Aao Theriyo- 3 books and stories free download online pdf in Hindi

आओ थेरियों - 3

आओ थेरियों

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 3

मनू एक बात बताऊं कि हम महिलाओं पर अत्याचार कोई आज की बात नहीं है। यह हज़ारों साल से होता आ रहा है। अब तुम सोचोगी कि जब यह हज़ारों साल से होता आ रहा है। इतने सालों में कोई नहीं बंद करा सका। महिलाओं को उनका अधिकार नहीं मिला तो मैं और तुम क्या कर लेंगे। नहीं मनू नहीं, ऐसा नहीं है। हम औरतों ने जब-जब अपने अधिकारों को समझा, संघर्ष किया तो हमें अपने अधिकार मिले भी। हम पर अत्याचार बंद भी हुए। लेकिन हम जब असावधान हुए तो फिर विपन्न हो गए। इसका उदाहरण तुम थेरियों को मान सकती हो। वो जब अपने अधिकारों के लिए सतर्क हुईं तो अपनी दुनिया बदल कर रख दी।

वह भी दो हज़ार साल से भी पहले बुद्ध के समय में। तो मनू जब हज़ारों साल पहले यह हो सकता है तो आज क्यों नहीं? आज तो पहले से बहुत आसान है। तो आओ आज हम सब मिलकर अत्याचारी, मर्दवादी सोच से अपनी दुनिया का उद्धार करें। मुक्त कराएं अपनी दुनिया।

जानती हो मनू मैं पुलिस वालों की मार से तड़पते अपने पिता का आखिरी बार देखा चेहरा आज भी भूलीे नहीं हूं। बहुत सालों बाद जब हम कुछ समझदार हुए, सेल्फ़डिपेंड हुए। हाथों में कुछ पैसे आए तो हम भाई-बहनों ने पिता की खोजबीन फिर शुरू की, थाने से ही। लेकिन वहां से पता चला कि उस समय गांव के इस नाम के किसी व्यक्ति को जेल भेजा ही नहीं गया था। मतलब साफ था कि प्रधान ने पुलिस के माध्यम से अपने पैसों के दम पर मेरे पिता की हत्या करवा दी थी। उन्हें गायब करवा दिया था।

मेरी पीड़ा इतनी ही नहीं है मनू। जब किसी तरह पढ़ाई पूरी कर निकली तो एक कस्बे के छोटे से प्राइवेट हॉस्पिटल में नौकरी मिली। जल्दी ही पता चला कि यहां तो लेडीज स्टॉफ का शोषण एक आम बात है। असल में हॉस्पिटल कुल मिला कर ठीक-ठाक था। मगर उसका संचालक एक झोला छाप डॉक्टर था। जिसके बारे में बाद में पता चला कि वह देह बेचने का भी धंधा वहीं हॉस्पिटल में ही करवाता है। जिन लोगों को वह बतौर कस्टमर लाता था उनके बारे में बताता कि उसे नर्व, मसल्स की कमजोरी की बीमारी है। उसे दूर करने के लिए मसाज थेरेपी के लिए कहता। बोलता इसके लिए आयुर्वेदिक इलाज ज़्यादा बेहतर है। फिर टारगेट की गई नर्स से ही मसाज थेरेपी दिलवाता।

कस्टमर और उसकी मिलीभगत की यह साजिश जब-तक नर्स कुछ समझती थी तब-तक वह उनकी साजिश का शिकार होकर उनके चंगुल में फंस चुकी होती थी। नर्स की सैलरी में ही वह कस्टमर को खुश करता और उससे मिला सारा पैसा अपने पास रखता। नई नर्सों को डराने, उन्हें अपने चंगुल में फंसाए रखने के उद्देश्य से वह बड़ी गहरी चाल चलता था। वहां के थाने के दरोगा से कहता कि आपको नई नर्स का इनॉग्रेशन करना है। इससे दरोगा भी खुश कि बिना पैसे खर्च किए सब मिल रहा है। और वह झोला छाप डॉक्टर नर्स को दरोगा की वर्दी के सहारे डराने में सफल हो जाता। मेरे साथ भी यही हुआ। मैं जब-तक कुछ समझती तब-तक दरोगा मेरा इनॉग्रेशन कर चुका था। मैं डॉक्टर के पास पहुंची कि मेरा रेप हुआ है, मुझे रिपोर्ट लिखानी है। तो वह ड्रामा करते हुए बोला, ‘ये तो बड़ी मुश्किल हो गई। जिस थाने में रिपोर्ट लिखानी है ये उसी थाने का दरोगा। यह रिपोर्ट तो लिखेगा नहीं, उल्टा किसी फ़र्जी केस में अन्दर कर देगा, साथ में मुझको भी। इसलिए थोड़ा रुको। मैं तुम्हें पुलिस के बड़े अधिकारी के पास लेकर चलूंगा। तुम्हारी शिकायत पर सख्त कार्रवाई करवाऊंगा ।’

फिर यही कहते-कहते उसने कई दिन निकाल दिए। मैं बहुत परेशान थी कि यह तो ऐसे ही पूरा केस खत्म कर देगा। तभी एक दिन वहां की एक स्वीपर ने बताया कि सच क्या है। उसे वहां के हर इनॉग्रेशन की जानकारी रहती थी। मेरी सारी बातें भी उसे पता थीं। उसने कहा कि, ‘जो भी थाने पर गया उसे यह उल्टा फंसवा देता है।’ मेरे सामने अचानक ही पिता का तड़पता चेहरा आ गया।

फिर उसी महिला स्वीपर की सलाह पर मैं वहां से चुपचाप भाग निकली। उसी ने एक मिशनरी हॉस्पिटल का पता दिया था जो वहां से करीब दो सौ किलोमीटर दूर था, वहां गई। उस महिला का आदमी वहां काम करता था। उसे बताया तो उसने मदद की। वहां दैनिक वेतन पर नौकरी मिल गई। काम बहुत था, लेकिन मैं खुश थी। मगर कुछ महीनों बाद ही मैंने वहां के रंग-ढंग में भी वही भांग घुली पाई जो पहली जगह पाई थी। कुछ महीना बीततेे-बीतते मुझे तस्वीर साफ दिखने लगी। ज़्यादातर खेल वहां नाइट ड्यूटी पर खेला जाता था।

मेरी नौकरी जिस सीनियर डॉक्टर के हाथों में थी, उसकी दो चीजें बड़ी फेमस थीं। पहली यह कि वह बहुत जेंटलमैन और हेल्पफुल नेचर के हैं। दूसरी पेशेंट को वो बड़े प्यार से देखते हैं। आधी बीमारी तो वह अपनी बातों से ही खत्म कर देते हैं। ज्वाईनिंग के छः महीने बाद मेरी लगातार तीन महीने तक नाइट ड्यूटी लगाई गई। बताया गया कि दो नर्स मेटरनिटी लीव पर चली गई हैंं, और चार ने अचानक ही नौकरी छोड़ दी है।

मनू इस मिशनरी हॉस्पिटल में सब कुछ इतनी शांति, इतनी चालाकी से होता था कि ऊपर से पूरा एटमॉसफ़ियर बहुत ही अच्छा दिखता था। कोई किसी की तरफ उंगली नहीं उठाता था। ऐसे धूर्ततापूर्ण माहौल में मेरी नाइट ड्यूटी को शुरू हुए हफ्ता भी नहीं हुआ था कि एक दिन उसी जेंटलमैन डॉक्टर और दो नर्सों को बाईचांस मैंने स्टॉफ रूम में रंगे हाथों देख लिया। मैं सॉरी बोलते हुए उल्टे पांव वापस चली आई। जेंटलमैन डॉक्टर रंगा सियार निकला था।

मैं डर गई कि अब क्या करूं, कहां जाऊं, मैं वहां सीनियर नर्स को बुलाने गई थी। एक पेशेंट की तबीयत बिगड़ रही थी। उसका ध्यान आते ही मैं फिर पलटी कि बुला कर ले आऊं जो होगा देखा जाएगा। किसी की ज़िंदगी बचाने से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है। वापस मैं आधे रास्ते पर पहुंची ही थी कि उन्हीं दो में से एक सीनियर नर्स आती हुई दिखी। मैंने उनके पास पहुंच कर पेशेंट की हालत बताई। क्या-क्या देखा इस बारे में कोई बात ही नहीं की।

उन्होंने जल्दी से आकर पेशेंट को देखा। वार्ड ब्वाय को भेज कर डॉक्टर को बुलवाया। जानती हो मनू तब मैं रंगे सियार को देखकर दंग रह गई। और रंगी-पुती उन दोनों सियारिनों को भी। जो कुछ ही मिनट पहले तक किसी मानसिक रोगी की तरह घृणित स्थितियों में पड़े थे। तीनों सेवा की प्रतिमूर्ति लग रहे थे। पेशेंट को देखा, फॉर्मेलिटी पूरी की और चले गए यह जाने बगैर कि पेशेंट की तकलीफ दूर हुई कि नहीं।

सीनियर नर्स ने सुबह जाते-जाते मुझे शिक्षा दी, ‘मेरी प्यारी मित्र, जीवन का आनंद उठाओ। जीसस बहुत दयालु हैं।’ उसकी बातों का मतलब मैं साफ-साफ समझ गई थी। मैं भी ऐसे चुप हो गई जैसे कि मुझे कुछ मालूम ही नहीं है। मनू जल्दी ही मुझे पता चला कि वह डॉक्टर सीनियर होने के बावजूद जब भी उसका मन उनके तथाकथित सिद्धांत जीवन का आनंद उठाने का होता है तो वह अपनी ड्यूटी नाइट में भी लगा लेता है।

मैं जहां उस रंगे सियार, सियारिनों को देखती या उनकी याद आती तो बहुत परेशान हो जाती थी, कि कहीं यह सब साजिश का शिकार बना कर मुझे भी आनंद ना देने लगें। जैसे पिछले हॉस्पिटल में साजिश रच कर झोला छाप डॉक्टर ने दरोगा से इनॉग्रेशन करा दिया था। यह सोच कर मैं वहां से भी निकलने की सोचने लगी। लेकिन तब मुझे हर तरफ सियार-सियारिन ही दिखाई दिए।

मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था कि मैं कहां जाऊं। आखिर जिसका मुझे डर था वही हुआ। कुछ ही समय बीता होगा कि मैं इन सब के जीवन आनंद के जाल में फंस गई। वह छब्बीस या सत्ताइस दिसंबर की रात थी। कड़ाके की ठंड थी, हर तरफ हड्डी कंपा देने वाली ठंडी हवा थी। कोहरा भी भयानक धुंए की तरह उड़ रहा था। मैं नाइट ड्यूटी पर थी। उस दिन उनके फेंके जाल में फंस गई। मेरा शोषण हो रहा था। वह सब रंगे सियार-सियारिन जीवन का आनंद उठा रहे थे, मैं स्तब्ध थी। उस दिन मैं बहुत रोई कि मेरे जीवन में क्या केवल शोषण ही लिखा है। मेरे ही क्यों मेरे परिवार के भी। पहले मां का, बड़ी बहनों का, फिर मेरा।

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