गिनी पिग्स - 3 - अंतिम भाग Neelam Kulshreshtha द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गिनी पिग्स - 3 - अंतिम भाग

गिनी पिग्स

नीलम कुलश्रेष्ठ

(3)

"देखो दुनियां में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है. ये मीडिया या एक्टिविस्ट न हों तो हम लोग तो इन भयानक अपराधों को जान भी नहीं सकते. "

हर दिन इस दुःख पर परत चदाये जा रहा है ----वनिता की स्कूल की दिनचर्या जैसे वह सब भुलाए दे रही है. फिर वही पुरानी चिंता यानी रूपाली की शादी की चिंता सिर उठाने लगी है. रूपाली की शादी के लिए उसकी अपनी पसंद है कि किसी वैज्ञानिक के साथ ही वह विवाह करेगी, वहभी इसी शहर का होना चाहिए. वह कहीं दूर चली गई तो उसके माँ बाप को कौन देखेगा ?. वनि-ता जब सुबह इतवार को चाय बना कर लाती है तब तक तो सुनील `टाइम्स मेट्रोमोनिअल `या नेट के `शादी. कॉम नुमा `कोई साईट खोल कर बैठ जातें हैं. नेट पर चुन चुन कर लड़के रूपाली को दिखाए जा रहें हैं. वह नाक भौं चदाते फटाफट नापसंद कर देती है.

बमुश्किल नेट पर उसे एक लड़का पसंद आता है. उसके माता पिता भी कानपुर से ई -मेल से उत्तर देतें हैं, `आपका परिवार हमें पसंद है यदि ये दोनों एक दूसरे को पसंद कर लें तो हम शादी के लिए तैयार हैं. "

वे दोनों तय करते हैं कि शहर की नामी गिरामी दवाई की कम्पनी में काम करने वाले इस वैज्ञानिक लड़के को उसके रिसर्च सेंटर पर जाकर पहले देखकर स्वयं संतुष्ट हो लें फिर बिटिया से मुलाकात करवाएंगे. ये रिसर्च सेंटर शहर के बहुत हरे भरे क्षेत्र में स्थित है. उसकी विशालकाय इमारत में गेट से अन्दर जाने के लिए वे रजिस्टर में अपनी एंट्री करतें हैं. लॉन के सामानांतर जा रही सड़क पर मुख्य ईमारत तक लोगों की एक लम्बी लाइन लगी है., सामने पारदर्शी शीशों वाली, बाहर झांकते ए.सी . के एक्सटीरियर वाली चमकती विशाल इमारत से बेमेल मटमैले या मामूली कपड़े वाले लोग उजड़े हुए चेहरों से इस लाइन में खड़े हैं.

सुनील चलते चलते एक रबारी [दूध बेचने वाले जिनकी कडियों व पायजामा पहचान है ]से पूछ्ते, "क्या यहाँ दवाई भी बेची जाती है ?"

"नथी, एमने शोध माटे मानव शरीर जुइये."

सुनील को हिंदी बोलते देख उसके पीछे खड़ा एक युवक हिंदी में बोल उठता है, "दवाई कम्पनी को दवाई का असर देखने के लिए इंसान का शरीर चाहिए होता है. हम अपने शरीर का लिखाण करने आयें हैं. "

"मतलब क्लीनिकल ट्रायल के लिए आप लोग अपना रजिस्ट्रेशन करवाने आयें हैं. "वनिता उत्तेजित सी बोल उठी.

"शायद ये ही नाम डॉक्टर ले रहे थे. "

"आपकी ऐसी क्या मजबूरी है जो आप यहाँ आयें हैं, कभी कोई दवा आपको और बीमार कर सकती है. " उसके सामने पुलिन की म्रत्यु खड़ी उसे सिहरा रही है.

"क्या करे साब ! आप लोग शहर वाला गामडा का दुःख क्या समझोगे ? खेत गिरवी पड़ा है तो अपना शरीर न बेचें तो बच्चों को क्या खिलाएंगे ?"

पहले वाला अधेड़ बोल उठा, "मारे को बेटी ब्याहनी है. "

इसके आगे खड़े एक युवक ने अपने से आगे खड़े युवक की तरफ इशारा किया, "ये मारा बहनोई है. बेन को लकवा मार गया है तो इलाज कहाँ से करवाएगा ?खेत्ति से पेट भी न भरता.

"सहरों की मजदूरी से कौन सा पेट भर जाता है ?" एक आदमी जो इसी शहर में मजदूरी कर रहा होगा कहता है.

ये प्रश्न जैसे दिमाग में चाकूओ सा वार कर रहें हैं ---इन दोनों की चाल तेज़ हो गई है ---ये इन प्रश्नों से, पुलिन की मौत की याद से बचते हुए आगे और आगे पौधों के गमलों के समान्तर तेज़ चलते जा रहें. सुनील ने उस लड़के रोशन को एक चपरासी से अपने पहुँचने की स्लिप भिजवा दी क्योंकि मेडिकल रिसर्च लैब हो या यहाँ का स्पेस रिसर्च सेंट इसरो कर्मचारियों को अपना मोबाइल बाहर ही जमा कराना पड़ता है.

वे दोनों रिसेप्शन में सोफे पर बैठ जातें हैं. सामने काउंटर पर जाकर लाइन के सबसे आगे वाला आदमी एक फ़ॉर्म लेता है. और एक तरफ जाकर उसे भरने लगता है यहाँ स्टाफ़ के लोग भी खड़े हैं जो अनपद लोगों का फ़ॉर्म भर कर अंगूठा लगवा रहें हैं. कुछ देर बाद एक लम्बा सुदर्शन युवक सफ़ेद कोट पहने उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है. कुछ झिझकते हुए पूछने लगता है, "आप ही मिस्टर मिसिज़ सुनील हैं. "

"ओ यस !" कहते हुए दोनों खड़े हो जातें हैं. "

" आई एम रोशन " वह हाथ जोड़कर नमस्ते करता है. "सॉरी ! एक ब्लड की स्टडी कर रहा था, बीच में से नहीं आ सकता था. "

`नेवर माइंड. "वनिता गुपचुप उसके व्यक्तित्व का जायजा ले रही है. एक ही तो दामाद आना है. ऐसा ही लंबा पूरा दामाद उनकी कल्पना में था.

रोशन ने कहा, "चलिए केन्टीन में बैठकर चाय पीतें हैं. "

लौटते समय वे बेहद खुश हैं, रोशन एक सुलझा व शिष्ट लड़का है लेकिन मन को उसी लम्बी कतार की हताशा मथ रही है. वे इमारत से बाहर निकलें ही हैं कि वही अधेड़ उन्हें रोक लेता हैं. उसके साथ वाला युवक कहता है, "साब जी !यहाँ का पटावाला [चपरासी] बता रहा था कि आप जिस डाक्टर से बात कर रहे थे वही हमारे गामड़ा के राजेश के खून की जांच कर रहा है. "

"राजेश को हुआ क्या है?"वनिता उन्हें कैसे बताये कि सफ़ेद कोट पहनने वाला हर कोई डॉक्टर नहीं होता.

"कुछ समझ में नहीं आ रहा. यहाँ की कोई नई दवाई देने से उसके गले में कोई फोड़ा हो गया है, पस कम नहीं होता. चार महीने से डॉक्टर कहते रहतें हैं कि अब ठीक हो जायेगा अब. आप उनसे पूछकर बात दो कि उसे क्या हुआ है. वह कब ठीक होगा ?"

" अभी तो वे अन्दर लैब में चले गएँ हैं, वहां मोबाइल नहीं ले जा सकते. आप अपना मोबाइल नंबर दे दीजिये मैं पूछकर बता दूगा

सुनील उनका नंबर अपने मोबाइल में फीड करने लगतें हैं.

` `वनिता पूछ बैठती है, "ये कम्पनी वाले जो रूपये आपसे ठहराते हैं क्या उसे देते भीं हैं ?"

"हाँ, वह रुपया तो दे देतें हैं लेकिन अगर किसी की तबियत खराब हो गई तो तब इनसे रूपये लेने के लिए, इलाज कराने के लिए बस चक्कर काटते रहो. "

"कुछ लोग तो मर भी जातें हैं. "

"हमारे गामड़ा की क्या बात करो, इस कंपनी के आस पास के गामड़ा

मा इक्का दुक्का लोग मरते ही रहतें हैं. तब ये लोग आँखे निकलतें हैं कि हमारी दवाई से नहीं मरे उनकी तो मौत आ गई थी. "

सामने मौत का संभावित सच तो सामने खड़ा ही रहता है लेकिन उससे विकराल है जीवन की समस्याएं सुरसा सा मुंह फाड़े हुए. जैसे ही ऐसी कंपनियों के एजेंट सूंघते पहुँचते हैं कि किस परिवार को पैसे की ज़रुरत है, वैसे ही यहाँ लगने वाली लाइन ख़त्म नहीं होती. अरब से ऊपर पहुँच गई आबादी वाले देश में जो ऊपर वाले इनके चेहरों की बदहाली पोंछ सकतें हैं, वे अपने घर भरने में लगे हैं. ये मरियल से जीवन को भी जब खींच नहीं पाते ओ इधर आ जातें हैं. ------------वनिता के प्रश्नों का उत्तर कहीं नहीं है -------ये तो जीवन है जिसे सूखा--बाद--भीषण सर्दी या गर्मी ------या कोई सडक दुर्घटना या बस बेवजह ही ऊपर वाले का मूड ले उड़ता है तो फिर क्लीनिकल रिसर्च ही क्यों नहीं ?जीवन अमृत भी तो यही कम्पनियां देतीं हैं ----लेकिन पुलिन इन सबके बीच ------.

कुछ डॉक्टर्स की बनाई इथिक्स कमेटियां क्या करतीं रहतीं हैं ? अपनी वेबसाईट पर अपने लक्ष्यों के दावे तो बहुत बढ चढ़ करतीं हैं - शोध के दौरान हुए मरीज़ की खराब हालत के लिए हर्ज़ाना दिलवा कर रहेंगी लेकिन अक्सर साथ अपने हमपेशा लोगों का ही देतीं हैं या गर्म हुई जेब से वे सच छुपा जातीं हैं.

दूसरे दिन ही सुनील उसके सामने अखबार फैला देतें हैं. सामने हेडलाइन है `एक्सपेरिमेंट विद अनट्रुथ `---------- -जनवरी २००८ से अगस्त २०१० तक देश भर में क्लीनिकल ट्रायल से डेड हज़ार इंसानों की मौत हो चुकी है. इन ट्रायल्स पर नज़र रखने वाली इथिक्स कमेटियां इनको मुआवजा नहीं दिलवा पाई हैं. "`

वनिता रिसर्च सेंटर पर कल देखी गई मजबूरियों की मार्मिक पंक्ति से अपने को मुक्त नहीं कर पा रही, क्रोध में भर कर कहती है, `ये तो आंकड़े भर हैं जिन्हें करोड़ों की आबादी वाले मुल्क में कौन सही इकठ्ठा कर सकता है ? असली संख्या तो इतनी कम तो नहीं होगी

"सुनील का स्वर बोझिल है, "में बी."

ये जीवन की कसक अपनी जगह हैं, उसका प्रवाह अपनी जगह --वे दोनों रूपाली को रोशन से एक होटल में मिलवाने ले जातें हैं. रूपाली रोशन से मिल कर बहुत खुश है. ये लोग भी कानपुर जाकर उसका घर बार देख आयें हैं. उसके माता पिता भी बहुत मिलनसार हैं. रूपाली के कमरे की लाईट देर रात तक जलने लगी है. वनिता उसके कमरे की देर तक लाईट जलती देखकर सुनील से हंस कर कहती है, "ये लोग लैप टॉप से क्या बाते करते रहतें हैं, अभी तो पहचान हुई है. "

"ये हमारा ज़माना थोड़े ही है जो हम सगाई के बाद बात करने को तरस जाते थे.

अभी तुम देखना डेटिग्स की भी परमीशन मांगेगे. "

वाकई रूपाली दूसरे दिन यही मांग करती नज़र आती है.

वह सोच ही रही है कि शिल्पा जी को ये खुश खबरी दे दे कि रूपाली की दशहरे पर सगाई होने वाली है. सगाई के लिए होटल भी बुक कर दिया है. एक सुबह उनका ही फ़ोन आ जाता है. उनका गला रुंधा हुआ है बमुश्किल वे कह पातीं हैं, "मैं शिल्पा बोल रहीं हूँ. "

"आपके गले को क्या हुआ, क्या चाट बहुत खाली थी ?

वह जैसे उसके मज़ाक पर ध्यान ही नहीं दे रहीं, " तुमने आज का अखबार पड़ा ?`

"नहीं ---अभी तो हम लोग चाय पी रहें हैं. "

तुमने दिवांग गाँधी के बारे में पदा?

वह उबासी लेते हुए पूछती है, "क-क-- कौन दिवांग ----अच्छा वो जर्नलिस्ट ?"

" हाँ, उसकी डेड बॉडी वी आई पी रोड पर ट्रक से कुचली हुई पाई गई है. "

"वॉट? आखिर राक्षसों ने -----"

"हाँ, लेकिन एक अच्छी बात हुई है. "

"क्या ?"

"उसकी कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी क्योंकि उसने अपनी पत्नी के पास एक पत्र रख दिया था जिसमें उस वकील का नाम है जिसके पास उसने इस नर्सिंग होम व सूर्या रिसर्च सेंटर के खिलाफ सबूत रख दिए थे. उसकी पत्नी ने पुलिस प्रोटेक्शन की मांग की है व मीडिया से कहा है की वह उस वकील का नाम एक जज के सामने क्राइम ब्रांच को ही बताएगी. "

कहीं तसल्ली है वनिता के दिल को. वह उस दिन, अखबार की उन हैडलाइंस, हथकड़ी पडी फ़ोटोज़ का इंतज़ार करने लगती है जिनसे एक बड़ा हंगामा होने वाला है.

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नीलम कुलश्रेष्ठ

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