आओ थेरियों - 4 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

श्रेणी
शेयर करे

आओ थेरियों - 4

आओ थेरियों

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 4

मैं बार-बार वह ताकत, वह साधन ढूंढ़ती मनू जिससे इस शोषण का प्रतिकार कर सकूं। रोक सकूं। मगर हर तरफ घुप्प अंधेरा मिलता। कोई एक सेकेंड को भी साथ देने वाला नहीं मिलता। आखिर मैंने तब-तक के लिए खुद को परिस्थितियों के हवाले कर दिया जब-तक कि मेरी और मेरे घर की हालत सुदृढ़ नहीं हो जाती।

मैं सरकारी नौकरी की तलाश में लगी रही और उनके जीवन आनंद के खेल का साधन भी बनी रही। मनू यह मेरी मजबूरी की अति थी कि सिर्फ़ वह सियार-सियारिन ही नहीं उसी की तरह का एक और कमीना तथा तीन कमीनियां भी मेरा शोषण करते रहे। इन सबने मिलकर इतने घने और मजबूत जाल में फंसाया था कि मैं उफ़ भी नहीं कर पा रही थी।

जो ऐसी स्थितियों से नहीं गुजरी हैं, मनू यह सुनकर उनका कलेजा कांप उठेगा कि महीने में दो-तीन दिन ऐसे भी बीतते थे जब मेरा चौबीस घंटे में ही तीन-तीन बार शोषण होता था। लेकिन अंततः मेरी मेहनत, मेरा धैर्य काम आया। सरकारी हॉस्पिटल में नौकरी मिल गई। लेकिन मनू उससे पहले मिशनरी हॉस्पिटल में तीन साल तक जो यातना, जो अपमान बर्दाश्त किया वह आज भी एकदम ताजा है। ऐसे कि जैसे सब अभी-अभी घट रहा है। अपमान की आग मुझे आज भी उतना ही जला रही है, जितना तब जलाती थी। मनू मेरा दुर्भाग्य मेरे साथ यहीं तक नहीं रहा।

जब सरकारी हॉस्पिटल ज्वाइन किया तो बहुत खुश थी। सोचा कष्ट, पीड़ा, अपमान से भरा मेरा काला समय खत्म हुआ। घनी काली रात के बाद मेरे जीवन में चमकीली सुबह हो गई है। मगर जानती हो यह चमकीली सुबह मात्र दो साल ही रही। हॉस्पिटल का नया निदेशक आया और उसके चंगुल में कई फंस गईं। पता नहीं मुझे क्या हुआ था कि मैं भी भूल कर बैठी। कितने-कितने तरह के शोषण के बदतरीन अनुभवों से गुजर चुकी थी फिर भी मुझसे यह मूर्खता हुई। एक जूनियर डॉक्टर के साथ मेरे संबंध बन गए और वह शादी की सीमा तक पहुंचे। उसने मुझे बड़े-बड़े सपने दिखाए। जब मैंने सपने सच करने पर जोर दिया तो वह मुकर गया। सब उसका धोखा था।

उसके बिछाए जाल में मैं फंस गई थी। बात हर तरफ फैल गई। उस जूनियर ने निदेशक के साथ मिलकर ऐसी स्थिति पैदा की कि मैं उसकी भी हवस का शिकार बनती रही। यह सिलसिला दो साल तक चला। जब वह निदेशक सीएमओ हो कर दूसरे शहर चला गया तब मुझे मुक्ति मिली। वैसे ही जैसे पढ़ाई के दौरान इंस्ट्रक्टर से मिली थी। इतिहास ने अपने को दोहराया था। जूनियर डॉक्टर एक दबंग बिल्डर का बेटा था। इन बातों का पूरा खुलासा तब हुआ जब मैं उसके चंगुल में बुरी तरह फंस चुकी थी। विरोध करती तो नौकरी के साथ-साथ जान का खतरा भी था। अंततः जूनियर ने बहुत दिनों तक मेरा शोषण किया।

तुमसे अचानक ही जब महिला हॉस्पिटल में परिचय हुआ तो बड़ा अच्छा लगा। तुम्हारे तेज़-तर्रार व्यवहार से लगा कि तुम्हारा शोषण तो कोई कर ही नहीं सकता। मगर कुछ ही महीनों के बाद जब तुम्हारे साथ हुई एक घटना को लेकर विवाद इतना हुआ कि हॉस्पिटल के निचले स्टाफ ने हड़ताल कर दी, भले ही दबाव में दो घंटे में ही खत्म हो गई। तब मुझे कुछ जानकारी हुई। मैं तुम्हारे पास पहुंची। तुम मेरा जरा सा अपनत्व पाकर बिलख पड़ी। और अपने शोषण की पूरी बात बताई। मनू तुम्हारी बातें सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी।

मैं घबरा गई कि तुम्हारी जैसी तेज़-तर्रार महिला के साथ यह हुआ तो मेरी जैसी कहां बचेंगी। तब मैं यह यकीन कर बैठी थी कि कहीं भी, किसी भी क्षेत्र में जो भी महिलाएं हैं, उन सब का शोषण होता है। निश्चित ही होता है। एक भी नहीं बचतीं। और पनिश भी वही की जाती हैं, जैसे तुम्हारा ही शोषण हुआ और बतौर पनिशमेंट तुम्हारा ही ट्रांसफर भी कर दिया गया, दूर डिस्ट्रिक्ट में। जिससे हम अलग हो गए। संपर्क भी बहुत क्षीण हो गया। लेकिन इस ‘मी-टू’ हलचल ने मेरे अंदर एक ऐसी ज्वाला प्रज्वलित कर दी है कि अब मैं चुप नहीं बैठ सकती। मैं चाहती हूं कि यह ज्वाला देश के कोने-कोने में, झोपड़ियों में, छप्पर, फुटपाथों में रहने वाली आखिरी औरत तक पहुंचे।

सब एक साथ दुनिया के सामने आएं और अपने साथ हुए शोषण को बताएं। जिसने उनके शरीर, इज़्ज़त मान-सम्मान को, उनकी आत्मा को कुचला है, उनका नाम उजागर करें। एक अकेली करेगी तो कठिनाई में रहेगी। कोई उसकी बात नहीं सुनेगा। हम जैसी, तुम जैसी, छप्पर में जीने वाली मेरी मां और फुटपाथों पर जीने वाली महिलाओं के पास वो ताक़त नहीं है जो तनुश्री दत्ता, प्रिया, श्री रेड्डी, जैसी सक्षम महिलाओं के साथ है। इन सब ने भी मुंह तब खोला जब यह सक्षम बन गईं। इसी से जब यह बोलीं तो पूरा मीडिया इनके साथ खड़ा हो गया, इनकी जबरदस्त ताकत बन गया।

और तुम इस ताक़त का परिणाम देख ही रही हो कि बड़े-बड़े दिग्गजों को अपने काम से हाथ धोना पड़ रहा है। पद से हाथ धोना पड़ रहा है। अपने परिवार, अपने बच्चों के सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा है। मुंह छुपाते नहीं बन रहा है। ऐसे ही जब हम कोने, अंधेरे में पड़ी औरतें, छप्परों से निकल कर, फुटपाथों से निकल कर, एक समूह बनाकर जब शोषकों, रंगे सियारों का असली चेहरा दिखाएंगे दुनिया को तो हमारे साथ जबरदस्त ताक़त मीडिया की, सोशल मीडिया की जुड़ जाएगी। एक समूह से यह मत समझ लेना कि हम सब एक जगह इकट्ठा होंगे फिर आगे बढ़ेंगे।

*****