कर्म पथ पर
Chapter 15
हैमिल्टन बहुत ही सनकी और क्रूर था। जो भी उसके खिलाफ जाता था उसे बुरी तरह कुचल देता था। जब हिंद प्रभात में उसके खिलाफ रिपोर्ट छपी तो वह क्रोध से पागल हो गया। जब उसे पता चला कि उसके विरुद्ध रिपोर्ट लिखने वाली एक बाल विधवा औरत है, जिसका नाम वृंदा है तो उसने उसके किए की सजा दिलाने के लिए कमर कस ली।
उसने फौरन अपने मित्र पुलिस कमिश्नर से कह कर वृंदा की गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा दिया। लेकिन भुवनदा की दूरदर्शिता के कारण पुलिस उस तक नहीं पहुँच सकी। इस बात से वह और भी पगला गया। अब वह चाहता था कि वह खुद ही वृंदा को सज़ा दे।
उसने एक पुलिस इंस्पेक्टर जेम्स वॉकर को वृंदा की खोज का जिम्मा सौंप दिया। उसे हिदायत दी कि अगर वृंदा मिले तो उसे पुलिस लॉकअप में ना रख कर उसके पास लाया जाए।
जब इंद्र ने पुलिस को खबर दी कि वृंदा विक्टोरिया पार्क में किसी से मिलने जाने वाली है तो इंस्पेक्टर वॉकर मुस्तैद हो गया। यह तय हुआ कि वृंदा की गिरफ्तारी का कोई रिकॉर्ड ना रखा जाए। उसे गिरफ्तार कर शहर के बाहर बने हैमिल्टन के बंगले पर पहुँचा दिया जाए।
इंद्र नहीं चाहता था कि जय भी वृंदा के साथ पकड़ा जाए। इसलिए उसने इंस्पेक्टर वॉकर से कहा कि जय उन लोगों के साथ है। वह ही वृंदा को पार्क में लेकर जाने वाला है ताकि उसे पकड़ा जा सके।
इंस्पेक्टर वॉकर पार्क से कुछ दूर पर वृंदा के पार्क में आने की राह देख रहा था। जब उसने वृंदा को पार्क में घुसते देखा तो अपने साथियों को आगाह किया कि कोई जल्दबाजी ना करे। बड़ी सावधानी से पार्क में घुस कर वृंदा को गिरफ्तार करना है। इसके पीछे इंस्पेक्टर वॉकर का मकसद था कि वृंदा की गिरफ्तारी की किसी को कानों कान खबर ना हो। ताकि वह हैमिल्टन के आदेशानुसार उसे उसके बंगले पर पहुँचा सके। इत्तेफाक से वृंदा की गिरफ्तारी के समय पार्क में भीड़ नहीं थी।
वृंदा को गिरफ्तार कर इंस्पेक्टर वॉकर उसे शहर के बाहर स्थित हैमिल्टन के बंगले पर ले जा रहा था। लेकिन होशियार वृंदा समझ गई कि कुछ गडबड है। उसने विरोध किया तो उसे बेहोश कर दिया गया।
हैमिल्टन ने वृंदा के साथ जी भर कर पाश्विकता दिखाई। अपनी हवस पूरी कर लेने के बाद वह वृंदा को वैसे ही छोड़ कर चला गया।
वृंदा जब दोबारा होश में आई तो उसके हाथ पाँव खुले हुए थे। उसने उठने की कोशिश की। सारे शरीर में पीड़ा हो रही थी। फिर भी वह हिम्मत कर उठ गई। दरवाज़े के पास पहुँच कर उसने कान लगा कर बाहर की आवाज़ें सुनने की कोशिश की।
उसे हैमिल्टन की आवाज़ सुनाई दी। वह अपने आदमियों को आदेश दे रहा था।
"इस लड़की को मार कर जंगल में कहीं गाड़ दो।"
हैमिल्टन की आवाज़ सुन कर वह सतर्क हो गई। उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई। कमरे के कोने में एक मूर्ती खड़ी थी। उस मूर्ती के हाथ में एक नुकीला भाला था। आत्मरक्षा के लिए उसने वह भाला निकाल लिया।
कमरे की तरफ बढ़ते कदमों की आहट सुन कर वह वार करने के लिए तैयार हो गई। जैसे ही दरवाज़ा खुला उसने फुर्ती से भाला दरवाज़ा खोलने वाले आदमी की छाती में भोंक दिया। अचानक इस हमले से उसका साथी हड़बड़ा गया। वृंदा ने फुर्ती दिखाई। भाला निकाल कर दूसरे आदमी के गले में भोंक दिया।
हाथ में खून से सना भाला लिए वह सिंहनी की तरह बाहर आई। हैमिल्टन नशे में लड़खड़ता हुआ उसकी तरफ लपका। वृंदा ने भाला उसकी बाईं आँख में घुसा दिया। लेकिन हैमिल्टन फिर भी उसकी तरफ बढ़ा। उसने वृंदा को मजबूती से पकड़ लिया। वृंदा खुद को छुड़ाने के लिए पूरी ताकत लगा रही थी। लेकिन उसकी हिम्मत टूट रही थी। तभी उसके हाथ में शराब की बोतल लग गई। वृंदा ने वह बोतल उसके सर पर फोड़ दी।
हैमिल्टन की पकड़ ढीली पड़ते ही वह खुद को छुड़ा कर बाहर की तरफ भागी। जब वह बाहर निकल रही थी तो वहाँ बैठे दो और आदमियों ने उसे पकड़ने का प्रयास किया। लेकिन वृंदा के अंदर ना जाने कौन सी शक्ति आ गई थी। वह उन्हें धक्का देकर बंगले के पिछले हिस्से की तरफ भागी।
वो दोनों आदमी भी उसके पीछे थे। वह पसीने से लथपथ थी। वह किसी भी कीमत पर खुद को उन लोगों के चंगुल से मुक्त कराना चाहती थी। क्योंकी वह जानती थी कि यदि उसने हिम्मत छोड़ दी तो ये लोग उसे मार कर गाड़ देंगे। उसे मरने का डर नहीं था। पर वह देशहित का काम करते हुए अपने प्राण न्यौछावर करना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि इन लोगों के हाथों मरे और उसका काम अधूरा रह जाए।
बंगले के पिछले हिस्से में कई सारे पेड़ लगे थे। वहाँ अंधेरा भी था। वह पेड़ों के एक झुरमुट के पीछे छिप गई। हैमिल्टन के आदमी भागते हुए उस तरफ आए। पर उन्हें वृंदा नहीं दिखी। उनमें से एक बोला,
"लगता है कि हमसे गलती हो गई। वह लड़की गेट की तरफ भागी होगी।"
दूसरे ने कहा,
"तो फिर गार्ड ने उसे पकड़ लिया होगा।"
"तो फिर चल कर देखते हैं। वैसे भी भाग कर जाएगी कहाँ ?"
उन दोनों के जाते ही वृंदा बाहर आई। वह जानती थी कि उसके पास समय बहुत कम है। गेट की तरफ जाने में खतरा था। वह पीछे की दीवार की तरफ बढ़ी। एक जगह दीवार का हिस्सा टूटा हुआ था।
वृंदा ने सोंचा कि यही एक रास्ता है। यदि वह हिम्मत करे तो मुक्त हो सकती है। अन्यथा वह इन पापियों के हाथ मारी जाएगी।
वृंदा ने अपनी सारी शक्ति संचित की। पेड़ के सहारे दीवार पर चढ़ी और बाहर कूद गई।
जब वृंदा वापस नहीं आई तो भुवनदा परेशान हो गए। उन्होंने फौरन मदन को सूचना भिजवाई। मदन को लगा कि पुलिस को वृंदा की खबर देने वाला कोई और नहीं जय ही हो सकता है। वह उसे खोजता हुआ उसके बंगले पर पहुँचा। जय उस समय घर पर नहीं था। वह बंगले के पास वाले मोड़ पर उसकी प्रतीक्षा करने लगा।
काफी देर तक विक्टोरिया पार्क में बैठे रहने के बाद जय तांगे से गोमती नदी के किनारे चला गया। उस समय उसकी मनोदशा बहुत खराब थी। वह नहीं चाहता था कि वह घर पहुँचे और सब उसकी परेशानी के बारे में सवाल करने लगें।
जय नदी के किनारे एक एकांत स्थान देख कर बैठ गया। उसका मन कर रहा था कि वह जी भर कर रोए। उसने इधर उधर देखा। आसपास कोई नहीं था। वह फूट फूट कर रोने लगा। पहली बार उसे वृंदा के लिए अपने प्यार की शिद्दत महसूस हो रही थी। अब तक वृंदा के लिए वह एक बिगड़ा रईसजादा ही था। जय ने सोंचा था कि वह उसके मन में बसी अपनी छवि को बदल देगा। लेकिन जो कुछ हुआ उसने वृंदा के मन में उसकी एक धोखेबाज़ की छवि अंकित कर दी थी। यही सोंच कर उसका दिल बैठा जा रहा था।
रो लेने के बाद उसका दिल कुछ हल्का हुआ था। वह उठा और घर की तरफ चल दिया।
मदन बहुत गुस्से में था। उसका मन कर रहा था कि जय का गिरेबान पकड़ कर पूँछे कि विश्वास को छल कर उसे क्या मिला ? उसे जय आता दिखाई पड़ा। उसने जय को रोक कर गुस्से में पूँछा,
"तुमने अपनी असलियत दिखा ही दी। तुमसे बड़ा धोखेबाज़ मैंने नहीं देखा।"
जय उस समय बहुत परेशान था। मदन का यह इल्ज़ाम सुनकर वह तिलमिला उठा। अपनी सफाई देते हुए बोला,
"देखो मदन मैंने कोई धोखा नहीं दिया। यही करना होता तो मैं पुलिस को तुम्हारे बारे में बता देता। पुलिस तुमको गिरफ्तार कर वृंदा का पता भी निकाल लेती।"
जय की यह बात मदन को कुछ ठीक लगी। उसने महसूस किया कि जय की आँखों में नमी है। जैसे वह खूब रोया हो। उसकी आवाज़ में दर्द था। पर वह इतनी आसानी से उस पर यकीन नहीं करना चाहता था।
"तुमने नहीं तो फिर किसने पुलिस को खबर दी?"
"मैं खुद नहीं जानता। लेकिन मैं जल्दी ही पता कर लूँगा।"
"वो कैसे?"
"अभी मैं यह नहीं बता सकता। मैं खुद इस बात को लेकर बहुत परेशान हूँ। लेकिन मेरे लिए भी यह जानना आवश्यक है कि वह कौन है जिसने सदा के लिए वृंदा की नज़रों में मुझे गिरा दिया ?"
मदन कुछ देर और उससे बहस करता रहा। लेकिन जय की हालत देख उसे लग रहा था कि वह सचमुच भीतर से टूटा हुआ है। उसे यकीन हो गया था कि जय ने ऐसा नहीं किया है।
मदन यह कह कर चला गया कि वह अपने स्तर पर पता करेगा। पर यदि जय ने ऐसा किया है तो वह उसे छोड़ेगा नहीं।