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गिनी पिग्स - 2

गिनी पिग्स

नीलम कुलश्रेष्ठ

(2)

जब एक प्रखर युवा की मौत होती है तो वह इमारत रोती है, वह कॉलॉनी रोती है. शहर का वह हर कोना रोता है जिससे वह युवा जुडा होता है --------- आधा घंटा बाद बाहर के कमरे में रोने की आवाज़ तेज़ हो जाती है. कमला जी उससे कह उठतीं हैं. "उठावनी हो रही है. " बाहर के कमरे की स्त्रियों के रुदन से वनिता का दिल दहल रहा है ---`राम नाम सत्य है `----`राम नाम सत्य है `---------कहता काफिला पुलिन की अर्थी को उठा रहा है. शामल जी ने अर्थी को कन्धा देते हुए गर्दन बिलकुल नीचे कर रक्खी है. राम का दिया शरीर राम को सौपने अर्थी ले जाई जा रही है. संकरी सीडियों से पता नहीं कैसे उसे उतारा होगा. बालकनी में जाकर वह देखती है. अर्थी वैन में रख दी गई है. वैन के पीछे चल पड़ा है धूल उड़ाता चार पहियों व दो पहियों का कारवां.

दो रिश्तेदार महिलाएं झाडू से वह कमरा साफ़ करने लगतीं हैं, तीसरी एक बाल्टी में पानी ले आई है. कचरा इकठ्ठा कर दिया गया, मरियल सी खुशबू बिखेरते गुलाब व गेंदों के फूलों के सिसकते आंसू फर्श पर फैले पानी में मिल गए हैं. पुलिन के अंतिम संस्कारके बाद वे दोनों घर लौट लेतें हैं.

घर खुला हुआ ही मिल गया है. रूपाली कॉलेज से लौट आई है उसका चेहरा उतरा हुआ है. .वह अपने सोने के टॉप्स में पानी डाल कर मग में ले लेती है व उसके छींटे उन दोनों पर डाल कर कहती है, `मॉम !मैंने आपके कपड़े बाथरूम में रख दिए हैं. "

तेरह दिन तो वनिता फिर भी शांत है लेकिन उसके बाद उसका मन बेचैन होने लगता है. ये दिन तो शामल जी व शिल्पाजी के दर्द का रास्ता अपने रिश्तेदारों व तेहरवीं के इंतजाम में रास्ता बनाता बँट गया होगा. उस फ्लेट में म्रत्यु का मातम तो अब मुखर हो रहा होगा. पुलिन की हर कोने से आतीं आवाजें इस घर को रुदाली बना देतीं होंगी -------`मॉम !आज प्रेक्टिकल के लिए आठ बजे निकलना है `---------`आप लोग टी वी की आवाज़ धीमी कर दीजिये प्लीज़ !-`---------`हेपी बर्थडे टु यु मॉम!` -----उसे पीछे से बांहों में घेरता पुलिन, उसके हाथ में एक सुन्दर सलवार सूट रखता हुआ.

जब वह कॉलेज चला जाता होगा तो वे स्कूल जाने से उसके बेतरतीब कमरे को संभालती बड़बड़ातीं होंगी, "अपना कमरा तो संभाला नहीं जाता. जब इंजीनियर बन जाएगा तो कैसे साईट पर काम करेगा ?"

वनिता अकेले ही उनसे मिलने चल देती है. शिल्पा जी अपने को संयत दिखाने का प्रयास कर रहीं हैं फिर भी उस फ्लेट में कुछ कसक रहा है, कहीं कुछ सिसक रहा है. थोड़ी बातचीत के बाद वह पूछती है, "पुलिन तो ठीक हो गया था फिर ऐसा कैसे हो गया ?"

"आदमी जब हार जाता है तो सब किस्मत पर छोड़ देता है, हमने भी यही किया था. लेकिन हमारे गुजराती मित्रों ने हमसे पूछा था कि हम गुजराती अखबार नहीं पढते ?"

"इसका पुलिन की मौत से क्या सम्बन्ध है ?"

"बहुत बड़ा सम्बन्ध था ---हमें पता ही नहीं था. पहले ठहरो --मैं चाय बनाकर लातीं हूँ. "

"शिल्पाजी ये फ़ॉर्मेलिटी रहने दीजिये. "

"मैं भी तुम्हारे बहाने चाय पी लूंगी. "

वे अजीब से रहस्य में वनिता को उलझा कर चलीं गईं है इस घर के रुदन व कराहों में वह जैसे जकड़ती जा रही है ----दीवारों पर बिखरे हैं एक युवा के सपने----- एक माँ के कसमसा गए सपने, ---- पल्लवित होने वाले इस घर का सुनहरा भविष्य जैसे `फ्रीज़ `करके` डिलीट ` कर दिया गया है ---पुलिन का दुल्हे का सेहरा बाँधने का सपना----------उसकी शादी के बाद नए बने जोशीले रिश्तों की महक ---- ---घर में गूंजती इशिता की पायल की रुन झुन चाहे वह उसने जींस के साथ ही पहन रक्खी हो ------ दुधमुंहे बच् की किलकारियां ----------इस घर में आने वाली ढेर सारी खुशियों की श्रंखला जैसे दफ़न हुई कराह रही है.

"हमारे गुजराती मित्र तो बहुत गुस्सा हो रहे थे कि हमने पुलिन को क्यों श्री हरि नर्सिंग होम में एडमिट करवाया था ?"वे उसके हाथ में चाय का कप देते हुए बोलीं थीं.

" ऐसी क्या बात हो गई ?"

"वे लोग बता रहे थे कि एक गुजराती जर्नलिस्ट दिवांग गाँधी वहां का भंडाफोड़ करने में लगा है."

"वहां क्या मरीजों को नकली दवाइयां दी जातीं हैं ?"

"नहीं उससे भी भयानक बात है. अपने शहर में जो देश की दवाइयों के शोध की नामी गिरामी कंपनी` सनफ्लॉवर ड्रग्स` है, वहां के मेनेजमेंट व इस नर्सिंग होम के कुछ बदमाश डॉक्टर्स की आपस में` `टाय` है. वह इस नर्सिंग होम के कुछ डाक्टर्स की मदद से यहाँ अपनी दवाइयां शोध के लिए भेजती रहती है. "

"शोध मीन्स क्लीनिकल ट्राइल ?"

"तुमने बिलकुल सही कहा क्लीनिकल ट्रायल यानि पहले दवाइयां मरीजों के शरीर में देकर पता किया जाता है की वे फायदेमंद हैं या नहीं. `

"ओ !लेकिन वे नुक्सान भी कर सकतीं हैं और फिर इसके लिए तो मरीज़ की लिखित अनुमति ज़रूरी है. "

"हाँ, ऐसा बिना अनुमति लिए करना कानूनी जुर्म है. ये जुर्म श्री हरि नर्सिंग होम के कुछ डॉक्टर्स छुपकर कर रहें हैं.. अक्सर ये प्रयोग युवा शरीर पर किये जातें हैं. पता नहीं कौन सी दवा किसको नुक्सान कर जाये. इसी कारण इस नर्सिंग होम में कितने जवान लड़के लड़कियों की मौतें हो चुकीं हैं. "

"वॉट ?"वनिता का मुंह खुला का खुला रह जाता है. ये जो प्रदेश देश की सबसे बड़ी दवाइयों की पोर गाँव की फार्मास्युटिकल बेल्ट पर नाज़ करता है -----------यहाँ पर दवाई बनाने से पूर्व जाने कितने शरीरों को रौंद कर शोध केन्द्रों में शोध होता है, तब ये बनाई जातीं हैं "वह जर्नलिस्ट दिवांग गाँधी लगातार उस गुजराती अखबार में यही लिख रहा है. हम तो उसे पढते नहीं है जो वहां जा फंसे. "

"वह प्रमाण जुटा सका है ?"

"इतने शक्तिशाली लोगों के अपराध के विरुद्ध आज के ज़माने में प्रमाण जुटाना क्या आसान है? हाँ, उसने अपने लिए क़त्ल की धमकी जुटा ली है. "

"ये न्रशंस डॉक्टर्स ऐसा करके क्या पातें हैं ?"

"शोध के बाद कोई मरे या जिए. दवाई की कम्पनियों से ये पातें हैं मंहगे फोरेन ट्रिप पैकेज -. ----- या भारी भरकम लिफाफे. वे किसके खून से रंगे हुए हैं, ये उन्हें परवाह नही है. "

उसका सर झामाका खा रहा है ---------तो पुलिन क्या क्लीनिकल ट्रायल का शिकार हो गया ---ये चमकते शोध केंद्र ------दवाइयों की बड़ी बड़ी आलीशान दुकानें ----आलीशान

मेडिकल रिसर्च सेंटर -----नित नई नई दवाओं के आविष्कार -----------इनको आजमाने लिए मानव शरीर तो चाहिए ही. रोग के कीटाणुओं को पहले सफ़ेद चूहों या मटमैले चूहों में इंजेक्ट किया जाता है. रोग का प्रभाव कुछ तो होना है. वे चूहे या तो गर्मी से बेचैन होकर या भयंकर खुजली से तंग होकर तद्फड़ाते पिंजरे में घूमते हैं. उस पर सिर मारते हैं या मरियल से एक कोने में पड़े रहतें हैं. उनके बीमार होते ही प्रयोगशाला में बनाई नई दवा उन्हें ठीक करने के लिए दी जाती है. अब ये उसकी किस्मत है दवा उन्हें और बीमार कर देती है या मार डालती है ------क्योंकि अभी प्रयोग ही चल रहा है ----------------- फिर दवा सफल होने पर कुत्तों पर -------फिर बंदरों पर परीक्षण करने के बाद मानव शरीर में दी जाती है आखिर उसी की भलाई के लिए तो ये शोध है.

तो इस मेडिकल मंडी में उपलब्ध है क्लिनीकल ट्रायल के लिए पांच सौ रूपये से लेकर हज़ारों रूपये में बिकते युवा व अधेड़ मजबूर शरीर ------उनके स्वस्थ शरीर को अस्वस्थ बनाने के लिए किसी रोग के कीटाणु कीटाणु इंजेक्शन लगाया जाता है क्योंकि प्रयोग तो रोगी शरीर को लैब में इजाद की नई दवा से ठीक करने का है., फिर उस रोग को ठीक करने के लिए प्रयोग होता है नई दवाई का. अब ये उनकी किस्मत है कि ज़बरदस्ती उन पर थोप गए रोग से उन्हें मुक्ति मिलती है या वह और उससे भी भयंकर बीमारी की चपेट में आ जातें हैं.? वह दवाई उनकी हालत और ख़राब कर देती है. कभी कभी कोई लकवा या और किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है.

बाज़ार में उपलब्ध एक एक दवा किसी वैज्ञानिक की निष्ठा व किसी की भुगती हुई पीड़ा का परिणाम है. हम जो अस्पताल से अपने अजीजों को सही सलामत घर लातें हैं कहाँ सोच पातें हैं इसके लिए कितनी जिंदगियां मुसीबत में पड़ गईं होंगी. सम्रद्ध देशों की दवाई की कंपनियों के भी एजेंट्स भारत व अफ्रीका में मानव शरीर तलाशते फिरते हैं. लगभग दो सौ मेडिकल कोलेज क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े हुए हैं. तो ये बहुत बड़ी किस्मत होती है जो हम अपनों को सही सलामत किसी अस्पताल से डिस्चार्ज कर लाते हैं.

इंसानी मजबूरियों की बिकती मंडी कितनी तरह की होती है कुछ लोग बार बार अपना खून बेचतें हैं. कुछ खूंखार डॉक्टर्स ओपरेशन करवाते मरीज़ की किडनी या कोई और अंग ही चोरी कर लेतें हैं.

वनिता के घर लौटते ही रूपाली उससे पूछती है, "क्या आप शिल्पा आंटी से मिलकर आ रहीं है ?"

"तुझे कैसे पता ?"

"आपका चेहरा देखकर ही लग रहा है. "

ये बेटियां भी कैसी होतीं हैं थोडा बड़े होते ही अपनी माँ की स्वयं माँ बनने लगतीं हैं. वह कुछ व्यग्रता से पूछती है, `मॉम ! पता लगा पुलिन की म्रत्यु कैसे हुई ?"

"वह दगाबाजी से किये क्लीनिकल ट्रायल का शिकार हुआ है. "

"वॉट ?" रूपाली माइक्रोबायोलोजी में एम. एससी. कर रही है. खूब समझती है ये क्या होता है.,

"अंकल को नर्सिंग होम पर केस कर देना चाहिए. "

"वे प्रमाणित कैसे करेंगे ?"

"क्यों नहीं कर पाएंगे ?"वह उस उम्र से गुज़र रही है जबकि दुनियां उन्हें पाक शफ्फाक आइना लगती है., "अस्पताल में मरीज़ को दी जा रही इलाज की दवाइयों व इंजेक्शंस का रजिस्टर्ड में रिकोर्ड रक्खा जाता है. "

"लेकिन उस पर लिखी दवाई दूसरी हो सकती है, दी कोई दूसरी हो. ये रिकोर्ड झूठा है, ये कैसे साबित होगा क्योंकि इस रेकेट में कुछ नर्सों को भी शामिल कर रक्खा होगा. पोस्ट -मार्टम के लिए पुलिन की बॉडी भी नहीं है. "

"ओ माई गॉड ----- ये फ्रॉड प्रूफ करने का कोई रास्ता ही नहीं है. ये डॉक्टर्स हैं या राक्षस ?"कहते कहते रूपाली रो उठती है.

"कोई जर्नलिस्ट दिवांग गाँधी एक गुजराती अख़बार में इस रेकेट के बारे में शोर मचा रहा है. `

"हाँ, मॉम ! मध्य प्रदेश में एक शहर के अख़बार ने यही भंडाफोड़ किया है कि शहर के मानसिक रोग अस्पताल के २३३ रोगियों पर क्लीनिकल ट्रायल क्यों किया गया बिना उनके संरक्षकों की अनुमति के क्योंकि जो अबोध अपने बारे में नहीं बता पाते वे दवाइयों के असर के बारे में क्या बताएँगे ?"

"लेकिन ये बात कैसे पता लगी ?"

"एक हेल्थ एक्टिविस्ट के कारण "

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