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कर्म पथ पर - 16



कर्म पथ पर
Chapter 16




हैमिल्टन के चंगुल से बच कर वृंदा छिपते छिपाते भुवनदा के पास पहुँची। उसे देखते ही भुवनदा रो पड़े। फिर आश्चर्य से बोले,
"तुम पुलिस की गिरफ्त से कैसे छूटीं ? मदन ने बताया था कि जब तुम पार्क में पहुँचीं तब पुलिस ने तुम्हें गिरफ्तार कर लिया था।"
लेकिन फिर वृंदा की दशा देखकर बोले,
"पहले चलकर बैठो। तुम बहुत थकी हुई लग रही हो।"
भुवनदा ने उसे कमरे में ले जाकर बैठाया। फिर नौकर को आवाज़ लगाई।
"बंसी एक गिलास पानी लेकर आ।"
बंसी पानी लेकर आया तो वृंदा को देखकर बोला,
"हे दुर्गा....दीदी तुमको क्या हो गया ?"
भुवनदा ने समझाते हुए कहा,
"बंसी तुम्हारी दीदी अभी थकी हुई है। उसे आराम करने दो। मैं दीदी से बात कर पता करता हूँ।"
बंसी चला गया। वृंदा को पानी पिला कर भुवनदा ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहा,
"अब बता बेटी तुम पुलिस की हिरासत से कैसे छूटीं ?"
भुवनदा की हमदर्दी ने वृंदा को भावुक कर दिया। वह रोने लगी। भुवनदा ने उसे शांत कराते हुए कहा,
"रो मत बेटी। तुम तो बहादुर हो। चलो कोई बात नहीं। कुछ खाकर आराम कर लो। बाद में बात करेंगे। मैं बंसी से कहता हूँ कि तुम्हारे लिए खाना लगाए।"
भुवनदा जाने लगे। वृंदा ने उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया। उन्हें अपने पास बैठने का इशारा किया। भुवनदा उसके पास बैठ गए।
वृंदा ने खुद को संभाला और हिम्मत कर भुवनदा को अपनी आपबीती सुनाई। सब सुनकर भुवनदा द्रवित हो गए। वृंदा को गले से लगा कर बोले,
"मेरी बच्ची, तुमने बहुत सहा है। पर तुम बहुत हिम्मत वाली हो। तुम्हारी जगह कोई और होता तो टूट जाता। पर तुम वीरांगना की तरह लड़ीं। मुझे तुझ पर गर्व है।"
भुवनदा वृंदा को तसल्ली दे रहे थे तभी मदन कमरे में आया। वह बोला,
"वृंदा तुम पुलिस वालों के चंगुल से निकल आईं। मैं आया तो बंसी ने बताया कि तुम लौट आई हो। कैसे हुआ ये चमत्कार ?"
भुवनदा ने कहा,
"बहुत दिलेर है वृंदा। मौत के मुंह से निकल कर आई है।‌ पर अभी थकी है। इसे आराम करने देते हैं। तुम मेरे साथ आओ।"
भुवनदा मदन को लेकर बाहर आ गए। उन्होंने बंसी से कहा कि वह वृंदा को खाना खिला दे।
भुवनदा और मदन दफ्तर वाले कमरे में जाकर बैठ गए। मदन जानने को उत्सुक था कि आखिर वृंदा पुलिस से कैसे बच गई ? भुवनदा उसकी उत्सुकता को समझ रहे थे। उन्होंने ने कहा,
"मदन.... वृंदा को पुलिस ने गिरफ्तार तो किया था पर उसे पुलिस थाने ले जाने की बजाय हैमिल्टन के बंगले पर ले गई थी।"
भुवनदा की बात सुनकर मदन को बहुत आश्चर्य हुआ। भुवनदा ने उसे सारी बात तफ्सील से बता दी। सुनकर मदन गुस्से में बोला,
"वो हैमिल्टन इंसान नहीं जानवर है। वृंदा के साथ कैसा घटिया सुलूक किया उसने। सचमुच वृंदा की जगह कोई और होता तो कभी भी उसके चंगुल से ना निकल पाता।"
वह गुस्से से उबल रहा था। उसे अपने आप पर पछतावा हो रहा था। ये उसकी ही मूर्खता थी कि जय के ढोंग को समझ नहीं पाया। आखिरकार वह एक अभिनेता है। कितनी आसानी से उसने यकीन दिला दिया था कि वह वृंदा का शुभ चिंतक है। उससे कुछ कहना चाहता है। पर यह सब वृंदा को उस हैवान हैमिल्टन को सौंपने की चाल थी।
वह जब जय से मिला था तब भी वह कैसे नाटक कर रहा था कि वृंदा को किसने गिरफ्तार करवाया उसे पता नहीं है। जबकी यह सब उसका ही किया धरा है।
भुवनदा ने उसे समझाया कि वह खुद को दोष ना दे। हमें अपने गुस्से पर काबू रख कर वृंदा को संभालना है। उस पर जो बीती है उसे सहन करने के लिए उसे हमारे साथ की आवश्यकता होगी।

खाना खाकर वृंदा आराम करने के ‌लिए लेट गई। बीती रात की घटनाएं उसके दिमाग में घूम रही थीं। रात को वह हिम्मत कर हैमिल्टन के बंगले की पिछली दीवार फांद कर बाहर कूद गई थी। बंगले के पीछे घना जंगल था।
रात के अंधेरे में वह जंगल बहुत ही भयानक लग रहा था। पर वृंदा जानती थी कि उसे किसी भी तरह इस जंगल को पार कर सुरक्षित घर पहुँचना है। वह एक पल भी रुक नहीं सकती थी।
इस बात का उसे अंदाज़ा था कि घायल हैमिल्टन और भी अधिक खूंखार हो गया होगा। उसे समझते देर नहीं लगेगी कि वृंदा बंगले से बाहर निकल गई है। उसने अपने आदमियों को उसके पीछे भेजा होगा। इसलिए वह जल्दी से जल्दी उस जंगल से निकल कर घर का रास्ता पकड़ना चाहती थी।
जंगल में उसे कुछ भी पता नहीं चल रहा था कि वह किधर जा रही है। वह बस अंधेरे में अपनी राह टटोलती बढ़ी जा रही थी। तभी उसे आवाज़ सुनाई पड़ी।
"किसी भी तरह ‌उस लड़की को तलाश करो। अगर वह हाथ नहीं आई तो हैमिल्टन साहब हमारी चमड़ी उधड़वा देंगे।"
यह उनमें से ही एक की आवाज़ थी जिन्हें वह गच्चा देकर बंगले के बाहर आई थी। वृंदा को रौशनी का एक टुकड़ा दिखाई पड़ा। वह सांस रोक कर पेड़ की आड़ में छिप कर खड़ी हो गई।
दूसरे आदमी ने चिंता जताई।
"यार कहीं ऐसा तो नहीं कि वह ‌लड़की जंगल से बाहर निकल गई हो। यहाँ से कुछ ही दूर पर तो कच्चा रास्ता है जो शहर जाने वाली मेन रोड से मिलता है।"
"लेकिन हैमिल्टन साहब ने उसका जो हाल किया था क्या उस पिद्दी सी लड़की में इतनी ताकत होगी कि जंगल से निकल सके। जंगल में ही कहीं पड़ी होगी।"
"उस पिद्दी लड़की ने इसके बावजूद भी हैमिल्टन साहब को घायल कर दिया। हमें चकमा देकर बंगले की दीवार फांद गई। उसे कम ना समझो। वह कुछ भी कर सकती है।"
"तो फिर उस लड़की की जगह हमारी लाशें इस जंगल में दफन होंगी।"
वृंदा समझ गई कि वह सही राह पर है। अब बस किसी तरह इन लोगों की नज़र से बची रहे तो वह घर पहुँच सकती है।
"क्यों ना हम लोग कच्ची सड़क की तरफ चलें।"
"चलो चलते हैं। अगर उसे कच्चा रास्ता मिल भी गया होगा तो बहुत दूर तक नहीं जा पाएगी।"
दोनों लोग आगे बढ़ गए। वृंदा एक निश्चित दूरी बना कर उस रौशनी के टुकड़े का पीछा करने लगी। वह बड़ी चालाकी से पेड़ों की आड़ लेकर आगे बढ़ रही थी।‌
कुछ दूर जाने के बाद उसे कच्चा रास्ता दिखाई पड़ा। वह चुपचाप पास ही झाड़ियों में जाकर छिप गई। वह इंतज़ार करने लगी कि वह दोनों हार कर चले जाएं। कुछ ही देर बाद दोनों वापस आते दिखे। उनमें से एक बोला,
"वो अभी जंगल में ही है। चाहें जैसे भी हो उसे ढूंढ़ो। नहीं तो खैर नहीं है।"
उन लोगों के जाने के बाद वृंदा झाड़ी से निकली। कच्चे रास्ते पर चलती हुई मेन रोड पर आ गई। पौ फटने वाली थी। कुछ ही देर में उजाला हो गया। वृंदा चलते हुए घर तक आ गई।

वृंदा सुरक्षित अपने घर पहुँच गई थी। पर उसके मन में भूचाल सा मचा था। उस भूचाल में वह पूरी अंग्रेज़ी हुकूमत को बहा ले जाना चाहती थी। हैमिल्टन ने जो किया उस पर तो उसे क्रोध आ ही रहा था। पर जय‌ के लिए उसके मन में नफरत थी। अगर हैमिल्टन उसके लिए वहशी दरिंदा था तो जय उसकी निगाह में एक तुच्छ कीड़ा था। एक ऐसा कीड़ा जो सिर्फ बीमारी फैलाता है।
वृंदा सोंच रही थी कि देश के असली दुश्मन तो जय और उसके पिता श्यामलाल टंडन जैसे लोग हैं। जो हमारे बीच रह कर हमारी जड़ें काटते हैं। अंग्रेज़ों से तो लड़ा जा सकता है। पर अस्तीन के इन सांपों से लड़ना बहुत कठिन काम है। पर उसने भी तय कर लिया था कि देश की आज़ादी की लड़ाई में वह अब पहले से भी अधिक दृढ़ता से भाग लेगी।

भुवनदा के पास से मदन सीधा जय के बंगले पर गया। उसने दरबान से पूँछा तो उसने बताया कि जय कहीं बाहर गया हुआ है। मदन को लगा कि ज़रूर ही वह क्लब गया होगा। वह उससे मिलने क्लब पहुँचा। लेकिन वहाँ जाकर पता चला कि जय कई दिनों से क्लब नहीं आया था।
मदन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर जय गया कहाँ होगा। पर वह हर हाल में जय से मिल कर उससे पूँछना चाहता था कि उसने वृंदा को धोखा क्यों दिया।
दरबान ने उसे बताया था कि जय दोपहर के खाने से पहले नहीं लौटेगा। अभी सुबह के दस बजे थे। वह अपने घर लौट गया।
करीब बारह बजे वह अपनी साइकिल लेकर जय के बंगले के पास उसी मोड़ पर खड़ा हो गया जहाँ पिछली शाम वह उससे मिला था। करीब आधे घंटे तक खड़े रहने के बाद उसे जय की मोटर आती दिखाई दी। वह साइकिल लेकर उसके बंगले के गेट पर पहुँच गया। जब तक जय का दरबान गेट खोलता मदन ने उससे कार से नीचे उतरने को कहा। जय ने कहा कि वह बाहर इंतज़ार करे। वह मोटर अंदर खड़ी करके आता है।
मदन बाहर इंतज़ार करता रहा। कुछ देर बाद जय बंगले से निकल कर बाहर आया। वह मदन से बोला,
"कल मैंने तुम्हें बताया था कि मैं पता करूँगा कि वृंदा के पार्क में होने की खबर किसने पुलिस को दी थी। पर उससे पहले ये पता करना ज़रूरी है कि वृंदा को कहाँ हिरासत में रखा गया है। सुबह से वही पता करने की कोशिश कर रहा था। मैंने पापा की जान पहचान का इस्तेमाल किया। पर वृंदा की गिरफ्तारी किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज़ नहीं है।"
मदन उसकी बात सुनते हुए उसके चेहरे को ध्यान से देख रहा था। उसके मन में आया। कितना शातिर है। सब जानते हुए कैसे दिखावा कर रहा है। उसने तंज़ करते हुए कहा,
"अच्छा....सुबह से इतनी मेहनत कर डाली। पर क्यों ? तुम्हें तो पता था कि वृंदा कहाँ है ?"
जय को उसका यह तंज़ बहुत बुरा लगा। वह तड़प कर बोला,
"मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मुझे नहीं पता कि किसने वृंदा को गिरफ्तार कराया है। मैं खुद परेशान हूँ।"
"तुम्हें नहीं पता था कि उसे गिरफ्तार कर हैमिल्टन के बंगले पर ले जाया गया था।"
"हैमिल्टन के बंगले पर ?"
"हाँ....ये सब तुमने किया था ताकि हैमिल्टन खुश होकर तुम्हारे बाप को राय बहादुर का खिताब दिला दे।"
यह बात सुनकर जय गुस्से से चिल्लाया,
"क्या बकवास है ?"
मदन ने उसे बता दिया कि वृंदा लौट आई है। उसने वृंदा पर जो कुछ बीता वह भी उसे बता दिया। मदन ने उसे हिकारत की नज़र से देखा। मदन अपनी बात कह कर चला गया।
सब सुनकर जय को गहरा धक्का लगा। वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। जय बंगले के बाहर ज़मीन पर बैठ गया। उसकी हालत देख कर दरबान ने दौड़ कर उसे संभाला। वह उसे बंगले के भीतर ले गया।
भोला ने दौड़ कर उसे पकड़ा।
"क्या हुआ छोटे मालिक ?"
"कुछ नहीं मैं ठीक हूँ।"
कहकर जय अपने कमरे में चला गया।

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