते हैं न जिसे शिद्दत से चाहो तो रास्ते खुद आकार लेने लगते हैं ऐसा ही हुआ जब मैं अपने ऑफिस की एक पार्टी में आमंत्रित था अपने मित्रों से बातचीत में मशगूल था तभी वहां शमीना को देखा और चौंक उठा, मेरा चौंकना देख मित्र मेरी नज़र का पीछा करते हुए वहीँ देखने लगे तो समझ गए और मुझे उससे मिलवाने ले गए, “आओ नरेन तुम्हें उससे मिलवाते हैं. ये हैं मिस शमीना और आप हैं मिस्टर नरेन् हमारी कंपनी के जनरल मेनेजर”. अभिवादन की औपचारिकता निभाते हुए उसने ऐसे देखा जैसे पहली बार देख रही हो और मैं आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा और अपने दोस्तों से पूछने लगा, “यार, ये तो बताओ ये है कौन ? इससे कैसे मिला जा सकता है ?”
“अच्छा, तो ये बात है, पहली ही मुलाकात में धराशायी हो गए. ये चीज ही ऐसी है.”
‘चीज़ ‘ शब्द मुझे बेहद नागवार गुजरा और मैंने तपाक से कहा, “किसी भी स्त्री के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग सही नहीं है. “
“अरे यार, तुम नहीं जानते ये है कौन ? “
“ये कोई भी हो लेकिन है तो नारी ही न, तो उसके प्रति हमारे दिल में आदर होना चाहिए, ये कोई वस्तु नहीं है जो हम उसे चीज कहें. “
हथियार डालते हुए मोहन ने कहा, “ओके बाबा ! जो तुम ठीक समझो वो कहो. वैसे भी मैंने इसलिए ये सब कहा क्योंकि वो एक कॉल गर्ल है. “
मैं अचंभित सा उसे देखता रहा बेशक उसने बताया था अपने बारे में मगर फिर भी कहीं न कहीं दिल में एक विश्वास था शायद उसने जो कहा हो वो गलत हो लेकिन अब संदेह की कोई गुंजाईश ही नहीं रही थी मगर दिल तो दिल है कब मानता है, सारी सच्चाई जानते हुए भी मैं उसकी तरफ बिना डोर के खिंचा चला जा रहा था.
उससे एक मुलाकात और करना चाहता था और वो मौका मुझे पार्टी में मिल गया जब सबको एक पार्टनर के साथ डांस करना था और मैंने उसे ही एप्रोच किया तो उसका तो न कहने का सवाल ही नहीं था क्योंकि उसका तो काम ही था गेस्ट को एंटरटेन करना. डांस करते करते मैं उससे बतियाने लगा.
“ शमीना, मुझे देख तुम्हें आश्चर्य नहीं हुआ ?”
“नहीं, क्यों होता ?” प्रश्न पर प्रतिप्रश्न जवाब के साथ उसने किया.
“तुम्हें उम्मीद थोड़े होगी मैं यहाँ मिलूंगा.”
“नरेन जी, हमें जाने कितने लोग रोज मिलते हैं यदि ये सोचने लगें तो कर लिया काम.”
मैं उसे ध्यान से देख रहा था क्योंकि पिछली दो मुलाकातों में जो एक अलग सा रुआब था वो उसने यहाँ नहीं दिखाया था, शायद रेत थोड़ी नरम पड़ गयी थी और जरूरत थी उसे भिगोये रखने की इसलिए मैं उससे बात करता रहा.
“क्या कुछ समय मेरे साथ गुजारना पसंद करोगी ?”
“अपना तो काम ही यही है, चलिए रूम में” कह वो मुझे रूम में ले गयी. पांच सितारा होटल में पार्टी हो तो रूम पहले ही बुक होते हैं कुछ ख़ास लोगों के लिए तो मैं उसके साथ पहुँच गया एक रूम में.
अब हकीकत मेरे सामने बैठी थी और मैं असमंजस में था आखिर कैसे बात शुरू करूँ जबकि उसने कमरे में आते ही अपने कपड़ों के बटन खोलने शुरू किये तो मैंने उसे रोका :
“शमीना अभी नहीं ये सब.”
प्रश्नवाचक निगाहों से वो मुझे देखने लगी.
“शमीना देखो आज का सारा वक्त तुम्हारा मेरा है तो मैं पहले तुमसे फ्रेंडली बात करना चाहता हूँ ये सब तो बाद में भी होता रहेगा”, उसे कॉन्फिडेंस में लेते हुए मैंने कहा.
“कहिये क्या बात करनी है, वैसे तुम इंसान कुछ अलग ही किस्म के हो वर्ना यहाँ तो जो आता है सीधे बैड पर ही लेकर जाता है और वैसे भी अपना उससे कोई पर्सनल सम्बन्ध तो होता नहीं इस हाथ ले उस हाथ दे बस. “
जानता हूँ, गहरी दृष्टि से उसे देखते हुए मैंने कहा, मैं उसे पढ़ रहा था या वो मुझे नहीं जानता लेकिन कहीं एक कड़ी जुड़ रही थी जो अभी अदृश्य थी और उसे ही जानने के लिए मैं उससे बात करता रहा.
“अच्छा शमीना एक बात बताओ, तुम ये काम कब तक करती रहोगी ? मेरा मतलब है सोचा है तुमने जीवन में स्थायी होने का भी या इसी में उम्र गुजार दोगी ?”
“नरेन जी जब सारी आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं तो क्या जरूरत है कुछ और सोचने की. एक औरत और मर्द को क्या चाहिए होता है ? पैसा और जिस्म. और ये दोनों मुझे मिल रहे हैं तो फिर क्यों सोचूँ इसके आगे.”
“क्या तुम्हें ये सब करना अच्छा लगता है मेरा मतलब है कि रोज एक नया मर्द. और फिर सब मर्द भी तो एक जैसे नहीं होते. कोई बूढा तो कोई जवान तो कोई न शक्ल सूरत का होता है न ही आकर्षक. कैसे झेलती हो उन्हें ? क्या तुम्हें अजीब नहीं लगता ?”
“इसके लिए मैंने एक दायरा बना रखा है नरेन जी....... जो हमारे लिए ग्राहक अरेंज करते हैं उन्हें मैंने कह रखा है कि मुझे कैसा चाहिए. सबसे जरूरी चीज वो गुड लुकिंग हो, स्मार्ट हो और हमउम्र हो न कि कोई बुजुर्गवार. उनके लिए और लड़कियां हैं तो जरूरी नहीं कि मैं हर किसी को एंटरटेन करूँ. अपनी शर्तों पर काम करती हूँ और अपनी मर्ज़ी से. कोई जबरदस्ती थोड़े लाया है मुझे कोई इस धंधे में. और सबसे बड़ी बात वो मेरी एक रात की कीमत चुका सके बस. “
“क्या है तुम्हारी एक रात की कीमत ?”
“क्या आप देंगे ?”
“क्या नहीं दे सकता ? अरे भाई कंपनी का जनरल मेनेजर हूँ. इतनी तो औकात रखता ही हूँ.”
“अरे, इसलिए कहा क्योंकि आपकी कंपनी ने मुझे हायर किया है. “
“चलो छोडो ये सब. तुमने मेरी उस दिन की बात का अब तक जवाब नहीं दिया.”
“कौन सी बात ?”
“वो ही जब एक दिन चुक जाओगी तो कहाँ जाओगी ? कुछ भविष्य के बारे में भी सोचो. और सबसे बड़ी बात तुम्हारे पेरेंट्स को यदि पता चल गया तो क्या होगा, कभी सोचा है ?”
“आपने जो दूसरी बात कही है बस उसी से डरती हूँ बाकि भविष्य किसने देखा है आज हूँ कल न रहूँ तो ? तो फिर क्यों न अपनी मर्ज़ी से ज़िन्दगी जी ली जाये “.
“शमीना क्या तुम्हारा मन नहीं करता किसी के साथ रहने का, एक घर बनाने का ?”
“अभी सोचा नहीं नरेन जी “
“तो सोचो न अब. मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ. क्या तुम अपनी सोच में मुझे फिट पाती हो, सोचो इस पर. क्या तुम मेरे साथ अपनी ज़िन्दगी गुजारना चाहोगी ?”
“नरेन जी, आज की रात आपको दी है आप उसका जैसे चाहे उपयोग कर सकते हैं और आप हैं कि बातों में ही वक्त जाया कर रहे हैं”, बात को बदलते हुए शमीना ने कहा.
“शमीना मेरी बात का उत्तर दे दो समझ लेना मैं जो चाहता हूँ मुझे मिल रहा है. वैसे भी मैं तुम्हारे साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए नहीं आया. मुझे तो अपने प्रश्नों के उत्तर चाहिए थे और तुम्हारा साथ फिर थोड़े ही वक्त का क्यों न हो.”
“देखिये, नरेन जी, मेरा अभी शादी का कोई इरादा नहीं है पहले मैं अपनी पढाई पूरी करूंगी उसके बाद कुछ सोचूंगी. “
“ठीक है शमीना, अच्छा एक बात बताओ, तुम्हारी जरूरत कितनी है ? यानि महीने में तुम्हें अपनी जरूरतें पूरा करने को कितने पैसे चाहियें होते हैं ? मान लो कोई तुम्हें इतने पैसे दे दे तो क्या तुम छोड़ दोगी ये काम ?”
“आपके कहने का क्या मतलब है ?”
“कोई मतलब नहीं है बस बताओ तुम कितने पैसे चाहिए होते हैं तुम्हें ?”
“बस मेरा खर्चा निकल जाए और बैंक बैलेंस भी बढ़ता रहे “.
“यानी ?”
“यानि महीने में कम से कम २० -२५ हजार तो हो “
“अगर कोई तुम्हें ये दे दे तो क्या तुम छोड़ दोगी ये काम ?”
“मेरी जरूरतें पूरी होती रहे फिर कौन चाहेगा जान बूझकर कुएं में छलाँग लगाना.”
“तो फिर छोड़ दो ये काम, मैं करूंगा तुम्हारी जरूरतें पूरी.”
“लेकिन क्यों ?”
“क्योंकि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ, मुझे आजकल आईने में अपनी नहीं तुम्हारी शक्ल दिखती है, सोचो मेरा क्या हाल है, मान जाओ शमीना और छोड़ दो ये ज़िन्दगी, मैं हूँ न........”
असमंजस में पड़ी शमीना ने कहा, सोचूंगी......
मेरी ज़िन्दगी और वो रात बस वहीँ ठहर गए.
कोशिशों के साए मचलते रहे और आगे बढ़ते रहे जिसका परिणाम मेरे पक्ष में रहा. शायद उसे मुझ पर विश्वास हो गया था या शायद वो भी मुझे प्यार करने लगी थी क्योंकि मैं जब जहाँ कहता आ जाती. अक्सर मेरे फ़ोन का इंतज़ार करती या खुद करती बात. एक सिलसिला चल पड़ा और मैं उसे हर महीने २५००० रूपये देता रहा और वो मेरी तरफ खिंचती रही इसी में उसकी ग्रेजुएशन पूरी हो गयी तो बाकायदा उसके पेरेंट्स से उसका हाथ मांग लिया और मेरे जीवन में उजाले के हर रंग ने दस्तक दे दी.......
ज़िन्दगी का सूरज अब उठान पर था. दिन रात सांप सीढ़ी की गोटियों से गुजरने लगे. कभी दिन छोटा हो जाता तो रात लम्बी और कभी रात छोटी तो दिन लम्बा. मिलन का इंतज़ार एक एक पल की पहेली सुलझाने लगता और मेरी हर संभव कोशिश होती शमीना के चेहरे पर एक अदद मुस्कान की खातिर सब कुछ न्योछावर करने की.
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